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ब्रह्मचर्य है जिनकी पहचान,ऐसे महावीर हनुमान का हम गुणगान करते हैं!!!!!!!!#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थानजब भगवान अवतार धारण करते हैं, तब वे अकेले ही प्रकट नहीं होते हैं; उनके साथ अनेक देवतागण भी अपने अंशरूप में अवतरित होते हैं । जब पृथ्वी पर रावण (जिसका अर्थ है संसार को रुलाने वाला) का आतंक छा गया, सर्वत्र त्राहि-त्राहि मच गयी, तब भगवान श्रीराम ने सज्जनों की रक्षा और दुष्टों के संहार के लिए अवतार धारण किया । उस समय अनेक देवतागण वानरों और भालुओं के रूप में प्रकट हुए थे । कैलासपति भगवान शंकर ने समाधिवस्था में श्रीराम के अवतार धारण करने का संकल्प जान लिया । भगवान रुद्र (शंकर) भी अपने आराध्य की सेवा करने तथा कठिन कलिकाल में भक्तों की रक्षा करने की इच्छा से श्रीराम के प्रमुख सेवक के रूप में अवतरित हुए । जेहि शरीर रति राम सों सोइ आदरहिं सुजान ।रुद्रदेह तजि नेहबस बानर भे हनुमान ।। (दोहावली १४२)भगवान शंकर ने यह अवतार बिना शक्ति (पार्वती) के अकेले ही धारण किया, इसलिए नैष्ठिक ब्रह्मचर्य इस अवतार का मुख्य लक्षण है । ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करके हनुमानजी ने मानव समाज के सामने आचरण सम्बन्धी महान आदर्श प्रस्तुत किया है । हनुमानजी ने जिस समाज में जन्म लिया, उसमें बहुपत्नी-प्रथा थी। हनुमानजी का जन्मसिद्ध ब्रह्मचर्य का गुण किसी न्यूनता या अयोग्यता के कारण नहीं था । वे चाहते तो भोगविलासमय जीवन व्यतीत कर सकते थे लेकिन वे जन्म से ही इस प्रकार के जीवन से दूर रहे ।मतवाले हाथी या खूंखार शेरों पर विजय पाने वाला मनुष्य ‘वीर’ कहलाता है किन्तु मन को जीतकर काम पर विजय पाने वाला मनुष्य ‘महावीर’ होता है । आजन्म ब्रह्मचर्य-व्रत के कारण ही हनुमानजी महावीर कहलाते हैं ।प्रभु श्रीराम के प्रमुख व अंतरंग सेवक जैसे अधिकार के पद को संभालते हुए ब्रह्मचर्य का पालन करना खेल नहीं है, यह बहुत बड़ी तपस्या है । हनुमानजी इस तप में कितने खरे उतरे, यह उनके जीवन की एक घटना से स्पष्ट है—माता सीता की खोज में हनुमानजी ने रात्रि में लंका में प्रवेश किया । उन्हें पता तो था नहीं कि रावण ने जनकनन्दिनी को कहां रखा है, अत: वे राक्षसों के घर में घूमते फिरे । वे राक्षसों के अंत:पुर थे, संयमियों के नहीं । सुरापान और उन्मत्त विलास ही राक्षसों के प्रिय व्यसन थे । अपनी उन्मत्त-क्रीडा के बाद राक्षसगण निद्रामग्न हो चुके थे और प्रत्येक घर में अस्त-व्यस्त वस्त्रों में निद्रालीन राक्षस युवतियां हनुमानजी को देखने को मिलीं । हनुमानजी ने कभी सीताजी को देखा तो था नहीं, अत: जिस सुन्दरी स्त्री को देखते तो सोचते, हो-न-हो यही सीता माता हैं, फिर जब उससे बढ़ कर किसी सुन्दर स्त्री को देखते तो उसे सीताजी समझने लगते । कभी उनको लगता—इनमें से यदि कोई भी सीता नहीं तो सीताजी गईं कहां ? सम्पाती की बात झूठ तो हो नहीं सकती । उसने कहा था—‘मैं सीताजी को लंका में बैठे देख रहा हूँ ।’ जानकीजी को ढूंढ़ना है तो स्त्रियां जहां रह सकती हैं, वहीं तो ढूंढ़ना पड़ेगा—यही सोचकर वे फिर सीताजी को खोजने लगते । अब वे रावण के अंत:पुर में पहुंच गए । वहां एक स्वर्णनिर्मित पलंग पर रावण सो रहा था और उसके समीप गलीचों पर सहस्त्रों स्त्रियां सो रही थीं । किसी का सोते समय मुख खुला था, कोई खर्राटे भर रही थी, किसी के मुख से पान की पीक बह रही थी । अस्त-व्यस्त पड़ी ऐसी अवस्था वाली परस्त्री को देखना सद्गृहस्थों के लिए भी बहुत बड़ा दोष है, हनुमानजी तो आजन्म ब्रह्मचारी थे । उनके मन में बड़ी घृणा हुई ।वे सोचने लगे—‘आज मेरा व्रत खण्डित हो गया । ब्रह्मचारी को तो स्त्रियों के चित्र को भी नहीं देखना चाहिए । मैंने अर्धनग्न अवस्था में अचेत पड़ीं इन स्त्रियों को देखा है । इससे मुझे दोष लगा, बड़ा अपराध हुआ है । इसका क्या प्रायश्चित करुँ ? मन में बड़ा पश्चात्ताप, ग्लानि और अत्यन्त दु:ख हो रहा है ।’ जिसने कोई व्रत, कोई नियम दीर्घकाल तक पालन किया हो, उससे अनजाने में वह नियम टूट जाए, तो व्रत-भंग की वेदना क्या होती है इसका अनुमान लगाना आम मनुष्य के लिए सम्भव नहीं है ।‘मैं मरणान्त प्रायश्चित करुंगा’—हनुमानजी ने मन में संकल्प किया ।कोई अनर्थ हो, वे कुछ कर बैठें, इससे पहले ही जैसे हृदय में आराध्य के हस्तकमल का प्रकाश हुआ । रघुवंशशिरोमणि श्रीराम अपने भक्तों, आश्रितों की सदा रक्षा करते हैं । हनुमानजी की अंतरात्मा की आवाज आई—‘माता सीता स्त्रियों में ही मिलेंगी, इसी भावना से मैंने रावण के अंत:पुर में प्रवेश किया था । मैं तो माता जानकी को ढूंढ़ रहा था, किसी नारी के सौन्दर्य पर तो मेरी दृष्टि नहीं गई और ना ही मेरे मन में कोई विकार आया । ये जो स्त्रियों के अर्धनग्न देह मुझे देखने पड़े, ये तो मेरी दृष्टि में शव के समान ही थे, फिर मेरा अखण्ड ब्रह्मचर्य का व्रत कैसे भंग हो सकता है ?’‘व्रत का मूल मन है, देह नहीं । अपना अंत:करण ही पुरुष का साक्षी होता है । पाप और पुण्य में भावना ही प्रधान होती है । जब मेरी भावना ही दूषित नहीं हुई, तब प्रायश्चित ही किस बात का ? मैं जिस काम के लिए यहां आया था वह तो पूरा हुआ ही नहीं, मुझे सब काम छोड़कर सीताजी को खोजना चाहिए ।’ यह सोचकर ब्रह्मचर्य का मूर्तिमान रूप हनुमानजी दूसरी जगह सीताजी को खोजने लगे ।‘जहां काम तहँ राम नहिं, जहां राम नहिं काम’ अर्थात् जिसके मन में काम भावना होती है वह श्रीराम की उपासना नहीं कर सकता और जो श्रीराम को भजता है, वहां काम ठहर नहीं सकता । हनुमानजी के तो रोम-रोम में राम बसे हैं और वे सारे संसार को ‘सीयराममय’ देखते थे, इसीलिए हनुमानजी को आजन्म ब्रह्मचर्य का पालन करना असम्भव नहीं था । हनुमानजी के अखण्ड ब्रह्मचर्यव्रत में कोई त्रुटि नहीं आई। उनके मन में जो पश्चात्ताप जगा था, वह ब्रह्मचर्य-व्रत के प्रति उनकी प्रबल निष्ठा और जागरुकता का सूचक है । इसीलिए वे ‘जितेन्द्रिय’ कहलाते हैं और प्रभु श्रीराम के अंतरंग पार्षद होकर उनकी अष्टयाम-सेवा का सौभाग्य भी उन्हें ही प्राप्त हुआ है और माता सीता के अजर-अमर रहने के आशीर्वाद से ही सप्त चिरंजीवियों में उनका नाम है ।संसार में ब्रह्मचर्य एक ऐसी तपस्या है, जिसको सिद्ध कर लेने पर मनुष्य में अनेक दिव्य और दुर्लभ गुण आ जाते हैं और जिसके बल पर मनुष्य महान-से-महान कार्य कर सकता है । सच्चे ब्रह्मचारी के लिए कोई भी बात असम्भव नहीं होती है । हनुमानजी ब्रह्मचारियों में अग्रग्रण्य हैं । हनुमानजी का आजन्म नैष्ठिक ब्रह्मचर्य-पालन का आदर्श अद्वितीय है इसीलिए वे ‘सकलगुणनिधान’ हैं ।अंजनीगर्भसम्भूतो वायुपुत्रो महाबल:।कुमारो ब्रह्मचारी च हनुमन्ताय नमो नम:।आज देश में नवयुवकों में जो चारित्रिक पतन देखने को मिल रहा है उसका उत्तर स्वामी विवेकानन्द के शब्दों में है—‘देश के उद्धार के लिए श्रीराम और हनुमानजी की उपासना जोरों से प्रचलित की जानी चाहिए ।’ क्योंकि हनुमानजी की उपासना से भक्तों में भी उनके गुण प्रकट होने लगते हैं ।

ब्रह्मचर्य है जिनकी पहचान,ऐसे महावीर हनुमान का हम गुणगान करते हैं!!!!!!!! #बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थान जब भगवान अवतार धारण करते हैं, तब वे अकेले ही प्रकट नहीं होते हैं; उनके साथ अनेक देवतागण भी अपने अंशरूप में अवतरित होते हैं । जब पृथ्वी पर रावण (जिसका अर्थ है संसार को रुलाने वाला) का आतंक छा गया, सर्वत्र त्राहि-त्राहि मच गयी, तब भगवान श्रीराम ने सज्जनों की रक्षा और दुष्टों के संहार के लिए अवतार धारण किया । उस समय अनेक देवतागण वानरों और भालुओं के रूप में प्रकट हुए थे ।  कैलासपति भगवान शंकर ने समाधिवस्था में श्रीराम के अवतार धारण करने का संकल्प जान लिया । भगवान रुद्र (शंकर) भी अपने आराध्य की सेवा करने तथा कठिन कलिकाल में भक्तों की रक्षा करने की इच्छा से श्रीराम के प्रमुख सेवक के रूप में अवतरित हुए ।  जेहि शरीर रति राम सों सोइ आदरहिं सुजान । रुद्रदेह तजि नेहबस बानर भे हनुमान ।। (दोहावली १४२) भगवान शंकर ने यह अवतार बिना शक्ति (पार्वती) के अकेले ही धारण किया, इसलिए नैष्ठिक ब्रह्मचर्य इस अवतार का मुख्य लक्षण है । ब्...

विश्व में मानव जीवन का उद्देश्य और लक्ष्य क्या है ?बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाबक्या आप ईश्वर के बारे में कुछ नई बातें बता सकते हैं जो सभी धर्मों के ग्रंथों से हट कर हों व तर्क संगत हों जिससे पूरे विश्व की जनता को सही मार्ग दर्शन मिले और वे धर्मों से थोड़ा हट कर भी सोचें जो वास्तविक ईश्वर कृपा तथा मानसिक शांति भी दे?नोट : कृपया आदरणीय पाठक इसको समय निकाल कर के, फुरसत के पलों में धैर्य पूर्वक पड़ें। क्योंकि यह एक लंबा लेख है और ऐसे विषय में है, जो एकाग्रता यानी ‘ध्यान ’की मांग करता है। धन्यवाद।✍️ क्या शानदार सवाल है ! एक मानव के अस्तित्व, उद्देश्य और कल्याण से जुड़ा इससे महत्त्वपूर्ण सवाल और क्या हो सकता है।जिसका स्टीक उत्तर किसी पहुंचे हुए संत यां सतगुरु के इलावा किसी के पास नहीं होगा।क्योंकि इस सवाल से तो विज्ञान भी अभी तक अनजान है।पर हम इस पर जवाब देने का प्रयास अवश्य करेंगे।👉 आईए इस महत्वपूर्ण पर बेहद पेचीदा और जटिल सवाल के जवाब पर चर्चा शुरू करते हैं : –एक मानव यां इंसान के जन्म का उद्देश्य मात्र इतना होता है कि वो ईश्वर को जान कर, पहचान कर, उसमे समा जाए यानी मोक्ष को प्राप्त कर ले।किसी भी नदी का, दरिया का पानी अंत समंदर में ही विलीन होता है।पर हम मायावी संसार के प्रभाव में आकर अपना उद्देश्य भूल जाते हैं और अंत समय में दुखी होते हुए और पछतावा करते हुए, इस संसार से विदा लेते हैं।हमे ईश्वर निर्मित एक पूजनीय शरीर मिला है, जिस के द्वारा हम इसका सद उपयोग करके ईश्वर की अनुभूति भी कर सकते है, उसकी सत्ता को समझ भी सकते हैं और ईश्वर को यानी मोक्ष को प्राप्त भी हो सकते है।संसार में किसी भी प्रकार के धार्मिक ग्रंथ और धार्मिक सथल से ज्यादा पूजनीय आपका शरीर है। यानी वो शरीर जो हमारे अनंत ब्रह्माण्ड का ही रूप है। यानी कि जो कुछ भी ब्रह्माण्ड में है, वही हमारे शरीर में भी है।यानी कि हमारे शरीर से अच्छा कोई मंदिर नहीं, कोई गुरुद्वारा नहीं, कोई मस्जिद नहीं और कोई चर्च नहीं।यह बात सत्य है। हालांकि हम इनको मानने में आनाकानी करेंगे ही।यहां तक कि विश्व का कोई भी धार्मिक गृंथ सम्माननीय जरूर है पर पूजनीय नहीं।सम्माननीय इस लिए कि उसमे संतों की वाणी का पवित्र ज्ञान होता है, जो हमारा मार्गदर्शन करता है। पर पूजनीय इस लिए नहीं, क्योंकि है तो जड़ ही।👉 पर आपका शरीर पूजनीय क्यों है ?क्योंकि इस शरीर में ‘आप’ रहते हो, ‘आप’ जो ‘चेतन’ हो, उस ‘आप’ को छोड़कर ब्रह्माण्ड में तो सब जड़ है।आप अपने शरीर को एक दिव्य यान कह सकते हो, जिसके द्वारा आपको अपनी मंजिल तक पहुंचना है।इस शरीर में सिर्फ आप चेतन हो यानी आप ‘चेतना’ हो। यानी के आप एक ‘आत्मा’ हो यां उस आत्मा के एक अंश हो। बात एक ही है।एक पानी का बुलबुला भी पानी ही होता है। इस लिए आप अगर आत्मा के अंश भी हुए तो भी आप एक आत्मा ही हो।विश्व में हर धर्म, संप्रदाय का धार्मिक ग्रंथ भी यह गवाही देता है कि ‘आत्मा ही परमातमा’ है। संत मत भी यही कहता है।यानी कि परमात्मा ही तो ईश्वर है। हम उनके ही तो अंश हैं।पर फिर हमे इसका एहसास क्यों नहीं होता। हम इसकी अनुभूति क्यों नहीं कर पाते ?क्यों हम इसको बाहर ढूंढते फिरते हैं ?क्योंकि हम अशांत हैं, हम बेहोशी में खोए हुए हैं। हम मायावी संसार में रहते, इसे पहचान नहीं पाते।तो इसका हल क्या है ?ईश्वर की अनुभूति केलिए आप को जागृत होना पड़ेगा, सजग होना पड़ेगा।संक्षेप में आप को होश में आना पड़ेगा।👉 होश में कैसे आ सकते हैं ?होश में सजग हो कर, जागृत हो कर होश में आ सकते हैं।होश में ध्यान के द्वारा आ सकते हैं, ध्यान यानी सहज ध्यान। जिसको अंग्रेजी मे मेडिटेशन कहते हैं।आप को 24 घंटे सजग रहने की आदत डालनी होगी। सजग से अर्थ है, पूर्ण ध्यान, पूर्ण एकाग्रता, हर किर्या में, हर कार्य में।यह आसान नहीं है, बहुत मुश्कल है पर हम कर सकते हैं। आप 24 घंटे नहीं कर सकते तो 12 घंटे करें, 12 नहीं कर सकते तो 6 घंटे करें, 6 नहीं कर सकते तो 3 घंटे करें, 3 नहीं कर सकते तो 1 घंटा करें।1 नहीं तो 30 मिनट ही कर लें, पर प्रयास अवश्य करें।यानी कि जिस भी किर्या को यां कार्य को कर रहे हैं, सिर्फ और सिर्फ उस में ही आपका ध्यान होना चाहिए।इस को कुछ उदाहरणों से समझने का प्रयास करते हैं :–कैसे खाएं और पीएं ?जैसे खाना खा रहे हैं तो चपाती के निवाले को कटोरी से मुंह तक लिजाने में ही आपका ध्यान होना चाहिए। फिर उस निवाले को चबा रहे हो तो ध्यान सिर्फ उस निवाले में हो, उसके स्वाद यानी रस पर ही ध्यान हो।पानी पी रहे हो तो, पानी को गले से उतरते हुए महसूस करते हुए पीएं।यानी कि खाना खाने समय दिमाग में ध्यान सिर्फ खाने पर ही हो और कहीं नहीं।तो आप जितना समय खाना खायेंगे, वो आपका ‘ध्यान’ बन जायेगा।कैसे चलें ?आप पैदल चल रहे हैं तो कौन सा कदम आगे है और कौन सा कदम पीछे है, इस पर ध्यान दो। सिर्फ चलने पर ध्यान दो।धीरे चलो, भागो नहीं। कदमों को महसूस करते हुए चलो।इस कारण, आप जितना समय चलोगे, वो आपका ध्यान होगा।कैसे गाड़ी चलाएं ?अगर कार चलाते हो तो आपकी आखें हर समय सड़क के चारों ओर हो। ब्रेक लगा रहे हो तो ध्यान पांव की तरफ, गेयर डाल रहे हो तो ध्यान हाथ की तरफ पर यह सब करते समय भी आपका ध्यान सड़क की तरफ तो रहना ही चाहिए।पर इन सब करते समय आपका ध्यान किसी काम, चिंता यां घर परिवार की तरफ नहीं होना चाहिए। मतलब कि कार चलाते समय, आपका ध्यान सिर्फ कार चलाने में ही रहना चाहिए।इस से दो फायदे होंगे :एक, ऐसे गाड़ी चलाते समय आप के एक्सीडेंट होने के चांसेस भी ना के बराबर होंगे।दूसरा, आप जितने घंटे गाड़ी चलाएंगे, उतने घंटे आप का ‘ध्यान’ हो जायेगा।कैसे सोएं ?आप बिस्तर पर जाते हो, आप आराम से अपनी आंखें बंद करें। यह ना हो के यह पता ही ना चले के कब आंख लगी और आप सो गए।धीरे से आंखे बंद करें, धीरे धीरे शांत मन से नींद में जाएं, यानी पूरी होश में नींद की गहराइयों में जाएं।यह कहना आसान है पर करना उतना ही मुश्कल। पर अगर आप ऐसा करने में कामयाब रहते हैं तो आपकी नींद ही आपका ध्यान बन जायेगी।अगर आप 8 घंटे सोते हैं तो आपका ध्यान 8 घंटे का हो जाएगा।है ना अद्भुत।ऐसे ही और भी कार्य होंगे। वो सब भी ध्यान में जाग्रत हो करे ही करें।अगर आप ऐसा करने में लगातार कामयाब रहते हो तो एक दिन आप पूर्ण होश में आ जाओगे। आप जागृत हो जाओगे यानी होश में आ जाओगे।होश में ही तो अपनी आत्मा के होने का एहसास होता है।यानी खुद के होने का एहसास होता है। जिस को आप भूल चुके होते हो। फिर आप अपने आप को यानी आत्मा को जान जाओगे तो फिर आप परमात्मा यानी ईश्वर को भी जान सकते हो।क्योंकि आत्मा परमात्मा है और परमात्मा ही तो ईश्वर है। आत्मा के एहसास में ही तो परमात्मा यानी ईश्वर की अनुभूति होती है।तो यह सब होगा सहज ध्यान से।आखें बंद करके पालती मारकर लगातार बैठे रहना ही ध्यान नहीं होता।हर समय अवेयर रहना, होश में रहना, जागृत रहना ही ध्यान है। यही शांति है। यही ईश्वर की सच्ची भगति है। यही एक इंसान का सच्चा धर्म है। यही इंसान का निष्काम कर्म है।पर क्या कभी आज तक आप ने ऐसा किया है ?नहीं तो, अवश्य कोशिश करें ।इसके बाद सफर शुरू होता है, ईश्वर और उसकी सत्ता यानी अस्तित्व को जानने का।हमारा ब्रह्माण्ड एक बड़ा रहस्य समेटे हुए है। जिसको विज्ञान भी अभी तक समझ नहीं पाया। शायद हम यां वज्ञान ब्रह्माण्ड को सिर्फ 5% ही जानते हैं। सिर्फ 5%।हमारा ब्रह्माण्ड बहु आयामी है।आयाम यानी डिमेंशन।वेद कहता है कि ब्रह्माण्ड के 64 आयाम है तो पुराण 10 आयाम को मानता है पर विज्ञान तीन आयाम को मानता था पर धन्यवाद करें ज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टाइन का, जिन्होंने चौथे आयाम को खोजा और माना।आज विज्ञान 10 आयाम होने की कल्पना तो करता है पर जानता नहीं है, इस लिए मानता भी नहीं है।पर कुछ मतों अनुसार ब्रह्माण्ड में 7 लोक होते हैं। हमारा शरीर जो ब्रह्माण्ड का ही एक रूप है। इस लिए हमारे शरीर में भी 7 चक्कर होते हैं।जिसको एक योगी अच्छे से जानता है।इसी कारण ब्रह्माण्ड के 7आयाम माने गए हैं, आइए उन पर चर्चा करते हैं।पहला आयाम : एक व्यक्ति जब सिर्फ आगे और पीछे ही गति कर सकता हो तो वो पहले आयाम में रह रहा होता है। इसे ही पहला आयाम कहते हैं।दूसरा आयाम : अगर एक व्यक्ति आगे पीछे और दाएं बाएं भी जा सकता हो तो उसे दूसरा आयाम कहते हैं।तीसरा आयाम : अगर एक व्यक्ति मान लो किसी क्यूब में हो और हर दिशा में आ आ जा सके तो उसे तीसरा आयाम कहते हैं। यानी कि अब तक दुनिया को तीन आयामी माना गया है। जैसे एक 3 डी मूवी होती है, वो तीन आयामी होती है।चौथा आयाम : पर अल्बर्ट आइंस्टाइन ने कहा कि जी नहीं, एक चौथा आयाम भी होता है, वो है समय।जिस पर आज भी खोज जारी है। जैसे एक व्यक्ति सभी दिशाओं में जा सकता है तो उन दिशाओं में लगने वाले समय को चौथा आयाम माना गया है।वो समय जो अद्रिश है, महसूस नहीं होता पर होता है।पांचवा आयाम : स्पेस यानी खाली जगह यानी की अंतरिक्ष को पांचवा आयाम माना गया है। यानी कि एक व्यक्ति अगर चौथे आयाम में रह रहा है और कार्य कर रहा है तो वो कार्य कहां कर रहा है ?वो कार्य कर रहा है, स्पेस में यानी अंतरिक्ष की खाली जगह में ही कर रहा है। तो इसे पांचवा आयाम माना गया है।छठा आयाम : इस के बारे अभी विज्ञान अनजान है। कहते हैं कि अगर व्यक्ति छठे आयाम में पहुंच जाए तो वहां समय रुक जाता है। यानी कि आप वहां पर भविष्य से भूतकाल में भी जा सकते हो।सातवां आयाम : कहते हैं कि ब्रह्माण्ड एक नहीं है। यानी एक व्यक्ति जिस ब्रह्मांड में रह रहा है, उसी समय उसका अस्तित्व किसी और ब्रह्माण्ड में भी होगा। यानी कि आप खुद एक से ज्यादा हो सकते हो, अलग अलग ब्रह्माण्ड में। हैं ना बेहद विचित्र !निष्कर्ष :ईश्वर, जिस का अंत आज तक कोई नहीं पा सका। पर मानव जीवन के उद्देश्य के अनुसार हम होश में आकर यां होश में रहकर अपने आप को पहचानकर ईश्वर की अनुभूति अवश्य कर सकते हैं और ईश्वर के इस्तित्व को जान सकते हैं और उसका आनंद ले सकते हैं और मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।एक आम मृत्यु में यहां एक इंसान को होश ही नहीं रहती और उसको उसके कर्मों के अनुसार कोई भी किसी भी योनि में अगला जन्म मिल जाता है।पर वहीं कहते हैं कि अंत समय में भी एक होशपूर्वक व्यक्ति की जब मृत्यु आती है तो मृत्यु उस ज्ञानी इंसान यां व्यक्ति के हाथ में होती है।वो कहां जाना चाहता है, उसका फैसला वो कर सकता है और अपनी मर्जी से वहां जा सकता है। वो चाहे तो यहां फिर से इंसानी जन्म ले सकता है।किसी अन्य लोक में जा सकता है और अपनी इच्छा से मोक्ष को प्राप्त हो सकता है।उम्मीद करते हैं कि आदरणीय पाठकों ने यह पोस्ट बेहद ध्यान से पड़ा होगा और उनका 5–10 मिनट का ध्यान अवश्य घटा होगा।😊बहुत बहुत धन्यवाद। 🙏🙏🙏स्रोत :चित्र गूगल इमेजेस के द्वारा आभार सहित।जानकारी, आपनी जानकारी के आधार पर। जो इंटरनेट की अलग अलग साइट्स और किताबों और धार्मिक ग्रंथों के आधार पर है।

विश्व में मानव जीवन का उद्देश्य और लक्ष्य क्या है ? बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब क्या आप ईश्वर के बारे में कुछ नई बातें बता सकते हैं जो सभी धर्मों के ग्रंथों से हट कर हों व तर्क संगत हों जिससे पूरे विश्व की जनता को सही मार्ग दर्शन मिले और वे धर्मों से थोड़ा हट कर भी सोचें जो वास्तविक ईश्वर कृपा तथा मानसिक शांति भी दे? नोट : कृपया आदरणीय पाठक इसको समय निकाल कर के, फुरसत के पलों में धैर्य पूर्वक पड़ें। क्योंकि यह एक लंबा लेख है और ऐसे विषय में है, जो एकाग्रता यानी ‘ध्यान ’की मांग करता है। धन्यवाद। ✍️  क्या शानदार सवाल है ! एक मानव के अस्तित्व, उद्देश्य और कल्याण से जुड़ा इससे महत्त्वपूर्ण सवाल और क्या हो सकता है। जिसका स्टीक उत्तर किसी पहुंचे हुए संत यां सतगुरु के इलावा किसी के पास नहीं होगा। क्योंकि इस सवाल से तो विज्ञान भी अभी तक अनजान है। पर हम इस पर जवाब देने का प्रयास अवश्य करेंगे। 👉 आईए इस महत्वपूर्ण पर बेहद पेचीदा और जटिल सवाल के जवाब पर चर्चा शुरू करते हैं : – एक मानव यां इंसान के जन्म का उद्देश्य मात्र इतना होता है कि वो ईश्वर को जान क...

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"शिवरात्रि से जुड़ी कथा"#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता_कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थान ‘#महाशिवरात्रि’ के विषय में भिन्न-भिन्न मत हैं, कुछ विद्वानों का मत है कि आज के ही दिन शिवजी और माता पार्वती विवाह-सूत्र में बंधे थे जबकि अन्य कुछ विद्वान् ऐसा मानते हैं कि आज के ही दिन शिवजी ने ‘कालकूट’ नाम का विष पिया था जो सागरमंथन के समय समुद्र से निकला था। ज्ञात है कि यह समुद्रमंथन देवताओं और असुरों ने अमृत-प्राप्ति के लिए किया था। एक शिकारी की कथा भी इस त्यौहार के साथ जुड़ी हुई है कि कैसे उसके अनजाने में की गई पूजा से प्रसन्न होकर भगवान् शिव ने उस पर अपनी असीम कृपा की थी। यह कथा पौराणिक “शिव पुराण” में भी संकलित है। प्राचीन काल में, किसी जंगल में एक गुरुद्रुह नाम का एक शिकारी रहता था जो जंगली जानवरों का शिकार करता तथा अपने परिवार का भरण-पोषण किया करता था। एक बार शिव-रात्रि के दिन जब वह शिकार के लिए निकला, पर संयोगवश पूरे दिन खोजने के बाद भी उसे कोई शिकार न मिला। उसके बच्चों, पत्नी एवं माता-पिता को भूखा रहना पड़ेगा इस बात से वह चिंतित हो गया। #सूर्यास्त होने पर वह एक जलाशय के समीप गया, और वहाँ एक घाट के किनारे एक पेड़ पर थोड़ा सा जल पीने के लिए लेकर, चढ़ गया। उसे पूरी उम्मीद थी कि कोई न कोई जानवर अपनी प्यास बुझाने के लिए यहाँ जरूर आयेगा। वह पेड़ ‘बेल-पत्र’ का था और उसी पेड़ के नीचे शिवलिंग भी था जो सूखे बेलपत्रों से ढके होने के कारण दिखाई नहीं दे रहा था। रात का पहला प्रहर बीतने से पहले एक हिरणी वहाँ पर पानी पीने के लिए आई। उसे देखते ही शिकारी ने अपने धनुष पर बाण साधा। ऐसा करने में, उसके हाथ के धक्के से कुछ पत्ते एवं जल की कुछ बूंदे नीचे बने शिवलिंग पर गिरीं और अनजाने में ही शिकारी की पहले प्रहर की पूजा हो गयी। हिरणी ने जब पत्तों की खड़खड़ाहट सुनी, तो घबरा कर ऊपर की ओर देखा, और भयभीत हो कर, शिकारी से, काँपते हुए स्वर में बोली, ‘मुझे मत मारो।’ शिकारी ने कहा कि वह और उसका परिवार भूखा है इसलिए वह उसे नहीं छोड़ सकता। हिरणी ने वादा किया कि वह अपने बच्चों को अपने स्वामी को सौंप कर लौट आयेगी। तब वह उसका शिकार कर ले। शिकारी को उसकी बात का विश्वास नहीं हो रहा था। उसने फिर से शिकारी को यह कहते हुए अपनी बात का भरोसा करवाया कि जैसे सत्य पर ही धरती टिकी है; समुद्र मर्यादा में रहता है और झरनों से जल-धाराएँ गिरा करती हैं वैसे ही वह भी सत्य बोल रही है। क्रूर होने के बावजूद भी, शिकारी को उस पर दया आ गयी और उसने ‘जल्दी लौटना’ कहकर, उस हिरनी को जाने दिया। थोड़ी ही देर बाद एक और हिरनी वहाँ पानी पीने आई, शिकारी सावधान हो गया, तीर साधने लगा और ऐसा करते हुए, उसके हाथ के धक्के से फिर पहले की ही तरह थोडा जल और कुछ बेलपत्र नीचे शिवलिंग पर जा गिरे और अनायास ही शिकारी की दूसरे प्रहर की पूजा भी हो गयी। इस हिरनी ने भी भयभीत हो कर, शिकारी से जीवनदान की याचना की लेकिन उसके अस्वीकार कर देने पर, हिरनी ने उसे लौट आने का वचन, यह कहते हुए दिया कि उसे ज्ञात है कि जो वचन दे कर पलट जाता है, उसका अपने जीवन में संचित पुण्य नष्ट हो जाया करता है। उस शिकारी ने पहले की तरह, इस हिरनी के वचन का भी भरोसा कर उसे जाने दिया। अब तो वह इसी चिंता से व्याकुल हो रहा था कि उन में से शायद ही कोई हिरनी लौट के आये और अब उसके परिवार का क्या होगा। इतने में ही उसने जल की ओर आते हुए एक हिरण को देखा, उसे देखकर शिकारी बड़ा प्रसन्न हुआ। अब फिर धनुष पर बाण चढाने से उसकी तीसरे प्रहर की पूजा भी स्वतः ही संपन्न हो गयी लेकिन पत्तों के गिरने की आवाज से वह हिरन सावधान हो गया। उसने शिकारी को देखा और पूछा, “तुम क्या करना चाहते हो ?” वह बोला, “अपने कुटुंब को भोजन देने के लिए तुम्हारा वध करूँगा।” वह मृग प्रसन्न हो कर कहने लगा, “मैं धन्य हूँ कि मेरा यह शरीर किसी के काम आएगा, परोपकार से मेरा जीवन सफल हो जायेगा पर कृपया कर अभी मुझे जाने दो ताकि मैं अपने बच्चों को उनकी माता के हाथ में सौंप कर और उन सबको धीरज बँधा कर यहाँ लौट आऊँ।” शिकारी का ह्रदय, उसके पापपुंज नष्ट हो जाने से अब तक शुद्ध हो गया था इसलिए वह विनयपूर्वक बोला, "जो-जो यहाँ आये, सभी बातें बनाकर चले गये और अभी तक नहीं लौटे, यदि तुम भी झूठ बोलकर चले जाओगे, तो मेरे परिजनों का क्या होगा ?” अब हिरन ने यह कहते हुए उसे अपने सत्य बोलने का भरोसा दिलवाया कि यदि वह लौटकर न आये; तो उसे वह पाप लगे जो उसे लगा करता है जो सामर्थ्य रहते हुए भी दूसरे का उपकार नहीं करता। शिकारी ने उसे भी यह कहकर जाने दिया कि ‘शीघ्र लौट आना।’ रात्रि का अंतिम प्रहर शुरू होते ही उस शिकारी के हर्ष की सीमा न थी क्योंकि उसने उन सब हिरन-हिरनियों को अपने बच्चों सहित एकसाथ आते देख लिया था। उन्हें देखते ही उसने अपने धनुष पर बाण रखा और पहले की ही तरह उसकी चौथे प्रहर की भी शिव-पूजा संपन्न हो गयी। अब उस शिकारी के शिव कृपा से सभी पाप भस्म हो गये इसलिए वह सोचने लगा, "ओह, ये पशु धन्य हैं जो ज्ञानहीन हो कर भी अपने शरीर से परोपकार करना चाहते हैं लेकिन धिक्कार है मेरे जीवन को कि मैं अनेक प्रकार के कुकृत्यों से अपने परिवार का पालन करता रहा।" अब उसने अपना बाण रोक लिया तथा मृगों से कहा की वे सब धन्य है तथा उन्हें वापिस जाने दिया। उसके ऐसा करने पर भगवान् शंकर ने प्रसन्न हो कर तत्काल उसे अपने दिव्य स्वरूप का दर्शन करवाया तथा उसे सुख-समृद्धि का वरदान देकर “गुह’’ नाम प्रदान किया। शिव जी जटाओं में गंगाजी को धारण करने वाले, सिर पर चंद्रमा को सजाने वाले, मस्तक पर त्रिपुंड तथा तीसरे नेत्र वाले, कंठ में कालपाश (नागराज) तथा रुद्राक्ष-माला से सुशोभित, हाथ में डमरू और त्रिशूल है। भक्तगण बड़ी श्रद्धा से जिन्हें शिवशंकर, शंकर, भोलेनाथ, महादेव, भगवान् आशुतोष, उमापति, गौरीशंकर, सोमेश्वर, महाकाल, ओंकारेश्वर, वैद्यनाथ, नीलकंठ, त्रिपुरारि, सदाशिव तथा अन्य सहस्त्रों नामों से संबोधित कर उनकी पूजा-अर्चना किया करते हैं। ऐसे भगवान् शिव एवं शिवा हम सबके चिंतन को सदा-सदैव सकारात्मक बनायें एवं सबकी मनोकामनाएँ पूरी करें।वनिता कासनियां पंजाब 🙏🙏❤️ ----------:::×:::---------- "ॐ नमः शिवाय""********************************************

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🌺🌹ॐ नमो भगवते वासुदेवाय🌷🌹बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम संगरिया राजस्थानधार्मिक शास्त्रों के अनुसार प्रतिदिन भगवान श्रीहरि का स्मरण करने से जीवन के समस्त संकटों का नाश होता है तथा धन-वैभव की प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु जगत का पालन करने वाले देवता हैं।उनका स्वरूप शांत और आनंदमयी है। अगर प्रतिदिन कोई मंत्र न पढ़ सकें तो कम से कम किसी खास अवसर पर या जैसे एकादशी या गुरुवार के दिन भगवान विष्णु का स्मरण कर 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करना फलदायी रहता है। यहां पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं श्रीहरि विष्‍णु के विविध मंत्र, जिनका जाप कर धन-वैभव, समृद्धि तथा जीवन के अनेक कष्टों से मुक्ति पाई जा सकती हैंआइए जानें श्रीहरि नारायण के सरलतम चमत्कारी मंत्र :- * शीघ्र फलदायी मंत्र - श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।- ॐ नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।- ॐ विष्णवे नम:* धन-समृद्धि की चाह रखने वाले ये विशेष मंत्र पढ़ें :- - ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि। ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।धन लाभ के लिए रोज बोलें :* विष्णु के पंचरूप मंत्र - - ॐ अं वासुदेवाय नम:- ॐ आं संकर्षणाय नम:- ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:- ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:- ॐ नारायणाय नम:* ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान।यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्‍टं च लभ्यते।। एकदम सरल एवं लाभदायी मंत्र :- सरल मंत्र - ॐ नमो नारायण। श्री मन नारायण नारायण हरि हरि। - ॐ हूं विष्णवे नम:।

🌺🌹ॐ नमो भगवते वासुदेवाय🌷🌹 बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम संगरिया राजस्थान धार्मिक शास्त्रों के अनुसार प्रतिदिन भगवान श्रीहरि का स्मरण करने से जीवन के समस्त संकटों का नाश होता है तथा धन-वैभव की प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु जगत का पालन करने वाले देवता हैं। उनका स्वरूप शांत और आनंदमयी है। अगर प्रतिदिन कोई मंत्र न पढ़ सकें तो कम से कम किसी खास अवसर पर या जैसे एकादशी या गुरुवार के दिन भगवान विष्णु का स्मरण कर 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करना फलदायी रहता है।    यहां पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं श्रीहरि विष्‍णु के विविध मंत्र, जिनका जाप कर धन-वैभव, समृद्धि तथा जीवन के अनेक कष्टों से मुक्ति पाई जा सकती हैं आइए जानें श्रीहरि नारायण के सरलतम चमत्कारी मंत्र :-     * शीघ्र फलदायी मंत्र   - श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे।   हे नाथ नारायण वासुदेवाय।। - ॐ नारायणाय विद्महे।  वासुदेवाय धीमहि।  तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।। - ॐ विष्णवे नम: * धन-समृद्धि की चाह रखने वाले ये विशेष मंत्र पढ़ें :-    - ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भू...

हिन्दुओं के प्रमुख देवता हनुमानजी के बारे में कई रहस्य जो अभी तक छिपे हुए हैं। शास्त्रों अनुसार हनुमानजी इस धरती पर एक कल्प तक सशरीर रहेंगे।बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब 1. हनुमानजी का जन्म स्थान🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸कर्नाटक के कोपल जिले में स्थित हम्पी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा मानते हैं। तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मार्ग में पंपा सरोवर आता है। यहां स्थित एक पर्वत में शबरी गुफा है जिसके निकट शबरी के गुरु मतंग ऋषि के नाम पर प्रसिद्ध 'मतंगवन' था।हम्पी में ऋष्यमूक के राम मंदिर के पास स्थित पहाड़ी आज भी मतंग पर्वत के नाम से जानी जाती है। कहते हैं कि मतंग ऋषि के आश्रम में ही हनुमानजी का जन्म हआ था। श्रीराम के जन्म के पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था। प्रभु श्रीराम का जन्म 5114 ईसा पूर्व अयोध्या में हुआ था। हनुमान का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पूर्णिमा के दिन हुआ था।2.कल्प के अंत तक सशरीर रहेंगे हनुमानजी🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔹🔸🔸🔹🔸🔸इंद्र से उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान मिला। श्रीराम के वरदान अनुसार कल्प का अंत होने पर उन्हें उनके सायुज्य की प्राप्ति होगी। सीता माता के वरदान अनुसार वे चिरजीवी रहेंगे। इसी वरदान के चलते द्वापर युग में हनुमानजी भीम और अर्जुन की परीक्षा लेते हैं। कलियुग में वे तुलसीदासजी को दर्शन देते हैं।ये वचन हनुमानजी ने ही तुलसीदासजी से कहे थे-'चित्रकूट के घाट पै, भई संतन के भीर।तुलसीदास चंदन घिसै, तिलक देत रघुबीर।।'श्रीमद् भागवत अनुसार हनुमानजीकलियुग में गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं।3.कपि नामक वानर🔸🔸🔹🔹🔸🔸हनुमानजी का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था। रामायणादि ग्रंथों में हनुमानजी और उनके सजातीय बांधव सुग्रीव अंगदादि के नाम के साथ 'वानर, कपि, शाखामृग, प्लवंगम' आदि विशेषण प्रयुक्त किए गए। उनकी पुच्छ, लांगूल, बाल्धी और लाम से लंकादहन इसका प्रमाण है कि वे वानर थे।रामायण में वाल्मीकिजी ने जहां उन्हें विशिष्ट पंडित, राजनीति में धुरंधर और वीर-शिरोमणि प्रकट किया है, वहीं उनको लोमश ओर पुच्छधारी भी शतश: प्रमाणों में व्यक्त किया है। अत: सिद्ध होता है कि वे जाति से वानर थे।4. हनुमान परिवार🔸🔸🔹🔸🔸हनुमानजी की माता का अंजनी पूर्वजन्म में पुंजिकस्थला नामक अप्सरा थीं। उनके पिता का नाम कपिराज केसरी था। ब्रह्मांडपुराण अनुसार हनुमानजी सबसे बड़े भाई हैं। उनके बाद मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान, धृतिमान थे।कहते हैं कि जब वर्षों तक केसरी से अंजना को कोई पुत्र नहीं हुआ तो पवनदेव के आशिर्वाद से उन्हें पुत्र प्राप्त हुआ। इसीलिए हनुमानजी को पवनपुत्र भी कहते हैं। कुंति पुत्र भीम भी पवनपुत्र हैं। हनुमानजी रुद्रावतार हैं।पराशर संहिता अनुसार सूर्यदेव की शिक्षा देने की शर्त अनुसार हनुमानजी को सुवर्चला नामक स्त्री से विवाह करना पड़ा था।5. इन बाधाओं से बचाते हैं हनुमानजी🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸रोग और शोक, भूत-पिशाच, शनि, राहु-केतु और अन्य ग्रह बाधा, कोर्ट-कचहरी-जेल बंधन, मारण-सम्मोहन-उच्चाटन, घटना-दुर्घटना से बचना, मंगल दोष, पितृदोष, कर्ज, संताप, बेरोजगारी, तनाव या चिंता, शत्रु बाधा, मायावी जाल आदि से हनुमानजी अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।6. हनुमानजी के पराक्रम🔸🔸🔹🔸🔹🔸🔸हनुमान सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और सर्वत्र हैं। बचपन में उन्होंने सूर्य को निकल लिया था। एक ही छलांक में वे समुद्र लांघ गए थे। उन्होंने समुद्र में राक्षसी माया का वध किया। लंका में घुसते ही उन्होंने लंकिनी और अन्य राक्षसों के वध कर दिया।अशोक वाटिका को उजाड़कर अक्षय कुमार का वध कर दिया। जब उनकी पूछ में आग लगाई गई तो उन्हों लंका जला दी। उन्होंने सीता को अंगुठी दी, विभिषण को राम से मिलाया। हिमालय से एक पहाड़ उठाकर ले आए और लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा की।इस बीच उन्होंने कालनेमि राक्षस का वध कर दिया। पाताल लोक में जाकर राम-लक्ष्मण को छुड़ाया और अहिरावण का वध किया। उन्होंने सत्यभामा, गरूढ़, सुदर्शन, भीम और अर्जुन का घमंड चूर चूर कर दिया था।हनुमानजी के ऐसे सैंकड़ों पराक्रम हैं।7.हनुमाजी पर लिखे गए ग्रंथ🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸तुलसीदासजी ने हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमान बहुक, हनुमान साठिका, संकटमोचन हनुमानाष्टक, आदि अनेक स्तोत्र लिखे। तुलसीदासजी के पहले भी कई संतों और साधुओं ने हनुमानजी की श्रद्धा में स्तुति लिखी है।इंद्रा‍दि देवताओं के बाद हनुमानजी पर विभीषण ने हनुमान वडवानल स्तोत्र की रचना की। समर्थ रामदास द्वारा मारुती स्तोत्र रचा गया। आनं‍द रामायण में हनुमान स्तुति एवं उनके द्वादश नाम मिलते हैं। इसके अलावा कालांतर में उन पर हजारों वंदना, प्रार्थना, स्त्रोत, स्तुति, मंत्र, भजन लिखे गए हैं। गुरु गोरखनाथ ने उन पर साबर मं‍त्रों की रचना की है।8. माता जगदम्बा के सेवक हनुमानजी🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸रामभक्त हनुमानजी माता जगदम्बा के सेवक भी हैं। हनुमानजी माता के आगे-आगे चलते हैं और भैरवजी पीछे-पीछे। माता के देशभर में जितने भी मंदिर है वहां उनके आसपास हनुमानजी और भैरव के मंदिर जरूर होते हैं। हनुमानजी की खड़ी मुद्रा में और भैरवजी की मुंड मुद्रा में प्रतिमा होती है। कुछ लोग उनकी यह कहानी माता वैष्णोदेवी से जोड़कर देखते हैं।9. सर्वशक्तिमान हनुमानजी🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸हनुमानजी के पास कई वरदानी शक्तियां थीं लेकिन फिर भी वे बगैर वरदानी शक्तियों के भी शक्तिशाली थे। ब्रह्मदेव ने हनुमानजी को तीन वरदान दिए थे, जिनमें उन पर ब्रह्मास्त्र बेअसर होना भी शामिल था, जो अशोकवाटिका में काम आया।सभी देवताओं के पास अपनी अपनी शक्तियां हैं। जैसे विष्णु के पास लक्ष्मी, महेश के पास पार्वती और ब्रह्मा के पास सरस्वती। हनुमानजी के पास खुद की शक्ति है। इस ब्रह्मांड में ईश्वर के बाद यदि कोई एक शक्ति है तो वह है हनुमानजी। महावीर विक्रम बजरंगबली के समक्ष किसी भी प्रकार की मायावी शक्ति ठहर नहीं सकती।10. इन्होंने देखा हनुमानजी को🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸13वीं शताब्दी में माध्वाचार्य, 16वीं शताब्दी में तुलसीदास, 17वीं शताब्दी में रामदास, राघवेन्द्र स्वामी और 20वीं शताब्दी में स्वामी रामदास हनुमान को देखने का दावा करते हैं। हनुमानजी त्रेता में श्रीराम, द्वापर में श्रीकृष्ण और अर्जुन और कलिकाल में रामभक्तों की सहायता करते हैं।🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔹

हिन्दुओं के प्रमुख देवता हनुमानजी के बारे में कई रहस्य जो अभी तक छिपे हुए हैं। शास्त्रों अनुसार हनुमानजी इस धरती पर एक कल्प तक सशरीर रहेंगे। बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब   1. हनुमानजी का जन्म स्थान 🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸 कर्नाटक के कोपल जिले में स्थित हम्पी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा मानते हैं। तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मार्ग में पंपा सरोवर आता है। यहां स्थित एक पर्वत में शबरी गुफा है जिसके निकट शबरी के गुरु मतंग ऋषि के नाम पर प्रसिद्ध 'मतंगवन' था। हम्पी में ऋष्यमूक के राम मंदिर के पास स्थित पहाड़ी आज भी मतंग पर्वत के नाम से जानी जाती है। कहते हैं कि मतंग ऋषि के आश्रम में ही हनुमानजी का जन्म हआ था। श्रीराम के जन्म के पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था। प्रभु श्रीराम का जन्म 5114 ईसा पूर्व अयोध्या में हुआ था। हनुमान का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पूर्णिमा के दिन हुआ था। 2.कल्प के अंत तक सशरीर रहेंगे हनुमानजी 🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔹🔸🔸🔹🔸🔸 इंद्र से उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान मिला। श्रीराम के वरदान अनुसार कल्प क...