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लंगर के पिज्जे तो by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब तुम्हें दिख गये,दिसम्बर की ठंड तुम्हें दिखी नहीं।ढूंढने में लग गये तुम देशद्रोही,इन किसानों में रिटायर फौजी तुम्हें दिखे नहीं।इन्हीं के बेटे लड़ रहे हैं सरहद पर,इनके किये उपकार तुम्हें दिखे नहीं।तन-मन समर्पित है इनका इस मिट्टी को,भला क्यूँ ये किसान भाई तुम्हें दिखे नहीं।फ़ंडिंग किसने की ये तुम पूछते हो,लॉक डाउन में किये दान तुम्हें दिखे नहीं।भगत सिंह को भी टेररिस्ट कहा गया था कभी,इन सरकारों के झूठे बयान तुम्हें दिखे नही।मसाज करती कुछ मशीनें तो तुम्हें दिख गईं,पैरों के जख्म तुम्हें दिखे नहीं।लंगर के काजू-बादाम तो तुम्हें दिख गये,इन बुजुर्ग किसानों के बलिदान तुम्हें दिखे नहीं।आजाओ बचा लो पूँजीपत्तियो से देश को,ऐसा ना हो कि फ़िर कभी किसान दिखे नहीं।किसान एकता जिंदाबाद👍,,You see the anchor pizzas,You did not see the cold of December.You traitors started searching,You do not see the retired army personnel among these farmers.Their sons are fighting on the border,Due to their,

🙏🙏जिन भक्तों को by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🙏🙏बिहारी जी के दर्शन 🙏🙏 हो गए हों वह भक्त राधे राधे 🙏🙏बोल कर बिहारी जी के चरणों में 🙏🙏 हाजरी लगाए..बोलिए श्री बाँके 🙏🙏 बिहारी लाल की जय.. ❤️❤️जय जय श्री राधे राधे प्रभू जी .....❤️❤️,

पीएम कुसुम: 90% डिस्काउंट पर लगवाएं सोलर पैनल, लाखों में कमाई के साथ होंगे ये फायदे भीPM Kusum: अगर आप सोलर एनर्जी से जुड़कर कुछ इनकम करना चाहते हें तो फिर सरकार की पीएम कुसुम योजना के साथ जुड़ने की सोच सकते हैं.By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 2, 2021 10:22 AMNEXTPM Kusum: Subsidy on Solar PumpPM Kusum: अगर आप सोलर एनर्जी से जुड़कर कुछ इनकम करना चाहते हें तो फिर सरकार की पीएम कुसुम योजना के साथ जुड़ने की सोच सकते हैं.PM Kusum: अगर आप सोलर ऊर्जा (Solar Energy) से जुड़ा कोई बिजनेस शुरू करना चाहते हैं तो फिर सरकार की पीएम कुसुम योजना के साथ जुड़ने की सोच सकते हैं. केंद्र सरकार का लक्ष्य 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का है. जिसके चलते केंद्र सरकार ने किसानों के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं. इन्हीं में से एक योजना है पीएम कुसुम. पीएम कुसुम योजना को साल 2019 में शुरू किया गयाा, जिसके बाद बजट 2020 में वित्त मंत्री ने इस योजना का विस्तार किया है.इस योजना के तहत किसानों को सब्सिडी पर सोलर पैनल मिलते हैं, जिससे वे बिजली बना सकते हैं. जरूरत भर बिजली का इस्तेमाल करके वे बाकी को बेच कर अतिरिक्त इनकम भी कमा सकते हैं. इस योजना के तहत 20 लाख किसानों को सोलर पंप लगाने में मदद की जाएगी. 15 लाख किसानों को ग्रिड से जुड़े सोलर पंप लगाने के लिए धन मुहैया कराया जाएगा. इस योजना पर सरकार ने 34,422 करोड़ रुपए खर्च करने का एलान किया है.सोलर पंप यानी कमाई का जरियाइस योजना के जरिए बिजली या डीजल से चलने वाले सिंचाई पंप को सोलर एनर्जी से चलने वाले पंप में बदला जाएगा. सोलर पैनल से पैदा होने वाली बिजली का इस्तेमाल पहले अपने सिंचाई के काम में करेंगे. उसके अलावा जो बिजली अतिरिक्त बचेगी, उसे विद्युत वितरण कंपनी (DISCOM) को बेचकर 25 साल तक आमदनी कर सकते हैं. इसका एक और फायदा है कि सौर एनर्जी से डीजल और बिजली के खर्च से भी राहत मिलेगी और प्रदूषण भी कम होगा. सोलर पैनल 25 साल तक चलेगा और इसका रखरखाव भी आसान है. इससे जमीन के मालिक या किसान को हर साल एकड़ 60 हजार रुपए से 1 लाख रुपए तक आमदनी अगले 25 साल तक हो सकती है.90 फीसदी मिल रही है छूटइस योजना के तहत किसानों को अपनी जमीन पर सोलर पैनल स्थापित करने के लिए केवल 10 फीसदी रकम का भुगतान करना होता है. केंद्र और राज्य सरकारें किसानों को बैंक खाते में 60 फीसदी सब्सिडी की रकम देती है. इसमें केंद्र और राज्यों की ओर से बराबर का योगदान देने का प्रावधान है. वहीं बैंक की ओर से 30 फीसदी लोन का प्रावधान है. इस लोन को किसान अपनी होने वाली आमदनी से आसानी से भर सकते हैं.कैसे करें आवेदनपीएम कुसुम योजना के तहत आवेदन के लिए सरकारी वेबसाइट https://mnre.gov.in/ पर जाकर रजिस्ट्रेशन करना होगा. इसके लिए आधार कार्ड, प्रॉपर्टी के दस्तावेज और बैंक खाते की जानकारी देनी होगी. सोलर प्लांट लगवाने के लिए जमीन विद्युत सब-स्टेशन से 5 किलोमीटर तक दायरे में होनी चाहिए. किसान सोलर प्लांट खुद या डेवलपर को जमीन पट्टे पर देकर लगवा सकते हैं.कुसुम योजना के बड़े फायदेपीएम कुसुम योजना के तहत किसानों को सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि उन्हें सिंचाई के लिए फ्री बिजली मिलेगी. इस योजना से किसानों की डीजल और केरोसिन तेल पर निर्भरता घटेगी. दूसरा फायदा यह है कि इससे पैदा होने वाली अतिरिक्त बिजली को वे किसी कंपनी को बेच सकेंगे. इस योजना से किसान सौर ऊर्जा उत्पादन करने और उसे ग्रिड को बेचने में सक्षम होंगे. यानी उनकी आमदनी भी बढ़ेगी.,PM Kusum: Put solar panels at 90% discount, these benefits will be with earning in lakhsPM Kusum: If you want to do some income by connecting with solar energy, then to join the government's PM Kusum scheme ,

 

भारतीय दंड संहिता की (IPC)धारा-120 By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, ए और 120 बीकिसी भी अपराध को अंजाम देने के लिए साझा साजिश यानी कॉमन कॉन्सपिरेसी का मामला गुनाह की श्रेणी में आता है। ऐसे मामलों में भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धारा 120ए और 120बी का प्रावधान है। जिस भी मामले में आरोपियों की संख्या एक से ज्यादा होती है, तो पुलिस की एफआईआर में आमतौर पर धारा 120ए का जिक्र जरूर होता है। यह जरूरी नहीं है कि आरोपी खुद अपराध को अंजाम दे। किसी साजिश में शामिल होना भी कानून की निगाह में गुनाह है। ऐसे में साजिश में शामिल शख्स यदि फांसी, उम्रकैद या दो वर्ष या उससे अधिक अवधि के कठिन कारावास से दंडनीय अपराध करने की आपराधिक साजिश में शामिल होगा तो धारा 120 बी के तहत उसको भी अपराध करने वाले के बराबर सजा मिलेगी। अन्य मामलों में यह सजा छह महीने की कैद या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं ,Indian Penal Code (IPC) Section-120 by social worker Vanita Kasani Punjab A and 120BThe case of common conspiracy i.e. common conspiracy to commit any crime falls under the category of crime. In such cases Indian Penal Code i.e. IPC ,

🌹 *श्री राधे राधे जी* 🌹 by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब (((( सुन्दर-लीला के गोपाल )))).भगवान् से निर्मल प्रेम की कथा.. 😢.एक गांव में एक निर्धन दम्पत्ति रहता था, सुन्दर और लीला।.दोनों पति-पत्नी अत्यंत परिश्रमी थे। सारा दिन परिश्रम करते सुन्दर-सुन्दर कपड़े बनाते, किन्तु उनको उनके बनाए वस्त्रों की अधिक कीमत नहीं मिल पाती थी।.दोनों ही अत्यन्त संतोषी स्वाभाव के थे जो मिलता उसी से संतुष्ट हो कर एक टूटी-फूटी झोपड़ी में रहकर अपना जीवन-निर्वाह कर लेते थे।.वह दोनों भगवान् श्री कृष्ण के परम भक्त थे, दिन भर के परिश्रम के बाद जो भी समय मिलता उसे दोनों भगवान् के भजन-कीर्तन में व्यतीत करते।.सुन्दर बाबा के पास एक तानपुरा और एक खड़ताल थी, जब दोनों मिलकर भजन गाते तो सुन्दर तानपुरा बजाता और लीला खड़ताल, फिर तो दोनों भगवान् के भजन के ऐसा खो जाते की उनको अपनी भूख-प्यास की चिंता भी नहीं रहती थे।.यूं तो दोनों संतोषी स्वाभाव के थे, अपनी दीन-हीन अवस्था के लिए उन्होंने कभी भगवान् को भी कोई उल्हाना नही दिया और अपने इसी जीवन में प्रसन्न थे किन्तु ....एक दुःख उनको सदा कचोटता रहता था, उनके कोई संतान नहीं थी। इसको लेकर वह सदा चिंतित रहा करते थे, किन्तु रहते थे फिर भी सदा भगवान् में मग्न, .इसको भी उन्होंने भगवान् की लीला समझ कर स्वीकार कर लिया और निष्काम रूप से श्री कृष्ण के प्रेम-भक्ति में डूबे रहते।.जब उनकी आयु अधिक होने लगी तो एक दिन लीला ने सुन्दर से कहा कि हमारी कोई संतान नहीं है, कहते है की संतान के बिना मुक्ति प्राप्त नहीं होती, .अब हमारी आयु भी अधिक को चली है, ना जाने कब बुलावा आ जाए, मरने की बाद कौन हमारी चिता को अग्नि देगा और कौन हमारे लिए तर्पण आदि का कार्य करेगा, कैसे हमारी मुक्ति होगी।.सुन्दर बोला तू क्यों चिंता करती है, ठाकुर जी है ना वही सब देखेंगे। सुन्दर ने यह बात कह तो दी किन्तु वह भी चिंता में डूब गया,.तभी उसके मन में एक विचार आया वह नगर में गया और श्री कृष्ण के बाल गोपाल रूप की एक प्रतिमा ले आया। .घर आ कर बोला अब तुझे चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है मैं यह बाल गोपाल लेकर आया हूँ,.हमारे कोई संतान नहीं तो वह भी इन्ही की तो लीला है, हम इनको ही अपने पुत्र के सामान प्रेम करेंगे, यही हमारे पुत्र का दायित्व पूर्ण करेंगे यही हमारी मुक्ति करेंगे।.सुन्दर की बात सुन कर लीला अत्यंत प्रसन्न हुई, उसने बाल गोपाल को लेकर अपने हृदय से लगा लिया और बोली आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं, आज से यही हमारा लल्ला है।.दोनों पति-पत्नी ने घर में एक कोना साफ़ करके वहां के स्थान बनाया और एक चौंकी लगा कर उसपर बाल गोपाल को विराजित कर दिया।.तब से जुलाहा दंपत्ति का नियम हो गया वह प्रतिदिन बाल गोपाल को स्नान कराते उनको धुले वस्त्र पहनाते अपनी संतान की तरह उनको लाड-लडाते, उन्ही के सामने बैठ कर भजन कीर्तन करते और वहीं सो जाते।.जुलाहा अपने हाथ से बाल गोपाल के लिए सुन्दर वस्त्र बनाता और उनको पहनाता इसमें उसको बड़ा आनंद आता। धीरे-धीरे दोनों बाल गोपाल को अपनी संतान के सामान ही प्रेम करने लगे।.लीला का नियम था की वह प्रति दिन अपने हाथ से अपने लल्ला को भोजन कराती तब स्वयं भोजन करती, लल्ला को भोजन कराते समय उसको ऐसा ही प्रतीत होता मानो अपने पुत्र को ही भोजन करा रही हो।.उन दोनों के निश्चल प्रेम को देख कर करुणा निधान भगवान् अत्यन्त्त प्रसन्न हुए और उन्होंने अदृश्य रूप में आकर स्वयं भोजन खाना आरम्भ कर दिया,.लीला जब प्रेम पूर्वक बाल गोपाल को भोजन कराती तो भगवान् को प्रतीत होता मानो वह अपनी माँ के हाथो से भोजन कर रहें हैं, .उनको लीला के हाथ से प्रेम पूर्वक मिलने वाले हर कौर में माँ का प्रेम प्राप्त होता था,.लीलाधारी भगवान् श्री कृष्ण स्वयं माँ की उस प्रेम लीला के वशीभूत हो गए। किन्तु लीला कभी नहीं जान पाई कि स्वयं बाल-गोपाल उसके हाथ से भोजन करते हैं।.एक दिन कार्य बहुत अधिक होने के कारण लीला बाल गोपाल को भोजन कराना भूल गई।.गर्मी का समय था भरी दोपहरी में दोनों पति-पत्नी कार्य करते-करते थक गए और बिना भोजन किए ही सो गए, .उनको सोए हुए कुछ ही देर हुई थी कि उनको एक आवाज सुनाई दी.. माँ-बाबा मुझको भूख लगी है.दोनों हड़बड़ा कर उठ गए, चारो और देखा आवाज कहाँ से आई है, किन्तु कुछ दिखाई नहीं दिया।.तभी लीला को स्मरण हुआ की उसने अपने लल्ला को भोजन नहीं कराया, वह दौड़ कर लल्ला के पास पहुंची तो देखा की बाल गोपाल का मुख कुम्हलाया हुआ है,.इतना देखते ही दोनों पति-पत्नी वहीं उनके चरणों में गिर पड़े, दोनों की आँखों से आसुओं की धार बह निकली,.लीला तुरंत भोजन लेकर आई और ना जाने कैसा प्रेम उमड़ा की लल्ला को उठा कर अपनी गोद में बैठा लिया और भोजन कराने लगी, .दोनों पति-पत्नी रोते जाते और लल्ला को भोजन कराते जाते, साथ ही बार-बार उनसे अपने अपराध के लिए क्षमा मांगते जाते, .ऐसा प्रगाढ़ प्रेम देख कर भगवान् अत्यंत द्रवित हुए और अन्तर्यामी भगवान् श्रीहरि साक्षात् रूप में प्रकट हो गए।.भगवान् ने अपने हाथों से अपने रोते हुए माता-पिता की आँखों से आंसू पोंछे और बोले...प्रिय भक्त में तुम्हारी भक्ति और प्रेम से अत्यंत प्रसन्न हूँ, तुम जो चाहो वर माँग लो मैं तुम्हारी प्रत्येक इच्छा पूर्ण करूँगा..इतना सुनते ही दोनों भगवान् के चरणों में गिर पड़े और बोले "दया निधान आप हमसे प्रसन्न हैं और स्वयं हमारे सम्मुख उपस्थित है, हमारा जीवन धन्य हो गया, इससे अधिक और क्या चाहिए,.इससे अधिक किसी भी वस्तु का भला क्या महत्त्व हो सकता है, आपकी कृपा हम पर बनी रहें बस इतनी कृपा करें".श्रीहरि बोले “यदि तुम चाहो तो मैं तुम्हारे जीवन में संतान के आभाव को समाप्त कर के तुम्हे एक सुन्दर संतान प्रदान करूँगा".यह सुनते ही सुन्दर और लीला एकदम व्याकुल होकर बोले "नही भगवन् हमको संतान नहीं चाहिये".उनका उत्तर सुनकर भगवान् ने पूछा "किन्तु क्यों ! अपने जीवन में संतान की कमी को पूर्ण करने के लिए ही तो तुम मुझ को अपने घर लेकर आये थे ".यह सुनकर वह दोनों बोले, प्रभु हमको भय है कि यदि हमको संतान प्राप्त हो गई तो हमारा मोह उस संतान के प्रति बढ़ जाएगा और तब हम आपकी सेवा नहीं कर पाएंगे.उनका प्रेम और भक्ति से भरा उत्तर सुनकर करुणा निधान भगवान् करुणा से भर उठे, स्वयं भगवान् की आँखों से आँसू टपक पड़े वह बोले,.हे मैया, बाबा मैं यहाँ आया था आपके ऋण को उतारने के लिए किन्तु आपने तो मुझको सदा-सदा के लिए अपना ऋणी बना लिया,.मैं आपके प्रेम का यह ऋण कभी नहीं उतार पाउँगा, मैं सदा-सदा तुम दोनों का ऋणी रहूँगा, .मैं तुम्हारे प्रेम से अत्यंत प्रसन्न हूँ तुमने अपने निर्मल प्रेम से मुझको भी अपने बंधन में बांध लिया है..मैं तुमको वचन देता हूँ कि आज से मैं तुम्हारे पुत्र के रूप में तुम्हारे समस्त कार्य पूर्ण करूँगा तुमको कभी संतान का आभाव नहीं होने दूंगा, .मेरा वचन कभी असत्य नहीं होता" ऐसा कह कर भक्तवत्सल भगवान् बाल गोपाल की प्रतिमा में विलीन हो गए।.उस दिन से सुन्दर और लीला का जीवन बिल्कुल ही बदल गया उन्होंने सारा काम-धंधा छोड़ दिया और सारा दिन बाल गोपाल के भजन-कीर्तन और उनकी सेवा में व्यतीत करने लगे।.उनको ना भूख-सताती थी ना प्यास लगती थी, सभी प्रकार की इच्छाओं का उन्होंने पूर्ण रूप से त्याग कर दिया,.सुन्दर कभी कोई कार्य करता तो केवल अपने बाल गोपाल के लिए सुन्दर-सुन्दर वस्त्र बनाने का। .उनके सामने जब भी कोई परेशानी आती बाल गोपाल तुरंत ही एक बालक के रूप में उपस्तिथ हो जाते और उनके समस्त कार्य पूर्ण करते ।.वह दंपत्ति और बालक गांव भर में चर्चा का विषय बन गए, किन्तु गाँव में कोई भी यह नहीं जान पाया की वह बालक कौन है, कहाँ से आता है, और कहाँ चला जाता है।.धीरे-धीरे समय बीतने लगा, जुलाह दंपत्ति बूढ़े हो गए, किन्तु भगवान् की कृपा उन पर बनी रही, .अब दोनों की आयु पूर्ण होने का समय आ चला था भगवत प्रेरणा से उनको यह ज्ञात हो गया की अब उनका समय पूरा होने वाला है,.एक दिन दोनों ने भगवान् को पुकारा, ठाकुर जी तुरंत प्रकट हो गए और उनसे उनकी इच्छा जाननी चाही, दोनों भक्त दम्पत्ति भगवान के चरणो में प्रणाम करके बोले .....है नाथ हमने अपने पूरे जीवन में आपसे कभी कुछ नहीं माँगा, अब जीवन का अंतिम अमय आ गया है, इसलिए आपसे कुछ मांगना चाहते हैं...भगवान् बोले "निःसंकोच अपनी कोई भी इच्छा कहो मैं वचन देता हूँ कि तुम्हारी प्रत्येक इच्छा को पूर्ण करूँगा".तब बाल गोपाल के अगाध प्रेम में डूबे उस वृद्ध दम्पति बोले "हे नाथ हमने अपने पुत्र के रूप में आपको देखा, और आपकी सेवा की....आपने भी पुत्र के समान ही हमारी सेवा करी अब वह समय आ गया है जिसके लिए कोई भी माता-पिता पुत्र की कामना करते हैैं,.हे दीनबंधु, हमारी इच्छा है की हम दोनों पति-पत्नी के प्राण एक साथ निकले और हे दया निधान, जिस प्रकार एक पुत्र अपने माता-पिता की अंतिम क्रिया करता है, और उनको मुक्ति प्रदान करता है, .उसी प्रकार हे परमेश्वर, हमारी अंतिम क्रिया आप अपने हाथो से करें और हमको मुक्ति प्रदान करें.श्रीहरि ने दोनों को उनकी इच्छा पूर्ण करने का वचन दिया और बाल गोपाल के विग्रह में विलीन हो गए।.अंत में वह दिन आ पहुंचा जब प्रत्येक जीव को यह शरीर छोड़ना पड़ता है, दोनों वृद्ध दम्पति बीमार पड़ गए, उन दोनों की भक्ति की चर्चा गांव भर में थी इसलिए गांव के लोग उनका हाल जानने उनकी झोपड़ी पर पहुंचे,.किन्तु उन दोनों का ध्यान तो श्रीहरि में रम चुका था उनको नही पता कि कोई आया भी है, .नियत समय पर एक चमत्कार हुआ जुलाहे की झोपड़ी एक तीव्र और अलौकिक प्रकाश से भर उठी,.वहां उपस्थित समस्त लोगो की आँखे बंद हो गई, किसी को कुछ भी दिखाई नहीं पढ़ रहा था, कुछ लोग तो झोपड़ी से बाहर आ गए कुछ वही धरती पर बैठ गए।.श्री हरि आपने दिव्य चतर्भुज रूप में प्रकट हुए, उनकी अप्रितम शोभा समस्त सृष्टि को अलौकिक करने वाली थी, वातावरण में एक दिव्य सुगंध भर गई,.अपनी मंद-मंद मुस्कान से अपने उन भक्त माता-पिता की और देखते रहे, उनका यह दिव्य रूप देख कर दोनों वृद्ध अत्यंत आनंदित हुए,.अपने दिव्य दर्शनों से दोनों को तृप्त करने के बाद करुणा निधान, लीलाधारी, समस्त सृष्टि के पालनहार श्री हरि, वही उन दोनों के निकट धरती पर ही उनके सिरहाने बैठ गए,.भगवान् ने उन दोनों भक्तों का सर अपनी गोद में रखा, उनके शीश पर प्रेम पूर्वक अपना हाथ रखा, तत्पश्चात अपने हाथो से उनके नेत्र बंद कर दिए,.तत्काल ही दोनों के प्राण निकल कर श्री हरि में विलीन हो गए, पंचभूतों से बना शरीर पंच भूतो में विलीन हो गया।.कुछ समय बाद जब वह दिव्य प्रकाश का लोप हुआ तो सभी उपस्थित ग्रामीणो ने देखा की वहां ना तो सुन्दर था, ना ही लीला थी और ना ही बाल गोपाल थे।.शेष थे तो मात्र कुछ पुष्प जो धरती पर पड़े थे और एक दिव्य सुगंध जो वातावरण में चहुं और फैली थी। विस्मित ग्रामीणो ने श्रद्धा से उस धरती को नमन किया,.उन पुष्पों को उठा कर शीश से लगाया तथा सुंदर, लीला की भक्ति और गोविन्द के नाम का गुणगान करते हुए चल दिए उन पुष्पों के श्री गंगा जी में विसर्जित करने के लिए।.मित्रो...भक्त वह है जो एक क्षण के लिए भी विभक्त नहीं होता, अर्थात जिसका चित्त ईश्वर में अखंड बना रहे वह भक्त कहलाता है। सरल शब्दों में भक्ति के अंतिम चरण का अनुभव करने वाले को भक्त कहते हैं। ((((((( जय जय श्री राधे )))))))श्री हरी आपका दिन मंगलमय् करें - RADHE RADHE JAI SHREE KRISHNA JIVERY GOOD MORNING JI,

●▬▬▬๑۩🙏🏻 ‎*गर्ग संहिता* ‏by Vnita kasnia punjab🙏🏻 ‎۩๑▬▬▬●*🍃🍂🍃🍂🍃एक शाम🍃🍂🍃🍂🍃**꧁͜͡꧂ श्री बिहारी के नाम ꧁͜͡꧂* ‏🍃 ‎*🍁 🍃यशोदा द्वारा श्रीकृष्ण के मुख में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का दर्शन; ‏नन्द और यशोदा के पूर्व-पुण्य का परिचय; ‏गर्गाचार्य का नन्द-भवन में जाकर बलराम और श्रीकृष्ण के नामकरण संस्कार करना तथा वृषभानु के यहाँ जाकर उन्हें श्रीराधा-कृष्ण के नित्य-सम्बन्ध एवं माहात्म्य का ज्ञान कराना●▬▬▬▬▬▬๑۩۩๑▬▬▬▬▬▬●श्री नारद जी कहते हैं- ‏राजन ‎! ‏एक दिन साँवले-सलोने बालक श्रीकृष्ण सोने के रत्नजटित पालने पर सोये हुए थे। उनके मुख पर लोगों के मन को मोहने वाले मन्द हास्य की छटा छा रही थी। दृष्टिजनित पीड़ा के निवारण के लिये नन्द नन्दन के ललाट पर काजल का डिठौना शोभा पा रहा था। कमल के समान सुन्दर नेत्रों में काजल लगा था। अपने उस सुन्दर लाला को मैया यशोदा ने गोद में ले लिया। वे बालमुकुन्द पैर का अँगूठा चूस रहे थे।उनका स्वभाव चपल था। नील, ‏नूतन, ‏कोमल एवं घुँघराले केशबन्धों से उनकी अंगच्छटा अद्भुत जान पड़ती थी। वक्ष:स्थल पर श्रीवत्स चिह्न, ‏बघनखा तथा चमकीला अर्धचन्द्र ‎(नामक आभूषण) ‏शोभा दे रहे थे। अपार दयामयी गोपी श्री यशोदा अपने उस लाला को लाड़ लड़ाती हुई बड़े आनन्द का अनुभव कर रही थी। राजन! ‏बालक श्रीकृष्ण दूध पी चुके थे। उन्हें जँभाई आ रही थी। माता की दृष्टि उधर पड़ी तो उनके मुख में पृथिव्यादि पाँच तत्त्वों सहित सम्पूर्ण विराट ‎(ब्रह्माण्ड) ‏तथा इन्द्रप्रभृति श्रेष्ठ देवता दृष्टिगोचर हुए। तब श्री यशोदा के मन में त्रास छा गया। अत: ‏उन्होंने अपनी आँखें मूँद लीं। महाराज ‎! ‏परिपूर्णतम भगवान श्रीकृष्ण सर्वश्रेष्ठ हैं। उनकी ही माया से सम्पूर्ण संसार सत्तावान बना है। उसी माया के प्रभाव से यशोदा जी की स्मृति टिक न सकी। फिर अपने बालक श्रीकृष्ण पर उनका वात्सल्यपूर्ण दयाभाव उत्पन्न हो गया। अहो ‎! ‏श्री नन्दरानी के तप का वर्णन कहाँ तक करूँ ‎!! ‏श्री बहुलाश्व ने पूछा- ‏मुनिवर ‎! ‏नन्दजी ने यशोदा के साथ कौन-सा महान तप किया था, ‏जिसके प्रभाव से भगवान श्रीकृष्णचन्द्र उनके यहाँ पुत्र रूप में प्रकट हुए।श्री नारद जी ने कहा- ‏आठ वसुओं में प्रधान जो ‎‘द्रोण’ ‏नामक वसु हैं, ‏उनकी स्त्री का नाम ‎‘धरा’ ‏है। इन्हें संतान नहीं थी। वे भगवान श्री विष्णु के परम भक्त थे। देवताओं के राज्य का भी पालन करते थे। राजन ‎! ‏एक समय पुत्र की अभिलाषा होने पर ब्रह्माजी के आदेश से वे अपनी सहधर्मिणी धरा के साथ तप करने के लिये मन्दराचल पर्वत पर गये। वहाँ दोनों दम्पति कन्द, ‏मूल एवं फल खाकर अथवा सूखे पत्ते चबाकर तपस्या करते थे। बाद में जल के आधार पर उनका जीवन चलने लगा। तदनंतर उन्होंने जल पीना भी बन्द कर दिया। इस प्रकार जनशून्य देश में उनकी तपस्या चलने लगी। उन्हें तप करते जब दस करोड़ वर्ष बीत गये, ‏तब ब्रह्माजी प्रसन्न होकर आये और बोले- ‘वर माँगो’। उस समय उनके ऊपर दीमकें चढ़ गयी थीं। अत: ‏उन्हें हटाकर द्रोण अपनी पत्नि के साथ बाहर निकले। उन्होंने ब्रह्मा जी को प्रणाम किया और विधिवत उनकी पूजा की। उनका मन आनन्द से उल्लसित हो उठा। वे उन प्रभु से बोले-श्री द्रोण ने कहा- ‏ब्रह्मण ‎! ‏विधे ‎! ‏परिपूर्णतम जनार्दन भगवान श्रीकृष्ण मेरे पुत्र हो जायँ और उनमें हम दोनों की प्रेम लक्षणा भक्ति सदा बनी रहे, ‏जिसके प्रभाव से मनुष्य दुर्लभजन्या भवसागर को सहज ही पार कर जाता है। हम दोनों तपस्वीजनों को दूसरा कोई वर अभिलषित नहीं है।श्री ब्रह्माजी बोले- ‏तुम लोगों ने मुझ से जो वर माँगा है, ‏वह कठिनाई से पूर्ण होने वाला और अत्यंत दुर्लभ है। फिर भी दूसरे जन्म में तुम लोगों की अभिलाषा पूरी होगी।श्री नारद जी कहते हैं- ‏राजन ‎! ‏वे ‎‘द्रोण’ ‏ही इस पृथ्वी पर ‎‘नन्द’ ‏हुए और ‎‘धरा’ ‏ही ‎‘यशोदा’ ‏नाम से विख्यात हुई। ब्रह्मा जी की वाणी सत्य करने के लिये भगवान श्रीकृष्ण पिता वसुदेव जी की पुरी मथुरा से व्रज में पधारे थे। भगवान श्रीकृष्ण का शुभ चरित्र सुधा-निर्मित खाँड़ से भी अधिक मीठा है। गन्धमादन पर्वत के शिखर पर भगवान नर-नारायण के श्रीमुख से मैंने इसे सुना है। उनकी कृपा से मैं कृतार्थ हो गया। वही कथा मैंने तुमसे कही है; ‏अब और क्या सुनना चाहते हो?श्री बहुलाश्व ने पूछा- ‏महामुने ‎! ‏शिशुरूपधारी उन सनातन पुरुष भगवान श्रीहरि ने बलराम जी के साथ कौन-कौन-सी लीलाएँ कीं, ‏यह मुझे बताइये। श्री नारद जी ने कहा- ‏राजन ‎! ‏एक दिन वसुदेवजी के भेजे हुए महामुनि गर्गाचार्य अपने शिष्यों के साथ नन्दभवन में पधारे। नन्द जी ने पाद्य आदि उत्तम उपचारों द्वारा मुनिश्रेष्ठ गर्ग की विधिवत पूजा की और प्रदक्षिणा करके उन्हें साष्टांग प्रणाम किया। नन्दजी बोले- ‏आज हमारे पितर, ‏देवता और अग्नि सभी संतुष्ट हो गये। आपके चरणों की धूलि पड़ने से हमारा घर परम पवित्र हो गया। महामुने ‎! ‏आप मेरे बालक का नामकरण कीजिये। विप्रवर प्रभो ‎! ‏अनेक पुण्यों और तीर्थों का सेवन करने पर भी आपका शुभागमन सुलभ नहीं होता। श्री गर्गजी ने कहा- ‏नन्दराय जी ‎! ‏मैं तुम्हारे पुत्र का नामकरण करूँगा, ‏इसमें संशय नहीं है; ‏किंतु कुछ पूर्वकाल की बात बताऊँगा, ‏अत: ‏एकांत स्थान में चलो। श्री नारद जी कहते हैं- ‏राजन ‎! ‏तदनन्तर गर्ग जी नन्द यशोदा तथा दोनों बालक श्रीकृष्ण एवं बलराम को साथ लेकर गोशाला में, ‏जहाँ दूसरा कोई नहीं था, ‏चले गये। वहाँ उन्होंने उन बालकों का नामकरण संस्कार किया। सर्वप्रथम उन्होंने गणेश आदि देवताओं का पूजन किया, ‏फिर यत्नपूर्वक ग्रहों का शोधन ‎(विचार) ‏करके हर्ष से पुलकित हुए महामुनि गर्गाचार्य नन्द से बोले। गर्गजी ने कहा- ‏ये जो रोहिणी के पुत्र हैं, ‏इनका नाम बताता हूँ- ‏सुनो। इनमें योगीजन रमण करते हैं अथवा ये सब में रमते हैं या अपने गुणों द्वारा भक्त जनों के मन को रमाया करते हैं, ‏इन कारणों से उत्कृष्ट ज्ञानीजन इन्हें ‎‘राम’ ‏नाम से जानते हैं। योगमाया द्वारा गर्भ का संकर्षण होने से इनका प्रादुर्भाव हुआ है, ‏अत: ‏ये ‎‘संकर्षण’ ‏नाम से प्रसिद्ध होंगे। अशेष जगत का संहार होने पर भी ये शेष रह जाते हैं, ‏अत: ‏इन्हें लोग ‎‘शेष’ ‏नाम से जानते हैं। सबसे अधिक बलवान होने से ये ‎‘बल’ ‏नाम से भी विख्यात होंगे।[1]नन्द ‎! ‏अब अपने पुत्र के नाम सावधानी के साथ सुनो- ‏ये सभी नाम तत्काल प्राणिमात्र को पावन करने वाले तथा चराचर समस्त जगत के लिये परम कल्याणकारी है। ‎‘क’ ‏का अर्थ है- ‏कमलाकांत; ‘ऋ’ ‏कार का अर्थ है- ‏राम; ‘ष’ ‏अक्षर षड़विध ऐश्वर्य के स्वामी श्वेत द्वीप निवासी भगवान विष्णु का वाचक है। ‎‘ण’ ‏नरसिंह का प्रतीक है और ‎‘अकार’ ‏अक्षर अग्निभुक ‎(अग्निरूप से हविष्य के भोक्ता अथवा अग्नि देव के रक्षक) ‏का वाचक है तथा दोनों विसर्ग रूप बिन्दु ‎(:) ‏नर-नारायण के बोधक हैं। ये छहों पूर्ण तत्त्व जिस महामंत्र रूप परिपूर्णतम शब्द में लीन हैं, ‏वह इसी व्युत्पत्ति के कारण ‎‘कृष्ण’ ‏कहा गया है। अत: ‏इस बालक का एक नाम ‎‘कृष्ण’ ‏अंग कांति को प्राप्त हुआ है, ‏इस कारण से यह नन्दनन्दन ‎‘कृष्ण’ ‏नाम से विख्यात होगा।[1]इनका एक नाम ‎‘वासुदेव’ ‏भी है। इसकी व्युत्पत्ति इस प्रकार है- ‘वसु’ ‏नाम है इन्द्रियों का। इनका देवता है-चित्त। उस चित्त में स्थित रहकर जो चेष्टाशील है, ‏उन अंतर्यामी भगवान को ‎‘वासुदेव’ ‏कहते हैं। वृषभानु की पुत्री राधा जो कीर्ति के भवन में प्रकट हुई हैं, ‏उनके ये साक्षात प्राणनाथ बनेंगे; ‏अत: ‏इनका एक नाम ‎‘राधापति’ ‏भी है। जो साक्षात परिपूर्णतम स्वयं भगवान श्रीकृष्णचन्द्र हैं, ‏असंख्य ब्रह्माण्ड जिनके अधीन हैं और जो गोलोकधाम में विराजते हैं, ‏वे ही परम प्रभु तुम्हारे यहाँ बालकरूप से प्रकट हुए हैं। पृथ्वी का भार उतारना, ‏कंस आदि दुष्टों का संहार करना और भक्तों की रक्षा करना- ‏ये ही इनके अवतार के उद्देश्य हैं।भरतवंशोद्भव नन्द! ‏इनके नामों का अंत नहीं है। वे सब नाम वेदों में गूढ़रूप से कहे गये हैं। इनकी लीलाओं के कारण भी उन-उन कर्मों के लेकर आश्चर्य नहीं करना चाहिये। तुम्हारा अहोभाग्य है; ‏क्योंकि जो साक्षात परिपूर्णतम परात्पर श्री पुरुषोत्तम प्रभु हैं, ‏वे तुम्हारे घर पुत्र के रूप में शोभा पा रहे हैं।श्री नारद जी कहते हैं- ‏राजन ‎! ‏यों कहकर श्री गर्गजी जब चले गये, ‏तब प्रमुदित हुए महामति नन्दराय ने यशोदा सहित अपने को पूर्ण काम एवं कृतकृत्य माना। तदनंतर ज्ञानिशिरोमणि ज्ञानदाता मुनि श्रेष्ठ श्रीगर्गजी यमुना तट पर सुशोभित वृषभानु जी की पुरी में पधारे। छत्र धारण करने से वे दूसरे इन्द्र की तथा दण्ड धारण करने से साक्षात धर्मराज की भाँति सुशोभित होते थे। साक्षात दूसरे सूर्य की भाँति वे अपने तेज से सम्पूर्ण दिशाओं को प्रकाशित कर रहे थे। पुस्तक तथा मेखला से युक्त विप्रवर गर्ग दूसरे ब्रह्मा की भाँति प्रतीत होते थे। शुक्ल वस्त्रों से सुशोभित होने के कारण वे भगवान विष्णु की सी शोभा पाते थे। उन मुनिश्रेष्ठ को देख कर वृषभानु जी ने तुरंत उठकर अत्यंत आदर के साथ सिर झुकाकर उन्हें प्रणाम किया और हाथ जोड़कर वे उनके सामने खड़े हो गये। पूजनोपचार के ज्ञाता वृषभानु ने मुनि को एक मंगलमय आसन पर बिठाकर पाद्य आदि के द्वारा उन ज्ञानिशिरोमणि गर्ग का विधिवत पूजन किया। फिर उनकी परिक्रमा करके महान ‎‘वृषभानुवर’ ‏इस प्रकार बोले-' ‏श्री वृषभानु ने कहा- ‏संत पुरुषों का विचरण शान्तिमय है; ‏क्योंकि वह गृहस्थ जनों को परम शांति प्रदान करने वाला है। मनुष्यों के भीतरी अन्धकार का नाश महात्माजन ही करते हैं, ‏सूर्यदेव नहीं। भगवन ‎! ‏आपका दर्शन पाकर हम सभी गोप पवित्र हो गये। भूमण्डल पर आप जैसे साधु-महात्मा पुरुष तीर्थों को भी पावन बनाने वाले होते हैं। मुने ‎! ‏मेरे यहाँ एक कन्या हुई है, ‏जो मंगल की धाम है और जिसका ‎‘राधिका’ ‏नाम है। आप भली-भाँति विचार कर यह बताने की कृपा कीजिये कि इसका शुभ विवाह किसके साथ किया जाय। सूर्य की भाँति आप तीनों लोकों में विचरण करते हैं। आप दिव्यदर्शन हैं, ‏जो इसके अनुरूप सुयोग्य वर होगा, ‏उसी के हाथ में इस कल्याणमयी कन्या को दूंगा।श्री नारद जी कहते हैं- ‏राजन ‎! ‏तदनंतर मुनिवर गर्गजी वृषभानु जी का हाथ पकड़े यमुना के तट पर गये। वहाँ एक निर्जन और अत्यंत सुन्दर स्थान था, ‏जहाँ कालिन्दीजल की कल्लोल मालाओं की कल-कल ध्वनि सदा गूँजती रहती थी। वहीं गोपेश्वर वृषभानु को बैठाकर धर्मज्ञ मुनीन्द्र गर्ग इस प्रकार कहने लगे। श्री गर्ग जी बोले- ‏वृषभानुजी ‎! ‏एक गुप्त बात है, ‏यह तुम्हें किसी से नहीं कहनी चाहिये। जो असंख्य ब्रह्माण्डों के अधिपति, ‏गोलोकधाम के स्वामी, ‏परात्पर तथा साक्षात परिपूर्णतम हैं; ‏जिनसे बढ़कर दूसरा कोई नहीं है; ‏स्वयं वे ही भगवान श्रीकृष्ण नन्द के घर में प्रकट हुए हैं। श्री वृषभानु ने कहा- ‏महामुने ‎! ‏नन्दजी का भी भाग्य अद्भुत है, ‏धन्य एवं अवर्णनीय है। अब आप भगवान श्रीकृष्ण के अवतार का सम्पूर्ण कारण मुझे बताइये। श्री गर्ग जी बोले- ‏पृथ्वी का भार उतारने और कंस आदि दुष्टों का विनाश करने के लिये ब्रह्माजी के प्रार्थना करने पर भगवान श्रीकृष्ण पर अवतीर्ण हुए है। उन्हीं परम प्रभु श्रीकृष्ण की पटरानी, ‏जो प्रिया श्री राधिकाजी गोलोकधाम में विराजती हैं, ‏वे ही तुम्हारे घर पुत्री रूप से प्रकट हुई है। तुम उन पराशक्ति राधिका को नहीं जानते। श्री नारद जी कहते हैं- ‏राजन ‎! ‏उस समय गोप वृषभानु के मन में आनन्द की बाढ़ आ गयी और वे अत्यंत विस्मित हो गये। उन्होंने कलावती ‎(कीर्ति) ‏को बुलाकर उनके साथ विचार किया। पुन: ‏श्रीराधा-कृष्ण के प्रभाव को जानकर गोपवर वृषभानु आनन्द के आँसू बहाते हुए पुन: ‏महामुनि गर्ग से कहने लगे। श्री वृषभानु ने कहा- ‏द्विजवर! ‏उन्हीं भगवान् श्रीकृष्ण को मैं अपनी यह कमलनयनी कन्या समर्पण करूँगा। आपने ही मुझे यह सन्मार्ग दिखलाया है; ‏अत: ‏आपके द्वारा ही इसका शुभ विवाह-संस्कार सम्पन्न होना चाहिये। श्री गर्ग जी ने कहा- ‏राजन ‎! ‏श्रीराधा और श्रीकृष्ण का पाणिग्रहण संस्कार मैं नहीं कराऊँगा। यमुना के तट पर भाण्डीर-वन में इनका विवाह होगा। वृन्दावन के निकट जनशून्य सुरम्य स्थान में स्वयं श्रीब्रह्माजी पधारकर इन दोनों का विवाह करायेंगे। गोपवर ‎! ‏तुम इन श्रीराधिका को भगवान श्रीकृष्ण की वल्लभा समझो। संसार में राजाओं के शिरोमणि तुम हो और लोकों का शिरोमणि गोलोकधाम है। तुम सम्पूर्ण गोप गोलोकधाम से ही इस भूमण्ड़ल आये हो। वैसे ही समस्त गोपियाँ भी श्री राधिका जी की आज्ञा मानकर गोलोक से आयी हैं। बड़े-बड़े यज्ञ करने पर देवताओं को भी अनेक जन्मों तक जिनकी दर्शन दुर्घट है, ‏वे साक्षात श्री राधिका जी तुम्हारे मन्दिर के आँगन में गुप्त रूप से विराज रही हैं और बहुसंख्यक गोप और गोपियाँ उनका साक्षात दर्शन करती हैं।श्री नारद जी कहते हैं- ‏राजन ‎! ‏श्री राधिकाजी और भगवान श्रीकृष्ण का यह प्रशंसनीय प्रभाव सुनकर श्रीवृषभानु और कीर्ति दोनों अत्यंत विस्मित तथा आनन्द से आह्वादित हो उठे और गर्गजी से कहने लगे। दम्पति बोले- ‏ब्राह्मण ‎! ‘राधा’ ‏शब्द की तात्त्विक व्याख्या बताइये। महामुने इस भूतल पर मनके संदेह दूर करने वाला आपके समान दूसरा कोई नहीं है। श्री गर्ग जी ने कहा- ‏एक समय की बात है, ‏मैं गन्धमादन पर्वत पर गया। साथ में शिष्य वर्ग भी थे। वहीं भगवान नारायण के श्रीमुख से मैंने सामवेद का यह सारांश सुना है। ‎‘रकार’ ‏से रमा का, ‘आकार’ ‏से गोपिकाओं का, ‘धकार’ ‏से धरा का तथा ‎‘आकार’ ‏से विरजा नदी का ग्रहण होता है। परमात्मा भगवान श्रीकृष्ण का सर्वोत्कृष्ट तेज चार रूपों में विभक्त हुआ। लीला, ‏भू, ‏श्री और विरजा ये चार पत्नियाँ ही उनका चतुर्विध तेज हैं। ये सब-की-सब कुंज भवन में जाकर श्री राधिका जी के श्रीविग्रह में लीन हो गयीं। इसीलिये विज्ञजन श्री राधा को ‎‘परिपूर्णतम’ ‏कहते हैं। गोप! ‏जो मनुष्य बारंबार ‎‘राधाकृष्ण’ ‏के इस नाम का उच्चारण करते हैं, ‏उन्हें चारों पदार्थ तो क्या, ‏साक्षात भगवान श्रीकृष्ण भी सुलभ हो जाते हैं[1]। श्री नारद जी कहते हैं- ‏राजन ‎! ‏उस समय भार्या सहित श्री वृषभानु के आश्चर्य की सीमा न रही। श्रीराधा-कृष्ण के दिव्य प्रभाव को जानकर वे आनन्द के मूर्तिमान विग्रह बन गये। इस प्रकार श्री वृषभानु ने ज्ञानिशिरोमणि श्री गर्ग जी की पूजा की। तब वे सर्वज्ञ एवं त्रिकालदर्शी मुनीन्द्र गर्ग स्वयं अपने स्थान को सिधारे। इस प्रकार श्री गर्ग संहिता में गोलोक खण्ड के अंतर्गत 🙏🏻🙏🏻●▬▬▬▬▬▬๑۩۩๑▬▬▬▬▬▬●,

श्री राधा🌺🙌🏻by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🌺किस किस ने रस कथा सुननी हैबहुत बहुत बहुत छोटी ☺ सीराधा रानी को देखो स्वयं पूछ रही हैकिशोरी जू खुद बुला रही हैआ गयी किशोरी जी सब आ गयी हैस्वामिनी जी हम सब आपके लिए एक सुंदर से कथा सुनाने को सोच रही थीअब हम कथा करते है स्वामीनी आ चुकी हैएक बार सब मंजरियाँ जहाँ कोई भी कुंज में हो हाथ उठा राधारानी का स्वागत करेबोलो राधा रानी की जय बोलो बरसाने वारी की जय🌺🙌🏻🌺🙌🏻🌺🙌🏻🌺चलो सब अपना अपना आसन ग्रहण करोऔर सब कथा सुनोचलो सबपूछोगे नहि कहाँजी कहाँ आज हम सब line बना कर श्यमाश्याम के साथ माधवीकुंज जा रहे हैश्री युगल आज माधवीकुंज में प्रस्थान कर रहे है श्री ललिता जी आगे आगे विशाखा स्वामिनी के संग पीछे गुणमंजरी रति मंजरी पंक्ति बना कर और श्यामसुंदर अपना एक हाथ प्रियाजी के गले में और दूसरा अपनी मुरली बजाते हुए पशु पक्षी को मुरलीधुन सुनाते जा रहे हैकभी शुक उड़ कर स्वामिनी के बाँह पर बैठ जाता है तो कभी सारिका उड़ कर स्वामिनीके कंधे पर स्वामिनी सबको अपने वात्सल्य रस से पीठ पर हाथ फेरी जा रही है तभी यह ख़बर भँवरे भी पा लेते है के आनंद की रसमूर्ति युगल आ रहे है वो भी झुंड बना वहीं आ रहे होते हैस्वामिनी अपना वात्सल्य रस दे शुक सारिका को दे श्याम को आग्रह करती है के " आ आप इन्हें अपना प्रेम रस दो तब श्याम शुकों को सारिका के मुख पर अपनी मुरली रख देते है और उनकी पीठ पर हाथ फेर कहते है " बजाओ मुरली तुम सब मुझसे अछी बजा सकते हो क्यूँकि अभी अभी तुमने स्वामिनी का वात्सल्य रस प्राप्त किया है वो गुरु है हम सबकी यह सुन स्वामिनी अपने मुख में शर्मा के साड़ी का छोर दबा लेती हैपीछे से भँवरो के अगाध झुंड को देख कस्तूरी मंजरी सब भँवरो को स्वामिनी के पास ना आने का निर्देश देती है श्याम सुंदर प्रियाजी के ओर निहारते है तब स्वामिनी का मुख नीचे हो जाता है तभी ललिता जी कहती है प्रिया प्रियतम माधवी कुंज आ गयाप्रिया प्रियतम वहाँ बने मोर की आकृति के आसन पर विराजते है और सखियाँ मंजरिया अपने अपने कार्यों में लग जाती है कोई युगल के लिए फल काटती है कोई शरबत बनाती है कोई मेवा की मिठाई तो कोई गुलाब की सेवातभी स्वामिनी सिंहासन पर बैठी प्रियतम को देखती है अपनी परम रस मय नेत्रोसे निहारते हुए एक पद गाती है मन में परंतु वो भाव मधुमती जान कर उसे गा देती है वो यह भाव है सुनिएतभी मधुमती श्री राधा के भावो को श्याम को सुनाती है अपनी वीना में क्यूँकि स्वामिनी शर्माती है नामैं सुनाता हूँफिर भेजूँगापड़ लो गीतपड़ लो तब आगे चलेंगे🌹मेरे तुम मैं नित्य तुम्हारी , तुम मैं , मैं तुम , संग - असंग |पता नही कबसे मैं तुम बन, तुम मैं बने कर रहे रंग ||🌹तभी मधुमती श्री राधा के भाव को गा देती है जिसे सुनकर श्याम प्रेम रस में निमज्जित हो जाते है और वो मधुमती को देख कर कुछ प्रिया जी के लिए अपना भाव प्रकट करना चाहते हैअब सुनो प्रियतम का क्या गीत है स्वामिनी के लिए परंतु मधुमती से गवाते हैतू तो मेरे प्राणन गू ते प्यारी |नेु चितै हणस बोलिये मोसौं हौं तो शरण तिहारी ||अन्तर दूर करौ अचरा कौखौल दै घूँघट पट सारी |कृष्णदास प्रभु गिरिधर नागर भर लीने अैंकवारी ||पड़ लीजिएअब इस कथा का सबसे ऊँचा रस प्रकट होगा सबसे ऊँचा उच्चतमसब ध्यान से सुनना सब रस में खो जाओगेअब युगल दोनो भावों में प्रेम निमज्जित हो अपनी आँखें चढ़ा लेते है जैसे नशे में हो और राधारानी को प्रीतम के प्रेम का नशा इतना चड़ता है के अपनी दोनो कमल नयन चढ़ा वो विशाखा के ओर देखती हैतभी वो क्या देखती है के श्री विशाखा का भाव जिसे " स्वाधीनभरतिका" कहते है जिसमें श्री कृष्ण उस भाव में आधीन रहते है तभी स्वामिनी जब विशाखा को देखती है तभी वो विशाखा का स्वभाव धारण कर लेती है और विशाखा के भाव से " श्याम के गले में हाथ डाल देती है और उनसे नृत्य करने को कहती है स्वाधीनभारतीका भाव से भावित विशाखा जब राधा स्वयं विशाखा बनती है तब प्रियतम उसके वश हो नृत्य करते हैअब श्री राधा विशाखा के भाव में श्याम के संग नृत्य करती है और अपनी चुनरी बार बार गिराती है और श्याम उन्हें उठाते हैतभी नृत्य करते करते विशाखासखी के भाव में वो श्याम के बाँह पकड़ गोल धारा बना नाचने को कहती है श्याम तभी गोल धारा बना नाचते है तभी श्री राधा विशाखा के भाव में कहती है" तुम्हारा मिलन ही मेरा आनंद है विरह वियोग तो हममें होता ही नहींअभी अब श्री राधा के नैन श्री ललिता पर जाते है श्री ललिता के परम उत्कृष्ट श्री कृष्ण भाव से अब वो भावित हो जाती है ललिता का भाव है " विशुद्ध खंडिता" भाव जिसका अर्थ " क्रोध" होता है तभी श्री राधा उस भाव में भावित हो ललिता बन जाती हैअब वो रानी, श्री ललिता भाव में खंडिता भाव में क्रोध में होती है तब श्याम उनसे अनुनय विनय करते है " हे ललिता ( राधा ललिता भाव में) तू मुझे प्राण से प्यारी है मेरा विलम्ब आने में इसलिए हुई है मैं तेरे लिए पुष्प की माला बना रहा थातभी रानी ललिता भाव में चतुराई से पूछती है प्रियतम से "आपके सर पर यह सिंदूर कैसा"????" आपका नेत्र लाल क्यूँ है " आप आज बात करते करते रुक क्यूँ रहे हो??अब सुनो प्रियतम क्या कहते हैप्रियतम की चतुराई देखो श्री राधा से ललिताभाव में 1. मेरे सर पर यह सिंदूर इसलिए है क्यूँकि मैंने गणेश पूजन किया तब जब मैंने माथा टेका तब वो सिंदूर लग गया माथे में मेरे लाल नेत्र इसलिए है " आज सुबह मैंने सूर्य को एकटकि लगाकर देखा तब से मेरा नेत्र लाल हो गया है मैं बात करते इसलिए रुक रहा हूँ क्यूँकिमुझे डर है कोई यहाँ आ ना जाए और हमें देख लेतभी मंजरी कहती है कन्हैया कोई कितने भी " सिलाई कर ले क्या कभी कोई आसमान को सील सकता है " बनाओ बहाने कब तक बनाओगेतभी रानी ललिता भाव में उनकी दृष्टि " चित्रा जी " पर पड़ती है तभी चित्रा के भाव जो कृष्ण का है वो ग्रहण कर लेती है " दीवाभिसारिका" अब रानी चित्रा भाव में चित्रा बन जाती हैअब रानी, चित्रा भाव में आ जाती दिवभिसारिका में उसका अर्थ है " चित्रा अपने को सज़ा कर श्री कृष्ण का इंतज़ार करती है और उनके पद में पुष्प बिछाती है " तभी रानी उसी चित्रा भाव में आकर अपने को सजाती सँवारती है और प्रियतम के चरणो में फूल बरसाती हैहैतभी रानी चित्राभाव में प्रियतम को अपनी बाँह में ले बहुत रोती है और कहती है अब तुम कहीं नहि जाओगे तभी रानी का दृष्टि चित्रा भाव से चंपकलता को देखती है देखते ही अब रानी चम्पकलता भाव में आ जाती हैअब प्रियाजी चम्पकलाता भाव में " शैया सजाती है " पुष्पों से अपने हाथो से सजाती है तभी सब वृक्ष लता पता धीरे धीरे चल मानो चँवर चला रहे हैतभी मयूर, मयूरी को देख रानी चंपकलता भाव में उन्हें पकड़ लेती है और उन्हें अपने गोद में बैठा लेती है और उन्हें कृष्ण कृष्ण बोलने को कहती हैअब रानी चम्पकलाता भाव में प्रियतम के साथ आलिंगन करती है तभी उनकी दृष्टि पड़ती है इन्दुलेखा सखी " का भाव रानी को आ जाता है अब रानी इन्दुलेखा के भाव में आ जाती है इन्दुलेखा का भाव " सुदूरव्रती" है जिसका अर्थ है जिनके प्रियतम प्रदेश चले गए और वो उन्हें याद करती है अब रानी इन्दुलेखा के भाव में प्रियतम को याद करती है के कब आयोगे प्रियतम हैरानी अब इन्दुलेखा भाव में विरहनी की तरह रोती है और नृत्य करती है और यह गान करती हैसुनोगी कौन सा गान रानी इन्दुलेखा भाव में गाती हैअब रानी विरही में नृत्य करते करते श्री रंगदेवी को देखती है तभी रानी रंगदेवी के भाव को धारण कर लेती है हैतभी रानी उस रंगदेवी भाव में अति विरही हो जाती है तभी रानी रंगदेवी भाव में अपने हाथो को अपने कपोलों पर रख अश्रु बहाकर जब अति विरह को धारण कर जब पुष्प शैया पर बैठती है तब पुष्प मुरझा नहीं बल्कि पूरे सुख जाते है तभी रानी रंगदेवी भाव में रोतीं है और उनकी नासिका से धूम विरहअग्नि निकलती है तभी ललिता तुंगविध्या को भेजती है तभी तुंगविध्या रानी को छूती है छूते ही रानी रंगदेवी भाव को छोड़ कर तुंगविद्या भाव में आ जाती हैतभी रानी तुंगविध्या भाव में गायन करती हैअब रानी तुंगविद्या भाव में जब सुदेवी को देखती है तभी सुदेवी भाव में आती है सुदेवी का भाव " कलहांतरिका" अर्थात प्रियतम से प्रेम झगड़ा करती है अगर वो ग़लती करते है अब रानी सुदेवी भाव में प्रियतम से लड़ती है कहाँ चले गए थे अब आए हो तुम कभी मेरा ख़याल करते हो रानी को क्रोध कभी नहि आता यह श्याम जानते है परंतु अब रानी सुदेवी भाव में क्रोध करती है जानते हो कौन सा भाव गाती है क्रोध मेंपूछो कौन सा ??कौन सा जीतुम मेरी मोतिन लर क्यों तोरी ।रहो ढोटा तुम नन्द महर के,नित्य करत बरजोरी ।। अबहि नई पहरी हो आई, चुडिया तुम सब होरी ।जब देए हो लकुट बांसुरी, बिनी रतन करोड़ी ।।हमहुँ बड़े मेहर की बेटी, तुम कारे हम गोरी ।"परमानन्द" मुस्कावत राधा, पूर्ण चंद्र चकोरी ।।ये जो अभी गाया यहाँ श्री राधारानी को आठों सखीयो का भाव आया और इन सब भावो से कृष्ण प्रकट कियाकृष्ण प्रेम से प्रकट होता हैआप सब ने जो कथा सुनी मंजरियों आप पर आठ सखीयो की कृपा भी होगीजय हो श्री राधा रानी जी की 🌺🙌🏻🌺एक बार हम एक साथ आठ सखीयो का नाम लिखते है🌹श्री ललिता जी🌹विशाखा जी🌹तुंगविद्या जी🌹 सुदेवी जी🌹रंगदेवी जी🌹 श्री चित्रा जी 🌹श्री चम्पकलता जी🌹 श्री इन्दुलेखा जी🙏राधे राधे सब मंजरियो🙏श्री राधा🙇🏼👣🌹,