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Meditation In Hindi.By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब मेडिटेशन इन हिंदी। आज कल कि भाग दौड़ वाली ज़िंदगी में इंसान का स्ट्रेस बहुत बढ़ गया हैं और ये स्ट्रेस बिल्कुल जायस है क्योंकि जब हमारा बचपन होता है तो किताबो का बोझ, अपनी जवानी में नौकरी का बोझ और आजकल तो नौकरी के बोझ से ज्यादा कई youngster को ब्रेक अप का बोझ मार देता हैं। फिर इस से बचने के लिए कई लोग स्ट्रेस कि दवाइयां का सहारा लेते हैं कई लोग शराब ओर तो ओर कई लोग सुसाइड का सहारा ले लेते है।इन सभी परेशानियों का हल भी हमारे ऋषिमुनीयों ने हमे बताया है लेकिन दिक्कत इस बात कि है कि, बताया हमे है और follow वो गोरे लोग कर रहे हैं और हम उन गोरे लोगो को follow कर रहे हैं। वैसे इस बात पे तो एक बड़ा आर्टिकल लिखा जा सकता है लेकिन हम यहां मेडिटेशन इन हिंदी के बारे में बात करने आए है तो चलिए शुरू करते हैं।वैसे इंटरनेट में आज कल ध्यान (मेडिटेशन) कि बहुत सारी डेफिनेशन मिल जाएगी और वो भी अलग अलग इसी लिए हमारा कन्फ्यूज़न ओर बढ़ जाता है लेकिन आपका ये कन्फ्यूज़न दूर होने वाला हैं क्योंकी ध्यान (मेडिटेशन) के बारे में सारी जानकारी मिलने वाली है।ध्यान(मेडिटेशन) क्या हैं ?धर्म में ध्यान।धारणा क्या हैं ?ध्यान (मेडिटेशन) की विधि।(ध्यान (मेडिटेशन) के प्रकार ) :-1. Relaxation Meditation (विश्राम ध्यान)2. Chanting Meditation (जप ध्यान)3. एकाग्रता ध्यान (Concentration Meditation)4. थकाऊ ध्यान। (Exhausting Or Active Meditation)ध्यान कैसे करें ? जगह :-ध्यान के लिए कौन सा आसन उपयोगी है ?सोते समय भी रीढ़ की हड्डी सीधी होती है तो हम सोते-सोते ध्यान क्यों नहीं कर सकते?ध्यान के लिए मुद्रा :-मुद्रा विज्ञान (Mudra Vigyan)कौन सी मुद्रा ध्यान के लिए Best हैं ? मेडिटेशन कब करना चाहिए। (ध्यान कब करना चाहध्यान(मेडिटेशन) क्या हैं ?हमारे दिमाग में जीवात्मा जगत (Spritual World) से फ्रीक्वेंसी (तरंग) के स्वरूप में विचार आते है अगर इस विचारो को पकड़ना हम बंद करदे तो हमारा दिमाग विचार शून्य (ZeroThought) हो जाएगा। इसी बिना विचार कि स्थिति को ध्यान (मेडिटेशन) कहते हैं।अगर आपको लगता हैं कि ये तो बहुत आसान है तो आप ग़लत हैं क्योंकि हमे लगता है कि हमारे दिमाग में अभी कोई विचार नहीं चल रहा लेकिन हमारे अवचेतन मन में कोई ना कोई विचार चल ही रहा होता है।धर्म में ध्यान।मैंने देखा कि आज कल के युवा अध्यात्मिक को नहीं मानते, लेकिन Dear Youth, ध्यान भी तो एक अध्यात्मिक विषय है लेकिन फिर भी आप ध्यान (Meditation) पर भरोसा करते हो ना, शायद आज कल ध्यान (Meditation) पर हुए कई रीसर्च ने साबित किया है कि कैसे वो हमारे दिमाग और शरीर को इंप्रूव करता है इसी लिए।Dear Youth, आप मानो या ना मानो लेकिन हमारे धर्म, ग्रंथ, वेद आदी Scientific हैं और Science से दो कदम आगे भी है बस जरूरत है उसे Science से जोड़ ने कि।ध्यान (Meditation) के बारे में तो लगभग सभी धर्म मे बताया गया है तो समझ ही सकते हो ध्यान (Meditation) के Importance को।एसा नही की सिर्फ हिन्दू धर्म में ही ध्यान के बारे में बताया हैं सिख, जैन, बौद्ध, यहूदी, इस्लाम सभी धर्म में ध्यान के बारे में जिक्र किया गया हैं। कैसे ? चलिए देखते हैं 👇यहूदी के धर्म ग्रंथ तोराह में लिखा गया है कि पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब परमात्मा से ज्ञान ले ने के लिए पहाड़ों पर जाते थे।ईसाई(christian) धर्म का धर्म ग्रंथ है, बाइबल। बाइबल में उत्पति के पुस्तक अध्याय 24 वचन 65 में लिखा गया है कि इसहाक संध्या के समय पर ध्यान करने जाते थे।इस्लाम धर्म का धर्म ग्रंथ है कुरान। कुरान में लिखा गया है कि, अल्लाह ने कुरान का ध्यान करने को कहा है।हिन्दू धर्म में ऋग्वेद में गायत्री मंत्र में ध्यान के बारे में बताया गया है।ॐ भूर् भुवः स्वः।तत् सवितुर्वरेण्यं।भर्गो देवस्य धीमहि।धियो यो नः प्रचोदयात् ॥हिन्दी में भावार्थ :-उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।आपको लग रहा होगा कि गायत्री मंत्र और उसके हिंदी अनुवाद में कहीं भी ध्यान के बारे में नहीं लिखा हैं। लिखा है लेकिन उस समझने के लिए धारणा को समझना पड़ेगा।ध्यान में दो स्टेप होते हैं।(1) धारणा(2) ध्यानध्यान करना नहीं पड़ता हो जाता है। नहीं समझ आया...🤔। चलो समझाता हूंजब हम सोने जाते है तब हम नींद लाते नहीं बल्कि नींद अपने आप आ जाती है। लेकिन नींद लाने कि जरूरी स्थिति पैदा कर सकते है जैसे कि आरामदायक बेड पर आराम से लेट जाना, लाइट ऑफ़ करना, एसी चलाना आदी।ठीक ऐसा ही ध्यान में होता है ध्यान करना नहीं पड़ता बल्कि अपने आप हो जाता है, जब हम धारणा करते है तब ध्यान अपने आप लग जाता है। तो चलिए देखते है धारणा क्या है।धारणा क्या हैं ?महर्षि पतंजलि कहते हैं,देशबन्धश्चित्तस्य धारणाअर्थात :-मन को किसी बाह्य विषय या आंतरिक बिंदु पर केंद्रित करना धारणा हैं।बाह्य किसी भी वस्तु पर आप अपना मन केंद्रित कर सकते हो जैसे कि मोमबत्ती के दीपक पर आदी। आंतरिक बिंदु यानिकि आप अपने मन को किसी भी चक्र पर केंद्रित कर सकते हो या अपनी सांसों पर और भी कई बाह्य या आंतरिक बिंदु पर मन को केंद्रित कर के आप धारणा कर सकते हो।जब आप ठीक से रोजाना धारणा करने लगोगे तब ध्यान अपने आप लग जाएगा। क्योंकी धारणा करने पर हमारा पूरा Focus किसी एक वस्तु या बिंदु पर होता है और जब हमारा पूरा Focus किसी एक वस्तु या बिंदु पर होता है तब हमारे दिमाग में विचार आना बंद हो जाता हैं और जैसे कि मैंने शुरुआत में ही कहा हैं कि ध्यान (मेडिटेशन) का मतलब ही यही होता है कि दिमाग में कोई विचार का ना आना (विचार शून्य कि स्थिति)।एक्सपर्ट का मानना यह भी है कि धारणा का मतलब 'मान लेना ' भी होता है, गायत्री मंत्र में भी यही कहा हैं, हमे अंतरात्मा में ये मानना है कि हमारे सारे दुखों को दूर करने वाला परमात्मा हैं।इस तरह गायत्री मंत्र का धारणा से Connection हैं और धारणा का ध्यान से Connection हैं।अब यहां पे आप Confused मत होना कि धारणा का मतलब मन को 'केन्द्रित करना ' होता है या 'मान लेना '।क्योंकी दोनों एक ही हैं किसी भी चीज को मान लेने से हमारे दिमाग में उस चीज के बारे में कोई सवाल नहीं रहता और ना ही कोई सवाल, ऐसे में हमारा दिमाग पूरा Focused रहता है।जैसे कि मान को कि आप उड़ रहे हो अब इस बात पर आप के दिमाग में कई सवाल आ सकते है जैसे की मै कैसे उड़ सकता हूं, क्यों उड़ रहा हूं, कब, कैसे , क्यों आदी और ऐसे में हमारे दिमाग में हजारों सवाल और शंकाएं और विचार पैदा होते है लेकिन अगर अपने मान लेते हो कि आप उड़ रहे हो तब ये सारे सवाल शंका और विचार सभी दूर हो जाएंगे। और हमारा सारा Focus एक ही जगह पर आ जाएगा।ध्यान (मेडिटेशन) की विधि।(ध्यान (मेडिटेशन) के प्रकार ) :-ध्यान ज्यादातर तीन उदेश्य से किया जाता है।1. भक्ति मार्ग के लिए2. कर्म मार्ग के लिए3. ज्ञान मार्ग के लिएइन तीन मार्गो के आधार पर ध्यान कि 112 विधियां बताई गई है लेकिन मैं यहां आपको 5 विधियां के बारे में जानकारी दूंगा जिसे आप ट्राई कर सकते हो।1. Relaxation Meditation (विश्राम ध्यान)Relaxation Meditation (विश्राम ध्यान) में Guided Meditation, Silent Seating Meditation आदी तरह के ध्यान (मेडिटेशन) आते हैं।इस तरह के ध्यान(Meditation) में शरीर को विश्राम कि स्थिति में लाने को कहा जाता हैं और फिर मन को Relax करने के लिए Guide करा जाता हैं।जब हम Relaxation Meditation (विश्राम ध्यान) करने जाते हैं तब कम ही खाना लेना चाहिए क्योंकि ज्यादा खाना खाने से विश्राम कि स्थिति आने पर नींद आ जाती हैं।इस तरह के ध्यान में हमे जो कहा जाए उसे मान लेना चाहिए, जैसा कि मैंने धारणा में बताया है।2. Chanting Meditation (जप ध्यान)Chanting Meditation में किसी भी मंत्र या श्लोक का जप करना होता हैं या प्राथना करना होता हैं।इस तरह के ध्यान में वैसे तो सिर्फ हमारे दिमाग कि pattern को तोड़ने के लिए जप करा जाता है क्योंकि जब हम लगातार जप करते रहते है तब हमारे दिमाग कि Regular pattern टूट जाती है ।लेकिन अगर हम गायत्री मंत्र या ओमकार का जप करते है तब उस मंत्र से जुड़ी Frequency उत्पन्न होती हैं, अगर मंत्र के विज्ञान के बारे में ज्यादा जानकारी चाहिए तो ने already एक आर्टिकल लिख चुका हूं।Chanting Meditation में लगातार जब समय मिले तब मंत्र का उच्चारण करना चाहिए और हर पल ये नहीं सोचना की मुझे इस से कुछ फायदा हुआ हैं या नहीं, बस उच्चारण करते रहना हैं।3. एकाग्रता ध्यान (Concentration Meditation)इस विधि में त्राटक, विपश्यना, अनापनसती आदि तरह के ध्यान आते है।इस प्रकार के ध्यान में हमे मन या आंखो को किसी एक बिंदु या वस्तु पर Focus करना होता है।इस प्रकार के ध्यान में ये महत्व नहीं की हम किस बिंदु या किस वस्तु पर Focus कर रहे हैं, ये महत्त्व है कि कितने समय तक हम उस पर Focus कर रहे है।हमारे दिमाग में हर 48 Second में विचार बदलता है और हर 45 मिनट में हमारी क्रिया बदलती है। हमारे शरीर या दिमाग कि इस Pattern तोड़कर अपना Focus कई हद तक बढ़ा सकते है।इस लिए अगर आपका कोई काम 45 मिनट से ज्यादा समय का है तो उसे कुछ समय में विभाजित ना करे।जैसे कि अगर आप पढ़ने बैठते हो तो, लगातार 90 मिनट तक पूरे Focus के साथ पढ़े, ना कि पहले 45 मिनट पढ़ लिया फिर छोटा सा Break और फिर 45 मिनट पढ़ लिया। ये 45 मिनट-45 मिनट के दो भाग बनाने से हमे Temporary फायदा होता है लेकिन अगर अपने लगातार 90 मिनट तक पूरे Focus के साथ पढ़ने कि आदत लगा दी ना फिर तो आप सोच भी नहीं सकते कि आपका Focus कितनी हद तक बढ़ जाएगा।और ये भी एक तरह का ध्यान ही हो जाता है और स्वामी विवेकानंद जी ने भी यही कहा है कि अगर आप कोई काम Full Focus के साथ करते हो तो ये भी ध्यान ही हो जाता हैं।4. थकाऊ ध्यान। (Exhausting Or Active Meditation)इस ध्यान कि विधी में कुंडलिनी ध्यान, डायनेमिक ध्यान आदी प्रकार के ध्यान आते है।इस प्रकार के ध्यान में शरीर कि बिल्कुल भी परवाह नहीं कि जाती।अपने शायद देखा ही होगा कि पुराने जमाने में लोग आग पे चलना या फिर एसी क्रिया जो शरीर को बहुत तकलीफे देती है वैसी क्रिया करते थे, इसे हठ योग कहते है और ये ध्यान हठ योगी या कर्म योगी के लिए होता है।अगर आप ये ध्यान ठीक से करते हो तो आपको पता चल जाएगा कि आप और शरीर दोनों अलग अलग हैं।5. शाक्षी भाव ध्यान(witnessing meditation)इस प्रकार के ध्यान में आपको अपने विचारो को देखना होता है।पूरे दिन बस आपके दिमाग में आने वाले विचारों को ही देखना है अब ये नहीं सोचना कि ये विचार ग़लत है और ये विचार सही है और ना ही उस विचार के हिसाब से कोई Action लेना है, अगर आप ऐसा करते हो तो ये सोचना हो गया ना कि विचारो को Observed करना या देखना। तो सिर्फ और सिर्फ अपने विचारो को Observed करना है।जब आप सोने जाते हो तब भी आपको यही करना है, धीरे धीरे समय के साथ आप एक बार सही से करने लगोगे तब आप नींद में आने वाले सपने, विचार सब को अपनी पूरी Awareness के साथ देख सकोगे।आपके लिए Lucid Dreaming एकदम आसान हो जाएगा।भगवान श्री कृष्ण ने भी श्रीमद् भागवत गीता में भी यही कहा हैं,जब पूरी दुनिया सोती है तब एक सहज योगी जागता है।ध्यान के ये पांचों प्रकार के बारे में मैंने आपको सिर्फ basic जानकारी दी हैं ताकि आप अपने हिसाब से सरलता से Decide कर सको कि आपको किस प्रकार का ध्यान करना हैं, अगर इस पांचों प्रकार के बारे में विस्तृत बताया जाएं तो ऐसे ओर 10 आर्टिकल लिख सकते हैं, आपको जिस प्रकार का ध्यान करना है उसके बारे में थोड़ा गूगल करोगे तो सब जानकारी मिल जाएगी लेकिन अगर आप चाहते हो कि मैं इस बारे में विस्तृत जानकारी दू तो आप कमेंट कर के बता सकते हो।ध्यान कैसे करें ? ध्यान कैसे करें? इस बात को बहुत लोग Complicated मानते हैं और इसी का फायदा उठा के लोग भी इसे ओर Complicated बनाके आपको जानकारी देते है, लेकिन अब जो मै आपको जानकारी दूंगा उस से आपको पता चल जाएगा कि ये तो वाकई में बिल्कुल सरल और आसान है।जगह :-ऐसी जगह पसंद करे जहां शोर ना हो, ये जगह कोई भी हो सकती चाहे वो आपका कमरा हो या कोई मैदान बस शर्त इतनी है कि वहा शोर ना हो और ये जगह आपके लिए एकदम Comfortable हो।मेडिटेशन इन हिंदी।आज कल हमारा मोबाइल हर वक्त हमारे साथ ही रहता है तो मुझे पता है कि Meditation करने के समय भी वो आपके साथ ही आयेगा, आने से मना नहीं कर रहा पर उसे Silent कर देना।और एक जरूरी बात आप जिस जगह हर दिन ध्यान(मेडिटेशन) करते हो उसी जगह हर रोज करो, क्योंकी जब आप इस जगह पर हर दिन ध्यान(मेडिटेशन) करते हो तो इस जगह Positive Energy से भर जाती है और इसी जगह पर ध्यान(मेडिटेशन) जल्दी लगता हैं।ध्यान के लिए कौन सा आसन उपयोगी है ?ऐसी कोई आसन कि जबरदस्ती नहीं है कि आप यही आसन में ध्यान कर सकते हो, सुखासन, पद्मासन या फिर जैसे हम Normally बैठकर भी ध्यान में बैठ सकते हैं, बस शर्त ये है कि आपकी रीढ़ की हड्डी सीधी ऊपर कि ओर होनी चाहिए।सोते समय भी रीढ़ की हड्डी सीधी होती है तो हम सोते-सोते ध्यान क्यों नहीं कर सकते?बहुत लोगो का सवाल होता है, लेकिन यही लोगो को इस सवाल का सही जवाब नहीं पता होता है या सही जवाब कोई नहीं बताता है।बहुत लोग इसका जवाब देते हुए कहते है कि सोते सोते Meditation कर ने से नींद आ जाती है। हा, ये भी इस सवाल का जवाब सही है लेकिन मुख्य कारण या जवाब ये नहीं है।मेडिटेशन इन हिंदी।इस सवाल का मुख्य जवाब ये है कि हमारी रीढ़ कि हड्डी हमारे मन के साथ जुड़ी हुई होती हैं और जब हम लेटे हुए होते है तब हमारी रीढ़ कि हड्डी पर ज्यादा गुरुत्वाकर्षण बल (Gravity Force) लगता हैं इसी लिए ऊर्जा (Energy) को नीचे से ऊपर तक जाने में ज्यादा तकलीफ होती हैं लेकिन अगर हमारी रीढ़ कि हड्डी ऊपर कि ओर सीधी होती है तो सिर्फ एक ही बिंदु पर गुरुत्वाकर्षण बल (Gravity Force) लगता है और इसी कारण ऊर्जा (Energy) को ऊपर कि ओर मन कि तरफ जाने में कम से कम दिक्कत होती हैं।ध्यान के लिए मुद्रा :-इस आर्टिकल लिख ने मैंने जितना रिसर्च किया है ना उसमें ये तो पता चल गया कि, कोई मुद्रा के बारे में बात ही नहीं कर रहा जब कि मुद्रा तो ध्यान के लिए बहुत ज़रूरी है जल्दी Result लाने के लिए।कौन सी मुद्रा लगानी है ये बताने से पहले मैं आपको मुद्रा का Science बता देता हूं ताकि आपको पूरी तरह से भरोसा हो जाए कि मुद्रा वाकई में जरूरी है।मुद्रा विज्ञान (mudra vigyan)Dear, हमारा शरीर पंचतत्व से बना है।1. अग्नि2. वायु3. जल4. पृथ्वी5. आकाश ये ब्रम्हांड भी इन पांच तत्वों से ही बना है।और Dear क्या आपको पता है कि ये साधारण से दिखने वाले हाथ को प्रकृति ने कितना Powerful बनाया हैं, हमारे ये हाथ पंचमहाभूत को दर्शाते है जिस से पूरा ये ब्रम्हांड बना हैं।और इन्हीं पंचमहाभूत से हमारे शरीर कि तीन मुख्य ऊर्जा (Energy) का निर्माण होता हैं।1. वात(वायु + आकाश)2. पित(अग्नि + जल)3. कफ(पृथ्वी + जल)वात ऊर्जा वायु और आकाश को, पित अग्नि और जल को, कफ पृथ्वी और जल को दर्शाती है।और dear क्या आपको पता है कि हमारे शरीर में इन्हीं तीन ऊर्जा के असंतुलन से हम बीमार होते हैं। और हम सिर्फ अपने हाथो से ही इस तीन ऊर्जा को संतुलित कर सकते है। हमारा हाथ हमारे शरीर के सात चक्र को भी दर्शाता है।और विज्ञान भी कहता है कि हमारे शरीर कि 72,000 नाडीयों में से हज़ारों नाडीयों का अंत उंगलियों के अंत में होता है।और हमारे शरीर कि पीनियल ग्रंथि (pineal gland), पीयूष ग्रन्थि (pituitary gland) और थायराइड ग्रंथि (thyroid gland) इन सभी ग्रंथियों का अंत हमारी उंगलियों के सबसे अगले वाले हिस्से में ही होता है।इतनी सारी नाडीयों और ग्रंथियों कि वजह से उंगलियों के अगले हिस्से में बहुत मतलब बहुत सारी ऊर्जा (Energy) एकत्रित (Store) होकर रहती हैं। और हमारा हाथ शरीर के सात चक्रो को भी दर्शाता है।मेडिटेशन इन हिंदी।Image Source - Google | Image और जब हम मुद्रा लगाते हैं तब हमारी उंगलियों के Connection(संपर्क) कि वजह से शरीर कि ऊर्जा (Energy) शरीर के बाहर जाने के बजाय फिर से शरीर और दिमाग कि ओर बढ़ना शुरू हो जाती हैं, और इसी लिए हमारा शरीर ओर स्वस्थ और दिमाग ओर तेज हो जाता हैं।और Dear इसी लिए हमारे ऋषि-मुनियों कहा हैं,बहुना किमीहोक्तेन सारं वच्मि च दण्ड ते।नास्ति मद्रासमं किच्चित् सिद्धिदं क्षितिमण्डले ।।यानिकि पूरी पृथ्वी पर मुद्राएं जितनी सिद्धियां प्रदान कराने वाला कोई नहीं हैं।घेरण्ड संहिता, शिव संहिता आदी में मुद्राओं को विशेष स्थान दिया है, लेकिन हमें क्या हमें तो जब गोरे कहेंगे तभी हम करेंगे हे ना Dear. क्योंकि हमारे ऋषिमुनियो कहा तब हमने योगा नहीं किया तब हम गोरो कि सुनके जिम जाते थे और आज गोरे योगा कर रहे है तो हम भी उनकी तरह अब योगा के पीछे भागने लगे इस से अच्छा जब ऋषिमुनियो ने कहा तब ही भाग लेते।कौन सी मुद्रा ध्यान के लिए Best हैं ?मुद्राएं तो बहुत है लेकिन हम यहां सिर्फ ध्यान के लिए ही देखेगे।ध्यान करने के लिए सबसे best मुद्रा हैं ज्ञान मुद्रा।मेडिटेशन इन हिंदी।अब इस मुद्रा का नाम ज्ञान मुद्रा इस लिए है क्योंकि ये मुद्रा से दिमाग से Related सारी प्रॉब्लम भाग जाती है जैसे की Overthinking, Nagative Thought आना, गुस्सा आदी और ये मुद्रा से Concentration कई हद तक बढ़ जाता हैं।हमारी ये तर्जनी उंगली वायु तत्व के अलावा अपनी चेतना को भी दर्शाती हैं और अंगूठा इस ब्रम्हांड कि चेतना को दर्शाता है।और Dear, क्या आपको पता है कि जब हम खुदकी चेतना को इस ब्रम्हांड कि चेतना के साथ जोडते है तब हमारा दिमाग Superconscious कि तरफ धीरे धीरे बढ़ना लगता है। जब हम ज्ञान मुद्रा करते हैं तब यही होता है, खुद कि चेतना और ब्रम्हांड कि चेतना कि जोडना।आपको पता ही हैं कि वायु का स्वभाव चंचल होता है कभी यहां तो कभी वहा, हमारे शरीर में भी वायु तत्व पाया जाता है और इस तत्व के चलते ठीक उसी तरह हमारे दिमाग में विचार कभी यहां तो कभी वहां, चंचल ही रहते है।और Dear, तर्जनी उंगली हमारे इस वायु तत्व को संतुलित करती है तो जब हम ज्ञान मुद्रा लगा के ध्यान करते है तब विचार यहां वहां भटकने के बजाय जल्दी स्थिर हो जाते हैं।ज्ञान मुद्रा करने के लिए जैसे इमेज में दिखाया है ठीक उसी तरह बिना जोर लगाएं बस तर्जनी उंगली और अंगूठे को टच (Touch) करना हैं। और मुद्रा के लिए कोई टाइम लिमिट नहीं है और कोई साइड इफेक्ट्स भी नहीं है।मेडिटेशन कब करना चाहिए। (ध्यान कब करना चाहिए)मैंने जो साक्षी भाव वाला मेडिटेशन बताया है वो आप पूरे दिन कर सकते हो, लेकिन आप दिन में व्यस्त रहते हो तो कब दोपहर को आराम के समय पर एक घंटा तो करना ही चाहिए और रात को सोने से पहले।और थकाऊ ध्यान सुबह उठकर चाय नाश्ता करने से पहले मतलब सीधा उठकर ही करना है।और जो जप, एकाग्रता और शिथिलता वाला ध्यान सुबह, शाम या दोपहर को भी कर सकते हो। एसा कोई फिक्स टाइम नहीं होता ध्यान करने के लिए, लेकिन जब आपको ध्यान लगने लगेगा तो टाइम अपने आप फिट जाएगा।ध्यान के फायदे :-ध्यान(मेडिटेशन) के तो अनगिनत फायदे है जैसे कि,एकाग्रता बढ़ती है।Memory Power बढ़ती है।स्वास्थ्य सुधारने लगता है।चहरे पे अलग ही चमक आ जाती हैं।Confidance का बढ़ावा होता है।अनिद्रा से राहत मिलती है।तनाव दूर हो जाता है।आप अपने मन को पूरी तरह से कंट्रोल करने लगते हो। ये सब फायदे को हम सामान्य मान सकते हैं लेकिन अगर ध्यान ओर गहरा हो गया तो हमे बहुत सिद्धियां मिलने लगती है जैसे कि,Third Eye की सिद्धियां।Lucid Dreaming.Telepathy etc.अब Dear, ध्यान(मेडिटेशन) के बारे मैं वो बताने जा रहा हूं जो कोई नहीं बताता, और ये बाते आपको अजीब भी लग सकती हैं।महर्षि पतंजलि के अष्टांग योग के मुताबिक ध्यान मौत तक जाने का एक रास्ता है। कैसे...? चलिए समझाता हूं👇महर्षि पतंजलि के अष्टांग योग :-1. यम2. नियम3. आसन4. प्राणायम5. प्रत्याहार6. धारणा7. ध्यान8. समाधीअब इस अष्टांग योग के मुताबिक समाधी तक पहुंचने का मार्ग है, जिस में ध्यान भी है और समाधी का मतलब एक तरह से मौत भी होता है।इस लिए Dear, जब हमारा ध्यान गहरा होने लगता है तब हमे अजीब सी घबराहट महेसुस होती है क्योंकि तब मौत सामने दिखती है।लेकिन समाधी तक पहुंचने से पहले जो ऊपर मैंने फायदे या सिद्धियां बताई है वो भी मिलती है, लेकिन सच कहूं तो ये सब हमारी इच्छाएं हैं और जब तक इन इच्छा को हासिल करने के लिए ध्यान करेगे तब तक ध्यान नहीं लगेगा, इसी लिए निस्वार्थ भाव से ध्यान करो तभी ध्यान लगेगा।कई लोग इस अजीब सी घबराहट से ही ध्यान करना छोड़ देते है लेकिन हमे एसा नहीं करना क्योंकि ध्यान करोगे तो ये घबराहट जरूर होगी।और जब ध्यान लगने लगता है तब हमारी तकलीफे कम होने कि बजाए बढ़ने लगती है और हमे लगने लगता है कि हम इस समाज से अलग है और ये समाज भी आपको अलग ही मानेगा।इसी लिए महावीर स्वामी, गौतम बुद्ध, मीरा बाई आदी लोगो ने बहुत तकलीफे सहन कि, और तकलीफे दौरान ये सब इस समाज से दूर चले गए थे। लेकिन जब ये सारी तकलीफे और सिद्धियां को छोड़कर ध्यान करते है तब जाके Enlightenment प्राप्त होता है यानिकि समाधी यानिकि मोक्ष।बाल वनिता महिला आश्रमकैसे पता करे कि ध्यान लगा हैं?ध्यान एक अनुभव है उसे शब्दों में या लिख के नहीं बता सकते, जैसे कि अगर आपको आंख पर पट्टी बांध कर एक गुलाब जाबुन और एक रसगुल्ला खाने को दिया जाए तो आप बड़ी सरलता से बता सकोंगे कि ये गुलाब जाबुन हैं और ये रसगुल्ला, लेकिन लेकिन लेकिन अगर आपको कहा जाएं कि दोनों के स्वाद के बारे में बताओ तो आप सिर्फ इतना बता सकते हैं कि दोनों मीठे हैं बस, दोनों को अलग अलग वर्गीकृत नहीं कर सकते।ठीक इसी तरह ध्यान को आप महेसुस कर सकते है ना ही बता सकते और ना ही लिख सकते हैं। लेकिन महावीर स्वामी ने कुछ ऐसे अनुभव बताए है जो ध्यान के करीब पहुंचने से होता हैं।महावीर स्वामी ने बताया कि जैसे हम ध्यान के करीब पहुचते है हमें ऐसा लगने लगता है कि आवाजे एकदम बढ़ गई है और आपके मन में चित्र एकदम जल्दी से गुजर रहे हैं और फिर एकदम अचानक सब रुक जाएगा और गहरा सन्नाटा छा जायेगा, लेकिन इस गहरे सन्नाटा में भी आपको शाक्षी भाव रखना हैं मतलब ये नहीं सोचना चाहिए कि ये लगा सन्नाटा, कितना भयानक सन्नाटा है अगर ये सब सोचने लगे तो आप विचारो में फिर से आ जाओगे और ध्यान टूट जाएगा।ध्यान के करीब आने से हमे लगता है कि शरीर में चिटिया काट रही है या मच्छर काट रहे है, भयानक चित्र दिखने लगेंगे, जोरो का प्रकाश दिखता है या एसा लगता है कि भगवान खुद दिखने लगाते है, शरीर का मांस फफड़ने लगता है या सर में दर्द होने लगता हैं। लेकिन ये सब हमारे मन कि चालाकियां होती है ध्यान को हटाने ने के लिए लेकिन इन सभी चीजों में हमे शाक्षी भाव ही रखना हैं और आपको अपनी नौकरी धंधा में दिक्कतें आने लगेगी।ये सारी बाते लोग इस लिए नई बताते क्योंकि कई लोग इन्हीं बातो से डर कर ध्यान कि शरुआत ही नहीं करते।अगर Confused हो कि आपको कौन सा मेडिडेशन (ध्यान) करना हैं तो मैं आपको एक छोटी सी सलाह देना चाहता हूं, अगर आप कोई काम या जॉब कि खोज में है तो आपको एकाग्रता वाला ध्यान करना चाहिए क्योंकि जब ये ध्यान आप करोगे तो आपका Foces सिर्फ और सिर्फ अपने काम पर होगा ऐसे में आपका कम जल्दी और आसन हो जाएगा।इसी लिए मैंने एकाग्रता ध्यान में आने वाले विपश्यना ध्यान पर एक संपूर्ण जानकारी से भरा आर्टिकल Vipassana वनिता पंजाब Meditation In Hindi लिखा हैं, इसे पढ़ने से विपश्यना ध्यान से जुड़ी सारी जानकारी आपको मिल जाएगी।I Hope की मेडिटेशन इन हिंदी में आपको सारी जानाकारी मिल चुकी होगी, लेकिन फिर भी अब भी आपके दिमाग में कोई सवाल सता रहा हैं तो Comment कर के पुछ सकते हो। फिर मिलते हैं, ऐसे ही फुल जानकारी से भरे हुए मजेदार Next आर्टिकल में। तब तक के लिए अपना ख्याल रखना Take Care...🤗।

Meditation In Hindi.

 मेडिटेशन इन हिंदी। आज कल कि भाग दौड़ वाली ज़िंदगी में इंसान का स्ट्रेस बहुत बढ़ गया हैं और ये स्ट्रेस बिल्कुल जायस है क्योंकि जब हमारा बचपन होता है तो किताबो का बोझ, अपनी जवानी में नौकरी का बोझ और आजकल तो नौकरी के बोझ से ज्यादा कई youngster को ब्रेक अप का बोझ मार देता हैं। फिर इस से बचने के लिए कई लोग स्ट्रेस कि दवाइयां का सहारा लेते हैं कई लोग शराब ओर तो ओर कई लोग सुसाइड का सहारा ले लेते है।

इन सभी परेशानियों का हल भी हमारे ऋषिमुनीयों ने हमे बताया है लेकिन दिक्कत इस बात कि है कि, बताया हमे है और follow वो गोरे लोग कर रहे हैं और हम उन गोरे लोगो को follow कर रहे हैं। वैसे इस बात पे तो एक बड़ा आर्टिकल लिखा जा सकता है लेकिन हम यहां मेडिटेशन इन हिंदी के बारे में बात करने आए है तो चलिए शुरू करते हैं।

वैसे इंटरनेट में आज कल ध्यान (मेडिटेशन) कि बहुत सारी डेफिनेशन मिल जाएगी और वो भी अलग अलग इसी लिए हमारा कन्फ्यूज़न ओर बढ़ जाता है लेकिन आपका ये कन्फ्यूज़न दूर होने वाला हैं क्योंकी ध्यान (मेडिटेशन) के बारे में सारी जानकारी मिलने वाली है।

ध्यान(मेडिटेशन) क्या हैं ?

हमारे दिमाग में जीवात्मा जगत (Spritual World) से फ्रीक्वेंसी (तरंग) के स्वरूप में विचार आते है अगर इस विचारो को पकड़ना हम बंद करदे तो हमारा दिमाग विचार शून्य (ZeroThought) हो जाएगा। इसी बिना विचार कि स्थिति को ध्यान (मेडिटेशन) कहते हैं।

अगर आपको लगता हैं कि ये तो बहुत आसान है तो आप ग़लत हैं क्योंकि हमे लगता है कि हमारे दिमाग में अभी कोई विचार नहीं चल रहा लेकिन हमारे अवचेतन मन में कोई ना कोई विचार चल ही रहा होता है।

धर्म में ध्यान।

मैंने देखा कि आज कल के युवा अध्यात्मिक को नहीं मानते, लेकिन Dear Youth, ध्यान भी तो एक अध्यात्मिक विषय है लेकिन फिर भी आप ध्यान (Meditation) पर भरोसा करते हो ना, शायद आज कल ध्यान (Meditation) पर हुए कई रीसर्च ने साबित किया है कि कैसे वो हमारे दिमाग और शरीर को इंप्रूव करता है इसी लिए।

Dear Youth, आप मानो या ना मानो लेकिन हमारे धर्म, ग्रंथ, वेद आदी Scientific हैं और Science से दो कदम आगे भी है बस जरूरत है उसे Science से जोड़ ने कि।

ध्यान (Meditation) के बारे में तो लगभग सभी धर्म मे बताया गया है तो समझ ही सकते हो ध्यान (Meditation) के Importance को।

एसा नही की सिर्फ हिन्दू धर्म में ही ध्यान के बारे में बताया हैं सिख, जैन, बौद्ध, यहूदी, इस्लाम सभी धर्म में ध्यान के बारे में जिक्र किया गया हैं। कैसे ? चलिए देखते हैं 👇

यहूदी के धर्म ग्रंथ तोराह में लिखा गया है कि पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब परमात्मा से ज्ञान ले ने के लिए पहाड़ों पर जाते थे।

ईसाई(christian) धर्म का धर्म ग्रंथ है, बाइबल। बाइबल में उत्पति के पुस्तक अध्याय 24 वचन 65 में लिखा गया है कि इसहाक संध्या के समय पर ध्यान करने जाते थे।

इस्लाम धर्म का धर्म ग्रंथ है कुरान। कुरान में लिखा गया है कि, अल्लाह ने कुरान का ध्यान करने को कहा है।

हिन्दू धर्म में ऋग्वेद में गायत्री मंत्र में ध्यान के बारे में बताया गया है।

ॐ भूर् भुवः स्वः।

तत् सवितुर्वरेण्यं।

भर्गो देवस्य धीमहि।

धियो यो नः प्रचोदयात् ॥

हिन्दी में भावार्थ :-

उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

आपको लग रहा होगा कि गायत्री मंत्र और उसके हिंदी अनुवाद में कहीं भी ध्यान के बारे में नहीं लिखा हैं। लिखा है लेकिन उस समझने के लिए धारणा को समझना पड़ेगा।

ध्यान में दो स्टेप होते हैं।

(1) धारणा

(2) ध्यान

ध्यान करना नहीं पड़ता हो जाता है। नहीं समझ आया...🤔। चलो समझाता हूं

जब हम सोने जाते है तब हम नींद लाते नहीं बल्कि नींद अपने आप आ जाती है। लेकिन नींद लाने कि जरूरी स्थिति पैदा कर सकते है जैसे कि आरामदायक बेड पर आराम से लेट जाना, लाइट ऑफ़ करना, एसी चलाना आदी।

ठीक ऐसा ही ध्यान में होता है ध्यान करना नहीं पड़ता बल्कि अपने आप हो जाता है, जब हम धारणा करते है तब ध्यान अपने आप लग जाता है। तो चलिए देखते है धारणा क्या है।

धारणा क्या हैं ?

महर्षि पतंजलि कहते हैं,

देशबन्धश्चित्तस्य धारणा

अर्थात :-

मन को किसी बाह्य विषय या आंतरिक बिंदु पर केंद्रित करना धारणा हैं।

बाह्य किसी भी वस्तु पर आप अपना मन केंद्रित कर सकते हो जैसे कि मोमबत्ती के दीपक पर आदी। आंतरिक बिंदु यानिकि आप अपने मन को किसी भी चक्र पर केंद्रित कर सकते हो या अपनी सांसों पर और भी कई बाह्य या आंतरिक बिंदु पर मन को केंद्रित कर के आप धारणा कर सकते हो।

जब आप ठीक से रोजाना धारणा करने लगोगे तब ध्यान अपने आप लग जाएगा। क्योंकी धारणा करने पर हमारा पूरा Focus किसी एक वस्तु या बिंदु पर होता है और जब हमारा पूरा Focus किसी एक वस्तु या बिंदु पर होता है तब हमारे दिमाग में विचार आना बंद हो जाता हैं और जैसे कि मैंने शुरुआत में ही कहा हैं कि ध्यान (मेडिटेशन) का मतलब ही यही होता है कि दिमाग में कोई विचार का ना आना (विचार शून्य कि स्थिति)।

एक्सपर्ट का मानना यह भी है कि धारणा का मतलब 'मान लेना ' भी होता है, गायत्री मंत्र में भी यही कहा हैं,

 हमे अंतरात्मा में ये मानना है कि हमारे सारे दुखों को दूर करने वाला परमात्मा हैं।

इस तरह गायत्री मंत्र का धारणा से Connection हैं और धारणा का ध्यान से Connection हैं।

अब यहां पे आप Confused मत होना कि धारणा का मतलब मन को 'केन्द्रित करना ' होता है या 'मान लेना '।

क्योंकी दोनों एक ही हैं किसी भी चीज को मान लेने से हमारे दिमाग में उस चीज के बारे में कोई सवाल नहीं रहता और ना ही कोई सवाल, ऐसे में हमारा दिमाग पूरा Focused रहता है।

जैसे कि मान को कि आप उड़ रहे हो अब इस बात पर आप के दिमाग में कई सवाल आ सकते है जैसे की मै कैसे उड़ सकता हूं, क्यों उड़ रहा हूं, कब, कैसे , क्यों आदी और ऐसे में हमारे दिमाग में हजारों सवाल और शंकाएं और विचार पैदा होते है लेकिन अगर अपने मान लेते हो कि आप उड़ रहे हो तब ये सारे सवाल शंका और विचार सभी दूर हो जाएंगे। और हमारा सारा Focus एक ही जगह पर आ जाएगा।

ध्यान (मेडिटेशन) की विधि।(ध्यान (मेडिटेशन) के प्रकार ) :-

ध्यान ज्यादातर तीन उदेश्य से किया जाता है।

1. भक्ति मार्ग के लिए

2. कर्म मार्ग के लिए

3. ज्ञान मार्ग के लिए

इन तीन मार्गो के आधार पर ध्यान कि 112 विधियां बताई गई है लेकिन मैं यहां आपको 5 विधियां के बारे में जानकारी दूंगा जिसे आप ट्राई कर सकते हो।

1. Relaxation Meditation (विश्राम ध्यान)

Relaxation Meditation (विश्राम ध्यान) में Guided Meditation, Silent Seating Meditation आदी तरह के ध्यान (मेडिटेशन) आते हैं।

इस तरह के ध्यान(Meditation) में शरीर को विश्राम कि स्थिति में लाने को कहा जाता हैं और फिर मन को Relax करने के लिए Guide करा जाता हैं।

जब हम Relaxation Meditation (विश्राम ध्यान) करने जाते हैं तब कम ही खाना लेना चाहिए क्योंकि ज्यादा खाना खाने से विश्राम कि स्थिति आने पर नींद आ जाती हैं।

इस तरह के ध्यान में हमे जो कहा जाए उसे मान लेना चाहिए, जैसा कि मैंने धारणा में बताया है।

2. Chanting Meditation (जप ध्यान)

Chanting Meditation में किसी भी मंत्र या श्लोक का जप करना होता हैं या प्राथना करना होता हैं।

इस तरह के ध्यान में वैसे तो सिर्फ हमारे दिमाग कि pattern को तोड़ने के लिए जप करा जाता है क्योंकि जब हम लगातार जप करते रहते है तब हमारे दिमाग कि Regular pattern टूट जाती है ।

लेकिन अगर हम गायत्री मंत्र या ओमकार का जप करते है तब उस मंत्र से जुड़ी Frequency उत्पन्न होती हैं, अगर मंत्र के विज्ञान के बारे में ज्यादा जानकारी चाहिए तो ने already एक  आर्टिकल लिख चुका हूं।


Chanting Meditation में लगातार जब समय मिले तब मंत्र का उच्चारण करना चाहिए और हर पल ये नहीं सोचना की मुझे इस से कुछ फायदा हुआ हैं या नहीं, बस उच्चारण करते रहना हैं।

3. एकाग्रता ध्यान (Concentration Meditation)

इस विधि में त्राटक, विपश्यना, अनापनसती आदि तरह के ध्यान आते है।

इस प्रकार के ध्यान में हमे मन या आंखो को किसी एक बिंदु या वस्तु पर Focus करना होता है।

इस प्रकार के ध्यान में ये महत्व नहीं की हम किस बिंदु या किस वस्तु पर Focus कर रहे हैं, ये महत्त्व है कि कितने समय तक हम उस पर Focus कर रहे है।

हमारे दिमाग में हर 48 Second में विचार बदलता है और हर 45 मिनट में हमारी क्रिया बदलती है। हमारे शरीर या दिमाग कि इस Pattern तोड़कर अपना Focus कई हद तक बढ़ा सकते है।

इस लिए अगर आपका कोई काम 45 मिनट से ज्यादा समय का है तो उसे कुछ समय में विभाजित ना करे।

जैसे कि अगर आप पढ़ने बैठते हो तो, लगातार 90 मिनट तक पूरे Focus के साथ पढ़े, ना कि पहले 45 मिनट पढ़ लिया फिर छोटा सा Break और फिर 45 मिनट पढ़ लिया। ये 45 मिनट-45 मिनट के दो भाग बनाने से हमे Temporary फायदा होता है लेकिन अगर अपने लगातार 

90 मिनट तक पूरे Focus के साथ पढ़ने कि आदत लगा दी ना फिर तो आप सोच भी नहीं सकते कि आपका Focus कितनी हद तक बढ़ जाएगा।

और ये भी एक तरह का ध्यान ही हो जाता है और स्वामी विवेकानंद जी ने भी यही कहा है कि अगर आप कोई काम Full Focus के साथ करते हो तो ये भी ध्यान ही हो जाता हैं।

4. थकाऊ ध्यान। (Exhausting Or Active Meditation)

इस ध्यान कि विधी में कुंडलिनी ध्यान, डायनेमिक ध्यान आदी प्रकार के ध्यान आते है।

इस प्रकार के ध्यान में शरीर कि बिल्कुल भी परवाह नहीं कि जाती।

अपने शायद देखा ही होगा कि पुराने जमाने में लोग आग पे चलना या फिर एसी क्रिया जो शरीर को बहुत तकलीफे देती है वैसी क्रिया करते थे, इसे हठ योग कहते है और ये ध्यान हठ योगी या कर्म योगी के लिए होता है।

अगर आप ये ध्यान ठीक से करते हो तो आपको पता चल जाएगा कि आप और शरीर दोनों अलग अलग हैं।

5. शाक्षी भाव ध्यान(witnessing meditation)

इस प्रकार के ध्यान में आपको अपने विचारो को देखना होता है।

पूरे दिन बस आपके दिमाग में आने वाले विचारों को ही देखना है अब ये नहीं सोचना कि ये विचार ग़लत है और ये विचार सही है और ना ही उस विचार के हिसाब से कोई Action लेना है, अगर आप ऐसा करते हो तो ये सोचना हो गया ना कि विचारो को Observed करना या देखना। तो सिर्फ और सिर्फ अपने विचारो को Observed करना है।

जब आप सोने जाते हो तब भी आपको यही करना है, धीरे धीरे समय के साथ आप एक बार सही से करने लगोगे तब आप नींद में आने वाले सपने, विचार सब को अपनी पूरी Awareness के साथ देख सकोगे।

आपके लिए Lucid Dreaming एकदम आसान हो जाएगा।

भगवान श्री कृष्ण ने भी श्रीमद् भागवत गीता में भी यही कहा हैं,

जब पूरी दुनिया सोती है तब एक सहज योगी जागता है।

ध्यान के ये पांचों प्रकार के बारे में मैंने आपको सिर्फ basic जानकारी दी हैं ताकि आप अपने हिसाब से सरलता से Decide कर सको कि आपको किस प्रकार का ध्यान करना हैं, अगर इस पांचों प्रकार के बारे में विस्तृत बताया जाएं तो ऐसे ओर 10 आर्टिकल लिख सकते हैं, आपको जिस प्रकार का ध्यान करना है उसके बारे में थोड़ा गूगल करोगे तो सब जानकारी मिल जाएगी लेकिन अगर आप चाहते हो कि मैं इस बारे में विस्तृत जानकारी दू तो आप कमेंट कर के बता सकते हो।

ध्यान कैसे करें ? 

ध्यान कैसे करें? इस बात को बहुत लोग Complicated मानते हैं और इसी का फायदा उठा के लोग भी इसे ओर Complicated बनाके आपको जानकारी देते है, लेकिन अब जो मै आपको जानकारी दूंगा उस से आपको पता चल जाएगा कि ये तो वाकई में बिल्कुल सरल और आसान है।

जगह :-

ऐसी जगह पसंद करे जहां शोर ना हो, ये जगह कोई भी हो सकती चाहे वो आपका कमरा हो या कोई मैदान बस शर्त इतनी है कि वहा शोर ना हो और ये जगह आपके लिए एकदम Comfortable हो।

मेडिटेशन इन हिंदी।

आज कल हमारा मोबाइल हर वक्त हमारे साथ ही रहता है तो मुझे पता है कि Meditation करने के समय भी वो आपके साथ ही आयेगा, आने से मना नहीं कर रहा पर उसे Silent कर देना।

और एक जरूरी बात आप जिस जगह हर दिन ध्यान(मेडिटेशन) करते हो उसी जगह हर रोज करो, क्योंकी जब आप इस जगह पर हर दिन ध्यान(मेडिटेशन) करते हो तो इस जगह Positive Energy से भर जाती है और इसी जगह पर ध्यान(मेडिटेशन) जल्दी लगता हैं।

ध्यान के लिए कौन सा आसन उपयोगी है ?

ऐसी कोई आसन कि जबरदस्ती नहीं है कि आप यही आसन में ध्यान कर सकते हो,  सुखासन, पद्मासन या फिर जैसे हम Normally बैठकर भी ध्यान में बैठ सकते हैं, बस शर्त ये है कि आपकी रीढ़ की हड्डी सीधी ऊपर कि ओर होनी चाहिए।

सोते समय भी रीढ़ की हड्डी सीधी होती है तो हम सोते-सोते ध्यान क्यों नहीं कर सकते?

बहुत लोगो का सवाल होता है, लेकिन यही लोगो को इस सवाल का सही जवाब नहीं पता होता है या सही जवाब कोई नहीं बताता है।

बहुत लोग इसका जवाब देते हुए कहते है कि सोते सोते Meditation कर ने से नींद आ जाती है। हा, ये भी इस सवाल का जवाब सही है लेकिन मुख्य कारण या जवाब ये नहीं है।

मेडिटेशन इन हिंदी।

इस सवाल का मुख्य जवाब ये है कि हमारी रीढ़ कि हड्डी हमारे मन के साथ जुड़ी हुई होती हैं और जब हम लेटे हुए होते है तब हमारी रीढ़ कि हड्डी पर ज्यादा गुरुत्वाकर्षण बल (Gravity Force) लगता हैं इसी लिए ऊर्जा (Energy) को नीचे से ऊपर तक जाने में ज्यादा तकलीफ होती हैं लेकिन अगर हमारी रीढ़ कि हड्डी ऊपर कि ओर सीधी होती है तो सिर्फ एक ही बिंदु पर गुरुत्वाकर्षण बल (Gravity Force) लगता है और इसी कारण ऊर्जा (Energy) को ऊपर कि ओर मन कि तरफ जाने में कम से कम दिक्कत होती हैं।

ध्यान के लिए मुद्रा :-

इस आर्टिकल लिख ने मैंने जितना रिसर्च किया है ना उसमें ये तो पता चल गया कि, कोई मुद्रा के बारे में बात ही नहीं कर रहा जब कि मुद्रा तो ध्यान के लिए बहुत ज़रूरी है जल्दी Result लाने के लिए।

कौन सी मुद्रा लगानी है ये बताने से पहले मैं आपको मुद्रा का Science बता देता हूं ताकि आपको पूरी तरह से भरोसा हो जाए कि मुद्रा वाकई में जरूरी है।

मुद्रा विज्ञान (mudra vigyan)

Dear, हमारा शरीर पंचतत्व से बना है।

1. अग्नि

2. वायु

3. जल

4. पृथ्वी

5. आकाश

 ये ब्रम्हांड भी इन पांच तत्वों से ही बना है।

और Dear क्या आपको पता है कि ये साधारण से दिखने वाले हाथ को प्रकृति ने कितना Powerful बनाया हैं, हमारे ये हाथ पंचमहाभूत को दर्शाते है जिस से पूरा ये ब्रम्हांड बना हैं।

और इन्हीं पंचमहाभूत से हमारे शरीर कि तीन मुख्य ऊर्जा (Energy) का निर्माण होता हैं।

1. वात(वायु + आकाश)

2. पित(अग्नि + जल)

3. कफ(पृथ्वी + जल)

वात ऊर्जा वायु और आकाश को, पित अग्नि और जल को, कफ पृथ्वी और जल को दर्शाती है।

और dear क्या आपको पता है कि हमारे शरीर में इन्हीं तीन ऊर्जा के असंतुलन से हम बीमार होते हैं। और हम सिर्फ अपने हाथो से ही इस तीन ऊर्जा को संतुलित कर सकते है। हमारा हाथ हमारे शरीर के सात चक्र को भी दर्शाता है।

और विज्ञान भी कहता है कि हमारे शरीर कि 72,000 नाडीयों में से हज़ारों नाडीयों का अंत उंगलियों के अंत में होता है।

और हमारे शरीर कि पीनियल ग्रंथि (pineal gland), पीयूष ग्रन्थि (pituitary gland) और थायराइड ग्रंथि (thyroid gland) इन सभी ग्रंथियों का अंत हमारी उंगलियों के सबसे अगले वाले हिस्से में ही होता है।

इतनी सारी नाडीयों और ग्रंथियों कि वजह से उंगलियों के अगले हिस्से में बहुत मतलब बहुत सारी ऊर्जा (Energy) एकत्रित (Store) होकर रहती हैं। और हमारा हाथ शरीर के सात चक्रो को भी दर्शाता है।

मेडिटेशन इन हिंदी।
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और जब हम मुद्रा लगाते हैं तब हमारी उंगलियों के Connection(संपर्क) कि वजह से शरीर कि ऊर्जा (Energy) शरीर के बाहर जाने के बजाय फिर से शरीर और दिमाग कि ओर बढ़ना शुरू हो जाती हैं, और इसी लिए हमारा शरीर ओर स्वस्थ और दिमाग ओर तेज हो जाता हैं।

और Dear इसी लिए हमारे ऋषि-मुनियों कहा हैं,

बहुना किमीहोक्तेन सारं वच्मि च दण्ड ते।

नास्ति मद्रासमं किच्चित् सिद्धिदं क्षितिमण्डले ।।

यानिकि पूरी पृथ्वी पर मुद्राएं जितनी सिद्धियां प्रदान कराने वाला कोई नहीं हैं।

घेरण्ड संहिता, शिव संहिता आदी में मुद्राओं को विशेष स्थान दिया है, लेकिन हमें क्या हमें तो जब गोरे कहेंगे तभी हम करेंगे हे ना Dear. क्योंकि हमारे ऋषिमुनियो कहा तब हमने योगा नहीं किया तब हम गोरो कि सुनके जिम जाते थे और आज गोरे योगा कर रहे है तो हम भी उनकी तरह अब योगा के पीछे भागने लगे इस से अच्छा जब ऋषिमुनियो ने कहा तब ही भाग लेते।

कौन सी मुद्रा ध्यान के लिए Best हैं ?

मुद्राएं तो बहुत है लेकिन हम यहां सिर्फ ध्यान के लिए ही देखेगे।

ध्यान करने के लिए सबसे best मुद्रा हैं ज्ञान मुद्रा

मेडिटेशन इन हिंदी।

अब इस मुद्रा का नाम ज्ञान मुद्रा इस लिए है क्योंकि ये मुद्रा से दिमाग से Related सारी प्रॉब्लम भाग जाती है जैसे की Overthinking, Nagative Thought आना, गुस्सा आदी और ये मुद्रा से Concentration कई हद तक बढ़ जाता हैं।

हमारी ये तर्जनी उंगली वायु तत्व के अलावा अपनी चेतना को भी दर्शाती हैं और अंगूठा इस ब्रम्हांड कि चेतना को दर्शाता है।

और Dear, क्या आपको पता है कि जब हम खुदकी चेतना को इस ब्रम्हांड कि चेतना के साथ जोडते है तब हमारा दिमाग Superconscious कि तरफ धीरे धीरे बढ़ना लगता है। जब हम ज्ञान मुद्रा करते हैं तब यही होता है, खुद कि चेतना और ब्रम्हांड कि चेतना कि जोडना।

आपको पता ही हैं कि वायु का स्वभाव चंचल होता है कभी यहां तो कभी वहा, हमारे शरीर में भी वायु तत्व पाया जाता है और इस तत्व के चलते ठीक उसी तरह हमारे दिमाग में विचार कभी यहां तो कभी वहां, चंचल ही रहते है।

और Dear, तर्जनी उंगली हमारे इस वायु तत्व को संतुलित करती है तो जब हम ज्ञान मुद्रा लगा के ध्यान करते है तब विचार यहां वहां भटकने के बजाय जल्दी स्थिर हो जाते हैं।

ज्ञान मुद्रा करने के लिए जैसे इमेज में दिखाया है ठीक उसी तरह बिना जोर लगाएं बस तर्जनी उंगली और अंगूठे को टच (Touch) करना हैं। और मुद्रा के लिए कोई टाइम लिमिट नहीं है और कोई साइड इफेक्ट्स भी नहीं है।

मेडिटेशन कब करना चाहिए। (ध्यान कब करना चाहिए)

मैंने जो साक्षी भाव वाला मेडिटेशन बताया है वो आप पूरे दिन कर सकते हो, लेकिन आप दिन में व्यस्त रहते हो तो कब दोपहर को आराम के समय पर एक घंटा तो करना ही चाहिए और रात को सोने से पहले।

और थकाऊ ध्यान सुबह उठकर चाय नाश्ता करने से पहले मतलब सीधा उठकर ही करना है।

और जो जप, एकाग्रता और शिथिलता वाला ध्यान सुबह, शाम या दोपहर को भी कर सकते हो। एसा कोई फिक्स टाइम नहीं होता ध्यान करने के लिए, लेकिन जब आपको ध्यान लगने लगेगा तो टाइम अपने आप फिट जाएगा।

ध्यान के फायदे :-

ध्यान(मेडिटेशन) के तो अनगिनत फायदे है जैसे कि,

  • एकाग्रता बढ़ती है।
  • Memory Power बढ़ती है।
  • स्वास्थ्य सुधारने लगता है।
  • चहरे पे अलग ही चमक आ जाती हैं।
  • Confidance का बढ़ावा होता है।
  • अनिद्रा से राहत मिलती है।
  • तनाव दूर हो जाता है।
  • आप अपने मन को पूरी तरह से कंट्रोल करने लगते हो।

 ये सब फायदे को हम सामान्य मान सकते हैं लेकिन अगर ध्यान ओर गहरा हो गया तो हमे बहुत सिद्धियां मिलने लगती है जैसे कि,

  • Third Eye की सिद्धियां।
  • Lucid Dreaming.
  • Telepathy etc.

अब Dear, ध्यान(मेडिटेशन) के बारे मैं वो बताने जा रहा हूं जो कोई नहीं बताता, और ये बाते आपको अजीब भी लग सकती हैं।

महर्षि पतंजलि के अष्टांग योग के मुताबिक ध्यान मौत तक जाने का एक रास्ता है। कैसे...? चलिए समझाता हूं👇

महर्षि पतंजलि के अष्टांग योग :-

1. यम

2. नियम

3. आसन

4. प्राणायम

5. प्रत्याहार

6. धारणा

7. ध्यान

8. समाधी

अब इस अष्टांग योग के मुताबिक समाधी तक पहुंचने का मार्ग है, जिस में ध्यान भी है और समाधी का मतलब एक तरह से मौत भी होता है।

इस लिए Dear, जब हमारा ध्यान गहरा होने लगता है तब हमे अजीब सी घबराहट महेसुस होती है क्योंकि तब मौत सामने दिखती है।

लेकिन समाधी तक पहुंचने से पहले जो ऊपर मैंने फायदे या सिद्धियां बताई है वो भी मिलती है, लेकिन सच कहूं तो ये सब हमारी इच्छाएं हैं और जब तक इन इच्छा को हासिल करने के लिए ध्यान करेगे तब तक ध्यान नहीं लगेगा, इसी लिए निस्वार्थ भाव से ध्यान करो तभी ध्यान लगेगा।

कई लोग इस अजीब सी घबराहट से ही ध्यान करना छोड़ देते है लेकिन हमे एसा नहीं करना क्योंकि ध्यान करोगे तो ये घबराहट जरूर होगी।

और जब ध्यान लगने लगता है तब हमारी तकलीफे कम होने कि बजाए बढ़ने लगती है और हमे लगने लगता है कि हम इस समाज से अलग है और ये समाज भी आपको अलग ही मानेगा।

इसी लिए महावीर स्वामी, गौतम बुद्ध, मीरा बाई आदी लोगो ने बहुत तकलीफे सहन कि, और तकलीफे दौरान ये सब इस समाज से दूर चले गए थे। 

लेकिन जब ये सारी तकलीफे और सिद्धियां को छोड़कर ध्यान करते है तब जाके Enlightenment प्राप्त होता है यानिकि समाधी यानिकि मोक्ष।

बाल वनिता महिला आश्रम

कैसे पता करे कि ध्यान लगा हैं?

ध्यान एक अनुभव है उसे शब्दों में या लिख के नहीं बता सकते, जैसे कि अगर आपको आंख पर पट्टी बांध कर एक गुलाब जाबुन और एक रसगुल्ला खाने को दिया जाए तो आप बड़ी सरलता से बता सकोंगे कि ये गुलाब जाबुन हैं और ये रसगुल्ला, लेकिन लेकिन लेकिन अगर आपको कहा जाएं कि दोनों के स्वाद के बारे में बताओ तो आप सिर्फ इतना बता सकते हैं कि दोनों मीठे हैं बस, दोनों को अलग अलग वर्गीकृत नहीं कर सकते।

ठीक इसी तरह ध्यान को आप महेसुस कर सकते है ना ही बता सकते और ना ही लिख सकते हैं। लेकिन महावीर स्वामी ने कुछ ऐसे अनुभव बताए है जो ध्यान के करीब पहुंचने से होता हैं।

महावीर स्वामी ने बताया कि जैसे हम ध्यान के करीब पहुचते है हमें ऐसा लगने लगता है कि आवाजे एकदम बढ़ गई है और आपके मन में चित्र एकदम जल्दी से गुजर रहे हैं और फिर एकदम अचानक सब रुक जाएगा और गहरा सन्नाटा छा जायेगा, लेकिन इस गहरे सन्नाटा में भी आपको शाक्षी भाव रखना हैं मतलब ये नहीं सोचना चाहिए कि ये लगा सन्नाटा, कितना भयानक सन्नाटा है अगर ये सब सोचने लगे तो आप विचारो में फिर से आ जाओगे और ध्यान टूट जाएगा।

ध्यान के करीब आने से हमे लगता है कि शरीर में चिटिया काट रही है या मच्छर काट रहे है, भयानक चित्र दिखने लगेंगे, जोरो का प्रकाश दिखता है या एसा लगता है कि भगवान खुद दिखने लगाते है, शरीर का मांस फफड़ने लगता है या सर में दर्द होने लगता हैं। लेकिन ये सब हमारे मन कि चालाकियां होती है ध्यान को हटाने ने के लिए लेकिन इन सभी चीजों में हमे शाक्षी भाव ही रखना हैं और आपको अपनी नौकरी धंधा में दिक्कतें आने लगेगी।

ये सारी बाते लोग इस लिए नई बताते क्योंकि कई लोग इन्हीं बातो से डर कर ध्यान कि शरुआत ही नहीं करते।

अगर Confused हो कि आपको कौन सा मेडिडेशन (ध्यान) करना हैं तो मैं आपको एक छोटी सी सलाह देना चाहता हूं, अगर आप कोई काम या जॉब कि खोज में है तो आपको एकाग्रता वाला ध्यान करना चाहिए क्योंकि जब ये ध्यान आप करोगे तो आपका Foces सिर्फ और सिर्फ अपने काम पर होगा ऐसे में आपका कम जल्दी और आसन हो जाएगा।

इसी लिए मैंने एकाग्रता ध्यान में आने वाले विपश्यना ध्यान पर एक संपूर्ण जानकारी से भरा आर्टिकल  Vipassana वनिता पंजाब Meditation In Hindi लिखा हैं, इसे पढ़ने से विपश्यना ध्यान से जुड़ी सारी जानकारी आपको मिल जाएगी।

I Hope की मेडिटेशन इन हिंदी में आपको सारी जानाकारी मिल चुकी होगी, लेकिन फिर भी अब भी आपके दिमाग में कोई सवाल सता रहा हैं तो Comment कर के पुछ सकते हो। फिर मिलते हैं, ऐसे ही फुल जानकारी से भरे हुए मजेदार Next आर्टिकल में। तब तक के लिए अपना ख्याल रखना Take Care...🤗।

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बँधने दिया।”मन ही मन कहा, तकदीर! और मुँह से कहा, “देखता हूँ कि मुझे भूले नहीं हो, बीच-बीच में याद करते थे?”आनन्द ने कहा, “नहीं दादा, आपको भूलना भी मुश्किल है और समझना भी कठिन है, मोह दूर करना तो और भी कठिन है। अगर विश्वास न हो तो कहिए, दीदी को बुलाकर गवाही दे दूँ। आपसे सिर्फ दो-तीन दिन का ही तो परिचय है, पर उस दिन दीदी के साथ सुर में सुर मिलाकर मैं भी जो रोने नहीं बैठ गया सो सिर्फ इसलिए कि यह सन्यासी धर्म के बिल्कुशल खिलाफ है।”बोला, “वह शायद दीदी की खातिर। उनके अनुरोध से ही तो इतनी दूर आये हों?”आनन्द ने कहा, “बिल्कुकल झूठ नहीं है दादा। उनका अनुरोध तो सिर्फ अनुरोध नहीं है, वह तो मानो माँ की पुकार है, पैर अपने आप चलना शुरू कर देते हैं। न जाने कितने घरों में आश्रय लेता हूँ, पर ठीक ऐसा तो कहीं नहीं देखता। सुना है कि आप भी तो बहुत घूमे हैं, आपने भी कहीं कोई इनके ऐसी और देखी है?”कहा, “बहुत।”राजलक्ष्मी ने प्रवेश किया। कमरे में घुसते ही उसने मेरी बात सुन ली थी, चाय की प्याली आनन्द के निकट रखकर मुझसे पूछा, “बहुत क्या जी?”आनन्द शायद कुछ विपद्ग्रस्त हो गया; मैंने कहा, “तुम्हारे गुणों की बातें। इन्होंने सन्देह जाहिर किया था, इसलिए मैंने जोर से उसका प्रतिवाद किया है।”आनन्द चाय की प्याली मुँह से लगा रहा था, हँसी की वजह से थोड़ी-सी चाय जमीन पर गिर पड़ी। राजलक्ष्मी भी हँस पड़ी।आनन्द ने कहा, “दादा, आपकी उपस्थित-बुद्धि अद्भुत है। यह ठीक उलटी बात क्षण-भर में आपके दिमाग में कैसे आ गयी?”राजलक्ष्मी ने कहा, “इसमें आश्चर्य क्या है आनन्द? अपने मन की बात दबाते-दबाते और कहानियाँ गढ़कर सुनाते-सुनाते इस विद्या में ये पूरी तरह महामहोपाधयाय हो गये हैं।”कहा, “तो तुम मेरा विश्वास नहीं करती?”“जरा भी नहीं।”आनन्द ने हँसकर कहा, “गढ़कर कहने की विद्या में आप भी कम नहीं हैं दीदी। तत्काल ही जवाब दे दिया, “जरा भी नहीं।”राजलक्ष्मी भी हँस पड़ी। बोली, “जल-भुनकर सीखना पड़ा है भाई। पर अब तुम देर मत करो, चाय पीकर नहा लो। यह अच्छी तरह जानती हूँ कि कल ट्रेन में तुम्हारा भोजन नहीं हुआ। इनके मुँह से मेरी सुख्याति सुनने के लिए तो तुम्हारा सारा दिन भी कम होगा।” यह कहकर वह चली गयी।आनन्द ने कहा, “आप दोनों जैसे दो व्यक्ति संसार में विरल हैं। भगवान ने अद्भुत जोड़ मिलाकर आप लोगों को दुनिया में भेजा है।”“उसका नमूना देख लिया न?”“नमूना तो उस पहिले ही दिन साँईथियाँ स्टेशन के पेड़-तले देख लिया था। इसके बाद और कोई कभी नजर नहीं आया।”“आहा! ये बातें यदि तुम उनके सामने ही कहते आनन्द!”आनन्द काम का आदमी है, काम करने का उद्यम और शक्ति उसमें विपुल है। उसको निकट पाकर राजलक्ष्मी के आनन्द की सीमा नहीं। रात-दिन खाने की तैयारियाँ तो प्राय: भय की सीमा तक पहुँच गयी। दोनों में लगातार कितने परामर्श होते रहे, उन सबको मैं नहीं जानता। कान में सिर्फ यह भनक पड़ी कि गंगामाटी में एक लड़कों के लिए और एक लड़कियों के लिए स्कूल खोला जायेगा। वहाँ काफी गरीब और नीच जाति के लोगों का वास है और शायद वे ही उपलक्ष्य हैं। सुना कि चिकित्सा का भी प्रबन्ध किया जायेगा। इन सब विषयों की मुझमें तनिक भी पटुता नहीं। परोपकार की इच्छा है पर शक्ति नहीं। यह सोचते ही कि कहीं कुछ खड़ा करना या बनाना पड़ेगा, मेरा श्रान्त मन 'आज नहीं, कल' कह-कहकर दिन टालना चाहता है। अपने नये उद्योग में बीच-बीच में आनन्द मुझे घसीटने आता, पर राजलक्ष्मी हँसते हुए बाधा देकर कहती, “इन्हें मत लपेटो आनन्द, तुम्हारे सब संकल्प पंगु हो जायेंगे।”सुनने पर प्रतिवाद करना ही पड़ता। कहता, “अभी-अभी उस दिन तो कहा कि मेरा बहुत काम है और अब मुझे बहुत कुछ करना होगा!”राजलक्ष्मी ने हाथ जोड़कर कहा, “मेरी गलती हुई गुसाईं, अब ऐसी बात कभी जबान पर नहीं लाऊँगी।”“तब क्या किसी दिन कुछ भी नहीं करूँगा?”“क्यों नहीं करोगे? यदि बीमार पड़कर डर के मारे मुझे अधमरा न कर डालो, तो इससे ही मैं तुम्हारे निकट चिरकृतज्ञ रहूँगी।”आनन्द ने कहा, “दीदी, इस तरह तो आप सचमुच ही इन्हें अकर्मण्य बना देंगी।”राजलक्ष्मी ने कहा, “मुझे नहीं बनाना पड़ेगा भाई, जिस विधाता ने इनकी सृष्टि की है उसी ने इसकी व्यवस्था कर दी है- कहीं भी त्रुटि नहीं रहने दी है।”आनन्द हँसने लगा। राजलक्ष्मी ने कहा, “और फिर वह जलमुँहा ज्योतिषी ऐसा डर दिखा गया है कि इनके मकान से बाहर पैर रखते ही मेरी छाती धक्-धक् करने लगती है- जब तक लौटते नहीं तब तक किसी भी काम में मन नहीं लगा सकती।”“इस बीच ज्योतिषी कहाँ मिल गया? क्या कहा उसने?”इसका उत्तर मैंने दिया। कहा, “मेरा हाथ देखकर वह बोला कि बहुत बड़ा विपद्-योग है- जीवन-मरण की समस्या!”“दीदी, इन सब बातों पर आप विश्वास करती हैं?”मैंने कहा, “हाँ करती हैं जरूर करती हैं। तुम्हारी दीदी कहती हैं कि क्या विपद्-योग नाम की कोई बात ही दुनिया में नहीं है? क्या कभी किसी पर आफत नहीं आती?”आनन्द ने हँसकर कहा, “आ सकती है, पर हाथ देखकर कोई कैसे बता सकता है दीदी?”राजलक्ष्मी ने कहा, “यह तो नहीं जानती भाई, पर मुझे यह भरोसा जरूर है कि जो मेरे जैसी भाग्यवती है, उसे भगवान इतने बड़े दु:ख में नहीं डुबायेंगे।”क्षण-भर तक स्तब्धता के साथ उसके मुँह की ओर देखकर आनन्द ने दूसरी बात छेड़ दी।इसी बीच मकान की लिखा-पढ़ी, बन्दोबस्त और व्यवस्था का काम चलने लगा, ढेर की ढेर ईंटें, काठ, चूना, सुरकी, दरवाजे, खिड़कियाँ वगैरह आ पड़ीं। पुराने घर को राजलक्ष्मी ने नया बनाने का आयोजन किया।उस दिन शाम को आनन्द ने कहा, “चलिए दादा, जरा घूम आयें।”आजकल मेरे बाहर जाने के प्रस्ताव पर राजलक्ष्मी अनिच्छा जाहिर किया करती है। बोली, “घूमकर लौटते-लौटते रात्रि हो जायेगी आनन्द, ठण्ड नहीं लगेगी?”आनन्द ने कहा, “गरमी से तो लोग मरे जा रहे हैं दीदी, ठण्ड कहाँ है?”आज मेरी तबीयत भी बहुत अच्छी न थी। कहा, “इसमें शक नहीं कि ठण्ड लगने का डर नहीं, पर आज उठने की भी वैसी इच्छा नहीं हो रही है आनन्द।”आनन्द ने कहा, “यह जड़ता है। शाम के वक्त कमरे में बैठे रहने से अनिच्छा और भी बढ़ जायेगी-चलिए, उठिए।”राजलक्ष्मी ने इसका समाधान करने के लिए कहा, “इससे अच्छा एक दूसरा काम करें न आनन्द। परसों क्षितीज मुझे एक अच्छा हारमोनियम खरीद कर दे गया है, अब तक उसे देखने का वक्त ही नहीं मिला। मैं भगवान का नाम लेती हूँ, तुम बैठकर सुनो- शाम कट जायेगी।” यह कह उसने रतन को पुकारकर बक्स लाने के लिए कह दिया।आनन्द ने विस्मय से पूछा, “भगवान का नाम माने क्या गीत दीदी?”राजलक्ष्मी ने सिर हिलाकर 'हाँ' की। “दीदी को यह विद्या भी आती है क्या?”“बहुत साधारण-सी।” फिर मुझे दिखाकर कहा, “बचपन में इन्होंने ही अभ्यास कराया था।”आनन्द ने खुश होकर कहा, “दादा तो छिपे हुए रुस्तम हैं, बाहर से पहिचानने का कोई उपाय ही नहीं।”उसका मन्तव्य सुन लक्ष्मी हँसने लगी, पर मैं सरल मन से साथ न दे सका। क्योंकि आनन्द कुछ भी नहीं समझेगा और मेरे इनकार को उस्ताद के विनय-वाक्य समझ और भी ज्यादा तंग करेगा, और अन्त में शायद नाराज भी हो जायेगा। पुत्र-शोकातुर धृतराष्ट्र-विलाप का दुर्योधन वाला गाना जानता हूँ, पर राजलक्ष्मी के बाद इस बैठक में वह कुछ जँचेगा नहीं।राजलक्ष्मी ने हारमोनियम आने पर पहले दो-एक भगवान के ऐसे गीत सुनाये जो हर जगह प्रचलित हैं और फिर वैष्णव-पदावली आरम्भ कर दी। सुनकर ऐसा लगा कि उस दिन मुरारीपुर के अखाड़े में भी शायद इतना अच्छा नहीं सुना था। आनन्द विस्मय से अभिभूत हो गया, मेरी ओर इशारा कर मुग्ध चित्त से बोला, “यह सब क्या इन्हीं से सीखा है दीदी?”“सब क्या एक ही आदमी के पास कोई सीखता है आनन्द?”“यह सही है।” इसके बाद उसने मेरी तरफ देखकर कहा, “दादा, अब आपको दया करनी होगी। दीदी कुछ थक गयी हैं।”“नहीं भाई, मेरी तबीयत अच्छी नहीं है।';'“तबीयत के लिए मैं जिम्मेदार हूँ, क्या अतिथि का अनुरोध नहीं मानेंगे?”“मानने का उपाय जो नहीं है, तबीयत बहुत खराब है।”राजलक्ष्मी गम्भीर होने की चेष्टा कर रही थी पर सफल न हो सकी, हँसी के मारे लोट-पोट हो गयी। आनन्द ने अब मामला समझा, बोला, “दीदी, तो सच बताओ कि आपने किससे इतना सीखा?”मैंने कहा, “जो रुपयों के परिवर्तन में विद्या-दान करते हैं उनसे, मुझसे नहीं भैया। दादा इस विद्या के पास से भी कभी नहीं फटका।”क्षण भर मौन रहकर आनन्द ने कहा, “मैं भी कुछ थोड़ा-सा जानता हूँ दीदी, पर ज्यादा सीखने का वक्त नहीं मिला। यदि इस बार सुयोग मिला तो आपका शिष्यत्व स्वीकार कर अपनी शिक्षा को सम्पूर्ण कर लूँगा। पर आज क्या यहीं रुक जाँयगी, और कुछ नहीं सुनायेंगी?”राजलक्ष्मी ने कहा, “अब वक्त नहीं है भाई, तुम लोगों का खाना जो तैयार करना है।”आनन्द ने नि:श्वास छोड़कर कहा, “जानता हूँ कि संसार में जिनके ऊपर भार है उनके पास वक्त कम है। पर उम्र में मैं छोटा हूँ, आपका छोटा भाई। मुझे सिखाना ही होगा। अपरिचित स्थान में जब अकेला वक्त कटना नहीं चाहेगा, तब आपकी इस दया का स्मरण करूँगा।”राजलक्ष्मी ने स्नेह से विगलित होकर कहा, “तुम डॉक्टर हो, विदेश में अपने इस स्वास्थ्यहीन दादा के प्रति दृष्टि रखना भाई, मैं जितना भी जानती हूँ उतना तुम्हें प्यार से सिखाऊँगी।”“पर इसके अलावा क्या आपको और कोई फिक्र नहीं है दीदी?”राजलक्ष्मी चुप रही। आनन्द ने मुझे उद्देश्य कर कहा, “दादा जैसा भाग्य सहसा नजर नहीं आता।”मैंने इसका उत्तर दिया, “और ऐसा अकर्मण्य व्यक्ति ही क्या जल्दी नजर आता है आनन्द? ऐसों की नकेल पकड़ने के लिए भगवान मजबूत आदमी भी दे देता है, नहीं तो वे बीच समुद्र में ही डूब जाँय- किसी तरह घाट तक पहुँच ही न पायें। इसी तरह संसार में सामंजस्य की रक्षा होती है भैया, मेरी बातें मिलाकर देखना, प्रमाण मिल जायेगा।”राजलक्ष्मी भी मुहूर्त-भर नि:शब्द देखती रही, फिर उठ गयी। उसे बहुत काम है।इन कुछ दिनों के अन्दर ही मकान का काम शुरू हो गया, चीज-बस्त को एक कमरे में बन्दकर राजलक्ष्मी यात्रा के लिए तैयारी करने लगी। मकान का भार बूढ़े तुलसीदास पर रहा।जाने के दिन राजलक्ष्मी ने मेरे हाथ में एक पोस्टकार्ड देकर कहा, “मेरी चार पन्ने की चिट्ठी का यह जवाब आया है- पढ़कर देख लो।” और वह चली गयी।दो-तीन लाइनों में कमललता ने लिखा है-“सुख से ही हूँ बहिन, जिनकी सेवा में अपने को निवेदन कर दिया है, मुझे अच्छा रखने का भार भी उन्हीं पर है। यही प्रार्थना करती हूँ कि तुम लोग कुशल रहो। बड़े ग़ुर्साईंजी अपनी आनन्दमयी के लिए श्रद्धा प्रगट करते हैं।-इति श्री श्रीराधाकृष्णचरणाश्रिता, कमललता।”उसने मेरे नाम का उल्लेख भी नहीं किया है। पर इन कई अक्षरों की आड़ में उसकी न जाने कितनी बातें छुपी रह गयीं। खोजने लगा कि चिट्ठी पर एक बूँद ऑंसू का दाग भी क्या नहीं पड़ा है? पर कोई भी चिह्न नजर नहीं आया।चिट्ठी को हाथ में लेकर चुप बैठा रहा। खिड़की के बाहर धूप से तपा हुआ नीलाभ आकाश है, पड़ोसी के घर के दो नारियल के वृक्षों के पत्तों की फाँक से उसका कुछ अंश दिखाई देता है। वहाँ अकस्मात् ही दो चेहरे पास ही पास मानो तैर आये, एक मेरी राजलक्ष्मी का-कल्याण की प्रतिमा, दूसरा कमललता का, अपरिस्फुट, अनजान जैसे कोई स्वप्न में देखी हुई छवि।रतन ने आकर ध्या न भंग कर दिया। बोला, “स्नान का वक्त हो गया है बाबू, माँ ने कहा है।”स्नान का समय भी नहीं बीत जाना चाहिए!फिर एक दिन सुबह हम गंगामाटी जा पहुँचे। उस बार आनन्द अनाहूत अतिथि था, पर इस बार आमन्त्रित बान्धव। मकान में भीड़ नहीं समाती, गाँव के आत्मीय और अनात्मीय न जाने कितने लोग हमें देखने आये हैं। सभी के चेहरों पर प्रसन्न हँसी और कुशल-प्रश्न है। राजलक्ष्मी ने कुशारीजी की पत्नी को प्रणाम किया। सुनन्दा रसोई के काम में लगी थी, बाहर निकल आई और हम दोनों को प्रणाम करके बोली, “दादा, आपका शरीर तो वैसा अच्छा दिखाई नहीं देता!”राजलक्ष्मी ने कहा, “अच्छा और कब दिखता था बहिन? मुझसे तो नहीं हुआ, अब शायद तुम लोग अच्छा कर सको- इसी आशा से यहाँ ले आई हूँ।”मेरे विगत दिनों की बीमारी की बात शायद बड़ी बहू को याद आ गयी, उन्होंने स्नेहार्द्र कण्ठ से दिलासा देते हुए कहा- “डर की कोई बात नहीं है बेटी, इस देश के हवा-पानी से दो दिन में ही ये ठीक हो जायेंगे।” मेरी समझ में नहीं आया कि मुझे क्या हुआ है और किसलिए इतनी दुश्चिन्ता है!इसके बाद नाना प्रकार के कामों का आयोजन पूरे उद्यम के साथ शुरू हो गया। पोड़ामाटी को खरीदने की बातचीत से शुरू करके शिशु-विद्यालय की प्रतिष्ठा के लिए स्थान की खोज तक किसी भी काम में किसी को जरा भी आलस्य नहीं।सिर्फ मैं अकेला ही मन में कोई उत्साह अनुभव नहीं करता। या तो यह मेरा स्वभाव ही है, या फिर और ही कुछ जो दृष्टि के अगोचर मेरी समस्त प्राण-शक्ति का धीरे-धीरे मूलोच्छेदन कर रहा है। एक सुभीता यह हो गया है कि मेरी उदासीनता से कोई विस्मित नहीं होता, मानों मुझसे और किसी बात की प्रत्याशा करना ही असंगत है। मैं दुर्बल हूँ, अस्वस्थ हूँ, मैं कभी हूँ और कभी नहीं हूँ। फिर भी कोई बीमारी नहीं है, खाता पीता और रहता हूँ। अपनी डॉक्टरी विद्या द्वारा ज्यों ही कभी आनन्द हिलाने-डुलाने की कोशिश करता है त्यों ही राजलक्ष्मी सस्नेह उलाहने के रूप में बाधा देते हुए कहती हैं, “उन्हें दिक् करने का काम नहीं भाई, न जाने क्या से क्या हो जाय। तब हमें ही भोगना पड़ेगा!”आनन्द कहता, “आपको सावधान किये देता हूँ कि जो व्यवस्था की है उससे भोगने की मात्रा बढ़ेगी ही, कम नहीं होगी दीदी।”राजलक्ष्मी सहज ही स्वीकार करके कहती, “यह तो मैं जानती हूँ आनन्द, कि भगवान ने मेरे जन्म-काल में ही यह दु:ख कपाल में लिख दिया है।”इसके बाद और तर्क नहीं किया जा सकता।कभी किताबें पढ़ते हुए दिन कट जाता है, कभी अपनी विगत कहानी को लिखने में और कभी सूने मैदानों में अकेले घूमते। एक बात से निश्चिन्त हूँ कि कर्म की प्रेरणा मुझमें नहीं है। लड़-झगड़कर उछल-कूद मचाकर संसार में दस आदमियों के सिर पर चढ़ बैठने की शक्ति भी नहीं और संकल्प भी नहीं। सहज ही जो मिल जाता है, उसे ही यथेष्ट मान लेता हूँ। मकान-घर, रुपया-पैसा, जमीन-जायदाद, मान-सम्मान, ये सब मेरे लिए छायामय हैं। दूसरों की देखा-देखी अपनी जड़ता को यदि कभी कर्त्तव्य-बुद्धि की ताड़ना से सचेत करना चाहता हूँ तो देखता हूँ कि थोड़ी ही देर में वह फिर ऑंखें बन्द किये ऊँघ रही है- सैकड़ों धक्के देने पर भी हिलना-डुलना नहीं चाहती। देखता हूँ कि सिर्फ एक विषय में तन्द्रातुर मन कलरव से तरंगित हो उठता है और वह है मुरारीपुर के दस दिनों की स्मृति का आलोड़न। मानो कानों में सुनाई पड़ रहा है, वैष्णवी कमललता का सस्नेह अनुरोध- 'नये गुसाईं, यह कर दो न भाई!- अरे जाओ, सब नष्ट कर दिया! मेरी गलती हुई जो तुमसे काम करने के लिए कहा, अब उठो। जलमुँही पद्मा कहाँ गयी, जरा पानी चढ़ा देती, तुम्हारा चाय पीने का समय हो गया है गुसाईं।”उन दिनों वह खुद चाय के पात्र धोकर रखती थी, इस डरसे कि कहीं टूट न जाँय। उनका प्रयोजन खत्म हो गया है, तथापि क्या मालूम कि फिर कभी काम में आने की आशा से उसने अब भी उन्हें यत्नपूर्वक रख छोड़ा है या नहीं, जानता हूँ कि वह भागूँ-भागूँ कर रही है। हेतु नहीं जानता, तो भी मन में सन्देह नहीं है कि मुरारीपुर के आश्रम में उसके दिन हर रोज संक्षिप्त होते जा रहे हैं। एक दिन अकस्मात् शायद, यही खबर मिलेगी। यह कल्पना करते ही ऑंखों में ऑंसू आ जाते हैं कि वह निराश्रय, नि:सबल पथ-पथ पर भिक्षा माँगती हुई घूम रही है, भूला-भटका मन सान्त्वना की आशा में राजलक्ष्मी की ओर देखता है, जो सबकी सकल शुभचिन्ताओं के अविश्राम कर्म में नियुक्त है-मानों उसके दोनों हाथों की दसों अंगुलियों से कल्याण अजस्र धारा से बह रहा है। सुप्रसन्न मुँह पर शान्ति और सन्तोष की स्निग्धा छाया पड़ रही है। करुणा और ममता से हृदय की यमुना किनारे तक पूर्ण हैं-निरविच्छिन्न प्रेम की सर्वव्यापी महिमा के साथ वह मेरे हृदय में जिस आसन पर प्रतिष्ठित है, नहीं जानता कि उसकी तुलना किससे की जाय।विदुषी सुनन्दा के दुर्निवार प्रभाव ने कुछ वक्त के लिए उसे जो विभ्रान्त कर दिया था, उसके दु:सह परिताप से उसने अपनी पुरानी सत्ता फिर से पा ली है। एक बात आज भी वह मेरे कानों-कानों में कहती है कि “तुम भी कम नहीं हो जी, कम नहीं हो! भला यह कौन जानता था कि तुम्हारे चले जाने के पथ पर ही मेरा सर्वस्व पलक मारते ही दौड़ पड़ेगा। ऊ:! वह कैसी भयंकर बात थी! सोचने पर भी डर लगता है कि मेरे वे दिन कटे कैसे थे। धड़कन बन्द होकर मर नहीं गयी, यही आश्चर्य है!” मैं उत्तर नहीं दे पाता हूँ, सिर्फ चुपचाप देखता रहता हूँ।अपने बारे में जब उसकी गलती पकड़ने की गुंजाइश नहीं है। सौ कामों के बीच भी सौ दफा चुपचाप आकर देख जाती है। कभी एकाएक आकर नजदीक बैठ जाती है और हाथ की किताब हटाते हुए कहती है, “ऑंखें बन्द करके जरा सो जाओ न, मैं सिर पर हाथ फेरे देती हूँ। इतना पढ़ने पर ऑंखों में दर्द जो होने लगेगा।”आनन्द आकर बाहर से ही कहता है, “एक बात पूछनी है, आ सकता हूँ?”राजलक्ष्मी कहती हैं, “आ सकते हो। तुम्हें आने की कहाँ मनाही है आनन्द?”आनन्द कमरे में घुसकर आश्चर्य से कहता है, “इस असमय में क्या आप इन्हें सुला रही हैं दीदी?”राजलक्ष्मी हँसकर जवाब देती है, “तुम्हारा क्या नुकसान हुआ? नहीं सोने पर भी तो ये तुम्हारी पाठशाला के बछड़ों को चराने नहीं जायेंगे!”“देखता हूँ कि दीदी इन्हें मिट्टी कर देंगी।”“नहीं तो खुद जो मिट्टी हुई जाती हूँ, बेफिक्री से कोई काम-काज ही नहीं कर पाती।”“आप दोनों ही क्रमश: पागल हो जायेंगे।” कहकर आनन्द बाहर चला जाता है।स्कूल बनवाने के काम में आनन्द को साँस लेने की भी फुर्सत नहीं है, और सम्पत्ति खरीदने के हंगामे में राजलक्ष्मी भी पूरी तरह डूबी हुई है। इसी समय कलकत्ते के मकान से घूमती हुई, बहुत से पोस्ट-ऑफिसों में की मुहरों को पीठ पर लिये हुए, बहुत देर में, नवीन की सांघातिक चिट्ठी आ पहुँची- गौहर मृत्युशय्या पर है। सिर्फ मेरी ही राह देखता हुआ अब भी जी रहा है। यह खबर मुझे शूल जैसी चुभी। यह नहीं जानता कि बहिन के मकान से वह कब लौटा। वह इतना ज्यादा पीड़ित है, यह भी नहीं सुना-सुनने की विशेष चेष्टा भी नहीं की और आज एकदम शेष संवाद आ गया। प्राय: छह दिन पहले की चिट्ठी है, इसलिए अब वह जिन्दा है या नहीं-यही कौन जानता है! तार द्वारा खबर पाने की व्यवस्था इस देश में नहीं है और उस देश में भी नहीं। इसलिए इसकी चिन्ता वृथा है। चिट्ठी पढ़कर राजलक्ष्मी ने सिर पर हाथ रखकर पूछा, “तुम्हें क्या जाना पड़ेगा?”“हाँ।”“तो चलो, मैं भी साथ चलूँ।”“यह कहीं हो सकता है? इस आफत के समय तुम कहाँ जाओगी?”यह उसने खुद ही समझ लिया कि प्रस्ताव असंगत है, मुरारीपुर के अखाड़े की बात भी फिर वह जबान पर न ला सकी। बोली, “रतन को कल से बुखार है, साथ में कौन जायेगा? आनन्द से कहूँ?”“नहीं, वह मेरे बिस्तर उठाने वाला आदमी नहीं है!”“तो फिर साथ में किसन जाय?”“भले जाय, पर जरूरत नहीं है।”“जाकर रोज चिट्ठी दोगे, बोलो?”“समय मिला तो दूँगा।”“नहीं, यह नहीं सुनूँगी। एक दिन चिट्ठी न मिलने पर मैं खुद आ जाऊँगी चाहे तुम कितने ही नाराज क्यों न हो।” 'अगत्या राजी होना पड़ा, और हर रोज संवाद देने की प्रतिज्ञा करके उसी दिन चल पड़ा। देखा कि दुश्चिन्ता से राजलक्ष्मी का मुँह पीला पड़ गया है, उसने ऑंखें पोंछकर अन्तिम बार सावधान करते हुए कहा, “वादा करो कि शरीर की अवहेलना नहीं करोगे?”“नहीं, नहीं, करूँगा।”“कहो कि लौटने में एक दिन की भी देरी नहीं करोगे?”“नहीं, सो भी नहीं करूँगा!”अन्त में बैलगाड़ी रेलवे स्टेशन की तरफ चल दी।आषाढ़ का महीना था। तीसरे प्रहर गौहर के मकान के सदर दरवाजे पर जा पहुँचा। मेरी आवाज सुनकर नवीन बाहर आया और पछाड़ खाकर पैरों के पास गिर पड़ा। जो डर था वही हुआ। उस दीर्घकाय बलिष्ठ पुरुष के प्रबलकण्ठ के उस छाती फाड़ने वाले क्रन्दन में शोक की एक नयी मूर्ति देखी। वह जितनी गम्भीर थी, उतनी ही बड़ी और उतनी ही सत्य। गौहर की माँ नहीं, बहिन नहीं, कन्या नहीं, पत्नी नहीं। उस दिन इस संगीहीन मनुष्य को अश्रुओं की माला पहनाकर विदा करनेवाला कोई न था; तो भी ऐसा मालूम होता है कि उसे सज्जाहीन, भूषणहीन, कंगाल वेश में नहीं जाना पड़ा, उसकी लोकान्तर-यात्रा के पथ के लिए शेष पाथेय अकेले नवीन ने ही दोनों हाथ भरकर उड़ेल दिया है।बहुत देर बाद जब वह उठकर बैठ गया तब पूछा, “गौहर कब मरा नवीन?”“परसों। कल सुबह ही हमने उन्हें दफनाया है।”“कहाँ दफनाया?”“नदी के किनारे, आम के बगीचे में। और यह उन्हीं ने कहा था। ममेरी बहिन के मकान से बुखार लेकर लौटे और वह बुखार फिर नहीं गया था।”“इलाज हुआ था?”“यहाँ जो कुछ हो सकता है सब हुआ, पर किसी से भी कुछ लाभ न हुआ। बाबू खुद ही सब जान गये थे।”“अखाड़े के बड़े गुसाईंजी आते थे?”नवीन ने कहा, “कभी-कभी। नवद्वीप से उनके गुरुदेव आये हैं, इसीलिए रोज आने का वक्त नहीं मिलता था।” और एक व्यक्ति के बारे में पूछते हुए शर्म आने लगी, तो भी संकोच दूर कर प्रश्न किया, “वहाँ से और कोई नहीं आया नवीन?”नवीन ने कहा, “हाँ, कमललता आई थी।”,“कब आई थी?”नवीन ने कहा, “हर-रोज। अन्तिम तीन दिनों में तो न उन्होंने खाया और न सोया, बाबू का बिछौना छोड़कर एक बार भी नहीं उठीं।”और कोई प्रश्न नहीं किया, चुप हो रहा। नवीन ने पूछा, “अब कहाँ जायेंगे, अखाड़े में?”“हाँ।”“जरा ठहरिए।” कहकर वह भीतर गया और एक टीन का बक्स बाहर निकाल लाया। उसे मुझे देते हुए बोला, “आपको देने के लिए कह गये हैं।”“क्या है इसमें नवीन?”“खोलकर देखिए”, कहकर उसने मेरे हाथ में चाबी दे दी। खोलकर देखा कि उसकी कविता की कॉपियाँ रस्सी से बँधी हुई हैं। ऊपर लिखा है, “श्रीकान्त, रामायण खत्म करने का वक्त नहीं रहा। बड़े गुसाईंजी को दे देना, वे इसे मठ में रख देंगे, जिससे नष्ट न होने पावे।” दूसरी छोटी-सी पोटली सूती लाल कपड़े की है। खोलकर देखा कि नाना मूल्य के एक बंडल नोट हैं, और उन पर लिखा है, “भाई श्रीकान्त, शायद मैं नहीं बचूँगा। पता नहीं कि तुमसे मुलाकात होगी या नहीं। अगर नहीं हुई तो नवीन के हाथों यह बक्स दे जाता हूँ, इसे ले लेना। ये रुपये तुम्हें दे जा रहा हूँ।” यदि कमललता के काम में आयें तो दे देना। अगर न ले तो जो इच्छा हो सो करना। अल्लाह तुम्हारा भला करे।-गौहर।”दान का गर्व नहीं, अनुनय-विनय भी नहीं। मृत्यु को आसन्न जानकर सिर्फ थोड़े से शब्दों में बाल्य-बन्धु की शुभ कामना कर अपना शेष निवेदन रख गया है। भय नहीं, क्षोभ नहीं, उच्छ्वसित हाय-हाय से उसने मृत्यु का प्रतिवाद नहीं किया। वह कवि था, मुसलमान फकीर-वंश का रक्त उसकी शिराओं में था- शान्त मन से यह शेष रचना अपने बाल्य-बन्धु के लिए लिख गया है। अब तक मेरी ऑंखों के ऑंसू बाहर नहीं निकले थे, पर अब उन्होंने निषेध नहीं माना, वे बड़ी-बड़ी बूँदों में ऑंखों से निकलकर ढुलक पडे।आषाढ़ का दीर्घ दिन उस वक्त समाप्ति की ओर था। सारे पश्चिम अकाश में काले मेघों का एक स्तर ऊपर उठ रहा था। उसके ही किसी एक संकीर्ण छिद्रपथ से अस्तोन्मुख सूर्य की रश्मियाँ लाल होकर आ पड़ीं, प्राचीर से संलग्न शुष्कप्राय जामुन के पेड़ के सिर पर। इसी की शाखा के सहारे गौहर की माधवी और मालती लताओं के कुंज बने थे। उस दिन सिर्फ कलियाँ थीं। मुझे उनमें से ही कुछ उपहार देने की उसने इच्छा की थी। लेकिन चींटियों के डर से नहीं दे सका था। आज उनमें से गुच्छे के गुच्छे फूले हैं, जिनमें से कुछ तो नीचे झड़ गये हैं और कुछ हवा से उड़कर इर्द-गिर्द बिखर गये हैं। उन्हीं में से कुछ उठा लिये- बाल्य-बन्धु के स्वहस्तों का शेषदान समझकर। नवीन ने कहा, “चलिए, आपको पहुँचा आऊँ।”कहा, “नवीन, जरा बाहर का कमरा तो खोलो, देखूँगा।”नवीन ने कमरा खोल दिया। आज भी चौकी पर एक ओर बिछौना लिपटा हुआ रक्खा है, एक छोटी पेन्सिल और कुछ फटे कागजों के टुकड़े भी हैं। इसी कमरे में गौहर ने अपनी स्वरचित कविता वन्दिनी सीता के दु:ख की कहानी गाकर सुनाई थी। इस कमरे में न जाने कितनी बार आया हूँ, कितने दिनों तक खाया-पीया और सोया हूँ और उपद्रव कर गया हूँ। उस दिन हँसते-हुए जिन्होंने सब कुछ सहन किया था, अब उनमें से कोई भी जीवित नहीं है। आज अपना सारा आना-जाना समाप्त करके बाहर निकल आया।रास्ते में नवीन के मुँह से सुना कि गौहर ऐसी ही एक नोटों की छोटी पोटली उसके लड़कों को भी दे गया है। बाकी जो सम्पत्ति बची है, वह उसके ममेरे भाई-बहिनों को मिलेगी, और उसके पिता द्वारा निर्मित मस्जिद के रक्षणावेक्षण के लिए रहेगी।आश्रम में पहुँचकर देखा कि बहुत भीड़ है। गुरुदेव के साथ बहुत से शिष्य और शिष्याएँ आई हैं। खासी मजलिस जमी है, और हाव-भाव से उनके शीघ्र विदा होने के लक्षण भी दिखाई नहीं दिये। अनुमान किया कि वैष्णव-सेवा आदि कार्य विधि के अनुसार ही चल रहे हैं।मुझे देखकर द्वारिकादास ने अभ्यर्थना की। मेरे आगमन का हेतु वे जानते थे। गौहर के लिए दु:ख जाहिर किया, पर उनके मुँह पर न जाने कैसा विव्रत, उद्भ्रान्त भाव था, जो पहले कभी नहीं देखा। अन्दाज किया कि शायद इतने दिनों से वैष्णवों की परिचर्या के कारण वे क्लान्त और विपर्यस्त हो गये हैं, निश्चिन्त होकर बातचीत करने का वक्त उनके पास नहीं है।खबर मिलते ही पद्मा आयी, उसके मुँह पर भी आज हँसी नहीं, ऐसी संकुचित-सी, मानो भाग जाए तो बचे।पूछा, “कमललता दीदी इस वक्त बहुत व्यस्त हैं, क्यों पद्मा?”“नहीं, दीदी को बुला दूँ?” कहकर वह चली गयी। यह सब आज इतना अप्रत्याशित और अप्रासंगिक लगा कि मन ही मन शंकित हो उठा। कुछ देर बाद ही कमललता ने आकर नमस्कार किया। कहा, “आओ गुसाईं, मेरे कमरे में चल कर बैठो।”अपने बिछौने इत्यादि स्टेशन पर ही छोड़कर सिर्फ बैग साथ में लाया था और गौहर का वह बक्स मेरे नौकर के सिर पर था। कमललता के कमरे में आकर, उसे उसके हाथ में देते हुए बोला, “जरा सावधानी से रख दो, बक्स में बहुत रुपये हैं।”कमललता ने कहा, “मालूम है।” इसके बाद उसे खाट के नीचे रखकर पूछा, “शायद तुमने अभी तक चाय नहीं पी है?”“नहीं।”“कब आये?”“शाम को।”“आती हूँ, तैयार कर लाऊँ।” कहकर वह नौकर को साथ लेकर चल दी और पद्मा भी हाथ-मुँह धोने के लिए पानी देकर चली गयी, खड़ी नहीं रही।फिर खयाल हुआ कि बात क्या है?थोड़ी देर बाद कमललता चाय ले आयी, साथ में कुछ फल-फूल, मिठाई और उस वक्त का देवता का प्रसाद। बहुत देर से भूखा था, फौरन ही बैठ गया।कुछ क्षण पश्चात् ही देवता की सांध्यर-आरती के शंख और घण्टे की आवाज सुनाई पड़ी। पूछा, “अरे, तुम नहीं गयीं?”“नहीं, मना है।”“मना है तुम्हें? इसके मानो?”कमललता ने म्लान हँसी हँसकर कहा, “मना के माने हैं मना गुसाईं। अर्थात् देवता के कमरे में मेरा जाना निषिद्ध है।”आहार करने में रुचि न रही, पूछा “किसने मना किया?”“बड़े गुसाईंजी के गुरुदेव ने। और उनके साथ जो आये हैं, उन्होंने।”“वे क्या कहते हैं?';'“कहते हैं कि मैं अपवित्र हूँ, मेरी सेवा से देवता कलुषित हो जायेंगे।”“तुम अपवित्र हो!” विद्युत वेग से पूछा, “गौहर की वजह से ही सन्देह हुआ है क्या?”“हाँ, इसीलिए।”कुछ भी नहीं जानता था, तो भी बिना किसी संशय के कह उठा, “यह झूठ है- यह असम्भव है।”“असम्भव क्यों है गुसाईं?”“यह तो नहीं बतला सकता कमललता, पर इससे बढ़कर और कोई बात मिथ्या नहीं। ऐसा लगता है कि मनुष्य-समाज में अपने मृत्यु-पथ यात्री बन्धु की एकान्त सेवा का ऐसा ही शेष पुरस्कार दिया जाता है!”उसकी ऑंखों में ऑंसू आ गये। बोली, “अब मुझे दु:ख नहीं है। देवता अन्तर्यामी हैं, उनके निकट तो डर नहीं था, डर था सिर्फ तुमसे। आज मैं निर्भय होकर जी गयी गुसाईं।”“संसार के इतने आदमियों के बीच तुम्हें सिर्फ मुझसे डर था? और किसी से नहीं?”“नहीं, और किसी से नहीं, सिर्फ तुमसे था।”इसके बाद दोनों ही स्तब्ध रहे। एक बार पूछा, “बड़े गुसाईंजी क्या कहते हैं?”कमललता ने कहा, “उनके लिए तो और कोई उपाय नहीं है। नहीं तो फिर कोई भी वैष्णव इस मठ में नहीं आयेगा।” कुछ देर बाद कहा, “अब यहाँ रहना नहीं हो सकता। यह तो जानती थी कि यहाँ से एक दिन मुझे जाना होगा, पर यही नहीं सोचा था कि इस तरह जाना होगा गुसाईं। केवल पद्मा के बारे में सोचने से दु:ख होता है। लड़की है, उसका कहीं भी कोई नहीं है। बड़े गुसाईंजी को यह नवद्वीप में पड़ी हुई मिली थी। अपनी दीदी के चले जाने पर वह बहुत रोएगी। यदि हो सके तो जरा उसका खयाल रखना। यहाँ न रहना चाहे तो मेरे नाम से राजू को दे देना- वह जो अच्छा समझेगी अवश्य करेगी।”फिर कुछ क्षण चुपचाप कटे। पूछा, “इन रुपयों का क्या होगा? न लोगी?”“नहीं। मैं भिखारिन हूँ, रुपयों का क्या करूँगी-बताओ?”“तो भी यदि कभी किसी काम में आयें।”कमललता ने इस बार हँसकर कहा, “मेरे पास भी तो एक दिन बहुत रुपया था, वह किस काम आया? फिर भी, अगर कभी जरूरत पड़ी तो तुम किसलिए हो? तब तुमसे माँग लूँगी। दूसरे के रुपये क्यों लेने लगी?”सोच न सका कि इस बात का क्या जवाब दूँ, सिर्फ उसके मुँह की ओर देखता रहा।उसने फिर कहा, “नहीं गुसाईं, मुझे रुपये नहीं चाहिए। जिनके श्रीचरणों में स्वयं को समर्पण कर दिया है, वे मुझे नहीं छोड़ेंगे। कहीं भी जाऊँ, वे सारे अभावपूर्ण कर देंगे। मेरे लिए चिन्ता, फिक्र न करो।”पद्मा ने कमरे में आकर कहा, “नये गुसाईं के लिए क्या इसी कमरे में प्रसाद ले आऊँ दीदी?”“हाँ, यहीं ले आओ। नौकर को दिया?”“हाँ, दे दिया।”तो भी पद्मा नहीं गयी, क्षण भर तक इधर-उधर करके बोली, “तुम नहीं खाओगी दीदी?”“खाऊँगी री जलमुँही, खाऊँगी। जब तू है, तब बिना खाये दीदी की रिहाई है?”पद्मा चली गयी।सुबह उठने पर कमललता दिखाई नहीं पड़ी, पद्मा की जुबानी मालूम हुआ कि वह शाम को आती है। दिनभर कहाँ रहती है, कोई नहीं जानता। तो भी मैं निश्चिन्त नहीं हो सका, रात की बातें याद करके डर होने लगा कि कहीं वह चली न गयी हो और अब मुलाकात ही न हो।बड़े गुसाईंजी के कमरे में गया। सामने उन कॉपियों को रखकर बोला, “गौहर की रामायण है। उसकी इच्छा थी कि यह मठ में रहे।”द्वारिकादास ने हाथ फैलाकर रामायण ले ली, बोले, “यही होगा नये गुसाईं। जहाँ मठ के और सब ग्रन्थ रहते हैं, वहीं उन्हीं के साथ इसे भी रख दूँगा।”कोई दो मिनट तक चुप रहकर कहा, “उसके सम्बन्ध में कमललता पर लगाए गये अपवाद पर तुम विश्वास करते हो गुसाईं?”द्वारिकादास ने मुँह ऊपर उठाकर कहा, “मैं? जरा भी नहीं।”“तब भी उसे चला जाना पड़ रहा है?”“मुझे भी जाना होगा गुसाईं। निर्दोषी को दूर करके यदि खुद बना रहूँ, तो फिर मिथ्या ही इस पथ पर आया और मिथ्या ही उनका नाम इतने दिनों तक लिया।”“तब फिर उसे ही क्यों जाना पड़ेगा? मठ के कर्त्ता तो तुम हो, तुम तो उसे रख सकते हो?”द्वारिकादास 'गुरु! गुरु! गुरु!' कहकर मुँह नीचा किये बैठे रहे। समझा कि इसके अलावा गुरु का और आदेश नहीं है।“आज मैं जा रहा हूँ गुसाईं।” कहकर कमरे से बाहर निकलते समय उन्होंने मुँह ऊपर उठाकर मेरी ओर ताका। देखा कि उनकी ऑंखों से ऑंसू गिर रहे हैं। उन्होंने मुझे हाथ उठाकर नमस्कार किया और मैं प्रतिनमस्कार करके चला आया।अपराह्न बेला क्रमश: संध्याक में परिणत हो गयी, संध्याठ उत्तीर्ण होकर रात आयी, किन्तु कमललता नजर नहीं आयी। नवीन का आदमी मुझे स्टेशन पर पहुँचाने के लिए आ पहुँचा। सिर पर बैग रक्खे किसन जल्दी मचा कर कह रहा है- अब वक्त नहीं है- पर कमललता नहीं लौटी। पद्मा का विश्वास था कि थोड़ी देर बाद ही वह आएगी, पर मेरा सन्देह क्रमश: विश्वास बन गया कि वह नहीं आयेगी और शेष विदाई की कठोर परीक्षा से विमुख होकर वह पूर्वाह्न में ही भाग गयी है, दूसरा वस्त्र भी साथ नहीं लिया है। कल उसने भिक्षुणी वैरागिणी बताकर जो आत्म-परिचय दिया था, वह परिचय ही आज अक्षुण्ण रखा।जाने के वक्त पद्मा रोने लगी। उसे अपना पता देते हुए कहा, “दीदी ने तुमसे मुझे चिट्ठी लिखते रहने के लिए कहा है- तुम्हारी जो इच्छा हो वह मुझे लिखकर भेजना पद्मा।”“पर मैं तो अच्छी तरह लिखना नहीं जानती, गुसाईं।”“तुम जो लिखोगी मैं वही पढ़ लूँगा।”“दीदी से मिलकर नहीं जाओगे?”“फिर मुलाकात होगी पद्मा, अब तो मैं जाता हूँ।” कहकर बाहर निकल पड़ा।♦♦ • ♦♦ऑंखें जिसे सारे रास्ते अन्धकार में भी खोज रही थीं, उससे मुलाकात हुई रेलवे स्टेशन पर। वह लोगों की भीड़ से दूर खड़ी थी, मुझे देख नजदीक आकर बोली, “एक टिकिट खरीद देना होगा गुसाईं।”“तब क्या सचमुच ही सबको छोड़कर चल दीं?”“इसके अलावा और तो कोई उपाय नहीं है।”“कष्ट नहीं होता कमललता?”“यह बात क्यों पूछते हो गुसाईं, सब तो जानते हो।”“कहाँ जाओगी?”“वृन्दावन जाऊँगी। पर इतनी दूर का टिकिट नहीं चाहिए। तुम पास की ही किसी जगह का खरीद दो।”“मतलब यह कि मेरा ऋण जितना भी कम हो उतना अच्छा। इसके बाद दूसरों से भिक्षा माँगना शुरू कर दोगी, जब तक कि पथ शेष नहीं हो। यही तो?”“भिक्षा क्या यह पहली बार ही शुरू होगी गुसाईं? क्या कभी और नहीं माँगी?”चुप रहा। उसने मेरी ओर ऑंखें फिराकर कहा, “तो वृन्दावन का टिकिट ही खरीद दो।”“तो चलो एक साथ ही चलें?”“तुम्हारा भी क्या यही रास्ता है?”कहा, “नहीं, यही तो नहीं है- तो भी जितनी दूर तक है, उतनी ही दूर तक सही।”गाड़ी आने पर दोनों उसमें बैठ गये। पास की बेंच पर मैंने अपने हाथों से ही उसका बिछौना बिछा दिया।कमललता व्यस्त हो उठी, “यह क्या कर रहे हो गुसाईं?”“वह कर रहा हूँ जो कभी किसी के लिए नहीं किया- हमेशा याद रखने के लिए।”“सचमुच ही क्या याद रखना चाहते हो?”“सचमुच ही याद रखना चाहता हूँ कमललता। तुम्हारे अलावा यह बात और कोई नहीं जानेगा।”“पर मुझे तो दोष लगेगा गुसाईं।”“नहीं, कोई दोष नहीं लगेगा- तुम मजे से बैठो।”कमललता बैठी, पर बड़े संकोच के साथ। कितने गाँव, कितने नगर और कितने प्रान्तों को पार करती हुई ट्रेन चल रही थी। नजदीक बैठकर वह धीरे-धीरे अपने जीवन की अनेक कहानियाँ सुनाने लगी। जगह-जगह घूमने की कहानियाँ, मथुरा, वृन्दावन, गोवरधन, राधाकुण्ड-निवास की बातें, अनेक तीर्थ-भ्रमणों की कथाएँ, और अन्त में द्वारिकादास के आश्रय में मुरारीपुर आश्रम में आने की बात। मुझे उस वक्त उस व्यक्ति की विदा के वक्त की बातें याद आ गयीं। कहा, “जानती हो, कमललता, बड़े गुसाईं तुम्हारे कलंक पर विश्वास न ही करते?”'“नहीं करते?”“कतई नहीं। मेरे आने के वक्त उनकी ऑंखों से ऑंसू गिरने लगे, बोले- “निर्दोषी को दूर करके यदि मैं यहाँ खुद बना रहा नये गुसाईं, तो उनका नाम लेना मिथ्या है और मिथ्या है मेरा इस पथ पर आना।' मठ में वे भी न रहेंगे कमललता और तब ऐसा निष्पाप मधुर आश्रम टूटकर बिल्कुथल नष्ट हो जायेगा।”“नहीं, नहीं नष्ट होगा, भगवान एक न एक रास्ता अवश्य दिखा देंगे।”“अगर कभी तुम्हारी पुकार हो, तो फिर वहाँ लौटकर जाओगी?”“नहीं।”“यदि वे पश्चात्ताप करके तुमको लौटाया चाहें?”“तो भी नहीं।”“पर अब तुमसे कहाँ मुलाकात होगी?”इस प्रश्न का उसने उत्तर नहीं दिया, चुप रही। काफी वक्त खामोशी में कट गया, पुकारा, “कमललता?' उत्तर नहीं मिला, देखा कि गाड़ी के एक कोने में सिर रखकर उसने ऑंखें बन्द कर ली हैं। यह सोचकर कि सारे दिन की थकान से सो गयी हैं, जगाने की इच्छा नहीं हुई। उसके बाद फिर, मैं खुद कब सो गया, यह पता नहीं, हठात् कानों में आवाज आयी, “नये गुसाईं?” देखा कि वह मेरे शरीर को हिलाकर पुकार रही हैं। बोली, “उठो, तुम्हारी साँईथिया की ट्रेन खड़ी है।”जल्दी से उठ बैठा, पास के डिब्बे में किसन सिंह था, पुकारने के साथ ही उसने आकर बैग उतार दिया। बिछौना बाँधते वक्त देखा कि जिन दो चादरों से उसकी शय्या बनाई थी, उसने उनको पहिले से ही तहकर मेरी बेंच पर एक ओर रख दिया है। कहा, “यह जरा-सा भी तुमने लौटा दिया- नहीं लिया?”“न जाने कितनी बार चढ़ना-उतरना पड़े, यह बोझा कौन उठाएगा?”“दूसरा वस्त्र भी साथ नहीं लायी, वह भी क्या बोझा होता? एक-दो वस्त्र निकालकर दूँ?”“तुम भी खूब हो! तुम्हारे कपड़े भिखारिणी के शरीर पर कैसे फबेंगे?”“खैर, कपड़े अच्छे नहीं लगेंगे, पर भिखारी को भी खाना तो पड़ता है? पहुँचने में और भी दो-तीन दिन लगेंगे, ट्रेन में क्या खाओगी? जो खाने की चीजें मेरे पास हैं, उन्हें भी क्या फेंक जाऊँ- तुम नहीं छुओगी?”कमललता ने इस बार हँसकर कहा, “अरे वाह, गुस्सा हो गये! अजी उन्हें छुऊँगी। रहने दो उन्हें, तुम्हारे चले जाने के बाद मैं पेटभर के खा लूँगी।”वक्त खत्म हो रहा था, मेरे उतरने के वक्त बोली, “जरा ठहरो तो गुसाईं, कोई है नहीं- आज छिपकर तुम्हें एक बार प्रणाम कर लूँ।” यह कहकर, उसने झुककर मेरे पैरों की धूल ले ली।उतरकर प्लेटफार्म पर खड़ा हो गया। उस वक्त रात समाप्त नहीं हुई थी, नीचे और ऊपर अन्धकार के स्तरों में बँटवारा शुरू हो गया था। आकाश के एक प्रान्त में कृष्ण त्रयोदशी का क्षीण शीर्ण शशि और दूसरे प्रान्त में उषा की आगमनी। उस दिन की बात याद आ गयी, जिस दिन ऐसे ही वक्त देवता के लिए फूल तोड़ने जाने के लिए उसका साथी हुआ था। और आज?सीटी बजाकर और हरे रंग की लालटेन हिलाकर गार्ड साहब ने यात्रा का संकेत किया। कमललता ने खिड़की से हाथ बढ़ाकर प्रथम बार मेरा हाथ पकड़ लिया। उसके कम्पन में विनती का जो सुर था वह कैसे समझाऊँ? बोली, “तुमसे कभी कुछ नहीं माँगा है, आज एक बात रखोगे?”“हाँ रक्खूँगा।” कहकर उसकी ओर देखने लगा।कहने में उसे एक क्षण की देर हुई, बोली, “जानती हूँ कि मैं तुम्हारे कितने आदर की हूँ। आज विश्वासपूर्वक उनके पाद-पद्मों में मुझे सौंपकर तुम निश्चिन्त होओ, निर्भय होओ। मेरे लिए सोच-सोचकर अब तुम अपना मन खराब मत करना गुसाईं, तुम्हारे निकट मेरी यही प्रार्थना है।”ट्रेन चल दी। उसका वही हाथ अपने हाथ में लिये कुछ दूर अग्रसर होते-होते कहा, “कमललता, तुम्हें मैंने उन्हीं को सौंपा, वे ही तुम्हारा भार लें। तुम्हारा पथ, तुम्हारी साधना निरापद हो- अपनी कहकर अब मैं तुम्हारा असम्मान नहीं करूँगा।”हाथ छोड़ दिया, गाड़ी दूर से दूर होने लगी। गवाक्षपथ से देखा, उसके झुके हुए मुँह पर स्टेशन की प्रकाश-माला कई बार आकर पड़ी और फिर अन्धकार में मिल गयी। सिर्फ यही मालूम हुआ कि हाथ उठाकर मानो वह मुझे शेष नमस्कार कर रही है।समाप्त

❤️,श्रीकांत"❤️        अध्याय 20 By वनिता कासनियां पंजाब अध्याय 20 एक दिन सुबह स्वामी आनन्द आ पहुँचे। रतन को यह पता न था कि उन्हें आने का निमन्त्रण दिया गया है। उदास चेहरे से उसने आकर खबर दी, “बाबू, गंगामाटी का वह साधु आ पहुँचा है। बलिहारी है, खोज-खाजकर पता लगा ही लिया।” रतन सभी साधु-सज्जनों को सन्देह की दृष्टि से देखता है। राजलक्ष्मी के गुरुदेव को तो वह फूटी ऑंख नहीं देख सकता। बोला, “देखिए, यह इस बार किस मतलब से आया है। ये धार्मिक लोग रुपये लेने के अनेक कौशल जानते हैं।” हँसकर कहा, “आनन्द बड़े आदमी का लड़का है, डॉक्टरी पास है, उसे अपने लिए रुपयों की जरूरत नहीं।” “हूँ, बड़े आदमी का लड़का है! रुपया रहने पर क्या कोई इस रास्ते पर आता है!” इस तरह अपना सुदृढ़ अभिमत व्यक्त करके वह चला गया। रतन को असली आपत्ति यहीं पर है। माँ के रुपये कोई ले जाय, इसका वह जबरदस्त विरोधी है। हाँ, उसकी अपनी बात अलग है।” वज्रानन्द ने आकर मुझे नमस्कार किया, कहा, “और एक बार आ गया दादा, कुशल तो है? दीदी कहाँ हैं?” “शायद पूजा करने बैठी हैं, निश्चय ही उन्हें खबर नहीं मिली है।” “तो खुद ही जाकर संवाद दे ...

रामचरितमानस के उत्तरकांड में गरुड़जी कागभुशुण्डि जी से कहते हैं कि, आप मुझ पर कृपावान हैं, और मुझे अपना सेवक मानते हैं, तो कृपापूर्वक मेरे सात प्रश्नों के उत्तर दीजिए। गरुड़ जी प्रश्न करते हैं- प्रथमहिं कहहु नाथ मतिधीरा। सब तें दुर्लभ कवन सरीरा। बड़ दुख कवन कवन सुख भारी। सोइ संछेपहिं कहहु बिचारी। संत असंत मरम तुम जानहु। तिन्ह कर सहज सुभाव बखानहु। कवन पुन्य श्रुति बिदित बिसाला। कहहु कवन अघ परम कराला। मानस रोग कहहु समुझाई । तुम्ह सर्बग्य कृपा अधिकाई ।। गरुड़ प्रश्न करते हैं कि हे नाथ! सबसे दुर्लभ शरीर कौन-सा है। कौन सबसे बड़ा दुःख है। कौन सबसे बड़ा सुख है। साधु और असाधु जन का स्वभाव कैसा होता है। वेदों में बताया गया सबसे बड़ा पाप कौन-सा है। इसके बाद वे सातवें प्रश्न के संबंध में कहते हैं कि मानस रोग समझाकर बतलाएँ, क्योंकि आप सर्वज्ञ हैं। गरुड़ के प्रश्न के उत्तर में कागभुशुंडि कहते हैं कि मनुष्य का शरीर दुर्लभ और श्रेष्ठ है, क्योंकि इस शरीर के माध्यम से ही ज्ञान, वैराग्य, स्वर्ग, नरक, भक्ति आदि की प्राप्ति होती है। वे कहते हैं कि दरिद्र के समान संसार में कोई दुःख नहीं है और संतों (सज्जनों) के मिलन के समान कोई सुख नहीं है। मन, वाणी और कर्म से परोपकार करना ही संतों (साधुजनों) का स्वभाव होता है। किसी स्वार्थ के बिना, अकारण ही दूसरों का अपकार करने वाले दुष्ट जन होते हैं। वेदों में विदित अहिंसा ही परम धर्म और पुण्य है, और दूसरे की निंदा करने के समान कोई पाप नहीं होता है। गरुड़ के द्वारा पूछे गए सातवें प्रश्न का उत्तर अपेक्षाकृत विस्तार के साथ कागभुशुंडि द्वारा दिया जाता है। सातवें और अंतिम प्रश्न के उत्तर में प्रायः वे सभी कारण निहित हैं, जो अनेक प्रकार के दुःखों का कारण बनते हैं। इस कारण बाबा तुलसी मानस रोगों का विस्तार से वर्णन करते हैं। सुनहु तात अब मानस रोगा।जिन्ह तें दुख पावहिं सब लोगा। मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह तें पुनि उपजहिं बहु सूला। काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा। प्रीति करहिं जौ तीनिउ भाई । उपजइ सन्यपात दुखदाई। विषय मनोरथ दुर्गम नाना । ते सब सूल नाम को जाना। कागभुशुंडि कहते हैं कि मानस रोगों के बारे में सुनिए, जिनके कारण सभी लोग दुःख पाते हैं। सारी मानसिक व्याधियों का मूल मोह है। इसके कारण ही अनेक प्रकार के मनोरोग उत्पन्न होते हैं। शरीर में विकार उत्पन्न करने वाले वात, कफ और पित्त की भाँति क्रमशः काम, अपार लोभ और क्रोध हैं। जिस प्रकार पित्त के बढ़ने से छाती में जलन होने लगती है, उसी प्रकार क्रोध भी जलाता है। यदि ये तीनों मनोविकार मिल जाएँ, तो कष्टकारी सन्निपात की भाँति रोग लग जाता है। अनेक प्रकार की विषय-वासना रूपी मनोकांक्षाएँ ही वे अनंत शूल हैं, जिनके नाम इतने ज्यादा हैं, कि उन सबको जानना भी बहुत कठिन है। बाबा तुलसी इस प्रसंग में अनेक प्रकार के मानस रोगों, जैसे- ममता, ईर्ष्या, हर्ष, विषाद, जलन, दुष्टता, मन की कुटिलता, अहंकार, दंभ, कपट, मद, मान, तृष्णा, मात्सर्य (डाह) और अविवेक आदि का वर्णन करते हैं और शारीरिक रोगों के साथ इनकी तुलना करते हुए इन मनोरोगों की विकरालता को स्पष्ट करते हैं। यहाँ मनोरोगों की तुलना शारीरिक व्याधियों से इस प्रकार और इतने सटीक ढंग से की गई है, कि किसी भी शारीरिक व्याधि की तीक्ष्णता और जटिलता से मनोरोग की तीक्ष्णता और जटिलता का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। शरीर का रोग प्रत्यक्ष होता है और शरीर में परिलक्षित होने वाले उसके लक्षणों को देखकर जहाँ एक ओर उपचार की प्रक्रिया को शुरू किया जा सकता है, वहीं दूसरी ओर व्याधिग्रस्त व्यक्ति को देखकर अन्य लोग उस रोग से बचने की सीख भी ले सकते हैं। सामान्यतः मनोरोग प्रत्यक्ष परिलक्षित नहीं होता, और मनोरोगी भी स्वयं को व्याधिग्रस्त नहीं मानता है। इस कारण से बाबा तुलसी ने मनोरोगों की तुलना शारीरिक रोगों से करके एकदम अलग तरीके से सीख देने का कार्य किया है। कागभुशुंडि कहते हैं कि एक बीमारी-मात्र से व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है और यहाँ तो अनेक असाध्य रोग हैं। मनोरोगों के लिए नियम, धर्म, आचरण, तप, ज्ञान, यज्ञ, जप, दान आदि अनेक औषधियाँ हैं, किंतु ये रोग इन औषधियों से भी नहीं जाते हैं। इस प्रकार संसार के सभी जीव रोगी हैं। शोक, हर्ष, भय, प्रीति और वियोग से दुःख की अधिकता हो जाती है। इन तमाम मानस रोगों को विरले ही जान पाते हैं। जानने के बाद ये रोग कुछ कम तो होते हैं, मगर विषय-वासना रूपी कुपथ्य पाकर ये साधारण मनुष्य तो क्या, मुनियों के हृदय में भी अंकुरित हो जाते हैं। मनोरोगों की विकरालता का वर्णन करने के उपरांत इन रोगों के उपचार का वर्णन भी होता है। कागभुशुंडि के माध्यम से तुलसीदास कहते हैं कि सद्गुरु रूपी वैद्य के वचनों पर भरोसा करते हुए विषयों की आशा को त्यागकर संयम का पालन करने पर श्रीराम की कृपा से ये समस्त मनोरोग नष्ट हो जाते हैं। रघुपति भगति सजीवनि मूरी।अनूपान श्रद्धा मति पूरी।। इन मनोरोगों के उपचार के लिए श्रीराम की भक्ति संजीवनी जड़ की तरह है। श्रीराम की भक्ति को श्रद्धा से युक्त बुद्धि के अनुपात में निश्चित मात्रा के साथ ग्रहण करके मनोरोगों का शमन किया जा सकता है। यहाँ तुलसीदास ने भक्ति, श्रद्धा और मति के निश्चित अनुपात का ऐसा वैज्ञानिक-तर्कसम्मत उल्लेख किया है, जिसे जान-समझकर अनेक लोगों ने मानस को अपने जीवन का आधार बनाया और मनोरोगों से मुक्त होकर जीवन को सुखद और सुंदर बनाया। यहाँ पर श्रीराम की भक्ति से आशय कर्मकांडों को कठिन और कष्टप्रद तरीके से निभाने, पूजा-पद्धतियों का कड़ाई के साथ पालन करने और इतना सब करते हुए जीवन को जटिल बना लेने से नहीं है। इसी प्रकार श्रद्धा भी अंधश्रद्धा नहीं है। भक्ति और श्रद्धा को संयमित, नियंत्रित और सही दिशा में संचालित करने हेतु मति है। मति को नियंत्रित करने हेतु श्रद्धा और भक्ति है। इन तीनों के सही और संतुलित व्यवहार से श्रीराम का वह स्वरूप प्रकट होता है, जिसमें मर्यादा, नैतिकता और आदर्श है। जिसमें लिप्सा-लालसा नहीं, त्याग और समर्पण का भाव होता है। जिसमें विखंडन की नहीं, संगठन की; सबको साथ लेकर चलने की भावना निहित होती है। जिसमें सभी के लिए करुणा, दया, ममता, स्नेह, प्रेम, वात्सल्य जैसे उदात्त गुण परिलक्षित होते हैं। श्रद्धा, भक्ति और मति का संगठन जब श्रीराम के इस स्वरूप को जीवन में उतारने का माध्यम बन जाता है, तब असंख्य मनोरोग दूर हो जाते हैं। स्वयं का जीवन सुखद, सुंदर, सरल और सहज हो जाता है। जब अंतर्जगत में, मन में रामराज्य स्थापित हो जाता है, तब बाह्य जगत के संताप प्रभावित नहीं कर पाते हैं। इसी भाव को लेकर, आत्मसात् करके विसंगतियों, विकृतियों और जीवन के संकटों से जूझने की सामर्थ्य अनगिनत लोगों को तुलसी के मानस से मिलती रही है। यह क्रम आज का नहीं, सैकड़ों वर्षों का है। यह क्रम देश की सीमाओं के भीतर का ही नहीं, वरन् देश से बाहर कभी मजदूर बनकर, तो कभी प्रवासी बनकर जाने वाले लोगों के लिए भी रहा है। सैकड़ों वर्षों से लगाकर वर्तमान तक अनेक देशों में रहने वाले लोगों के लिए तुलसी का मानस इसी कारण पथ-प्रदर्शक बनता है, सहारा बनता है। आज के जीवन की सबसे जटिल समस्या ऐसे मनोरोगों की है, मनोविकृतियों की है, जिनका उपचार अत्याधुनिक चिकित्सा पद्धतियों के पास भी उपलब्ध नहीं है। ऐसी स्थिति में तुलसीदास का मानस व्यक्ति से लगाकर समाज तक, सभी को सही दिशा दिखाने, जीवन को सन्मार्ग में चलाने की सीख देने की सामर्थ्य रखता है। #वनिता #पंजाब

 

# રામા દુનિયામાંથી તૂટી પડવું અંદરનું હૃદય જોવામાં આવ્યું. ત્યારથી માણસને ભગવાન માનવામાં આવે છે ભગવાન ત્યારથી મારો મિત્ર છે. જેને વિશ્વ કહેવાતું તેને તેના ભ્રાંતિ વિશે ખબર પડી માયાની છાયામાંથી બહાર નીકળો આખી દુનિયા અંદર થઈ. જો આપણે હકની વાત કરીએ લીફ લીફ .ભો થયો. જલદીથી બધુ બરાબર છે. જે ડ્રોપ નયનમાં બંધ થઈ ગયો તેમાં તે સમુદ્ર મળ્યો. ડ્રોપમાં જાતે બાઉન્ડ હવે સમુદ્ર પાર નથી થયો. મારા શેલ પર મૂક્કો જુઓ વાંચવાથી મુક્તિ મળશે નહીં તેમાં મારો ભાગ શોધો ત્યાં દરેક લેખ રામ હતા. * સામાજિક કાર્યકર વનિતા કસાણી પંજાબ દ્વારા * 🌹🙏🙏🌹