गर्न्थ विष्णु पुराण में विष्णु महान, शिव पुराण में शिव और भागवत पुराण में विष्णु और शिव को परमात्मा ने बनाया, आखिर असलियत क्या है? बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब संगरिया राजस्थान जी अच्छा प्रश्न है। सबसे पहली बात, परमात्मा अनंत हैं.. केवल एक रूप तक सीमित नहीं। शिव और विष्णु एक ही परब्रह्म परमात्मा के दो रूप हैं। पुराणों में उस एक परमात्मा के अलग अलग रूपों को श्रेष्ठ बताया हैं ताकि हम उनके अलग अलग रूपों में कि गई लीला के बारे में जान सके। केवल एक परमात्मा हैं जो अलग अलग रूपों में वास करते हैं। ये बात मैं नहीं कह रहा, ये हमारे शास्त्र कहते हैं।2.125.41 महाभारत का हरिवंश पर्व कहता है:-रुद्रस्य परमो विष्णुविष्णोश्च परम: शिवः।एक समान द्विधा भूतो लोके चरति नित्यसः।।रुद्रस्य परमो विशनुर्वीश्नोश्च परमः शिवः |एक ईवा द्विधा भुतो लोक चरती नित्यशाः |हिंदी अनुवाद:-रुद्र (शिव) के सर्वोच्च स्वामी विष्णु हैं और विष्णु के सर्वोच्च स्वामी रुद्र अर्थात शिव हैं। एक ही प्रभु संसार में सदैव दो रूपों में विचरण करता रहता है।2.125.29 में महाभारत के हरिवंश पर्व में यह भी लिखा है कि:-शिवाय विष्णुरूपाय विष्णवे शिवरूपीणे ।जन्मान्तरं न पश्यि तेन तौ दिशतः शिवम्शिवाय विशनुरुपया विषवे शिवरूपिने |यथअंतरम न पश्यमी तेना तौ दिशातः शिवम् || 2.125.29शिव विष्णु के रूप में हैं और विष्णु शिव के रूप में हैं। इनमें कोई अंतर नहीं है और दोनों ही रूप शुभ फल प्रदान करते हैं।अब भेद बुद्धि वाले मूर्ख पाखंडी लोग भगवान में भी ऊँच नीच करते हैं, शिव बड़े विष्णु छोटे, विष्णु बड़े शिव छोटे। इस प्रकार कुछ लोग अज्ञान वश परमात्मा के दो रूपों में भेद भाव रखते हैं.. ये रूप ज्यादा श्रेष्ठ, ये रूप थोड़ा कम। ऐसी मानसिकता वाले लोग हमेशा अहंकारी होते हैं।दो उदाहरण हमारे शास्त्रों से:-प्रजापति दक्ष- ब्रह्मा जी के पुत्र दक्ष ने माँ आदि शक्ति भवानी को प्रसन्न किया और वरदान के रूप में उनसे पुत्री रूप में जन्म लेने को कहा। माता रानी ने ऐसा ही किया, सती (माँ भवानी अर्थात पार्वती जी का अवतार) ने भगवान शिव से विवाह किया। दक्ष को शिव से नफ़रत थी, शिव सन्यासी की तरह रहते थे, कोई अच्छे कपड़े नहीं पहनते थे.. इसलिए दक्ष ने शिव जी के बारे में उल्टी सीधी बातें करी जिसके कारण क्रोध में आकर माता रानी ने अपने सती रूप में अग्नि में खुदकर देह त्याग दिया। शिव जी वैसे तो भोलेनाथ हैं लेकिन क्रोधित होने पर महारुद्र भी कहलाते हैं। दक्ष भगवान विष्णु का भक्त था, सोच रहा था कि विष्णु और उनकी इतनी विशाल सेना के होते हुए उसे कुछ नहीं हो सकता। भगवान शिव ने तांडव नृत्य किया और अपनी जटाओं से एक बाल निकला और ज़मीन पर पटक दिया जिससे उनके प्रतिरूप वीरभद्र प्रकट हुए। वीरभद्र ने दक्ष की पूरी सेना का संहार कर दिया। यहाँ तक्की अपने भक्त दक्ष की रक्षा के लिए विष्णु जी ने भी प्रयत्न किया लेकिन वीरभद्र नहीं रुके। विष्णु भी थोड़ा युद्ध करने के बाद वहाँ से चले गए क्योंकि अगर वो वीरभद्र से लड़ते तो सृष्टि का अंत हो जाते क्योंकि विष्णु और शिव के रूप वीरभद्र, दोनों ही परमात्मा के रूप हैं। दक्ष का सिर धड़ से अलग कर दिया वीरभद्र ने। हालांकि शिव जी भोलेनाथ हैं तो उन्होंने दक्ष एक और अवसर प्रदान किया और पुनर्जीवित कर दिया। दक्ष को समझ आ गया कि वे अहंकारी हो गए थे और शिव द्रोही हो गए थे। उन्होंने आगे चलकर शिव जी की भक्ति करना शुरू कर दी और समझ गए कि शिव और विष्णु एक ही हैं।लंकापति रावण- रावण बहुत बड़ा शिव भक्त था, लेकिन विष्णु से लड़ाई कर बैठा। विष्णु अर्थात श्री राम की पत्नी सीता (माँ लक्ष्मी) का हरण किया रावण ने। जिस प्रकार दक्ष ने शिव के लिए अपशब्द बोले थे, रावण ने भी राम (विष्णु) के लिए अपशब्द कहे थे। राम और रावण का भीषण युद्ध हुआ जिसमें श्री राम ने रावण का वध कर दिया था। रावण और दक्ष में केवल ये अंतर था कि रावण मृत्यु से नहीं डरता था, ज्यादा अहंकारी था। दक्ष को मृत्यु का डर था। पुनर्जीवित होने के बाद वो सुधर गए थे।इसलिए दो उदाहरण हमारे शास्त्रों में हैं कि अगर आप शिव भक्त होकर विष्णु का अपमान करते हो तो आप सच्चे शिवभक्त नहीं। यदि आप विष्णु भक्त होकर शिव का अपमान करते हो तो आप सच्चे विष्णु भक्त नहीं हो।रामचरितमानस का एक श्लोक है:-शिव द्रोही मम दास कहावा सो नर मोहि सपनेहु नहि पावा। ' - अर्थात् जो शिव का द्रोह कर के मुझे प्राप्त करना चाहता है वह सपने में भी मुझे प्राप्त नहीं कर सकता। ये श्री राम कहते हैं।शिव महापुराण के रुद्र संहिता में लिखा है:-हे विष्णु, सभी में व्यक्तियों में श्रेष्ठ, आपसे घृणा करने वाला निश्चित रूप से नरक में जायेगा, यही मेरा निर्देश है। आपको सम्मान दिए बिना मेरे प्रति किसी की भक्ति पूर्ण नहीं होगी।अगर विष्णु का भक्त मुझसे नफरत करता है या मेरा भक्त विष्णु से नफरत करता है, तो दोनों को कभी भी वास्तविकता का एहसास नहीं होगा। ये शिव जी कहते हैं।शिव द्रोही और विष्णु द्रोही, दोनों प्रकार के दुष्ट लोग कभी सत्य नहीं जानते।रामेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना श्री राम ने करी और उन्होंने रामेश्वर नाम कि परिभाषा दी- राम के ईश्वर ही रामेश्वर। वही शिव जी कहते हैं- राम जिसके ईश्वर हो वो रामेश्वर। रामेश्वर भगवान शिव हैं। वे राम के ईश्वर हैं और राम उनके ईश्वर हैं। इतना ही नहीं हनुमान जी जो श्री राम के परम भक्त हैं वे शिव जी के ही अंश अवतार हैं, इसलिए हनुमान जी को शंकर सुवन कहा गया है।महाभारत में श्री कृष्ण ने शिव जी को ईश्वर कहा है और उन्हें आपना आराध्य माना है। द्वारका में नागेश्वर ज्योतिर्लिंग है, वहाँ शिव जी की पूजा करने आते थे कृष्ण। सोमनाथ मंदिर में श्री कृष्ण शिव जी की भक्ति करने आते थे। शिव जी भी श्री राम का ही ध्यान करते हैं।विष्णु पुराण में बाणासुर को पराजित करने के बाद कृष्ण जी महादेव से मिलते हैं।कृष्ण कहते हैं- हे शिव शंभो, आप में और मुझ में किसी प्रकार का भेद नहीं है, जो आप हैं सो मैं हूँ और जो मैं हूँ सो आप हैं। यही बात शिव जी भी शिव पुराण में कहते हैं।विष्णु अपने हर अवतार में शिव की भक्ति करते हैं। शिव विष्णु के सभी अवतारों की भक्ति करते हैं।शिव और विष्णु का शंकरनारायण रूप जिसे हरिहर रूप कहते हैं, वो अभी यही बताता है कि हरि (विष्णु) और हर (शिव) में किसी प्रकार का भेद नहीं है। वास्तव में परमात्मा के ये दो रूप एक ही हैं। वो एक परमात्मा ही महादेव और नारायण हैं।हर हर महादेव 🙏 ओम नमो नारायण 🙏 जय श्री हरिहर 🙏
जी अच्छा प्रश्न है। सबसे पहली बात, परमात्मा अनंत हैं.. केवल एक रूप तक सीमित नहीं। शिव और विष्णु एक ही परब्रह्म परमात्मा के दो रूप हैं। पुराणों में उस एक परमात्मा के अलग अलग रूपों को श्रेष्ठ बताया हैं ताकि हम उनके अलग अलग रूपों में कि गई लीला के बारे में जान सके। केवल एक परमात्मा हैं जो अलग अलग रूपों में वास करते हैं। ये बात मैं नहीं कह रहा, ये हमारे शास्त्र कहते हैं।
2.125.41 महाभारत का हरिवंश पर्व कहता है:-
रुद्रस्य परमो विष्णुविष्णोश्च परम: शिवः।
एक समान द्विधा भूतो लोके चरति नित्यसः।।
रुद्रस्य परमो विशनुर्वीश्नोश्च परमः शिवः |
एक ईवा द्विधा भुतो लोक चरती नित्यशाः |
हिंदी अनुवाद:-
रुद्र (शिव) के सर्वोच्च स्वामी विष्णु हैं और विष्णु के सर्वोच्च स्वामी रुद्र अर्थात शिव हैं। एक ही प्रभु संसार में सदैव दो रूपों में विचरण करता रहता है।
2.125.29 में महाभारत के हरिवंश पर्व में यह भी लिखा है कि:-
शिवाय विष्णुरूपाय विष्णवे शिवरूपीणे ।
जन्मान्तरं न पश्यि तेन तौ दिशतः शिवम्
शिवाय विशनुरुपया विषवे शिवरूपिने |
यथअंतरम न पश्यमी तेना तौ दिशातः शिवम् || 2.125.29
शिव विष्णु के रूप में हैं और विष्णु शिव के रूप में हैं। इनमें कोई अंतर नहीं है और दोनों ही रूप शुभ फल प्रदान करते हैं।
अब भेद बुद्धि वाले मूर्ख पाखंडी लोग भगवान में भी ऊँच नीच करते हैं, शिव बड़े विष्णु छोटे, विष्णु बड़े शिव छोटे। इस प्रकार कुछ लोग अज्ञान वश परमात्मा के दो रूपों में भेद भाव रखते हैं.. ये रूप ज्यादा श्रेष्ठ, ये रूप थोड़ा कम। ऐसी मानसिकता वाले लोग हमेशा अहंकारी होते हैं।
दो उदाहरण हमारे शास्त्रों से:-
- प्रजापति दक्ष- ब्रह्मा जी के पुत्र दक्ष ने माँ आदि शक्ति भवानी को प्रसन्न किया और वरदान के रूप में उनसे पुत्री रूप में जन्म लेने को कहा। माता रानी ने ऐसा ही किया, सती (माँ भवानी अर्थात पार्वती जी का अवतार) ने भगवान शिव से विवाह किया। दक्ष को शिव से नफ़रत थी, शिव सन्यासी की तरह रहते थे, कोई अच्छे कपड़े नहीं पहनते थे.. इसलिए दक्ष ने शिव जी के बारे में उल्टी सीधी बातें करी जिसके कारण क्रोध में आकर माता रानी ने अपने सती रूप में अग्नि में खुदकर देह त्याग दिया। शिव जी वैसे तो भोलेनाथ हैं लेकिन क्रोधित होने पर महारुद्र भी कहलाते हैं। दक्ष भगवान विष्णु का भक्त था, सोच रहा था कि विष्णु और उनकी इतनी विशाल सेना के होते हुए उसे कुछ नहीं हो सकता। भगवान शिव ने तांडव नृत्य किया और अपनी जटाओं से एक बाल निकला और ज़मीन पर पटक दिया जिससे उनके प्रतिरूप वीरभद्र प्रकट हुए। वीरभद्र ने दक्ष की पूरी सेना का संहार कर दिया। यहाँ तक्की अपने भक्त दक्ष की रक्षा के लिए विष्णु जी ने भी प्रयत्न किया लेकिन वीरभद्र नहीं रुके। विष्णु भी थोड़ा युद्ध करने के बाद वहाँ से चले गए क्योंकि अगर वो वीरभद्र से लड़ते तो सृष्टि का अंत हो जाते क्योंकि विष्णु और शिव के रूप वीरभद्र, दोनों ही परमात्मा के रूप हैं। दक्ष का सिर धड़ से अलग कर दिया वीरभद्र ने। हालांकि शिव जी भोलेनाथ हैं तो उन्होंने दक्ष एक और अवसर प्रदान किया और पुनर्जीवित कर दिया। दक्ष को समझ आ गया कि वे अहंकारी हो गए थे और शिव द्रोही हो गए थे। उन्होंने आगे चलकर शिव जी की भक्ति करना शुरू कर दी और समझ गए कि शिव और विष्णु एक ही हैं।
- लंकापति रावण- रावण बहुत बड़ा शिव भक्त था, लेकिन विष्णु से लड़ाई कर बैठा। विष्णु अर्थात श्री राम की पत्नी सीता (माँ लक्ष्मी) का हरण किया रावण ने। जिस प्रकार दक्ष ने शिव के लिए अपशब्द बोले थे, रावण ने भी राम (विष्णु) के लिए अपशब्द कहे थे। राम और रावण का भीषण युद्ध हुआ जिसमें श्री राम ने रावण का वध कर दिया था। रावण और दक्ष में केवल ये अंतर था कि रावण मृत्यु से नहीं डरता था, ज्यादा अहंकारी था। दक्ष को मृत्यु का डर था। पुनर्जीवित होने के बाद वो सुधर गए थे।
इसलिए दो उदाहरण हमारे शास्त्रों में हैं कि अगर आप शिव भक्त होकर विष्णु का अपमान करते हो तो आप सच्चे शिवभक्त नहीं। यदि आप विष्णु भक्त होकर शिव का अपमान करते हो तो आप सच्चे विष्णु भक्त नहीं हो।
रामचरितमानस का एक श्लोक है:-
शिव द्रोही मम दास कहावा सो नर मोहि सपनेहु नहि पावा। ' - अर्थात् जो शिव का द्रोह कर के मुझे प्राप्त करना चाहता है वह सपने में भी मुझे प्राप्त नहीं कर सकता। ये श्री राम कहते हैं।
शिव महापुराण के रुद्र संहिता में लिखा है:-
हे विष्णु, सभी में व्यक्तियों में श्रेष्ठ, आपसे घृणा करने वाला निश्चित रूप से नरक में जायेगा, यही मेरा निर्देश है। आपको सम्मान दिए बिना मेरे प्रति किसी की भक्ति पूर्ण नहीं होगी।अगर विष्णु का भक्त मुझसे नफरत करता है या मेरा भक्त विष्णु से नफरत करता है, तो दोनों को कभी भी वास्तविकता का एहसास नहीं होगा। ये शिव जी कहते हैं।
शिव द्रोही और विष्णु द्रोही, दोनों प्रकार के दुष्ट लोग कभी सत्य नहीं जानते।
रामेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना श्री राम ने करी और उन्होंने रामेश्वर नाम कि परिभाषा दी- राम के ईश्वर ही रामेश्वर। वही शिव जी कहते हैं- राम जिसके ईश्वर हो वो रामेश्वर। रामेश्वर भगवान शिव हैं। वे राम के ईश्वर हैं और राम उनके ईश्वर हैं। इतना ही नहीं हनुमान जी जो श्री राम के परम भक्त हैं वे शिव जी के ही अंश अवतार हैं, इसलिए हनुमान जी को शंकर सुवन कहा गया है।
महाभारत में श्री कृष्ण ने शिव जी को ईश्वर कहा है और उन्हें आपना आराध्य माना है। द्वारका में नागेश्वर ज्योतिर्लिंग है, वहाँ शिव जी की पूजा करने आते थे कृष्ण। सोमनाथ मंदिर में श्री कृष्ण शिव जी की भक्ति करने आते थे। शिव जी भी श्री राम का ही ध्यान करते हैं।
विष्णु पुराण में बाणासुर को पराजित करने के बाद कृष्ण जी महादेव से मिलते हैं।
कृष्ण कहते हैं- हे शिव शंभो, आप में और मुझ में किसी प्रकार का भेद नहीं है, जो आप हैं सो मैं हूँ और जो मैं हूँ सो आप हैं। यही बात शिव जी भी शिव पुराण में कहते हैं।
विष्णु अपने हर अवतार में शिव की भक्ति करते हैं। शिव विष्णु के सभी अवतारों की भक्ति करते हैं।
शिव और विष्णु का शंकरनारायण रूप जिसे हरिहर रूप कहते हैं, वो अभी यही बताता है कि हरि (विष्णु) और हर (शिव) में किसी प्रकार का भेद नहीं है। वास्तव में परमात्मा के ये दो रूप एक ही हैं। वो एक परमात्मा ही महादेव और नारायण हैं।
हर हर महादेव 🙏 ओम नमो नारायण 🙏 जय श्री हरिहर 🙏
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