तुलसीदास ने भगवान हनुमान से कैसे मुलाकात की?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबहनुमान से मिलने के संबंध में एक कथा प्रचलित है जिसमें कहा जाता है कि तुलसीदास जी जब भगवान के दर्शन के लिए वन मन भटक रहे थे तब वह थक कर एक वृक्ष के नीचे बैठ गए और फिर साथ में लिए जल को (अपनी यात्रा में साथ लेकर चला करते थे) गुस्से में आकर उसी वृक्ष पर फेंक दिया।उस वृक्ष में एक प्रेत रहा करता था ऋषि के कमंडल के जल को ऊपर पड़ते ही वह मुक्त हो गया और बाहर आकर तुलसीदास जी के सामने खड़ा हो गया और बताया कि उसे मुक्ति उनके द्वारा फेके गए जल से हुई है। इसलिए जो भी आपकी समस्या है, सवाल है पूछ सकते है!इस पर तुलसी दास जी ने पूछा कि उन्हें भगवान श्री राम के दर्शन कैसे होंगे?प्रेत ने बताया कि इस सवाल का उत्तर तो केवल बजरंगबली ही बता सकते है। बजरंग बली ही केवल आपको प्रभु राम से मिलवा सकते है। हनुमान जी का पता पूछने पर प्रेत ने बताया कि जब कहीं भी राम की कथा का वाचन होता है तो हनुमान जी वहा पर अवश्य ही पहुंच जाते है। प्रेत ने यह भी बताया कि कुछ दूर के एक मंदिर में राम कथा का आयोजन हो रहा है, वह भी हनुमान जी एक कोढी के वेश में पहुंचेंगे।तुलसीदास जी तुरंत उस मंदिर पर पहुंच जाते हैं जहां पर राम कथा का आयोजन हो रहा है, जैसे ही हनुमान जी कोढी के बीच में वहां पर पहुंचे तुलसीदास ने तुरन्त उनके पैरों को पकड़ लिया और तब तक नहीं छोड़ा जब तक वे अपने असली रूप में नहीं आ गए।इस तरह तुलसीदास को हनुमान जी के दर्शन इसके बाद हनुमान जी की सहायता से हीन तुलसीदास ने प्रभु राम की दर्शन किए।एक प्रेत के साथ से गोस्वामी तुलसीदास जी ने भगवान हनुमान के दर्शन किए और भगवान श्री राम के दर्शन प्राप्त करने के लिए अपना पहला कदम बढ़ाया।हनुमान जी के मिलने के पश्चात तुलसीदास जी ने उनसे एक बार भगवान श्री राम की दर्शन कराने की प्रार्थना की। हनुमान जी ने तुलसीदास जी को कई अन्य तरह के प्रलोभन दिए और प्रकार की सुख समृद्धि का भी प्रस्ताव दिया लेकिन तुलसीदास जी हठी थे। उन्होंने किसी अन्य प्रलोभन को स्वीकार नहीं किया और बार-बार श्री राम के दर्शन पाने की लिए हनुमान जी से प्रार्थना करते रहें।उन्होंने हनुमान जी से कहा कि आप भी राम के भक्त हो और मैं भी श्री राम का भक्त हूं क्या आप मेरी सहायता नहीं करोगे? हनुमान जी तुलसीदास जी की बात मानने पर मजबूर हो गए और उन्हें बताया कि भगवान श्री राम तुम्हें चित्रकूट के घाट पर अपना दर्शन देंगे। इतना सुनते ही नहीं तुलसीदास प्रसन्न हो गए और तुरंत चित्रकूट की तरफ निकल दिए।वहां पहुंचने के बाद उन्होंने सबसे पहले नदी में स्नान किया और कदमगिरि कि परिक्रमा करने लगे तभी उन्हें दो सुंदर राजकुमार एक गौर वर्ण और दूसरा श्याम वर्ण के अत्यंत सुंदर घोड़े पर सवार होकर आते हुए दिखे तुलसीदास जी ने उन्हें देखा और उनके मन में सवाल उठा कि इतने सुंदर राजकुमार चित्रकूट में क्या कर रहे हैं और कुछ ही देर बाद वे सुंदर राजकुमार उनकी आंखों से ओझल हो गए तब हनुमान जी उनके पास आए और पूछे कि क्या आपको प्रभु श्री राम और भ्राता लक्ष्मण के दर्शन हुए? तुलसीदास जी ने इंकार कर दिया तब हनुमान ने बताया कि अभी जो अश्व पर सवार होकर दो राजकुमार गए वहीं प्रभु श्री राम और भ्राता लक्ष्मण थे।तुलसीदास जी को प्रभु के ना पहचान पाने का दुख हुआ और हनुमान जी से दोबारा दर्शन कराने कि इच्छा की।तुलसीदास जी को हनुमान जी का इशारा:अगले दिन जब तुलसीदास नदी चित्रकूट के घाट पर बैठकर चंदन दूसरे को कभी उनकी सामने एक बालक चंदन लगवाने उनके पास आया और कहा बाबा आपने तो चंदन बहुत अच्छा घिसा है थोड़ा हमे भी लगा दो। तुलसीदास अब भी नहीं पहचान पाए कि वो बालक कोई और नहीं बल्कि प्रभु श्री राम है। हनुमान जी को जैसे ही इस बात का अहसास हुए की कहीं तुलसीदास इस बार भी गलती ना कर दे तब वो एक तोते के रूप में आए तो बहुत ही करुणरस में गाने लगे किबाल वनिता महिला आश्रमचित्रकूट के घाट पर, भई संतन की भीर, तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक करे रघुवीरतुलसीदास को इशारा समझते देर न लगी और वह तुरंत चंदन को छोड़कर के प्रभु के पैरों में गिर गए और जब अपनी आंखों को उठाया तो देखा कि प्रभु श्रीराम साक्षात के सामने अपने असली रूप में खड़े थे। तुलसीदास की आंखों में आंसू आ गए प्रभु श्री राम ने अपने हाथों से उस चंदन के लिए उठाया और तुलसीदास के माथे पर लगा दिया और हनुमान जी की कथनी को चरितार्थ कर दिया। तुलसीदास चंदन घिसे तिलक करे रघुवीर।चित्र गूगल से प्राप्त।
हनुमान से मिलने के संबंध में एक कथा प्रचलित है जिसमें कहा जाता है कि तुलसीदास जी जब भगवान के दर्शन के लिए वन मन भटक रहे थे तब वह थक कर एक वृक्ष के नीचे बैठ गए और फिर साथ में लिए जल को (अपनी यात्रा में साथ लेकर चला करते थे) गुस्से में आकर उसी वृक्ष पर फेंक दिया।
उस वृक्ष में एक प्रेत रहा करता था ऋषि के कमंडल के जल को ऊपर पड़ते ही वह मुक्त हो गया और बाहर आकर तुलसीदास जी के सामने खड़ा हो गया और बताया कि उसे मुक्ति उनके द्वारा फेके गए जल से हुई है। इसलिए जो भी आपकी समस्या है, सवाल है पूछ सकते है!
इस पर तुलसी दास जी ने पूछा कि उन्हें भगवान श्री राम के दर्शन कैसे होंगे?
प्रेत ने बताया कि इस सवाल का उत्तर तो केवल बजरंगबली ही बता सकते है। बजरंग बली ही केवल आपको प्रभु राम से मिलवा सकते है। हनुमान जी का पता पूछने पर प्रेत ने बताया कि जब कहीं भी राम की कथा का वाचन होता है तो हनुमान जी वहा पर अवश्य ही पहुंच जाते है। प्रेत ने यह भी बताया कि कुछ दूर के एक मंदिर में राम कथा का आयोजन हो रहा है, वह भी हनुमान जी एक कोढी के वेश में पहुंचेंगे।
तुलसीदास जी तुरंत उस मंदिर पर पहुंच जाते हैं जहां पर राम कथा का आयोजन हो रहा है, जैसे ही हनुमान जी कोढी के बीच में वहां पर पहुंचे तुलसीदास ने तुरन्त उनके पैरों को पकड़ लिया और तब तक नहीं छोड़ा जब तक वे अपने असली रूप में नहीं आ गए।
इस तरह तुलसीदास को हनुमान जी के दर्शन इसके बाद हनुमान जी की सहायता से हीन तुलसीदास ने प्रभु राम की दर्शन किए।
एक प्रेत के साथ से गोस्वामी तुलसीदास जी ने भगवान हनुमान के दर्शन किए और भगवान श्री राम के दर्शन प्राप्त करने के लिए अपना पहला कदम बढ़ाया।
हनुमान जी के मिलने के पश्चात तुलसीदास जी ने उनसे एक बार भगवान श्री राम की दर्शन कराने की प्रार्थना की। हनुमान जी ने तुलसीदास जी को कई अन्य तरह के प्रलोभन दिए और प्रकार की सुख समृद्धि का भी प्रस्ताव दिया लेकिन तुलसीदास जी हठी थे। उन्होंने किसी अन्य प्रलोभन को स्वीकार नहीं किया और बार-बार श्री राम के दर्शन पाने की लिए हनुमान जी से प्रार्थना करते रहें।
उन्होंने हनुमान जी से कहा कि आप भी राम के भक्त हो और मैं भी श्री राम का भक्त हूं क्या आप मेरी सहायता नहीं करोगे? हनुमान जी तुलसीदास जी की बात मानने पर मजबूर हो गए और उन्हें बताया कि भगवान श्री राम तुम्हें चित्रकूट के घाट पर अपना दर्शन देंगे। इतना सुनते ही नहीं तुलसीदास प्रसन्न हो गए और तुरंत चित्रकूट की तरफ निकल दिए।
वहां पहुंचने के बाद उन्होंने सबसे पहले नदी में स्नान किया और कदमगिरि कि परिक्रमा करने लगे तभी उन्हें दो सुंदर राजकुमार एक गौर वर्ण और दूसरा श्याम वर्ण के अत्यंत सुंदर घोड़े पर सवार होकर आते हुए दिखे तुलसीदास जी ने उन्हें देखा और उनके मन में सवाल उठा कि इतने सुंदर राजकुमार चित्रकूट में क्या कर रहे हैं और कुछ ही देर बाद वे सुंदर राजकुमार उनकी आंखों से ओझल हो गए तब हनुमान जी उनके पास आए और पूछे कि क्या आपको प्रभु श्री राम और भ्राता लक्ष्मण के दर्शन हुए? तुलसीदास जी ने इंकार कर दिया तब हनुमान ने बताया कि अभी जो अश्व पर सवार होकर दो राजकुमार गए वहीं प्रभु श्री राम और भ्राता लक्ष्मण थे।
तुलसीदास जी को प्रभु के ना पहचान पाने का दुख हुआ और हनुमान जी से दोबारा दर्शन कराने कि इच्छा की।
तुलसीदास जी को हनुमान जी का इशारा:
अगले दिन जब तुलसीदास नदी चित्रकूट के घाट पर बैठकर चंदन दूसरे को कभी उनकी सामने एक बालक चंदन लगवाने उनके पास आया और कहा बाबा आपने तो चंदन बहुत अच्छा घिसा है थोड़ा हमे भी लगा दो। तुलसीदास अब भी नहीं पहचान पाए कि वो बालक कोई और नहीं बल्कि प्रभु श्री राम है। हनुमान जी को जैसे ही इस बात का अहसास हुए की कहीं तुलसीदास इस बार भी गलती ना कर दे तब वो एक तोते के रूप में आए तो बहुत ही करुणरस में गाने लगे कि
चित्रकूट के घाट पर, भई संतन की भीर, तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक करे रघुवीर
तुलसीदास को इशारा समझते देर न लगी और वह तुरंत चंदन को छोड़कर के प्रभु के पैरों में गिर गए और जब अपनी आंखों को उठाया तो देखा कि प्रभु श्रीराम साक्षात के सामने अपने असली रूप में खड़े थे। तुलसीदास की आंखों में आंसू आ गए प्रभु श्री राम ने अपने हाथों से उस चंदन के लिए उठाया और तुलसीदास के माथे पर लगा दिया और हनुमान जी की कथनी को चरितार्थ कर दिया। तुलसीदास चंदन घिसे तिलक करे रघुवीर।
चित्र गूगल से प्राप्त।
टिप्पणियाँ