" ਗ਼ਜ਼ਲ "ਇਹ ਵਕਤ ਵੀ ਛੈਅ ਅਜੀਬ ਹੈਕਦੇ ਹੈ ਦੁਸ਼ਮਣ ਤੇ ਕਦੇ ਹਬੀਬ ਹੈ ਰਿਸਤਿਆਂ ਦੀ ਅਣਪਤ ਨਾਪਣ ਦੀਇਹ ਵਕਤ ਹੀ ਵਧੀਆ ਜ਼ਰੀਬ ਹੈਵਿਰਹੋਂ ਝੱਖੜ ਝੁਲਾਇ ਵਕਤ ਹੀਕਦੇ ਦਿਲਾਂ ਨੂੰ ਲਿਆਵੇ ਕਰੀਬ ਹੈਧਾਰੇ ਰੂਪ ਕਦੇ ਇਹ ਵਹਿਸ਼ੀਆਨਾਕਦੀ ਸਿਖਾਏ ਸ਼ਰਾਫਤੇ ਤਹਿਜ਼ੀਬ ਹੈਬਣ ਜਾਵੇ ਕਦੇ ਇਹੋ ਵਕਤ ਦੋਜ਼ਖ਼ਕਦੇ ਬਣੇ ਇਹ ਬਹਿਸ਼ਤੇ ਰਕੀਬ ਹੈ"ਨੂਰ" ਵਕਤ ਕਦੋਂ ਬਦਲ ਜਾਵੇ ਯਾਰੋਇਹ ਤਾਂ ਆਪਣਾ ਆਪਣਾ ਨਸੀਬ ਹੈ( By Vnita Kasnia punjab - 29/12/2020), दिसंबर 28, 2020 और पढ़ें
‼🌟◉Զเधॆ Զเधॆ◉🌟‼ 💫💫🐚☀🐚💫💫🔸️ भगवान विष्णु की माया By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🔸️.कौसल नगर में गाधि नामक ब्राह्मण रहते थे। वे प्रकांड पंडित और धर्मात्मा थे। .सदैव अपने में लीन रहते थे। इसी का फल हुआ कि उन्हें वैराग्य हो गया। .सब कुछ त्यागकर तप करने चल पड़े। वन के किसी सरोवर में खड़े होकर वे तप करने लगे। .गहरे जल में उनका केवल चेहरा ही बाहर दिखता था, बाकी शरीर पानी में रहता था।.आठ माह की कठोर तपस्या के बाद भगवान विष्णु उनसे प्रसन्न हुए, आकर दर्शन दिए। वरदान मांगने को कहा।.विष्णुजी को देख गाधि निहाल हो गए। कहा, 'भगवन्! मैंने शास्त्रों में पढ़ा है, यह सारा विश्व आपकी माया ने ही रचा है। वह बड़ी अद्भुत है। .मैं आपकी उसी माया का चमत्कार देखना चाहता हूं।'.'तुम उस माया का चमत्कार देखोगे, तभी उसे छोड़ोगे भी।' विष्णुजी ने कहा और वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गए।.गाधि ने तप करना छोड़ दिया, किंतु उसी सरोवर के किनारे रहते थे। .कंद-मूल खाकर प्रभु के भजन गाते थे। इसी प्रतीक्षा में थे, कब भगवान की माया के दर्शन होंगे।.एक दिन गाधि सरोवर में स्नान करने गए। मंत्र पढ़कर पानी में डुबकी लगाने लगे। .अचानक वह मंत्र भूल गए। उन्हें लगा, जैसे वह पानी में नहीं हैं। कहीं और हैं, फिर उन्हें लगा, जैसे वह सब कुछ भूलते जा रहे हैं। .भूतमंडल नामक गांव में चांडाल के घर उन्होंने जन्म लिया। उनका नाम रखा गया कटंज।.कटंज बहुत सुंदर और बलवान था। युवा होने पर वह शिकार खेलने में बहुत होशियार हो गया। .फिर उसका विवाह एक सुंदर कन्या से हुआ। उसके दो पुत्री भी हुए।.एक समय की बात, उस गांव में महामारी फैल गई। महामारी भी ऐसी कि पूरा गांव ही उजड़ गया। .कटंज की पत्नी और दोनों पुत्री भी महामारी में चल बसे। वह बड़ा दुखी हुआ। परिवार के शोक में उसने गांव छोड़ दिया।.भटकता हुआ कटंज कीर देश की राजधानी श्रीमतीपुरी में पहुंच गया। उन दिनों वहां कोई राजा नहीं था। .किसी युद्ध में राजा मारा गया था। राजा चुनने का भी वहां अनोखा तरीका था। .सिखाए हुए हाथी पर सोने की अम्बारी रखकर हाथी छोड़ दिया जाता था। .हाथी मार्ग में चलते-चलते जिस आदमी को सूंड से उठाता, अम्बारी पर बैठा लेता, वही वहां का राजा बना दिया जाता था।.श्रीमतीपुरी में घूमता हुआ कटंज एक बाजार में पहुंचा। उसी समय हाथी भी सामने से आ रहा था। .कटंज को देख, हाथी उसके पास आकर रुका, फिर सूंड से उठाकर उसे अम्बारी पर बैठा लिया। .नए राजा को पाकर दरबारी जय-जयकार करने लगे। मंगलगीत गाए जाने लगे। बाजे बजने लगे।.कटंज ने अपना असली नाम छिपा, अपना नाम गवल बता दिया। शुभ मुहूर्त में कटंज का राजतिलक कर दिया गया। .वह राजमहल में आनंद से रहने लगा।.एक दिन गवल अपने राजमहल की अटारी पर खड़ा था, तभी उसी के गांव का कोई चांडाल वहां से गुजरा। .उसने उत्सुकता से राजा को देखा, तो उसे पहचान गया। वहीं से चिल्लाकर कहा, 'अरे कटंज! तुम यहां आकर राजा बन बैठे। .चलो, बहुत अच्छा हुआ। चांडालों में अब तक कोई राजा नहीं बना था।'.मंत्री और सेनापति भी राजा के पास खड़े थे। उन्होंने यह सुना तो चौंके, आपस में कहने लगे, 'क्या हमारा राजा चांडाल है!'.धीरे-धीरे कटंज के चांडाल होने की बात चारों तरफ फैल गई। .मंत्री और दरबारी राजा से दूर भागने लगे। कुछ दिन तक तो वह अकेला रहा। .फिर सोचने लगा, 'जब मुझे कोई नहीं चाहता तो यहां रहना व्यर्थ है।' ऐसा सोचकर वह भी राजपाट त्यागकर चलता बना।.चलते-चलते दिन छिप गया। अंधेरी रात के कारण कुछ भी दिखाई नहीं पड़ रहा था। वह नदी के तट पर गया। .नदी अंधेरे में दिखी नहीं। कटंज आगे बढ़ा, तो छपाक से जल में जा पड़ा। .अपने को बचाने के लिए हाथ-पैर मारे ही थे कि सरोवर के पानी में बेसुध पड़े गाधि को होश आ गया। .अभी घड़ीभर में उन्होंने जो लीला देखी-भोगी थी, उसे याद कर उन्हें अति आश्चर्य हुआ।.बस, सोचने लगे, 'जप-जप करते समय ऐसा तो कभी हुआ नहीं ?' भूला हुआ मंत्र भी अब उन्हें याद आ गया था। .उन्होंने स्नान करके संध्या की, फिर पानी से बाहर निकल आए।.फिर विचारने लगे, 'ऐसा तो सपने में भी होता है। हो सकता है, वह सपना हो, उसी में मैंने सब कुछ किया हो, भोगा हो ?'.इस प्रकार की बातें सोचते-विचारते गाधि धीरे-धीरे इस बात को भूलने लगे। .कुछ दिन बीत गए। एक दिन उनके नगर का एक ब्राह्मण उधर आया। गाधि उसे बचपन से ही जानते थे। .गाधि ने ब्राह्मण की आवभगत की फिर पूछा, 'आप इतने दुर्बल कैसे हो गए ? क्या किसी रोग ने आ घेरा है ?'.'भइया गाधि, आपसे क्या छुपाना! कुछ वर्ष पहले मैं तीर्थयात्रा पर गया था। .घूमना हुआ कीर देश जा पहुंचा, वहां बड़ा आदर-सम्मान हुआ मेरा। मैं एक माह तक वहीं रहा। .एक दिन मुझे पता चला कि उस देश का राजा एक चांडाल है। फिर एक दिन यह भी खबर सुनी, वह चांडाल नदी में डूब मरा। .मुझे बहुत ही दुख हुआ। हृदय को कुछ ऐसी ठेस लगी कि मैं बीमार हो गया। बीमारी में ही अपने घर चला आया। .इसी कारण मेरी यह बुरी हालत हो गई है।' ब्राह्मण ने बताया।.सुनकर गाधि का सिर चकराने लगा। कुछ देर विश्राम करने के बाद ब्राह्मण चल दिया, तो गाधि व्याकुल हो उठे। .उन्हें फिर से भूली बातें याद आ गईं। उसी समय चल पड़े भूतमंडल गांव को खोजने। मार्ग जानते नहीं थे। किसी तरह पूछते हुए पहुंचे।.वह गांव उन्हें जाना-पहचाना-सा लगा। फिर उस घर में पहुंचे, जहां कटंज चांडाल रहता था। .यह घर भी उन्हें परिचित-सा लगा। वहां की हर वस्तु उनकी जानी-पहचानी थी। वह चकराए। .सोचने लगे, 'मैं तो इस गांव और घर में कभी आया नहीं, फिर ये मुझे अपरिचित-से क्यों लग रहे हैं ?.इसके बाद गाधि कीर नगर की राजधानी पहुंचे। राजमहल में गए। .राजमहल के दरवाजे, शयनकक्ष, राजदरबार सभी कुछ उन्हें जाने-पहचाने लगे।.'यह सब क्या है ? मैं पानी में केवल दो क्षण डुबकी लगाए रहा। उसी में मैंने इतना बड़ा दूसरा जीवन भी जी लिया। फिर भी पानी में ही रहा।.इसमें सत्य क्या है ?' इसी उधेड़बुन में डूबे वह सरोवर तट पर आ पहुंचे। .फिर तप करने लगे। अन्न-जल त्याग भी दिया।.भगवान विष्णुजी ने उन्हें फिर दर्शन दिए। बोले, 'ब्राह्मण, तुमने मेरी माया का चमत्कार देख लिया। .मेरी इस माया ने ही विश्व को भ्रम से ढंका हुआ है। सभी विश्व को सत्य मानते हैं, जबकि वह उसी प्रकार है, जैसे तुमने चांडाल और राजा के अपने जीवन को देखा।'.सुनकर गाधि की सारी शंका मिट गई। वह उसी क्षण सब कुछ त्याग, गुफा में जाकर लीन हो गए। 🙏जय श्री कृष्णा 🙏 दिसंबर 28, 2020 और पढ़ें
*ईश्वरीय महावाक्य शनिवार 26 दिसम्बर 2020* *26-12-2020 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा"' मधुबन“*__*मीठे बच्चे - बाबा आये हैं तुम्हें बेहद की जागीर देने, ऐसे मीठे बाबा को तुम प्यार से याद करो तो पावन बन जायेंगे''*__*प्रश्नः-*_ विनाश का समय जितना नजदीक आता जायेगा - उसकी निशानियां क्या होंगी?_*उत्तर:-*_ विनाश का समय नज़दीक होगा तो 1- सबको मालूम पड़ता जायेगा कि हमारा बाबा आया हुआ है। 2- अब नई दुनिया की स्थापना, पुरानी का विनाश होना है। बहुतों को साक्षात्कार भी होंगे। 3- संन्यासियों, राजाओं आदि को ज्ञान मिलेगा। 4- जब सुनेंगे कि बेहद का बाप आया है, वही सद्गति देने वाला है तो बहुत आयेंगे। 5- अखबारों द्वारा अनेकों को सन्देश मिलेगा। 6- तुम बच्चे आत्म-अभिमानी बनते जायेंगे, एक बाप की ही याद में अतीन्द्रिय सुख में रहेंगे।_*गीत:-इस पाप की दुनिया से........*_ _*ओम् शान्ति।*_ यह कौन कहते हैं और किसको कहते हैं - रूहानी बच्चे! बाबा घड़ी-घड़ी रूहानी क्यों कहते हैं? क्योंकि अब आत्माओं को जाना है। फिर जब इस दुनिया में आयेंगे तो सुख होगा। आत्माओं ने यह शान्ति और सुख का वर्सा कल्प पहले भी पाया था। अब फिर यह वर्सा रिपीट हो रहा है। रिपीट हो तब सृष्टि का चक्र भी फिर से रिपीट हो। रिपीट तो सब होता है ना। जो कुछ पास्ट हुआ है सो रिपीट होगा। यूं तो नाटक भी रिपीट होते हैं परन्तु उनमें चेंज भी कर सकते हैं। कोई अक्षर भूल जाते हैं तो बनाकर डाल देते हैं। इसको फिर बाइसकोप कहा जाता है, इसमें चेंज नहीं हो सकती। यह अनादि बना-बनाया है, उस नाटक को बना-बनाया नहीं कहेंगे। इस ड्रामा को समझने से फिर उनके लिए भी समझ में आ जाता है। बच्चे समझते हैं जो नाटक आदि अभी देखते हैं, वह सब हैं झूठे। कलियुग में जो चीज़ देखी जाती है वह सतयुग में होगी नहीं। सतयुग में जो हुआ था सो फिर सतयुग में होगा। यह हद के नाटक आदि फिर भी भक्ति मार्ग में ही होंगे। जो चीज़ भक्तिमार्ग में होती है वह ज्ञान मार्ग अर्थात् सतयुग में नहीं होती। तो अभी बेहद के बाप से तुम वर्सा पा रहे हो। बाबा ने समझाया है - एक लौकिक बाप से और दूसरा पारलौकिक बाप से वर्सा मिलता है, बाकी जो अलौकिक बाप है उनसे वर्सा नहीं मिलता। यह खुद उनसे वर्सा पाते हैं। यह जो नई दुनिया की प्रापर्टी है, वह बेहद का बाप ही देते हैं सिर्फ इन द्वारा। इनसे एडाप्ट करते हैं इसलिए इनको बाप कहते हैं। भक्तिमार्ग में भी लौकिक और पारलौकिक दोनों याद आते हैं। यह (अलौकिक) नहीं याद आता क्योंकि इनसे कोई वर्सा मिलता ही नहीं है। बाप अक्षर तो बरोबर है परन्तु यह ब्रह्मा भी रचना है ना। रचना को रचता से वर्सा मिलता है। तुमको भी शिवबाबा ने क्रियेट किया है। ब्रह्मा को भी उसने क्रियेट किया है। वर्सा क्रियेटर से मिलता है, वह है बेहद का बाप। ब्रह्मा के पास बेहद का वर्सा है क्या? बाप इन द्वारा बैठ समझाते हैं इनको भी वर्सा मिलता है। ऐसे नहीं कि वर्सा लेकर तुमको देते हैं। बाप कहते हैं तुम इनको भी याद न करो। यह बेहद के बाप से तुमको प्रापर्टी मिलती है। लौकिक बाप से हद का, पारलौकिक बाप से बेहद का वर्सा, दोनों रिजर्व हो गये। शिवबाबा से वर्सा मिलता है - बुद्धि में आता है! बाकी ब्रह्मा बाबा का वर्सा क्या कहेंगे! बुद्धि में जागीर आती है ना। यह बेहद की बादशाही तुमको उनसे मिलती है। वह है बड़ा बाबा। यह तो कहते हैं मुझे याद नहीं करो, मेरी तो कोई प्रापर्टी है नहीं, जो तुमको मिले। जिससे प्रापर्टी मिलनी है उनको याद करो। वही कहते हैं मामेकम् याद करो। लौकिक बाप की प्रापर्टी पर कितना झगड़ा चलता है। यहाँ तो झगड़े की बात नहीं। बाप को याद नहीं करेंगे तो ऑटोमेटिकली बेहद का वर्सा भी नहीं मिलेगा। बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो। इस रथ को भी कहते हैं तुम अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो तो विश्व की बादशाही मिलेगी। इसको कहा जाता है याद की यात्रा। देह के सब सम्बन्ध छोड़ अपने को अशरीरी आत्मा समझना है। इसमें ही मेहनत है। पढ़ाई के लिए कोई तो मेहनत चाहिए ना। इस याद की यात्रा से तुम पतित से पावन बनते हो। वह यात्रा करते हैं शरीर से। यह तो है आत्मा की यात्रा। यह तुम्हारी यात्रा है परमधाम जाने के लिए। परमधाम अथवा मुक्तिधाम कोई जा नहीं सकते हैं, सिवाए इस पुरुषार्थ के। जो अच्छी रीति याद करते हैं वही जा सकते हैं और फिर ऊंच पद भी वह पा सकते हैं। जायेंगे तो सब। परन्तु वह तो पतित हैं ना इसलिए पुकारते हैं। आत्मा याद करती है। खाती-पीती सब आत्मा करती है ना। इस समय तुमको देही-अभिमानी बनना है, यही मेहनत है। बिगर मेहनत तो कुछ मिलता नहीं। है भी बहुत सहज। परन्तु माया का आपोजीशन होता है। किसकी तकदीर अच्छी है तो झट इसमें लग जाते हैं। कोई देरी से भी आयेंगे। अगर बुद्धि में ठीक रीति बैठ गया तो कहेंगे बस हम इस रूहानी यात्रा में लग जाता हूँ। ऐसे तीव्र वेग से लग जाएं तो अच्छी दौड़ी पहन सकते हैं। घर में रहते भी बुद्धि में आ जायेगा यह तो बहुत अच्छी राइट बात है। हम अपने को आत्मा समझ पतित-पावन बाप को याद करता हूँ। बाप के फरमान पर चलें तो पावन बन सकते हैं। बनेंगे भी जरूर। पुरुषार्थ की बात है। है बहुत सहज। भक्ति मार्ग में तो बहुत डिफीकल्टी होती है। यहाँ तुम्हारी बुद्धि में है अब हमको वापिस जाना है बाबा के पास। फिर यहाँ आकर विष्णु की माला में पिरोना है। माला का हिसाब करें। माला तो ब्रह्मा की भी है, विष्णु की भी है, रूद्र की भी है। पहले-पहले नई सृष्टि के यह हैं ना। बाकी सब पीछे आते हैं। गोया पिछाड़ी में पिरोते हैं। कहेंगे तुम्हारा ऊंच कुल क्या है? तुम कहेंगे विष्णु कुल। हम असल विष्णु कुल के थे, फिर क्षत्रिय कुल के बने। फिर उनसे बिरादरियाँ निकलती हैं। इस नॉलेज से तुम समझते हो बिरादरियाँ कैसे बनती हैं। पहले-पहले रूद्र की माला बनती है। ऊंच ते ऊंच बिरादरी है। बाबा ने समझाया है - यह तुम्हारा बहुत ऊंच कुल है। यह भी समझते हैं सारी दुनिया को पैगाम जरूर मिलेगा। जैसे कई कहते हैं भगवान जरूर कहाँ आया हुआ है परन्तु पता नहीं पड़ता है। आखरीन पता तो लगेगा सबको। अखबारों में पड़ता जायेगा। अभी तो थोड़ा डालते हैं। ऐसे नहीं कि एक अखबार सब पढ़ते हैं। लाइब्रेरी में पढ़ सकते हैं। कोई 2-4 अखबार भी पढ़ते हैं। कोई बिल्कुल नहीं पढ़ते। यह सबको मालूम पड़ना ही है कि बाबा आया हुआ है, विनाश का समय नज़दीक होगा तो मालूम पड़ेगा। नई दुनिया की स्थापना, पुरानी का विनाश होता है। हो सकता है बहुतों को साक्षात्कार भी हो। तुम्हें संन्यासियों, राजाओं आदि को ज्ञान देना है। बहुतों को पैगाम मिलना है। जब सुनेंगे बेहद का बाप आया है, वही सद्गति देने वाला है तो बहुत आयेंगे। अभी अखबार में इतना दिलपसन्द कायदेमुज़ीब निकला नहीं है। कोई निकल पड़ेंगे, पूछताछ करेंगे। बच्चे समझते हैं हम श्रीमत पर सतयुग की स्थापना कर रहे हैं। तुम्हारी यह नई मिशन है। तुम हो ईश्वरीय मिशन के ईश्वरीय भाती। जैसे क्रिश्चियन मिशन के क्रिश्चियन भाती बन जाते हैं। तुम हो ईश्वरीय भाती इसलिए गायन है अतीन्द्रिय सुख गोप-गोपियों से पूछो, जो आत्म-अभिमानी बने हैं। एक बाप को याद करना है, दूसरा न कोई। यह राजयोग एक बाप ही सिखलाते हैं, वही गीता का भगवान है। सबको यही बाप का निमंत्रण वा पैगाम देना है, बाकी सब बातें हैं ज्ञान श्रृंगार। यह चित्र सब हैं ज्ञान का श्रृंगार, न कि भक्ति का। यह बाप ने बैठ बनवाये हैं - मनुष्यों को समझाने के लिए। यह चित्र आदि तो प्राय:लोप हो जायेंगे। बाकी यह ज्ञान आत्मा में रह जाता है। बाप को भी यह ज्ञान है, ड्रामा में नूंध है।तुम अभी भक्ति मार्ग पास कर ज्ञान मार्ग में आये हो। तुम जानते हो हमारी आत्मा में यह पार्ट है जो चल रहा है। नूंध थी जो फिर से हम राजयोग सीख रहे हैं बाप से। बाप को ही आकर यह नॉलेज देनी थी। आत्मा में नूंध है। वहाँ जाए पहुँचेंगे फिर नई दुनिया का पार्ट रिपीट होगा। आत्मा के सारे रिकार्ड को इस समय तुम समझ गये हो शुरू से लेकर। फिर यह सब बंद हो जायेंगे। भक्तिमार्ग का पार्ट भी बन्द हो जायेगा। फिर जो तुम्हारी एक्ट सतयुग में चली होगी, वही चलेगी। क्या होगा, यह बाप नहीं बताते हैं। जो कुछ हुआ होगा वही होगा। समझा जाता है सतयुग है नई दुनिया। जरूर वहाँ सब कुछ नया सतोप्रधान और सस्ता होगा, जो कुछ कल्प पहले हुआ था वही होगा। देखते भी हैं - इन लक्ष्मी-नारायण को कितने सुख हैं। हीरे-जवाहरात धन बहुत रहता है। धन है तो सुख भी है। यहाँ तुम भेंट कर सकते हो। वहाँ नहीं कर सकेंगे। यहाँ की बातें वहाँ सब भूल जायेंगे। यह हैं नई बातें, जो बाप ही बच्चों को समझाते हैं। आत्माओं को वहाँ जाना है, जहाँ कारोबार सारी बंद हो जाती है। हिसाब-किताब चुक्तू होता है। रिकार्ड पूरा होता है। एक ही रिकार्ड बहुत बड़ा है। कहेंगे फिर आत्मा भी इतनी बड़ी होनी चाहिए। परन्तु नहीं। इतनी छोटी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट है। आत्मा भी अविनाशी है। इनको सिर्फ वण्डर ही कहेंगे। ऐसे आश्चर्यवत चीज़ और कोई हो न सके। बाबा के लिए तो कहते हैं सतयुग-त्रेता के समय विश्राम में रहते हैं। हम तो आलराउण्ड पार्ट बजाते हैं। सबसे जास्ती हमारा पार्ट है। तो बाप वर्सा भी ऊंच देते हैं। कहते हैं 84 जन्म भी तुम ही लेते हो। हमारा तो पार्ट फिर ऐसा है जो और कोई बजा न सके। वण्डरफुल बातें हैं ना। यह भी वण्डर है जो आत्माओं को बाप बैठ समझाते हैं। आत्मा मेल-फीमेल नहीं है। जब शरीर धारण करती है तो मेल-फीमेल कहा जाता है। आत्मायें सब बच्चे हैं तो भाई-भाई हो जाती हैं। भाई-भाई हैं जरूर वर्सा पाने के लिए। आत्मा बाप का बच्चा है ना। वर्सा लेते हैं बाप से इसलिए मेल ही कहेंगे। सब आत्माओं का हक है, बाप से वर्सा लेने का। उसके लिए बाप को याद करना है। अपने को आत्मा समझना है। हम सब ब्रदर्स हैं। आत्मा, आत्मा ही है। वह कभी बदलती नहीं। बाकी शरीर कभी मेल का, कभी फीमेल का लेती है। यह बड़ी अटपटी बातें समझने की हैं, और कोई भी सुना न सके। बाप से या तुम बच्चों से ही सुन सकते हैं। बाप तो तुम बच्चों से ही बात करते हैं। आगे तो सबसे मिलते थे, सबसे बात करते थे। अभी करते-करते आखरीन तो कोई से बात ही नहीं करेंगे। सन शोज़ फादर है ना। बच्चों को ही पढ़ाना है। तुम बच्चे ही बहुतों की सर्विस कर ले आते हो। बाबा समझते हैं यह बहुतों को आपसमान बनाकर ले आते हैं। यह बड़ा राजा बनेंगे, यह छोटा राजा बनेंगे। तुम रूहानी सेना भी हो, जो सबको रावण की जंजीरों से छुड़ाए अपनी मिशन में ले आते हो। जितनी जो सर्विस करते हैं उतना फल मिलता है। जिसने जास्ती भक्ति की है वही जास्ती होशियार हो जाते हैं और वर्सा ले लेते हैं। यह पढ़ाई है, अच्छी रीति पढ़ाई नहीं की तो फेल हो जायेंगे। पढ़ाई बहुत सहज है। समझना और समझाना भी है सहज। डिफीकल्टी की बात नहीं, परन्तु राजधानी स्थापन होनी है, उसमें तो सब चाहिए ना। पुरुषार्थ करना है। उसमें हम ऊंच पद पायें। मृत्युलोक से ट्रांसफर होकर अमरलोक में जाना है। जितना पढ़ेंगे उतना अमरपुरी में ऊंच पद पायेंगे।बाप को प्यार भी करना होता है क्योंकि यह है बहुत प्यारे ते प्यारी वस्तु। प्यार का सागर भी है, एकरस प्यार हो न सके। कोई याद करते हैं, कोई नहीं करते हैं। किसको समझाने का भी नशा रहता है ना। यह बड़ा टैम्पटेशन है। कोई को भी बताना है - यह युनिवर्सिटी है। यह स्प्रीचुअल पढ़ाई है। ऐसे चित्र और कोई स्कूल में नहीं दिखाये जाते। दिन-प्रतिदिन और ही चित्र निकलते रहेंगे। जो मनुष्य देखने से ही समझ जाएं। सीढ़ी है बहुत अच्छी। परन्तु देवता धर्म का नहीं होगा तो उनको समझ में नहीं आयेगा। जो इस कुल का होगा उनको तीर लगेगा। जो हमारे देवता धर्म के पत्ते होंगे वही आयेंगे। तुमको फील होगा यह तो बहुत रूचि से सुन रहे हैं। कोई तो ऐसे ही चले जायेंगे। दिन-प्रतिदिन नई-नई बातें भी बच्चों को समझाते रहते हैं। सर्विस का बड़ा शौक चाहिए। जो सर्विस पर तत्पर होंगे वही दिल पर चढ़ेंगे और तख्त पर भी चढ़ेंगे। आगे चल तुमको सब साक्षात्कार होते रहेंगे। उस खुशी में तुम रहेंगे। दुनिया में तो हाहाकार बहुत होना है। रक्त की नदियाँ भी बहनी हैं। बहादुर सर्विस वाले कभी भूख नहीं मरेंगे। परन्तु यहाँ तो तुमको वनवास में रहना है। सुख भी वहाँ मिलेगा। कन्या को तो वनवाह में बिठाते हैं ना। ससुरघर जाकर खूब पहनना। तुम भी ससुरघर जाते हो तो वह नशा रहता है। वह है ही सुखधाम। अच्छा!_*मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।*__*धारणा के लिए मुख्य सार:-*_1) माला में पिरोने के लिए देही-अभिमानी बन तीव्र वेग से याद की यात्रा करनी है। बाप के फरमान पर चलकर पावन बनना है।2) बाप का परिचय दे बहुतों को आप समान बनाने की सर्विस करनी है। यहाँ वनवाह में रहना है। अन्तिम हाहाकार की सीन देखने के लिए महावीर बनना है।_*वरदान:-*_ हर कर्म में फालो फादर कर स्नेह का रेसपान्ड देने वाले तीव्र-पुरूषार्थी भवजिससे स्नेह होता है उसको आटोमेटिकली फालो करना होता है। सदा याद रहे कि यह कर्म जो कर रहे हैं यह फालो फादर है? अगर नहीं है तो स्टॉप कर दो। बाप को कॉपी करते बाप समान बनो। कॉपी करने के लिए जैसे कार्बन पेपर डालते हैं वैसे अटेन्शन का पेपर डालो तो कॉपी हो जायेगा क्योंकि अभी ही तीव्र पुरूषार्थी बन स्वयं को हर शक्ति से सम्पन्न बनाने का समय है। अगर स्वयं, स्वयं को सम्पन्न नहीं कर सकते हो तो सहयोग लो। नहीं तो आगे चल टू लेट हो जायेंगे।_*स्लोगन:-*_ By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब सन्तुष्टता का फल प्रसन्नता है, प्रसन्नचित बनने से प्रश्न समाप्त हो जाते हैं।*ओम शान्ति बाप-दादा*, दिसंबर 28, 2020 और पढ़ें
💞#हे_कान्हा_प्यारे....!!💞००००००००००००००००० 💞!!बड़ो ही प्यारो नटखट नन्द लाल है!!😘💞!!लड्डू गोपाल मेरो लड्डू गोपाल है!!😘🌼!!लोरी से सुलाती हु लोरी से उठाती हु!!😘🌼!!निकल जाये हाथो से जब नहलाती हु!!😊🌼!!कलियों से कोमल रसीला रस दार है!!😘🌼!!लड्डू गोपाल मेरो लड्डू गोपाल है....💓!!कर के शृंगार इसे लाड लड़ाती हु!!😘💓!!माखन मिश्री का भोग लगाती हु!!😘💓!!पलना में झूम झूम होता निहाल है....⚜️!!गोल मटोल लाल लाल बाल है!!😘⚜️!!नैन रंगीले या के घुंगराले बाल है!!😘⚜️!!लाल गुलाबी होठ रूप रसाल है!!😘⚜️!!लड्डू गोपाल मेरो लड्डू गोपाल है...💐!!लड्डू गोपाल सो अट्टु मेरा नाता है!!😘💐!!जाऊ मैं जहाँ साथ साथ जाता है!!😘💐!!सुन सुरताल नाच उठता गोपाल है!!😘💐!!लड्डू गोपाल मेरो लड्डू गोपाल है....💞🌼💞🌼💞🌼💞🌼💞🌼💞🌼💞!!सोभित कर नवनीत लिए।!!घुटुरुनि चलत रेनु तन मंडित मुख दधि लेप किए॥!!चारु कपोल लोल लोचन गोरोचन तिलक दिए।!!लट लटकनि मनु मत्त मधुप गन मादक मधुहिं पिए॥!!कठुला कंठ वज्र केहरि नख राजत रुचिर हिए।!!धन्य सूर एकौ पल इहिं सुख का सत कल्प जिए॥ 💞🌼✍️!! By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब!!✍️🌼💞<{}[]πππππππππππππππππππππππππ[]{}><{}[]¤{{{{{{{{{{{जय श्री राधे राधे}}}}}}}}}}}}¤[]{}><{}[]πππππππππππππππππππππππππ[]{}>, दिसंबर 28, 2020 और पढ़ें
सुनो....साँवरेतुम मेरी रूह को ब्याह कर साथ ले जाना जिस्म के दावेदार यहां और भी बैठे है हां तुम मेरी रूह मेरी मोहब्बत के इकलौते हकदार हो राधे राधे, दिसंबर 28, 2020 और पढ़ें
🙏|!राधे राधे!| 🙏 By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब कुछ लोग कहते है कि बिना भाव के नाम-जप, कीर्तन करने से फायदा क्या? लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है, नाम-जप, कीर्तन तो बिना भाव के भी करो, आप सोचोगे भाव आयेगा तो करेंगे परन्तु न भाव आयेगा और न कीर्तन होगा।भाव कूभाव अनख आलसहुं।नाम जपत मंगल दिस दसहुं।। किसान जब बीज बोता है, तो ये कभी नहीं देखता कि बीज टेढ़ा जा रहा है कि सीधा जा रहा है, या उल्टा जा रहा है, उसको बीज बोने से मतलब, एक बार खेत में बीज बो दिया तो वो उगे बिना नहीं रह सकता, इसलिये नाम को कैसे भी गाओ।तुलसी रघुवर नाम को रिज भजो चाहे खीज।उल्टो सुल्टो ऊगसी धरती पड़ियो बीज।। केवल नाम-जप, कीर्तन करो, भाषा की शुद्धि-अशुद्धि मत देखो। हो सकता है कोई मंदबुद्धि के भक्त द्वारा नाम-जप, कीर्तन में भाषा की अशुद्धि हो और कोई दूसरा विद्वान् भक्त पूर्ण भाषा-शुद्धि के साथ जप करें, लेकिन इससे भक्ति के मार्ग में कोई भेद नहीं होता, भगवान् भेद नहीं देखते बल्कि लगन देखते है। आप विद्वान्, मुर्ख, भले, बुरे जो भी हो, कोई फर्क नही पड़ता, बस लगन लगी रहे, जप न छूटे, जप की पकड़ (लगन) बनी रहे। परमात्मा का नाम-जप करो, कीर्तन गाओ, हम कीर्तन को जितना लय से गायेंगे, जितना कीर्तन को स्वर लहरी से गायेंगे, उतना ही भाव बढ़ता है, संसार की हर चीज ऐसी है कि खर्च करने से वह कम हो जाती है, लेकिन कीर्तन की स्वर लहरी को जितना गायेंगे, उतना ही कीर्तन भजन बढ़ता रहेगा, नाम-जप , कीर्तन से प्रभु में विश्वास, श्रद्धा और समर्पण तीनों बढ़ेगा। और एक दिन महापुरुष भरत की तरह प्रबल एवं अविरल भाव का संचार हो जायेगा। याद रखें श्री भरत जी जैसे महापुरुष सृष्टि में विरले ही होते हैं।, दिसंबर 28, 2020 और पढ़ें
💞 राधे कृष्णा💞भटके हुए बंदो को मालिक सीधी राह दिखा देसूने पड़े हर आंगन में प्यार का फूल खिला देदेता है तू राह में सबको बिन मांगे बिन दामतू ही बनाए बिगड़े काम🌹🙏सांचा तेरा नाम🌹🙏🙏🙏💞राधे कृष्णा जी By Vnita Kasnia Punjab💞🙏🙏 😘कान्हा 😘 शंध्या 🙏 दिसंबर 28, 2020 और पढ़ें