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जनवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

प्राण प्यारें कृष्ण चन्द , नेक काटो भव फंद ,हे सत चित आनंद , तेरे चरण में आई हूँ ।हौं मूढ़ मतिमंद , नित पाप करूँ स्वछन्द ,नैकु न नाम परमानंद , जिह्वा सो गई हूँ ।कान्ह काटे फरफंद , खोले भव द्वार बंद ,सुनि रसिक प्रेमी संत ,मन चरण में लाई हूँ ।प्यारें माधुर्य रस कंद , हे नाथ सच्चिदानंद ,दीजै चरण मकरन्द , मन मधुप बनायौ हूँ ।❤️❤️हे श्रीकृष्ण❤️❤️,

खालसा पंथ के संस्थापक, सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिये अपने संपूर्ण परिवार का बलिदान देने वाले महान योद्धा श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं || by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब : #gurugobindsinghji,Heartiest congratulations and best wishes on the birth anniversary of the great warrior Shri Guru Gobind Singh ji, the founder of the Khalsa Panth, who sacrificed his entire family to protect Sanatan Dharma and Indian culture.#gurugobi,

महान वीरांगना #रानी_दुर्गावती जी को कोटि कोटि नमन by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब कभी जा कर देखिये इस दुर्ग को।दुर्गति कर डाली है समाज और सरकार की बेरुखी ने।अन्य ऐतिहासिक स्मारकों की तरह यंहा भी अवैध कब्जों की बहार है।ये कब्जे किनके है बताने की जरूरत है क्या??युद्ध जीतकर हुंकारे घोड़े पर चढ़कर ललकारे ,सन्देश भेज दो दिल्ली में वह अकबर मुझसे युद्ध लड़े ।वर्ना घुँघरू पहुँचादो मेरे दरवार में आकर नृत्य करे ।।ये किला मैंने देखा है यहां से पूरा जबलपुर दिखता है मगर यह कहीं से नहीं दिखता किला बहुत ही अद्भुत है इसकी गुफा सीधे मंडला जाती हैरानी दुर्गावती जी को सादर प्रणाम !लेकिन उनके दुर्ग की जो दशा है बहुत ही दयनीय है इस और सरकार का और दूसरे संगठनों का ध्यान जाना चाहिए!!🌹🙏,

*♦️♦️♦️ ♦️♦️♦️शुभ प्रभात वंदन जी*👉🏿चिंता* 🏵️ *by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब*🌹🙏🙏🌹🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅*एक राजा की पुत्री के मन में वैराग्य की भावनाएं थीं। जब राजकुमारी विवाह योग्य हुई तो राजा को उसके विवाह के लिए योग्य वर नहीं मिल पा रहा था।* *राजा ने पुत्री की भावनाओं को समझते हुए बहुत सोच-विचार करके उसका विवाह एक गरीब संन्यासी से करवा दिया।**राजा ने सोचा कि एक संन्यासी ही राजकुमारी की भावनाओं की कद्र कर सकता है।* *विवाह के बाद राजकुमारी खुशी-खुशी संन्यासी की कुटिया में रहने आ गई।* *कुटिया की सफाई करते समय राजकुमारी को एक बर्तन में दो सूखी रोटियां दिखाई दीं। उसने अपने संन्यासी पति से पूछा कि रोटियां यहां क्यों रखी हैं?**संन्यासी ने जवाब दिया कि ये रोटियां कल के लिए रखी हैं, अगर कल खाना नहीं मिला तो हम एक-एक रोटी खा लेंगे।**संन्यासी का ये जवाब सुनकर राजकुमारी हंस पड़ी। राजकुमारी ने कहा कि मेरे पिता ने मेरा विवाह आपके साथ इसलिए किया था, क्योंकि उन्हें ये लगता है कि आप भी मेरी ही तरह वैरागी हैं, आप तो सिर्फ भक्ति करते हैं और कल की चिंता करते हैं।**सच्चा भक्त वही है जो कल की चिंता नहीं करता और भगवान पर पूरा भरोसा करता है।* *अगले दिन की चिंता तो जानवर भी नहीं करते हैं, हम तो इंसान हैं। अगर भगवान चाहेगा तो हमें खाना मिल जाएगा और नहीं मिलेगा तो रातभर आनंद से प्रार्थना करेंगे।**ये बातें सुनकर संन्यासी की आंखें खुल गई। उसे समझ आ गया कि उसकी पत्नी ही असली संन्यासी है।* *उसने राजकुमारी से कहा कि आप तो राजा की बेटी हैं, राजमहल छोड़कर मेरी छोटी सी कुटिया में आई हैं, जबकि मैं तो पहले से ही एक फकीर हूं, फिर भी मुझे कल की चिंता सता रही थी। सिर्फ कहने से ही कोई संन्यासी नहीं होता, संन्यास को जीवन में उतारना पड़ता है। आपने मुझे वैराग्य का महत्व समझा दिया।**शिक्षा:* *अगर हम भगवान की भक्ति करते हैं तो विश्वास भी होना चाहिए कि भगवान हर समय हमारे साथ है।**उसको (भगवान्) हमारी चिंता हमसे ज्यादा रहती हैं।**कभी आप बहुत परेशान हो, कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा हो।**आप आँखे बंद कर के विश्वास के साथ पुकारे, सच मानिये थोड़ी देर में आप की समस्या का समाधान मिल जायेगा।*🙏 _हमेशा सकारात्मक सोच रखें घर में रहें सुरक्षित रहें लक्ष्मणरेखा का पालन करें 🙏🙏🙏🌺♦🌺♦🌺♦🌺** ♦ ️ ♦ ️ ♦ ️ ♦ ️ ♦ ️ ♦ ️ Good morning vandan ji * ंCinta * 🏵️ * by social worker Vanita Kasani Punjab * 🌹🙏🙏🌹 4 * A king's daughter had feelings of disinterest. When the princess was married, the king could not find a suitable groom for her marriage. * Realizing the feelings of the daughter, the king got her married to a poor monk after much thought. * * The king thought that only a monk could appreciate the princess' feelings. * * After marriage, the princess happily came to live in the sannyasin's hut. * * While cleaning the hut, the princess saw two dry loaves in a pot. She asked her ascetic husband why the loaves are kept here? * * The sannyas replied that these rotis are kept for tomorrow, if tomorrow no food is found then we will eat each roti. * * The princess laughed hearing this reply of the monk. The princess said that my father had married me with you, because he feels that you are a recluse just like me, you just do devotion and worry about tomorrow. * * The true devotee is the one who does not worry about tomorrow and trusts God completely. * * Animals do not even worry about the next day, we are human beings. If God wants, we will get food and if we do not get it then we will pray with joy all night. * Saints opened their eyes after hearing these things. He understood that his wife is the real monk. * * He told the princess that you are the daughter of the king, leaving the palace and came to my small hut, even though I am already a fakir, yet I was worried about yesterday. There is no ascetic just by saying, Sannyas have to take off in life. You made me understand the importance of quietness. * *Education:* * If we do devotion to God then we should also believe that God is with us all the time. * * He (God) is more worried than us. * Sometimes you are very upset, there is no way out. * * Close your eyes and call with confidence, believe the solution of your problem will be found in a short time. * 🙏 _ Always keep positive thinking stay home stay safe and follow Lakshmanrekha 🌺 ♦ 🌺 ♦ 🌺 ♦ 🌺 *,

***जय श्री राधे कृष्णा जी****शुभरात्रि वंदन**अनूठी भक्ति by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब.🌾🍀🌾🍀🌾🍀🌾🍀🌾🍀🌾🍀🌾🍀🌾🍀🌾🍀महाभारत युद्ध के बाद भगवान् श्रीकृष्ण और अर्जुन द्वारिका गए. इस बार रथ अर्जुन चलाकर ले गए. .द्वारिका पहुंचकर अर्जुन बहुत थक गए थे इसलिए विश्राम करने अतिथिभवन में चले गए..संध्या को रूक्मिणीजी ने श्रीकृष्ण को भोजन परोसा. प्रभु रूक्मिणीजी से बोले- प्रिय घर में अतिथि आए हुए हैं. हम अतिथि को भोजन कराए बिना भोजन कैसे ग्रहण कर लूं..रूक्मिणीजी ने कहा- भगवन् आप भोजन आरंभ तो करिए मैं अर्जुन को अभी बुलाकर लिए आती हूं. .रूक्मिणीजी जब अतिथिकक्ष में पहुंची तो वहां अर्जुन गहरी नींद में सो रहे थे. रूक्मिणीजी यह देखकर आश्चर्य में थीं कि नींद में सोए अर्जुन के रोम-रोम से श्रीकृष्ण नाम की ध्वनि निकल रही है. .यह देख रूक्मिणी अर्जुन को जगाना भूल आनंद में डूब गईं और धीमे-धीमे ताली बजाने लगीं..प्रभु के दर्शन के लिए नारदजी पहुंचे तो देखा प्रभु के सामने भोग की थाली रखी है और वह प्रतीक्षा में बैठे हैं. नारदजी ने श्रीकृष्ण से कहा- भगवन् भोग ठण्डा हो रहा है, इसे ग्रहण क्यों नहीं करते..श्रीकृष्ण बोले- नारदजी, बिना अतिथि को भोजन कराए कैसे ग्रहण करूं. नारदजी ने सोचा कि प्रभु को अतिथि की प्रतीक्षा में विलंब हो रहा है. इसलिए बोले- प्रभु मैं स्वयं बुला लाता हूं आपके अतिथि को..नारदजी भी अतिथिशाला की ओर चल पड़े. वहां पहुंचे तो देखा अर्जुन सो रहे हैं. उनके रोम- रोम से श्रीकृष्ण नाम की ध्वनि सुनकर देवी रूक्मिणी आनंद विभोर ताली बजा रही हैं. प्रभुनाम के रस में विभोर नारदजी ने वीणा बजानी शुरू कर दी..सत्यभामाजी प्रभु के पास पहुंची. प्रभु तो प्रतीक्षा में बैठे हैं. सत्यभामाजी ने कहा- प्रभु भोग ठण्डा हो रहा है प्रारंभ तो करिए. भगवान् ने फिर से वही बात कही- हम अतिथि के बिना भोजन नहीं कर सकते..अब सत्यभामाजी अतिथि को बुलाने के लिए चलीं. वहां पहुंचकर सोए हुए अर्जुन के रोम-रोम द्वारा किए जा रहे श्रीकृष्ण नाम के कीर्तन, रूक्मिणीजी की ताली, नारदजी की वीणा सुनी तो वह भी भूल गईं कि आखिर किस लिए आई थीं..सत्यभामाजी ने तो आनंद में भरकर नाचना शुरू कर दिया. प्रभु प्रतीक्षा में ही रहे. जो जाता वह लौट कर ही न आता. .प्रभु को अर्जुन की चिंता हुई सो वह स्वयं चले. प्रभु पहुंचे अतिथिशाला तो देखा कि स्वरलहरी चल रही है. .अर्जुन निद्रावस्था में कीर्तन कर रहे हैं, रूक्मिणी जाग्रत अवस्था में उनका साथ दे रही हैं, नारद जी ने संगीत छेड़ी है तो सत्यभामा नृत्य ही कर रही हैं..यह देखकर भगवान् के नेत्र सजल हो गये. प्रभु ने अर्जुन के चरण दबाना शुरू कर दिया. .प्रभु के नेत्रों से प्रेमाश्रुओ की कुछ बूंदें अर्जुन के चरणों पर पड़ी तो अर्जुन वेदना से छटपटा कर उठ बैठे. जो देखा उसे देखकर हतप्रभ तो होना ही था. घबराए अर्जुन ने पूछा- प्रभु यह क्या हो रहा है !.भगवान् बोले- अर्जुन तुमने मुझे रोम-रोम में बसा रखा है इसीलिए तो तुम मुझे सबसे अधिक प्रिय हो. गोविन्द ने अर्जुन को गले से लगा लिया. अर्जुन के नेत्रों से अश्रु की धारा फूंट रही थी. .कुछ बूंदें सौभाग्य की, कुछ प्रेम की और कुछ उस अभिमान की जो भक्त को भगवान् के लिए हो ही जाती है..कुछ कथाएं तब उमड़ती है जब भक्त अपने आराध्य की भक्ति में लीन हो जाता है. वह कथाएं सभी दूसरी कथाओं से ज्यादा आनंद प्रदान करती है.~~~~~~~~~~~~~~~~~((((((( जय जय श्री राधे )))))))~~~~~~~~~~~~~~~~~*,,

*🌺😊🌺😊🌺😊🌺😊🌺 *ईश्वर तू ही अन्नदाता है* ✍by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब किसी राज्य में एक प्रतापी राज्य हुआ करता था। वो राजा रोज सुबह उठकर पूजा पाठ करता और गरीबों को दान देता। अपने इस उदार व्यवहार और दया की भावना की वजह से राजा पूरी जनता में बहुत लोक प्रिय हो गया था।रोज सुबह दरबार खुलते ही राजा के यहाँ गरीब और भिखारियों की लंबी लाइन लग जाती थी। राजा हर इंसान को संतुष्ट करके भेजते थे। किशन और गोपाल नाम के दो गरीब भिखारी रोज राजा के यहाँ दान लेने आते।राजा जब किशन को दान देता तो किशन राजा की बहुत वाहवाही करता और राजा को दुआएं देता। वहीँ जब राजा गोपाल को दान देता तो वह हर बार एक ही बात बोलता – “हे ईश्वर तू बड़ा दयालु है, तूने मुझे इतना सबकुछ दिया”। राजा को उसकी बात थोड़ी बुरी लगती। राजा सोचता कि दान मैं देता हूँ और ये गुणगान उस ईश्वर का करता है।एक दिन राजकुमारी का जन्मदिन था। उस दिन राजा ने दिल खोल कर दान दिया। जब किशन और गोपाल का नंबर आया तो राजा ने पहले किशन को दान दिया और किशन राजा के गुणगान करने लगा लेकिन राजा ने जैसे ही गोपाल को दान दिया वो हाथ ऊपर उठा के बोला – “हे ईश्वर तू ही अन्नदाता है, आज तूने मुझे इतना दिया इसके लिए प्रभु तुझे धन्यवाद देता हूँ”राजा को यह सुनकर बड़ा गुस्सा आया उसने कहा कि गोपाल, मैं रोज तुम्हें दान देता हूँ फिर तुम मेरे बजाय ईश्वर का गुणगान क्यों करते हो ? गोपाल बोला – राजन देने वाला तो ऊपर बैठा है, वही सबका अन्नदाता है, आपका भी और मेरा भी, यह कहकर गोपाल वहाँ से चला गया। अब राजा ने गोपाल को सबक सिखाने की सोची।अगले दिन जब किशन और गोपाल का नंबर आया तो राजा ने किशन को दान दिया और कहा – किशन मुझे गोपाल से कुछ बात करनी है, इसलिए तुम जाओ और गोपाल को यहीं छोड़ जाओ, और हाँ आज तुम अपने पुराने रास्ते से मत जाना आज तुमको राजमहल के किनारे से जाना है जहाँ से सिर्फ मैं गुजरता हूँ।किशन ख़ुशी ख़ुशी दान लेकर चला गया। राजमहल के किनारे का रास्ता बड़ा ही शानदार और खुशबु भरा था। संयोग से राजा ने उस रास्ते में एक चांदी के सिक्कों से भरा घड़ा रखवा दिया था। लेकिन किशन आज अपनी मस्ती में मस्त था वो सोच रहा था कि राजा की मुझपर बड़ी कृपा हुई है जो मुझको अपने राजमहल के रास्ते से गुजारा। यहाँ से तो मैं अगर आँख बंद करके भी चलूं तो भी कोई परेशानी नहीं होगी।यही सोचकर किशन आँखें बंद करके रास्ते से गुजर गया लेकिन उसकी नजर चांदी के सिक्कों से भरे घड़े पर नहीं पड़ी। थोड़ी देर बाद राजा ने गोपाल से कहा कि अब तुम जाओ क्योंकि किशन अब जा चुका होगा लेकिन तुमको भी उसी रास्ते से जाना है जिससे किशन गया है।गोपाल धीमे क़दमों से ईश्वर का धन्यवाद करते हुए आगे बढ़ चला। अभी थोड़ी दूर ही गया होगा कि उसकी नजर चांदी के सिक्कों से भरे घड़े पर पड़ी। गोपाल घड़ा पाकर बड़ा खुश हुआ उसने कहा – “ईश्वर तेरी मुझ पर बड़ी अनुकंपा है तूने मुझे इतना धन दिया” और वो घड़ा लेकर घर चला गया।अगले दिन फिर से जब गोपाल और किशन का नंबर आया तो राजा को लगा कि किशन घड़ा ले जा चुका होगा इसलिए उसने किशन से पूछा – क्यों किशन ? कल का रास्ता कैसा रहा ? राह में कुछ मिला या नहीं ?किशन ने कहा – महाराज रास्ता इतना सुन्दर था कि मैं तो आँखें बंद करके घर चला गया लेकिन कुछ मिला तो नहीं। फिर राजा ने गोपाल से पूछा तो उसने बताया कि राजा कल मुझे चांदी के सिक्कों से भरा एक घड़ा मिला, ईश्वर ने मुझपे बड़ी कृपा की।राजा किशन से बड़ा गुस्सा हुआ उसने कहा कि आज मैं तुझे धन नहीं दूंगा बल्कि एक तरबूज दूंगा, किशन बेचारा परेशान तो था लेकिन कहता भी तो क्या ? चुपचाप तरबूज लेकर चल पड़ा। उधर राजा ने गोपाल को रोजाना की तरह कुछ धन दान में दिया।किशन ने सोचा कि इस तरबूज का मैं क्या करूँगा और यही सोचकर वो अपना तरबूज एक फल वाले को बेच गया। अब जब गोपाल रास्ते से गुजारा उसने सोचा कि घर कुछ खाने को तो है नहीं क्यों ना बच्चों के लिए एक तरबूज ले लिया जाये। तो गोपाल फल बेचने वाले से वही तरबूज खरीद लाया जिसे किशन बेच गया था।अब जैसे ही घर आकर गोपाल ने उस तरबूज को काटा तो देखा उसके अंदर सोने के सिक्के भरे हुए थे। गोपाल ये देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ और ईश्वर का धन्यवाद देते हुए बोला – “हे ईश्वर आज तूने मेरी गरीबी दूर कर दी, तू बड़ा दयालु है सबका अन्नदाता है”अगले दिन जब राजा दान दे रहा था तो उसने देखा कि केवल अकेला किशन ही आया है गोपाल नहीं आया। उसने किशन से पूछा तो किशन ने बताया कि कल भगवान की कृपा से गोपाल को एक तरबूज मिला जिसके अंदर सोने के सिक्के भरे हुए थे वह गोपाल तो अब संपन्न इंसान हो चुका है।किशन की बात सुनकर राजा ने भी अपने हाथ आसमान की ओर उठाये और बोला – *“हे ईश्वर वाकई तू ही अन्नदाता है, मैं तो मात्र एक जरिया हूँ, तू ही सबका पालनहार है”* राजा को अब सारी बात समझ आ चुकी थी !🌸♦🌸♦🌸♦🌸*,

*🌸*॥हरि ॐ तत्सत्॥*🌸🙏🌸*श्रीमद्भागवत-कथा*🌸 🌸🙏*श्रीमद्भागवत-महापुराण*🙏🌸 🌸🙏*पोस्ट - 089*🌸🙏🌸*स्कन्ध - 04*🙏🙏 🌸🙏*अध्याय - 21*by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🙏🌸*इस अध्याय में महाराज पृथु का अपनी प्रजा को उपदेश.... *श्रीमैत्रेय जी कहते हैं- विदुर जी! उस समय महाराज पृथु का नगर सर्वत्र मोतियों की लड़ियों, फूलों की मालाओं, रंग-बिरंगे वस्त्रों, सोने के दरवाजों और अत्यन्त सुगन्धित धूपों से सुशोभित था। उसकी गलियाँ, चौक और सड़कें चन्दन और अरगजे के जल से सींच दी गयी थीं तथा उसे पुष्प, अक्षत, फल, यवांकुर, खील और दीपक आदि मांगलिक द्रव्यों से सजाया गया गया। वह ठौर-ठौर पर रखे हुए फल-फूल के गुच्छों से युक्त केले के खंभों और सुपारी के पौधों से बड़ा ही मनोहर जान पड़ता था तथा सब ओर आम आदि वृक्षों के नवीन पत्तों की बंदनवारों से विभूषित था। *जब महाराज ने नगर में प्रवेश किया, तब दीपक, उपहार और अनेक प्रकार की मांगलिक सामग्री लिये हुए प्रजाजनों ने तथा मनोहर कुण्डलों से सुशोभित सुन्दरी कन्याओं ने उनकी अगवानी की। शंख और दुन्दुभि आदि बाजे बजने लगे, ऋत्विजगण वेदध्वनि करने लगे, वन्दीजनों ने स्तुतिगान आरम्भ कर दिया। यह सब देख और सुनकर भी उन्हें किसी प्रकार का अहंकार नहीं हुआ। इस प्रकार वीरवर पृथु ने राजमहल में प्रवेश किया। मार्ग में जहाँ-तहाँ पुरवासी और देशवासियों ने उनका अभिनन्दन किया। परमयशस्वी महाराज ने उन्हें प्रसन्नतापूर्वक अभीष्ट वर देकर सन्तुष्ट किया। महाराज पृथु महापुरुष और सभी के पूजनीय थे। उन्होंने इसी प्रकार के अनेकों उदार कर्म करते हुए पृथ्वी का शासन किया और अन्त में अपने विपुल यश का विस्तार कर भगवान् का परमपद प्राप्त किया। *सूत जी कहते हैं- मुनिवर शौनक जी! इस प्रकार भगवान् मैत्रेय के मुख से आदिराज पृथु का अनेक प्रकार के गुणों से सम्पन्न और गुणवानों द्वारा प्रशंसित विस्तृत सुयश सुनकर परम भागवत विदुर जी ने उनका अभिनन्दन करते हुए कहा। *विदुर जी बोले- ब्रह्मन्! ब्राह्मणों ने पृथु का अभिषेक किया। समस्त देवताओं ने उन्हें उपहार दिये। उन्होंने अपनी भुजाओं में वैष्णव तेज को धारण किया और उससे पृथ्वी का दोहन किया। उनके उस पराक्रम के उच्छिष्टरूप विषय भोगों से ही आज भी सम्पूर्ण राजा तथा लोकपालों के सहित समस्त लोक इच्छानुसार जीवन-निर्वाह करते हैं। भला, ऐसा कौन समझदार होगा जो उनकी पवित्र कीर्ति सुनना न चाहेगा। अतः अभी आप मुझे उनके कुछ और भी पवित्र चरित्र सुनाइये। *श्रीमैत्रेय जी ने कहा- साधुश्रेष्ठ विदुर जी! महाराज पृथु गंगा और यमुना के मध्यवर्ती देश में निवास कर अपने पुण्यकर्मो के क्षय की इच्छा से प्रारब्धवश प्राप्त हुए भोगों को ही भोगते थे। ब्राह्मणवंश और भगवान् के सम्बन्धी विष्णुभक्तों को छोड़कर उनका सातों द्वीपों के सभी पुरुषों पर अखण्ड एवं अबाध शासन था। *एक बार उन्होंने एक महासत्र की दीक्षा ली; उस समय वहाँ देवताओं, ब्रह्मार्षियों और राजर्षियों का बहुत बड़ा समाज एकत्र हुआ। उस समाज में महाराज पृथु ने उन पूजनीय अतिथियों का यथायोग्य सत्कार किया और फिर उस सभा में, नक्षत्रमण्डल में चन्द्रमा के समान खड़े हो गये। उनका शरीर ऊँचा, भुजाएँ भरी और विशाल, रंग गोरा, नेत्र कमल के समान सुन्दर और अरुणवर्ण, नासिका सुघड़, मुख मनोहर, स्वरूप सौम्य, कंधे ऊँचे और मुस्कान से युक्त दन्तपंक्ति सुन्दर थी। उनकी छाती चौड़ी, कमर का पिछला भाग स्थूल और उदर पीपल के पत्ते के समान सुडौल तथा बल पड़े हुए होने से और भी सुन्दर जान पड़ता था। नाभि भँवर के समान गम्भीर थी, शरीर तेजस्वी था, जंघाएँ सुवर्ण के समान देदीप्यमान थीं तथा पैरों के पंजे उभरे हुए थे। *उनके बाल बारीक, घुँघराले, काले और चिकने थे; गरदन शंख के समान उतार-चढ़ाव वाली तथा रेखाओं से युक्त थी और वे उत्तम बहुमूल्य धोती पहने और वैसी ही चादर ओढ़े थे। दीक्षा के नियमानुसार उन्होंने समस्त आभूषण उतार दिये थे; इसी से उनके शरीर के अंग-प्रत्यंग की शोभा अपने स्वाभाविक रूप में स्पष्ट झलक रही थी। वे शरीर पर कृष्णमृग का चर्म और हाथों में कुशा धारण किये हुए थे। इससे उनके शरीर की कान्ति और भी बढ़ गयी थी। वे अपने सारे नित्यकृत्य यथाविधि सम्पन्न कर चुके थे। राजा पृथु ने मानो सारी सभा को हर्ष से सराबोर करते हुए अपने शीतल एवं स्नेहपूर्ण नेत्रों से चारों ओर देखा और फिर अपना भाषण प्रारम्भ किया। उनका भाषण अत्यन्त सुन्दर, विचित्र पदों से युक्त, स्पष्ट, मधुर, गम्भीर एवं निश्शंक था। मानो उस समय वे सबका उपकार करने के लिये अपने अनुभव का ही अनुवाद कर रहे हों। *राजा पृथु ने कहा- सज्जनों! आपका कल्याण हो। आप महानुभाव, जो यहाँ पधारे हैं, मेरी प्रार्थना सुनें-जिज्ञासु पुरुषों को चाहिये कि संत-समाज में अपने निश्चय का निवेदन करें। इस लोक में मुझे प्रजाजनों का शासन, उनकी रक्षा, उनकी आजीविका का प्रबन्ध तथा उन्हें अलग-अलग अपनी मर्यादा रखने के लिये राजा बनाया गया है। अतः इनका यथावत् पालन करने से मुझे उन्हीं मनोरथ पूर्ण करने वाले लोकों की प्राप्ति होनी चाहिये, जो वेदवादी मुनियों के मतानुसार सम्पूर्ण कर्मों के साक्षी श्रीहरि के प्रसन्न होने पर मिलते हैं। जो राजा प्रजा को धर्ममार्ग की शिक्षा न देकर केवल उससे कर वसूल करने में लगा रहता है, वह केवल प्रजा के पाप का ही भागी होता है और अपने ऐश्वर्य से हाथ धो बैठता है। अतः प्रिय प्रजाजन! अपने इस राजा का परलोक में हित करने के लिये आप लोग परस्पर दोषदृष्टि छोड़कर हृदय से भगवान् को याद रखते हुए अपने-अपने कर्तव्य का पालन करते रहिये; क्योंकि आपका स्वार्थ भी इसी में है और इस प्रकार मुझ पर भी आपका बड़ा अनुग्रह होगा। *विशुद्धचित्त देवता, पितर और महर्षिगण! आप भी मेरी इस प्रार्थना का अनुमोदन कीजिये; क्योंकि कोई भी कर्म हो, मरने के अनन्तर उसके कर्ता, उपदेष्टा और समर्थक को उसका समान फल मिलता है। माननीय सज्जनों! किन्हीं श्रेष्ठ महानुभावों के मत में तो कर्मों का फल देने वाले भगवान् यज्ञपति ही हैं; क्योंकि इहलोक और परलोक दोनों ही जगह कोई-कोई शरीर बड़े तेजोमय देखे जाते हैं। मनु, उत्तानपाद, महीपति ध्रुव, राजर्षि प्रियव्रत, हमारे दादा अंग तथा ब्रह्मा, शिव, प्रह्लाद, बलि और इसी कोटि के अन्यान्य महानुभावों के मत में तो धर्म-अर्थ-काम-मोक्षरूप चतुर्वर्ग तथा स्वर्ग और अपवर्ग के स्वाधीन नियामक, कर्म फलदातारूप से भगवान् गदाधर की आवश्यकता है ही। इस विषय में तो केवल मृत्यु के दौहित्र वेन आदि कुछ शोचनीय और धर्मविमूढ़ लोगों का ही मतभेद है। अतः उसका कोई विशेष महत्त्व नहीं हो सकता। *जिनके चरणकमलों की सेवा के लिये निरन्तर बढ़ने वाली अभिलाषा उन्हीं के चरणनख से निकली हुई गंगाजी के समान, संसारताप से संतप्त जीवों के समस्त जन्मों के संचित मनोमल को तत्काल नष्ट कर देती है, जिनके चरणतल का आश्रय लेने वाला पुरुष सब प्रकार के मानसिक दोषों को धो डालता तथा वैराग्य और तत्त्वसाक्षात्काररूप बल पाकर फिर इस दुःखमय संसार चक्र में नहीं पड़ता और जिनके चरणकमल सब प्रकार की कामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं-उन प्रभु को आप लोग अपनी-अपनी आजीविका के उपयोगी वर्णाश्रमोचित अध्यापनादि कर्मों तथा ध्यान-स्तुति-पुजादि मानसिक, वाचिक एवं शारीरिक क्रियाओं के द्वारा भजें। हृदय में किसी प्रकार का कपट न रखें तथा यह निश्चय रखें कि हमें अपने-अपने अधिकारानुसार इसका फल अवश्य प्राप्त होगा। *भगवान् स्वरूपतः विशुद्ध विज्ञानघन और समस्त विशेषणों से रहित हैं; किन्तु इस कर्ममार्ग में जौ-चावल आदि विविध द्रव्य, शुक्लादि गुण, अवघात (कूटना) आदि क्रिया एवं मन्त्रों के द्वारा और अर्थ, आशय (संकल्प), लिंग (पदार्थ-शक्ति) तथा ज्योतिष्टोम आदि नामों से सम्पन्न होने वाले, अनेक विशेषण युक्त यज्ञ के रूप में प्रकाशित होते हैं। जिस प्रकार एक ही अग्नि भिन्न-भिन्न काष्ठों में उन्हीं के आकारादि के अनुरूप भासती है, उसी प्रकार वे सर्वव्यापक प्रभु परमानन्दस्वरूप होते हुए भी प्रकृति, काल, वासना और अदृष्टि से उत्पन्न हुए शरीर में विषयाकार बनी हुई बुद्धि में स्थित होकर उन यज्ञ-यागादि क्रियाओं के फलरूप से अनेक प्रकार के जान पड़ते हैं। *अहो! इस पृथ्वीतल पर मेरे जो प्रजाजन यज्ञ-भोक्ताओं के अधीश्वर सर्वगुरु श्रीहरि का एकनिष्ठ भाव से अपने-अपने धर्मों के द्वारा निरन्तर पूजन करते हैं, वे मुझ पर बड़ी कृपा करते हैं। सहनशीलता, तपस्या और ज्ञान इन विशिष्ट विभूतियों के कारण वैष्णव और ब्राह्मणों के वंश स्वभावतः ही उज्ज्वल होते हैं। उन पर राजकुल का तेज, धन, ऐश्वर्य आदि समृद्धियों के कारण अपना प्रभाव न डाले। ब्रह्मादि समस्त महापुरुषों में अग्रगण्य, ब्राह्मण भक्त, पुराणपुरुष श्रीहरि ने भी निरन्तर इन्हीं के चरणों की वन्दना करके अविचल लक्ष्मी और संसार को पवित्र करने वाली कीर्ति प्राप्त की है। आप लोग भगवान् के लोक संग्रहरूप धर्म का पालन करने वाले हैं तथा सर्वान्तर्यामी स्वयंप्रकाश ब्राह्मण प्रिय श्रीहरि विप्रवंश की सेवा करने से ही परम सन्तुष्ट होते हैं, अतः आप सभी को सब प्रकार से विनयपूर्वक ब्राह्मण कुल की सेवा करनी चाहिये। इनकी नित्य सेवा करने से शीघ्र ही चित्त शुद्ध हो जाने के कारण मनुष्य स्वयं ही (ज्ञान और अभ्यास आदि के बिना ही) परम शान्तिरूप मोक्ष प्राप्त कर लेता है। अतः लोक में इन ब्राह्मणों से बढ़कर दूसरा कौन है जो हविष्यभोजी देवताओं का मुख हो सके? *उपनिषदों के ज्ञानपरक वचन एकमात्र जिनमें ही गतार्थ होते हैं, वे भगवान् अनन्त इन्द्रादि यज्ञीय देवताओं के नाम से तत्त्वज्ञानियों द्वारा ब्राह्मणों के मुख में श्रद्धापूर्वक हवन किये हुए पदार्थ को जैसे चाव से ग्रहण करते हैं, वैसे ही चेतनाशून्य अग्नि में होमे हुए द्रव्य को नहीं ग्रहण करते। सभ्यगण! जिस प्रकार स्वच्छ दर्पण में प्रतिबिम्ब का भान होता है-उसी प्रकार जिससे इस सम्पूर्ण प्रपंच का ठीक-ठीक ज्ञान होता है, उस नित्य, शुद्ध और सनातन ब्रह्म (वेद) को जो परमार्थ-तत्त्व की उपलब्धि के लिये श्रद्धा, तप, मंगलमय आचरण, स्वाध्यायविरोधी वार्तालाप के त्याग तथा संयम और समाधि के अभ्यास द्वारा धारण करते हैं, उन ब्राह्मणों के चरणकमलों की धूलि को मैं आयु पर्यन्त अपने मुकुट पर धारण करूँ; क्योंकि उसे सर्वदा सिर पर चढ़ाते रहने से मनुष्य के सारे पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं और सम्पूर्ण गुण उसकी सेवा करने लगते हैं। *उस गुणवान्, शीलसम्पन्न, कृतज्ञ और गुरुजनों की सेवा करने वाले पुरुष के पास सारी सम्पदाएँ अपने-आप आ जाती हैं। अतः मेरी तो यही अभिलाषा है कि ब्राह्मण कुल, गोवंश और भक्तों के सहित श्रीभगवान् मुझ पर प्रसन्न रहें। *श्रीमैत्रेय जी कहते हैं- महाराज पृथु का यह भाषण सुनकर देवता, पितर और ब्राह्मण आदि सभी साधुजन बड़े प्रसन्न हुए और ‘साधु! साधु!’ यों कहकर उनकी प्रशंसा करने लगे। उन्होंने कहा, ‘पुत्र के द्वारा पिता पुण्यलोकों को प्राप्त कर लेता है’ यह श्रुति यथार्थ है; पापी वेन ब्राह्मणों के शाप से मारा गया था; फिर भी इनके पुण्यबल से उसका नरक से निस्तार हो गया। *इसी प्रकार हिरण्यकशिपु भी भगवान् की निन्दा करने के कारण नरकों में गिरने वाला ही था कि अपने पुत्र प्रह्लाद के प्रभाव से उन्हें पार कर गया। *वीरवर पृथु जी! आप तो पृथ्वी के पिता ही हैं और सब लोकों के एकमात्र स्वामी श्रीहरि में भी आपकी ऐसी अविचल भक्ति है, इसलिये आप अनन्त वर्षों तक जीवित रहें। आपका सुयश बड़ा पवित्र है; आप उदारकीर्ति ब्राह्मण्यदेव श्रीहरि की कथाओं का प्रचार करते हैं। हमारा बड़ा सौभाग्य है; आज आपको अपने स्वामी के रूप में पाकर हम अपने को भगवान् के ही राज्य में समझते हैं। *स्वामिन्! अपने आश्रितों को इस प्रकार का श्रेष्ठ उपदेश देना आपके लिये कोई आश्चर्य की बात नहीं है; क्योंकि अपनी प्रजा के ऊपर प्रेम रखना तो करुणामय महापुरुषों का स्वभाव ही होता है। हम लोग प्रारब्धवश विवेकहीन होकर संसारारण्य में भटक रहे थे; सो प्रभो! आज आपने हमें इस अज्ञानान्धकार के पार पहुँचा दिया। आप शुद्ध सत्त्वमय परम पुरुष हैं, जो ब्राह्मण जाति में प्रविष्ट होकर क्षत्रियों की और क्षत्रिय जाति में प्रविष्ट होकर ब्राह्मणों की तथा दोनों जातियों में प्रतिष्ठित होकर सारे जगत् की रक्षा करते हैं। हमारा आपको नमस्कार है। ~~~०~~~ *श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। *हे नाथ नारायण वासुदेवाय॥ "जय जय श्री हरि" 🌸🌸🙏🌸🌸*********************************************,

भस्मासुर के साथ छल〰️〰️〰️〰️by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब〰️〰️〰️भस्मासुर का नाम सुनकर सभी को उसकी कथा याद हो आई होगी। भस्मासुर के कारण भगवान ‍शंकर की जान संकट में आ गई थी। हालांकि भस्मासुर का नाम कुछ और था लेकिन भस्म करने का वरदान प्राप्त करने के कारण उसका नाम भस्मासुर पड़ गया।भस्मासुर एक महापापी असुर था। उसने अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए भगवान शंकर की घोर तपस्या की और उनसे अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन भगवान शंकर ने कहा कि तुम कुछ और मांग लो तब भस्मासुर ने वरदान मांगा कि मैं जिसके भी सिर पर हाथ रखूं वह भस्म हो जाए। भगवान शंकर ने कहा- तथास्तु।भस्मासुर ने इस वरदान के मिलते ही कहा, भगवन् क्यों न इस वरदान की शक्ति को परख लिया जाए। तब वह स्वयं शिवजी के सिर पर हाथ रखने के लिए दौड़ा। शिवजी भी वहां से भागे और विष्णुजी की शरण में छुप गए। तब विष्णुजी ने एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण कर भस्मासुर को आकर्षित किया। भस्मासुर शिव को भूलकर उस सुंदर स्त्री के मोहपाश में बंध गया। मोहिनी स्त्रीरूपी विष्णु ने भस्मासुर को खुद के साथ नृत्य करने के लिए प्रेरित किया। भस्मासुर तुरंत ही मान गया।नृत्य करते समय भस्मासुर मोहिनी की ही तरह नृत्य करने लगा और उचित मौका देखकर विष्णुजी ने अपने सिर पर हाथ रखा। शक्ति और काम के नशे में चूर भस्मासुर ने जिसकी नकल की और भस्मासुर अपने ही प्राप्त वरदान से भस्म हो गया।भस्मासुर से बचने के लिए भगवान शंकर वहां से भाग गए। उनके पीछे भस्मासुर भी भागने लगा। भागते-भागते शिवजी एक पहाड़ी के पास रुके और फिर उन्होंने इस पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। बाद में विष्णुजी ने आकर उनकी जान बचाई। माना जाता है कि वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकुटा की पहाड़ियों पर है। इन खूबसूरत पहाड़ियों को देखने से ही मन शांत हो जाता है। इस गुफा में हर दिन सैकड़ों की तादाद में शिवभक्त शिव की आराधना करते हैं।वृंदा के साथ छल〰️〰️〰️〰️〰️ श्रीमद्मदेवी भागवत पुराण अनुसार जलंधर असुर शिव का अंश था, लेकिन उसे इसका पता नहीं था। जलंधर बहुत ही शक्तिशाली असुर था। इंद्र को पराजित कर जलंधर तीनों लोकों का स्वामी बन बैठा था। यमराज भी उससे डरते थे।श्रीमद्मदेवी भागवत पुराण अनुसार एक बार भगवान शिव ने अपना तेज समुद्र में फेंक दिया तथा इससे जलंधर उत्पन्न हुआ। माना जाता है कि जलंधर में अपार शक्ति थी और उसकी शक्ति का कारण थी उसकी पत्नी वृंदा। वृंदा के पतिव्रत धर्म के कारण सभी देवी-देवता मिलकर भी जलंधर को पराजित नहीं कर पा रहे थे। जलंधर को इससे अपने शक्तिशाली होने का अभिमान हो गया और वह वृंदा के पतिव्रत धर्म की अवहेलना करके देवताओं के विरुद्ध कार्य कर उनकी स्त्रियों को सताने लगा।जलंधर को मालूम था कि ब्रहांड में सबसे शक्तिशाली कोई है तो वे हैं देवों के देव महादेव। जलंधर ने खुद को सर्वशक्तिमान रूप में स्थापित करने के लिए क्रमश: पहले इंद्र को परास्त किया और त्रिलोकाधिपति बन गया। इसके बाद उसने विष्णु लोक पर आक्रमण किया।जलंधर ने विष्णु को परास्त कर देवी लक्ष्मी को विष्णु से छीन लेने की योजना बनाई। इसके चलते उसने बैकुण्ठ पर आक्रमण कर दिया, लेकिन देवी लक्ष्मी ने जलंधर से कहा कि हम दोनों ही जल से उत्पन्न हुए हैं इसलिए हम भाई-बहन हैं। देवी लक्ष्मी की बातों से जलंधर प्रभावित हुआ और लक्ष्मी को बहन मानकर बैकुण्ठ से चला गया।इसके बाद उसने कैलाश पर आक्रमण करने की योजना बनाई और अपने सभी असुरों को इकट्ठा किया और कैलाश जाकर देवी पार्वती को पत्नी बनाने के लिए प्रयास करने लगा। इससे देवी पार्वती क्रोधित हो गईं और तब महादेव को जलंधर से युद्घ करना पड़ा, लेकिन वृंदा के सतीत्व के कारण भगवान शिव का हर प्रहार जलंधर निष्फल कर देता था।अंत में देवताओं ने मिलकर योजना बनाई और भगवान विष्णु जलंधर का वेष धारण करके वृंदा के पास पहुंच गए। वृंदा भगवान विष्णु को अपना पति जलंधर समझकर उनके साथ पत्नी के समान व्यवहार करने लगी। इससे वृंदा का पतिव्रत धर्म टूट गया और शिव ने जलंधर का वध कर दिया।विष्णु द्वारा सतीत्व भंग किए जाने पर वृंदा ने आत्मदाह कर लिया, तब उसकी राख के ऊपर तुलसी का एक पौधा जन्मा। तुलसी देवी वृंदा का ही स्वरूप है जिसे भगवान विष्णु लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय मानते हैं।भारत के पंजाब प्रांत में वर्तमान जालंधर नगर जलंधर के नाम पर ही है। जालंधर में आज भी असुरराज जलंधर की पत्नी देवी वृंदा का मंदिर मोहल्ला कोट किशनचंद में स्थित है। मान्यता है कि यहां एक प्राचीन गुफा थी, जो सीधी हरिद्वार तक जाती थी। माना जाता है कि प्राचीनकाल में इस नगर के आसपास 12 तालाब हुआ करते थे। नगर में जाने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता थामोहिनी बनकर किया असुरों के साथ छल 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ जब इन्द्र दैत्यों के राजा बलि से युद्ध में हार गए, तब हताश और निराश हुए देवता ब्रह्माजी को साथ लेकर श्रीहरि विष्णु के आश्रय में गए और उनसे अपना स्वर्गलोक वापस पाने के लिए प्रार्थना करने लगे।श्रीहरि ने कहा कि आप सभी देवतागण दैत्यों से सुलह कर लें और उनका सहयोग पाकर मदरांचल को मथानी तथा वासुकि नाग को रस्सी बनाकर क्षीरसागर का मंथन करें। समुद्र मंथन से जो अमृत प्राप्त होगा उसे पिलाकर मैं आप सभी देवताओं को अजर-अमर कर दूंगा तत्पश्चात ही देवता, दैत्यों का विनाश करके पुनः स्वर्ग का आधिपत्य पा सकेंगे।देवताओं के राजा इन्द्र दैत्यों के राजा बलि के पास गए और उनके समक्ष समुद्र मंथन का प्रस्ताव रखा और अमृत की बात बताई। अमृत के लालच में आकर दैत्य ने देवताओं का साथ देने का वचन दिया। देवताओं और दैत्यों ने अपनी पूरी शक्ति लगाकर मदरांचल पर्वत को उठाकर समुद्र तट पर लेकर जाने की चेष्टा की लेकिन नहीं उठा पाए तब श्रीहरि ने उसे उठाकर समुद्र में रख दिया।मदरांचल को मथानी एवं वासुकि नाग की रस्सी बनाकर समुद्र मंथन का शुभ कार्य आरंभ हुआ। श्रीविष्णु की नजर मथानी पर पड़ी, जो कि अंदर की ओर धंसती चली जा रही थी। यह देखकर उन्होंने स्वयं कच्छप बनाकर अपनी पीठ पर मदरांचल पर्वत को रख लिया।तत्पश्चात समुद्र मंथन से लक्ष्मी, कौस्तुभ, पारिजात, सुरा, धन्वंतरि, चंद्रमा, पुष्पक, ऐरावत, पाञ्चजन्य, शंख, रम्भा, कामधेनु, उच्चैःश्रवा और अंत में अमृत कुंभ निकले जिसे लेकर धन्वन्तरिजी आए। उनके हाथों से अमृत कलश छीनकर दैत्य भागने लगे ताकि देवताओं से पूर्व अमृतपान करके वे अमर हो जाएं। दैत्यों के बीच कलश के लिए झगड़ा शुरू हो गया और देवता हताश खड़े थे।श्रीविष्णु अति सुंदर नारी का रूप धारण करके देवता और दैत्यों के बीच पहुंच गए और उन्होंने अमृत को समान रूप से बांटने का प्रस्ताव रखा। दैत्यों ने मोहित होकर अमृत का कलश श्रीविष्णु को सौंप दिया। मोहिनी रूपधारी विष्णु ने कहा कि मैं जैसे भी विभाजन का कार्य करूं, चाहे वह उचित हो या अनुचित, तुम लोग बीच में बाधा उत्पन्न न करने का वचन दो तभी मैं इस काम को करूंगी।सभी ने मोहिनीरूपी भगवान की बात मान ली। देवता और दैत्य अलग-अलग पंक्तियों में बैठ गए। मोहिनी रूप धारण करके विष्णु ने छल से सारा अमृत देवताओं को पिला दिया, लेकिन इससे दैत्यों में भारी आक्रोश फैल गया।असुरराज बलि के साथ छल〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️असुरों के राजा बलि की चर्चा पुराणों में बहुत होती है। वह अपार शक्तियों का स्वामी लेकिन धर्मात्मा था। दान-पुण्य करने में वह कभी पीछे नहीं रहता था। उसकी सबसे बड़ी खामी यह थी कि उसे अपनी शक्तियों पर घमंड था और वह खुद को ईश्वर के समकक्ष मानता था और वह देवताओं का घोर विरोधी था। कश्यप ऋषि की पत्नी दिति के दो प्रमुख पुत्र हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष थे। हिरण्यकश्यप के 4 पुत्र थे- अनुहल्लाद, हल्लाद, भक्त प्रह्लाद और संहल्लाद। प्रह्लाद के कुल में विरोचन के पुत्र राजा बलि का जन्म हुआ।राजा बलि का राज्य संपूर्ण दक्षिण भारत में था। उन्होंने महाबलीपुरम को अपनी राजधानी बनाया था। आज भी केरल में ओणम का पर्व राजा बलि की याद में ही मनाया जाता है। राजा बलि ने विश्वविजय की सोचकर अश्वमेध यज्ञ किया और इस यज्ञ के चलते उसकी प्रसिद्धि चारों ओर फैलने लगी। अग्निहोत्र सहित उसने 98 यज्ञ संपन्न कराए थे और इस तरह उसके राज्य और शक्ति का विस्तार होता ही जा रहा था, तब उसने इंद्र के राज्य पर चढ़ाई करने की सोची। इस तरह राजा बलि ने 99वें यज्ञ की घोषणा की और सभी राज्यों और नगरवासियों को निमंत्रण भेजा। देवताओं की ओर गंधर्व और यक्ष होते थे, तो दैत्यों की ओर दानव और राक्षस। अंतिम बार हिरण्यकशिपु के पुत्र प्रहलाद और उनके पुत्र राजा बलि के साथ इन्द्र का युद्ध हुआ और देवता हार गए, तब संपूर्ण जम्बूद्वीप पर असुरों का राज हो गया।वामन ॠषि कश्यप तथा उनकी पत्नी अदिति के पुत्र थे। वे आदित्यों में 12वें थे। ऐसी मान्यता है कि वे इन्द्र के छोटे भाई थे और राजा बलि के सौतेले भाई। विष्णु ने इसी रूप में जन्म लिया था। देवता बलि को नष्ट करने में असमर्थ थे। बलि ने देवताओं को यज्ञ करने जितनी भूमि ही दे रखी थी। तब सभी देवता विष्णु की शरण में गए। विष्णु ने कहा कि वह भी (बलि भी) उनका भक्त है, फिर भी वे कोई युक्ति सोचेंगे।तब विष्णु ने अदिति के यहां जन्म लिया और एक दिन जब बलि यज्ञ की योजना बना रहा था तब वे ब्राह्मण-वेश में वहां दान लेने पहुंच गए। उन्हें देखते ही शुक्राचार्य उन्हें पहचान गए। शुक्र ने उन्हें देखते ही बलि से कहा कि वे विष्णु हैं। मुझसे पूछे बिना कोई भी वस्तु उन्हें दान मत करना। लेकिन बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं सुनी और वामन के दान मांगने पर उनको तीन पग भूमि दान में दे दी।जब जल छोड़कर सब दान कर दिया गया, तब ब्राह्मण वेश में वामन भगवान ने अपना विराट रूप दिखा दिया। भगवान ने एक पग में भूमंडल नाप लिया। दूसरे में स्वर्ग और तीसरे के लिए बलि से पूछा कि तीसरा पग कहां रखूं? पूछने पर बलि ने मुस्कराकर कहा- इसमें तो कमी आपके ही संसार बनाने की हुई, मैं क्या करूं भगवान? अब तो मेरा सिर ही बचा है। इस प्रकार विष्णु ने उसके सिर पर तीसरा पैर रख दिया। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर विष्णु ने उसे पाताल में रसातल का कलियुग के अंत तक राजा बने रहने का वरदान दे दिया। तब बलि ने विष्णु से एक और वरदान मांगा। राजा बलि ने कहा कि भगवान यदि आप मुझे पाताल लोक का राजा बना ही रहे हैं तो मुझे वरदान ‍दीजिए कि मेरा साम्राज्य शत्रुओं के प्रपंचों से बचा रहे और आप मेरे साथ रहें। अपने भक्त के अनुरोध पर भगवान विष्णु ने राजा बलि के निवास में रहने का संकल्प लिया।पातालपुरी में राजा बलि के राज्य में आठों प्रहर भगवान विष्णु सशरीर उपस्थित रह उनकी रक्षा करने लगे और इस तरह बलि निश्चिंत होकर सोता था और संपूर्ण पातालपुरी में शुक्राचार्य के साथ रहकर एक नए धर्म राज्य की व्यवस्था संचालित करता है।माता पार्वती के साथ छल〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ माना जाता है कि बद्रीनाथ धाम कभी भगवान शिव और पार्वती का विश्राम स्थान हुआ करता था। यहां भगवान शिव अपने परिवार के साथ रहते थे लेकिन श्रीहरि विष्णु को यह स्थान इतना अच्छा लगा कि उन्होंने इसे प्राप्त करने के लिए योजना बनाई।पुराण कथा के अनुसार सतयुग में जब भगवान नारायण बद्रीनाथ आए तब यहां बदरीयों यानी बेर का वन था और यहां भगवान शंकर अपनी अर्द्धांगिनी पार्वतीजी के साथ आनंद से रहते थे। एक दिन श्रीहरि विष्णु बालक का रूप धारण कर जोर-जोर से रोने लगे। उनके रुदन को सुनकर माता पार्वती को बड़ी पीड़ा हुई। वे सोचने लगीं कि इस बीहड़ वन में यह कौन बालक रो रहा है? यह आया कहां से? और इसकी माता कहां है? यही सब सोचकर माता को बालक पर दया आ गई। तब वे उस बालक को लेकर अपने घर पहुंचीं। शिवजी तुरंत ही ‍समझ गए कि यह कोई विष्णु की लीला है। उन्होंने पार्वती से इस बालक को घर के बाहर छोड़ देने का आग्रह किया और कहा कि वह अपने आप ही कुछ देर रोकर चला जाएगा। लेकिन पार्वती मां ने उनकी बात नहीं मानी और बालक को घर में ले जाकर चुप कराकर सुलाने लगी। कुछ ही देर में बालक सो गया तब माता पार्वती बाहर आ गईं और शिवजी के साथ कुछ दूर भ्रमण पर चली गईं। भगवान विष्णु को इसी पल का इंतजार था। इन्होंने उठकर घर का दरवाजा बंद कर दिया।भगवान शिव और पार्वती जब घर लौटे तो द्वार अंदर से बंद था। इन्होंने जब बालक से द्वार खोलने के लिए कहा तब अंदर से भगवान विष्णु ने कहा कि अब आप भूल जाइए भगवन्। यह स्थान मुझे बहुत पसंद आ गया है। मुझे यहीं विश्राम करने दी‍जिए। अब आप यहां से केदारनाथ जाएं। तब से लेकर आज तक बद्रीनाथ यहां पर अपने भक्तों को दर्शन दे रहे हैं और भगवान शिव केदानाथ में।〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️*,,

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राधे🙏 राधे💐 राधे🙏🌸 by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब राधे राधे🌸🌸 राधे🌸 राधेगम ना कर ज़िंदगी बहुत बड़ी है,🍁चाहत की महफ़िल तेरे लिए सजी है,👈बस एक बार राधे राधे तो वोल कर तो देख,🍂तक़दीर खुद तुझसे मिलने बाहर खड़ी है…🍁🍀🍂राधे राधे🌸 राधे🙏💐💐 राधे🙏💐 राधे राधे राधे🌸,

नाम - कुँवर प्रताप जी (श्री महाराणा प्रताप सिंह जी)by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब जन्म - 9 मई, 1540 ई.जन्म भूमि - कुम्भलगढ़, राजस्थानपुण्य तिथि - 29 जनवरी, 1597 ई.पिता - श्री महाराणा उदयसिंह जीमाता - राणी जीवत कँवर जीराज्य - मेवाड़शासन काल - 1568–1597ई.शासन अवधि - 29 वर्षवंश - सुर्यवंशराजवंश - सिसोदियाराजघराना - राजपूतानाधार्मिक मान्यता - हिंदू धर्मयुद्ध - हल्दीघाटी का युद्धराजधानी - उदयपुरपूर्वाधिकारी - महाराणा उदयसिंहउत्तराधिकारी - राणा अमर सिंहअन्य जानकारी -महाराणा प्रताप सिंह जी के पास एक सबसे प्रिय घोड़ा था,जिसका नाम 'चेतक'🐎 था।राजपूत शिरोमणि महाराणा प्रतापसिंह उदयपुर,मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे।वह तिथि धन्य है, जब मेवाड़ की शौर्य-भूमि पर मेवाड़-मुकुटमणिराणा प्रताप का जन्म हुआ।महाराणा का नामइतिहास में वीरता और दृढ़ प्रण के लिये अमर है।महाराणा प्रताप की जयंती विक्रमी सम्वत् कॅलण्डरके अनुसार प्रतिवर्ष ज्येष्ठ, शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जातीहै।महाराणा प्रताप के बारे में कुछ रोचक जानकारी:-1... महाराणा प्रताप एक ही झटके में घोड़े समेत🏇 दुश्मन सैनिक को काट डालते थे।2.... जब इब्राहिम लिंकन💂🏻 भारत दौरे पर आ रहे थे तब उन्होनेअपनी माँ से पूछा कि हिंदुस्तान से आपके लिए क्या लेकरआए| तब माँ का जवाब मिला- ”उस महान देश की वीर भूमिहल्दी घाटी से एक मुट्ठी धूल🌪 लेकर आना जहाँ का राजा अपनी प्रजा के प्रति इतना वफ़ादार था कि उसने आधे हिंदुस्तान👑 के बदले अपनी मातृभूमि को चुना ” लेकिन बदकिस्मती से उनका वो दौरा रद्द हो गया था | “बुक ऑफ़प्रेसिडेंट यु एस ए ‘किताब 📘में आप यह बात पढ़ सकते हैं |3.... महाराणा प्रताप के भाले🏑 का वजन 80 किलोग्राम था और कवच का वजन भी 80 किलोग्राम ही था|कवच, 👤भाला,🏑 ढाल,🏵 और हाथ में तलवार🗡 का वजन मिलाएं तो कुल वजन 207 किलो था।4.... आज भी महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामानउदयपुर राज घराने के संग्रहालय में सुरक्षित हैं |5.... अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते है तो आधा हिंदुस्तान के वारिस वो होंगे पर बादशाहत अकबर की ही रहेगी|लेकिन महाराणा प्रताप ने किसी की भी अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया |6.... हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 सैनिक थे औरअकबर की ओर से 85,000 सैनिक युद्ध में सम्मिलित हुए |7.... महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक 🐎का मंदिर भी बना हुआ है जो आज भी हल्दी घाटी में सुरक्षित है |8.... महाराणा प्रताप ने जब महलों का त्याग किया तब उनके साथ लुहार जाति के हजारो लोगों ने भी घर छोड़ा और दिन रात राणा कि फौज के लिए तलवारें बनाईं| 🗡🗡🗡🗡इसीसमाज को आज गुजरात मध्यप्रदेश और राजस्थान में गाढ़िया लोहार⛩ कहा जाता है|मैं नमन करता हूँ ऐसे लोगो को |9.... हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी वहाँ जमीनों में तलवारें पाई गई।आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 में हल्दी घाटी में मिला था |10..... महाराणा प्रताप को शस्त्रास्त्र की शिक्षा "श्री जैमल मेड़तिया जी" ने दी थी जो 8000 राजपूत वीरों को लेकर 60,000 मुगलो से लड़े थे। उस युद्ध में 48000 मारे गए थेजिनमे 8000 राजपूत और 40000 मुग़ल थे |11.... महाराणा के देहांत पर अकबर भी रो पड़ा था |12.... मेवाड़ के आदिवासी भील समाज ने हल्दी घाटी मेंअकबर की फौज को अपने तीरो से रौंद डाला था वो महाराणा प्रताप को अपना बेटा मानते थे और राणा बिना भेदभाव के उन के साथ रहते थे|आज भी मेवाड़ के राजचिन्ह पर एक तरफ राजपूत हैं तो दूसरी तरफ भील |13..... महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक🐎 महाराणा को 26 फीट का दरिया पार करने के बाद वीर गति को प्राप्त हुआ | उसकी एक टांग टूटने के बाद भी वह दरिया पार कर गया। जहाँ वो घायल हुआ वहां आज खोड़ी इमली नाम का पेड़ है जहाँ पर चेतक की मृत्यु हुई वहाँ चेतक मंदिर है |14..... राणा का घोड़ा चेतक भी बहुत ताकतवर था उसकेमुँह के आगे दुश्मन के हाथियों को भ्रमित करने के लिए हाथीकी सूंड लगाई जाती थी । यह हेतक और चेतक नाम के दो घोड़े थे|15..... मरने से पहले महाराणा प्रताप ने अपना खोयाहुआ 85 % मेवाड फिर से जीत लिया था । सोने चांदी औरमहलो को छोड़कर वो 20 साल मेवाड़ के जंगलो में घूमे |16.... महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो और लम्बाई 7’5” थी, दो म्यान वाली तलवार और 80 किलो का भाला रखते थे हाथ में।महाराणा प्रताप के हाथी🐘की कहानी:मित्रो आप सब ने महाराणाप्रताप के घोड़े चेतक के बारेमें तो सुना ही होगा,लेकिन उनका एक हाथीभी था। जिसका नाम था रामप्रसाद। उसके बारे में आपको कुछ बाते बताता हुँ।रामप्रसाद हाथी का उल्लेखअल- बदायुनी, जो मुगलोंकी ओर से हल्दीघाटी केयुद्ध में लड़ा था ने अपने एक ग्रन्थ में किया है।वो लिखता है की जब महाराणाप्रताप पर अकबर ने चढाई कीथी तब उसने दो चीजो कोही बंदी बनाने की मांग कीथी एक तो खुद महाराणाऔर दूसरा उनका हाथीरामप्रसाद।आगे अल बदायुनी लिखता हैकी वो हाथी इतना समझदारव ताकतवर था की उसनेहल्दीघाटी के युद्ध में अकेले हीअकबर के 13 हाथियों को मारगिराया थावो आगे लिखता है किउस हाथी को पकड़ने के लिएहमने 7 बड़े हाथियों का एकचक्रव्यूह बनाया और उन पर14 महावतो को बिठाया तबकहीं जाकर उसे बंदी बना पाये।अब सुनिए एक भारतीयजानवर की स्वामी भक्ति।उस हाथी को अकबर के समक्षपेश किया गया जहा अकबर नेउसका नाम पीरप्रसाद रखा।रामप्रसाद को मुगलों ने गन्नेऔर पानी दिया।पर उस स्वामिभक्त हाथी ने18 दिन तक मुगलों का नतो दाना खाया और न हीपानी पिया और वो शहीदहो गया।तब अकबर ने कहा था कि🔹जिसके हाथी को मैं अपने सामनेनहीं झुका पाया उस महाराणाप्रताप को क्या झुका पाउँगा।🔹ऐसे ऐसे देशभक्त चेतक व रामप्रसाद जैसे तो यहाँजानवर थे।इसलिए मित्रो हमेशा अपनेभारतीय होने पे गर्व करो। इसेपढ़कर सीना अवश्य चौड़ा हुआ होगा।🙏🏻।,,

ॐ के जपने के फायदे..by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब💐💐💐आयुर्वेद से ईलाजरोज सुबह सूर्योदय के समय उठ जाये इसके बाद एक शांत जगह पर जाकर बैठ जाएं, सुखासन या किसी और आसान में बैठकर ॐ का 108 बार उच्चारण करें.ॐ को बोलते समय पूरा ध्यान बोलने पर ही रखें इससे मस्तिष्क में मौन उतर जायेगा पूरा शरीर तनाव रहित और शांत होने लगेगा. इसके अलावा अग़र आपको ज़्यादातर घबराहट होती हैं, तो आपक़ो ॐ का रोज़ाना उच्चारण करना चाहिए. आप आंखें बंद करके 5 बार गहरी सांसे लेते हुए ॐ का उच्चारण करें. ॐ का उच्चारण करने से गले में कंपन पैदा होती है जो कि थायरायड ग्रन्थि पर सकारात्मक प्रभाव डालती है.ॐ के उच्चारण से हार्ट की समस्याएं और पाचन तंत्र दोनों ही ठीक रहता है. नींद ना आने की समस्या यानि insomnia इससे कुछ समय में ही दूर हो जाती है. इसलिए बेड पर जाते ही ॐ का उच्चारण करना चाहिए.बीपी और डायबिटीज के मरीज के लिए भी ॐ का उच्चारण बहुत ही लाभदायक होता है.जिन बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लगता उनके लिए भी यह बेहद फायदेमंद हैं, क्योंकि यह स्मरन-शक्ति बढ़ाता है, और मन को एक जगह फोकस करने में मदद करता है.वैज्ञानिकों ने ओम के उच्चारण पर रिसर्च किया और निरीक्षण किया कि रोज़ाना ॐ के उच्चारण से मष्तिष्क के साथ साथ पूरे शरीर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इससे शरीर की मृत हुई कोशिकाएं दोबारा जन्म लेतीं हैं. इससे महिलाओं की इफर्टिलिटी भी दूर होती हैं.ॐ का उच्चारण रोज़ 40 मिनट किया जाए तो कुछ ही दिनों में आपको बदलाव महसूस होगा. उच्चारण सूर्योदय के समय और संध्या काल में बहुत लाभदायक होता है,

मूली खाने के फायदे.by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब..मूली में diurectic गुण पाया जाता है जो किडनी के स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा होता है और शरीर से विषैले तत्वों को निकालने में भी कारगर होता है इस वजह से इसे नेचुरल क्लींजर कहा जाता हैसाथ मे सभी तरह स्टोन को आसानी से निकालती हैमूली कच्ची खाने पाचन तंत्र भी सही रहता हैमूली सर्दी खाँसी जुकाम से भी बचाती हैयह सरीर की इम्युनिटी भी बढ़ाती है।आयुर्वेद में इसे त्रिदोष नाशक मानी गई।#आयुर्वेद से ईलाज,

आयुर्वेद से ईलाजलौकी के जूस को पीने का फायदा-by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 1. मोटापा घटाए: वे लोग जो वजन घटाना चाहते हैं उनके लिये लौकी का जूस काफी फायदेमंद होता है। इस जूस को नियमित पीने से भूख कंट्रोल रहती है। इस जूस में ढेर सारे विटामिन, पोटैशियम और आयरन भारी मात्रा में पाया जाता है। आप इसे रोज सुबह खाली पेट पिएंगे तो फायदा होगा। 2. पाचन क्रिया सुधारे और कब्‍ज दूर करे:लौकी में ढेर सारा घुलनशील फाइबर पाया जाता है जो कि उसमें मौजूद ढेर सारे पानी के साथ मिल कर पाचन क्रिया को आसान बनाता है। इस जूस को नियमित पीने से कब्‍ज ठीक होता है तथा एसिडिटी में आराम मिलता है। 3. बॉडी हीट कम करता है:अगर आपकी बॉडी में हीट है, जिसके चलते सिर में दर्द या फिर अपच होता है तो लौकी का जूस जरूर पीना चाहिये। लौकी के जूस में अदरक मिला कर पिएं तो ज्‍यादा फायदा होगा। 4. हाई ब्लड प्रेशर कम करे:हाई ब्लड प्रेशर एक आम समस्या बन चुकी है। लौकी के जूस में पोटैशियम अधिक पाया जाता है जो कि ब्लड प्रेशर को कम करने के लिये जाना जाता है।5. दिल को बनाता है हेल्‍दी:लौकी का जूस नियमित पीने से ब्‍लड प्रेशर रेगुलेट होता है जिससे हृदय से जुड़ी समस्‍याएं ठीक होती हैं.6. लीवर में सूजन नहीं होती:जो लोग ज्‍यादा तला-भुना या अनहेल्‍दी खाना खाते हैं या फिर शराब पीते हैं उनके लीवर में जल्‍दी सूजन आ जाती है। ऐसे में अगर आप लौकी और अदरक का जूस पीते हैं तो इससे आराम मिलता है।,

एक *साधू* किसी नदी के पनघट पर गया और पानी पीकर पत्थर पर सिर रखकर सो गया....!!!पनघट पर पनिहारिन आती-जाती रहती हैं!!!तो आईं तो एक ने कहा- *"आहा! साधु हो गया, फिर भी तकिए का मोह नहीं गया*...*पत्थर का ही सही, लेकिन रखा तो है।"*पनिहारिन की बात साधु ने सुन ली...*उसने तुरंत पत्थर फेंक दिया*...दूसरी बोली--*"साधु हुआ, लेकिन खीज नहीं गई..* *अभी रोष नहीं गया,तकिया फेंक दिया।"* तब साधु सोचने लगा, अब वह क्या करें ?तब तीसरी बोली--*"बाबा! यह तो पनघट है,यहां तो हमारी जैसी पनिहारिनें आती ही रहेंगी, बोलती ही रहेंगी, उनके कहने पर तुम बार-बार परिवर्तन करोगे तो साधना कब करोगे?"*लेकिन चौथी ने बहुत ही सुन्दर और एक बड़ी अद्भुत बात कह दी-*"क्षमा करना,लेकिन हमको लगता है,तूमने सब कुछ छोड़ा लेकिन अपना चित्त नहीं छोड़ा है,अभी तक वहीं का वहीं बने हुए है।**दुनिया पाखण्डी कहे तो कहे, तुम जैसे भी हो,हरिनाम लेते रहो।"* *सच तो यही है, दुनिया का तो काम ही है कहना...*आप ऊपर देखकर चलोगे तो कहेंगे... *"अभिमानी हो गए।"*नीचे देखोगे तो कहेंगे... *"बस किसी के सामने देखते ही नहीं।"*आंखे बंद करोगे तो कहेंगे कि... *"ध्यान का नाटक कर रहा है।"*चारो ओर देखोगे तो कहेंगे कि... *"निगाह का ठिकाना नहीं। निगाह घूमती ही रहती है।"*और परेशान होकर आंख फोड़ लोगे तो यही दुनिया कहेगी कि...*"किया हुआ भोगना ही पड़ता है।"**ईश्वर*👆🏻को राजी करना आसान है,लेकिन 🌍*संसार* को राजी करना असंभव है....*दुनिया* क्या कहेगी, उस पर ध्यान दोगे तो....????*आप अपना ध्यान नहीं लगा पाओगे.by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब*#कभी #हमसे #भी दो #पल की... "#मुलाकात" कर लिया करो #कान्हा:*क्या #पता #आज "हम" #तरस रहे हैं...कल "#तुम" #ढुढते फिरो.❥ Զเधे-Զเधे ❥,

*#मेरे_महादेव🕉️❤🔱👏*#नए_साल_में_पूरी_ये🕉️❤👏*#ख्वाईश_कर_दो🕉️❤🔱👏#365×24 #हर_पल_हर_साँस_में🕉️*#मेरे_भोले_अपना_रंग_भर_दो🕉️ 🕉🕉🕉आज #हम सब #दिन की अच्छी #शुरुवात हो,🕉🚩प्यार भरे #सपनों की #बरसात हो,🕉🚩जिनको #साल भर #ढूंढ़ती रही हमारी #नजरे,🕉🚩रब करे आज उन्ही #महाकाल से हमारी #मुलाकात हो,🕉🚩🔱🕉🔱 #आपको तथा आपके पूरे परिवार को नव वर्ष 2021 की बहुत ढेरों शुभकामनाएं, भगवान भोलेनाथ मां भवानी आपके जीवन में बहुत ढेरों सारी खुशियां प्रदान करें, तथा जीवन में हमेशा धन यश कीर्ति बढ़ता ही रहे आपका अपना शिव गौरी भक्त Vnita,

तेरी #रूह से कभी #मुलाकात होती,, तो #उसे भी #कह दे.... #एक कमी #रहती है तेरे #बिना जो,, #दिल को बहुत #तकलीफ़ देती हैं. Vnita..💔💔💔💔💔

https://www.facebook.com/vnita.vnita.50*•~सुनो तुम्हारा ख़याल यादों में*•~*•~एक प्यार भरा रंग लाता है*•~💕*•~मेरी ख़्वाहिशों में जीने का*•~*•~एक प्यारा सा ढंग आता है*•~*•~धीरे धीरे मिल जाती है राह*•~*•~मेरी प्यारी ज़िंदगी को*•~🌷*•~और बस तुम और प्यार ही प्यार नज़र आता है*•~जय श्री राधे !!!!https://www.facebook.com/vnita.vnita.50*#मेरे_महादेव🕉️❤🔱👏*#नए_साल_में_पूरी_ये🕉️❤👏*#ख्वाईश_कर_दो🕉️❤🔱👏#365×24 #हर_पल_हर_साँस_में🕉️*#मेरे_भोले_अपना_रंग_भर_दो🕉️ 🕉🕉🕉आज #हम सब #दिन की अच्छी #शुरुवात हो,🕉🚩प्यार भरे #सपनों की #बरसात हो,🕉🚩जिनको #साल भर #ढूंढ़ती रही हमारी #नजरे,🕉🚩रब करे आज उन्ही #महाकाल से हमारी #मुलाकात हो,🕉🚩🔱🕉🔱 #आपको तथा आपके पूरे परिवार को नव वर्ष 2021 की बहुत ढेरों शुभकामनाएं, भगवान भोलेनाथ मां भवानी आपके जीवन में बहुत ढेरों सारी खुशियां प्रदान करें, तथा जीवन में हमेशा धन यश कीर्ति बढ़ता ही रहे आपका अपना शिव गौरी भक्त Vnita,

*•~सुनो तुम्हारा ख़याल यादों में*•~*•~एक प्यार भरा रंग लाता है*•~💕*•~मेरी ख़्वाहिशों में जीने का*•~*•~एक प्यारा सा ढंग आता है*•~*•~धीरे धीरे मिल जाती है राह*•~*•~मेरी प्यारी ज़िंदगी को*•~🌷*•~और बस तुम और प्यार ही प्यार नज़र आता है*By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब•~जय श्री राधे !!!!* • ~ Listen to your thoughts in memories * • ~* • ~ brings a love-filled color * • ~ 💕* • ~ To live in my desires * • ~* • ~ Comes a cute way * • ~* • ~ Slowly find the path * • ~* • ~ To My Lovely Life * • ~ 🌷* • ~ o,

My request to Shri Shyam ji is that you continue to move forward in deeds in social events in politics.,,

I request Khatu Shyam ji that you get a chance to see 125 spring seasons in life and you continue to work for the upliftment of society.,

*🚩🚩🚩🚩🥀🥀🥀🥀🥀जय श्री राम🌄by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🙏*श्री रामचरितमानस का एक प्रसंग*--*भोजन करत बोल जब राजा।**नही आवत तजि बाल समाजा।।**कौसल्या जब बोलन जाई।* *ठुमुकु ठुमुकु प्रभु चलहिं पराई।।**निगम नेति शिव अंत न पावा।**ताहि धरे जननी हठि धावा।।* अर्थात राजा दशरथ भोजन करते समय बालक राम को साथ में खाना खाने के लिये बुलाते है तो राम बालकों का साथ छोडकर नही आते। माता कौशल्या जब बुलायी है तो बालक राम इतराते इठलाते हुये ठुमुकु ठुमुकु कर भागने लगते है।निगम मे कहा गया है कि जिसका अन्त नही (हरिअनन्त हरिकथा अनन्ता) है। जिस प्रभुराम का अन्त भगवान शिवजी नही पा सके,उनको माता कौसल्या हठपूर्वक पकड़ने के लिए दौड़ती हैं,और धुलधुसरित श्रीराम को पकड लाती है। *पिता ज्ञान का प्रतीक है जो ज्ञान की बाते ज्यादा करते है। ज्ञान रुपी पिता खाना खाने के लिये बुलाते है तो भगवान राम नही आते है।भगवान राम बालकों के साथ निश्चित होकर खेलते रहते है उन्हें पता है कि पिताजी केवल बुला रहे हैं वो उन्हें पकड़ने नही आयेगे।* *माता भक्ति की प्रतीक है वह सेवा ज्यादे करती है। भक्ति रुपी माता खाना खाने के लिये जब उन्हें बुलाती है तो भी वे नही आते बल्कि बालकों का साथ छोड़कर प्यार से इतराते इठलाते भागने लगते है क्योंकि उन्हें ज्ञात है कि बुलाने से नही जाने पर भक्ति रुपी माता उन्हें पकड़ने जरुर आयेंगी। भक्ति रुपी माता भी पकड़ने का हठ करके उन्हें पकड़ने के लिए दौड़ती है,और धुलधुसरित राम को पकड लाती है।* *भगवान कहते है कि हम भक्तन के भक्त हमारे।* * Ajay Shri Ram 4* An episode of Shri Ramcharitmanas * -* When the king speaks food. ** No recurring child society. ** Kausalya when spoken.* Thumuku Thumuku Prabhu Challin Parai. ** Nigam Neti Shiv An* Ajay Shri Ram 4* An episode of Shri Ramcharitmanas * -* When the king speaks food. ** No recurring child society. ** Kausalya when spoken.* Thumuku Thumuku Prabhu Challin Parai. ** Nigam Neti Shiv A* Ajay Shri Ram 4* An episode of Shri Ramcharitmanas * -* When the king speaks food. ** No recurring child society. ** Kausalya when spoken.* Thumuku Thumuku Prabhu Challin Parai. ** Nigti Neti Shiva * Ajay Shri Ram 4* An episode of Shri Ramcharitmanas * -* When the king speaks food. ** No recurring child society. ** Kausalya when spoken.* Thumuku Thumuku Prabhu Challin Parai. ** Nigti Neti Shiva,

🌿🚩🌿🚩🌿🚩🌿🚩🌿🚩🌿जय श्री राधेगुम नाम का भी जग में नाम हो जाता हैबाँकेबिहारी तक पहुँचना आसान हो जाता हैखुशियों के प्याले से भर जाती है जिंद़गीजिसकी जुबां पे श्री राधा नाम हो जाता है | 🚩🌿by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🙏राधारानी👋🚩🌿🌿🌸🌻🌺🌹🌷🙏🌷🌹🌺🌻🌸मोर छड़ी और काली कमली, होंठो पे मुस्कान है..बिन मांगे जो भर देता झोली, ऐसा मेरा श्याम है..🌸🌻🌺🌹जय श्री श्याम🌹🌺🌻🌸🚩🌿🚩🌿🚩🌿🚩🌿🚩🌿🚩🌿,

🌸🌻🌺🌹🌷🙏🌷🌹🌺🌻🌸मोर छड़ी और काली कमली, होंठो पे मुस्कान है..बिन मांगे जो भर देता झोली, ऐसा मेरा श्याम है..by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🌸🌻🌺🌹जय श्री श्याम🌹🌺🌻🌸4Peacock stick and black lotus, lips have smile ..The one who fills the bag without asking, this is my blackAjay Shri Shyam,

|| ॐ श्री परमात्मने नमः ||वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् | देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ||--- :: x :: ---by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब* जिन मनुष्योंने ‘अपनेको तो भगवत्प्राप्ति ही करनी है’---इस उद्देश्यको पहचान लिया है अर्थात् जिनको उद्देश्यकी यह स्मृति आ गयी है कि यह मनुष्यशरीर भोग भोगनेके लिये नहीं है, प्रत्युत भगवान्-की कृपासे केवल उन की प्राप्तिके लिये ही मिला है---ऐसा जिनका दृढ़ निश्चय हो गया है, वे मनुष्य ही‘पुण्यकर्मा’ हैं |तात्पर्य यह हुआ कि अपने एक निश्चयसे जो शुद्धि होती है, पवित्रता आती है, वह यज्ञ, दान, तप आदि क्रियाओंसे नहीं आती |कारण कि ‘हमें तो एक भगवान्की तरफ ही चलना है,’ यह निश्चय स्वयंमें होता है और यज्ञ, दान आदि क्रियाएँ बाहरसे होती हैं |* जिनका लक्ष्य केवल भगवान् हैं, वे पुण्य-कर्मा हैं; क्योंकि भगवान्-का लक्ष्य होनेपर सब पाप नष्ट हो जाते हैं |भगवान्-का लक्ष्य होनेपर पुराने किसी संस्कारसे पाप हो भी जायगा, तो भी वह रहेगा नहीं; क्योंकि हृदयमें विराजमान भगवान् उस पापको नष्ट कर देते हैं |* मनुष्य सच्चे हृदयसे यह दृढ़ निश्चय कर ले कि ‘अब आगे मैं कभी पाप नहीं करूँगा’ तो उसके पाप नहीं रहते | --- :: x :: ---[गीताप्रेस गोरखपुरसे प्रकाशित श्रद्धेय स्वामीरामसुखदासजी की टीका श्रीमद्भगवद्गीता साधक संजीवनी के अध्याय-७ के अठ्ठाईसवें श्लोकसे],

प्राचीन भारत के दस दैवीय प्राणी, !!by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब!!!! भगवान श्रीराम और उनके पूर्व का काल प्राणियों की विचित्रताओं और भिन्नताओं का काल था। इस काल में धरती पर विचित्र किस्म के लोग और प्रजातियां रहती थीं, लेकिन प्राकृतिक आपदा या अन्य कारणों से ये प्रजातियां अब लुप्त हो गई हैं। आज यह समझ पाना मुश्‍किल है कि कोई पक्षी कैसे बोल सकता है, जबकि वैज्ञानिक अब पक्षियों की भाषा समझने में सक्षम हो रहे हैं। आज यह भी समझ से परे है कि कोई विचित्र प्राणी या पशु कैसे बोल सकता है और किस तरह मानव समूह के साथ रहकर अपना जीवन-यापन कर सकता है?प्राचीनकाल में बंदर, भालू आदि की आकृति के मानव होते थे। इसी तरह अन्य कई प्रजातियां थीं, जो मानवों के संपर्क में थीं। आओ जानते हैं ऐसे ही 10 पौराणिक प्राणियों के बारे में जिनके बारे में जानकर आप रह जाएंगे हैरान। पहला रहस्यमयी प्राणी कामधेनु गाय : - विष के बाद मथे जाते हुए समुद्र के चारों ओर बड़े जोर की आवाज उत्पन्न हुई। देव और असुरों ने जब सिर उठाकर देखा तो पता चला कि यह साक्षात सुरभि कामधेनु गाय थी। इस गाय को काले, श्वेत, पीले, हरे तथा लाल रंग की सैकड़ों गौएं घेरे हुई थीं।कामधेनु गाय की उत्पत्ति भी समुद्र मंथन से हुई थी। यह एक चमत्कारी गाय होती थी जिसके दर्शन मात्र से ही सभी तरह के दु:ख-दर्द दूर हो जाते थे। दैवीय शक्तियों से संपन्न यह गाय जिसके भी पास होती थी उससे चमत्कारिक लाभ मिलता था। इस गाय का दूध अमृत के समान माना जाता था। श्रीराम के पूर्व परशुराम के समकालीन ऋषि वशिष्ठ के पास कामधेनु गाय थी।हिन्दू धर्म में गाय को क्यों पवित्र माना जाता है? यह कामधेनु गाय सबसे पहले वरुणदेव के पास थी। कश्यप ने वरुण से कामधेनु मांगी थी, लेकिन बाद में लौटाई नहीं। अत: वरुण के शाप से वे अगले जन्म में ग्वाले हुए। यह कामधेनु गाय अंत में ऋषि वशिष्ठ के पास थी। कामधेनु के लिए गुरु वशिष्ठ से विश्वामित्र सहित कई अन्य राजाओं ने कई बार युद्ध किया, लेकिन उन्होंने कामधेनु गाय को किसी को भी नहीं दिया। गाय के इस झगड़े में गुरु वशिष्ठ के 100 पुत्र मारे गए थे। अंत में यह गाय ऋषि परशुराम ने ले ली थी। गाय हिन्दुओं के लिए सबसे पवित्र पशु है। इस धरती पर पहले गायों की कुछ ही प्रजातियां होती थीं। उससे भी प्रारंभिक काल में एक ही प्रजाति थी। माना जाता है कि आज से लगभग 9,500 वर्ष पूर्व गुरु वशिष्ठ ने गाय के कुल का विस्तार किया और उन्होंने गाय की नई प्रजातियों को भी बनाया, तब गाय की 8 या 10 नस्लें ही थीं जिनका नाम कामधेनु, कपिला, देवनी, नंदनी, भौमा आदि था। कहते हैं कि सभी गायों की पीठ पर सिर से लेकर पूंछ तक एक ऐसी नाड़ी होती है जिससे स्वर्ण का उत्पादन होता रहता है। उसमें भी काली गाय की नाड़ी को सूर्यकेतु कहते हैं जिस पर प्रतिदिन हाथ फेरने से हृदयरोग नहीं होता है। भारत में आजकल गाय की प्रमुख 28 नस्लें पाई जाती हैं। गायों की यूं तो कई नस्लें होती हैं, लेकिन भारत में मुख्‍यत: साहीवाल (पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, बिहार), गिर (दक्षिण काठियावाड़), थारपारकर (जोधपुर, जैसलमेर, कच्छ), करन फ्राइ (राजस्थान) आदि हैं। विदेशी नस्लों में जर्सी गाय सर्वाधिक लोकप्रिय है। यह गाय दूध भी ‍अधिक देती है। गाय कई रंगों जैसे सफेद, काली, लाल, बादामी तथा चितकबरी होती है। भारतीय गाय छोटी होती है, जबकि विदेशी गाय का शरीर थोड़ा भारी होता है। दूसरा रहस्यमयी प्राणी गरूड़ : - माना जाता है कि गिद्धों (गरूड़) की एक ऐसी प्रजाति थी, जो बुद्धिमान मानी जाती थी। भगवान विष्णु का वाहन है गरूड़। गरूड़ एक शक्तिशाली, चमत्कारिक और रहस्यमयी पक्षी था। प्रजापति कश्यप की पत्नी विनता के दो पुत्र हुए- गरूड़ और अरुण। गरूड़जी विष्णु की शरण में चले गए और अरुणजी सूर्य के सारथी हुए। भगवान गरूड़ के नाम पर एक पुराण भी है जिसे 'गरूड़ ‍पुराण' कहते हैं। पुराणों में गरूड़ की शक्ति और महिमा का वर्णन मिलता है।जब रावण के पुत्र मेघनाथ ने श्रीराम से युद्ध करते हुए श्रीराम को नागपाश से बांध दिया था, तब देवर्षि नारद के कहने पर गिद्धराज गरूड़ ने नागपाश के समस्त नागों को खाकर श्रीराम को नागपाश के बंधन से मुक्त कर दिया था। भगवान राम के इस तरह नागपाश में बंध जाने पर श्रीराम के भगवान होने पर गरूड़ को संदेह हो गया। गरूड़ का संदेह दूर करने के लिए देवर्षि नारद उन्हें ब्रह्माजी के पास भेज देते हैं। ब्रह्माजी उनको शंकरजी के पास भेज देते हैं। भगवान शंकर ने भी गरूड़ को उनका संदेह मिटाने के लिए काकभुशुण्डिजी नाम के एक कौवे के पास भेज दिया। अंत में काकभुशुण्डिजी ने राम के चरित्र की पवित्र कथा सुनाकर गरूड़ के संदेह को दूर किया। लोमश ऋषि के शाप के चलते काकभुशुण्डि कौवा बन गए थे। लोमश ऋषि ने शाप से मु‍क्त होने के लिए उन्हें राम मंत्र और इच्छामृत्यु का वरदान दिया। कौवे के रूप में ही उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन व्यतीत किया। वाल्मीकि से पहले ही काकभुशुण्डि ने रामायण गिद्धराज गरूड़ को सुना दी थी। इससे पूर्व हनुमानजी ने संपूर्ण रामायण पाठ लिखकर समुद्र में फेंक दी थी। वाल्मीकि श्रीराम के समकालीन थे और उन्होंने रामायण तब लिखी, जब रावण-वध के बाद राम का राज्याभिषेक हो चुका था। तीसरे चमत्कारिक और रहस्यमयी प्राणी : - सम्पाती और जटायु :ये दोनों पक्षी राम के काल में थे। प्रजापति कश्यप की पत्नी विनता के 2 पुत्र हुए- गरूड़ और अरुण। गरूड़जी विष्णु की शरण में चले गए और अरुणजी सूर्य के सारथी हुए। सम्पाती और जटायु इन्हीं अरुण के पुत्र थे। पुराणों के अनुसार सम्पाती बड़ा था और जटायु छोटा। ये दोनों विंध्याचल पर्वत की तलहटी में रहने वाले निशाकर ऋषि की सेवा करते थे। सम्पाती और जटायु ये दोनों भी दंडकारण्य क्षेत्र में रहते थे, खासकर मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में इनकी जाति के पक्षियों की संख्या अधिक थी। छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य में गिद्धराज जटायु का मंदिर है। स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे इसीलिए यहां एक मंदिर है। दूसरी ओर मध्यप्रदेश के देवास जिले की बागली तहसील में 'जटाशंकर' नाम का एक स्थान है जिसके बारे में कहा जाता है कि गिद्धराज जटायु वहां तपस्या करते थे। जटायु पहला ऐसा पक्षी था, जो राम के लिए शहीद हो गया था। जटायु का जन्म कहां हुआ, यह पता नहीं, लेकिन उनकी मृत्यु दंडकारण्य में हुई। खैर...! कहते हैं कि बचपन में सम्पाती और जटायु ने सूर्य-मंडल को स्पर्श करने के उद्देश्य से लंबी उड़ान भरी। सूर्य के असह्य तेज से व्याकुल होकर जटायु तो बीच से लौट आए, किंतु सम्पाती उड़ते ही गए। सूर्य के निकट पहुंचने पर सूर्य के ताप से सम्पाती के पंख जल गए और वे समुद्र तट पर गिरकर चेतनाशून्य हो गए। चन्द्रमा नामक मुनि ने उन पर दया करके उनका उपचार किया और त्रेता में श्री सीताजी की खोज करने वाले वानरों के दर्शन से पुन: उनके पंख जमने का आशीर्वाद दिया। खैर...! जब जटायु नासिक के पंचवटी में रहते थे तब एक दिन आखेट के समय महाराज दशरथ से उनकी मुलाकात हुई और तभी से वे और दशरथ-मित्र बन गए। वनवास के समय जब भगवान श्रीराम पंचवटी में पर्णकुटी बनाकर रहने लगे, तब पहली बार जटायु से उनका परिचय हुआ। जटायु के बाद रास्ते में सम्पाती के पुत्र सुपार्श्व ने सीता को ले जा रहे रावण को रोका और उससे युद्ध के लिए तैयार हो गया। किंतु रावण उसके सामने गिड़गिड़ाने लगा और इस तरह वह वहां से बचकर निकल आया। बाद में जब अंगद आदि सीता की खोज करते हुए सम्पाती से मिले तो उन्होंने जटायु की मृत्यु का समाचार दिया। सम्पाती ने तब अंगद को रावण द्वारा सीताहरण की पुष्टि की और अपनी दूरदृष्टि से देखकर बताया कि वे अशोक वाटिका में सुरक्षित बैठी हैं। इस प्रकार रामकथा में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गिद्ध-बंधु सम्पाती और जटायु अमर हो गए। चौथा रहस्यमयी प्राणी : - उच्चैःश्रवा घोड़ा :घोड़े तो कई हुए लेकिन श्वेत रंग का उच्चैःश्रवा घोड़ा सबसे तेज और उड़ने वाला घोड़ा माना जाता था। अब इसकी कोई भी प्रजाति धरती पर नहीं बची। यह इंद्र के पास था। उच्चै:श्रवा का पोषण अमृत से होता है। यह अश्वों का राजा है। उच्चै:श्रवा के कई अर्थ हैं, जैसे जिसका यश ऊंचा हो, जिसके कान ऊंचे हों अथवा जो ऊंचा सुनता हो। समुद्र मंथन के दौरान निकले उच्चै:श्रवा घोड़े को दैत्यराज बलि ने ले रख लिया था। पांचवां रहस्यमयी प्राणी : - ऐरावत हाथी :हाथी तो सभी अच्‍छे और सुंदर नजर आते हैं लेकिन सफेद हाथी को देखना अद्भुत है। ऐरावत सफेद हाथियों का राजा था। 'इरा' का अर्थ जल है अत: 'इरावत' (समुद्र) से उत्पन्न हाथी को 'ऐरावत' नाम दिया गया है। हालांकि इरावती का पुत्र होने के कारण ही उनको 'ऐरावत' कहा गया है। यह हाथी देवताओं और असुरों द्वारा किए गए समुद्र मंथन के दौरान निकली 14 मूल्यवान वस्तुओं में से एक था। मंथन से प्राप्त रत्नों के बंटवारे के समय ऐरावत को इन्द्र को दे दिया गया था। 4 दांतों वाला सफेद हाथी मिलना अब मुश्किल है। महाभारत, भीष्म पर्व के अष्टम अध्याय में भारतवर्ष से उत्तर के भू-भाग को उत्तर कुरु के बदले 'ऐरावत' कहा गया है। जैन साहित्य में भी यही नाम आया है। उत्तर का भू-भाग अर्थात तिब्बत, मंगोलिया और रूस के साइबेरिया तक का हिस्सा। हालांकि उत्तर कुरु भू-भाग उत्तरी ध्रुव के पास था संभवत: इसी क्षेत्र में यह हाथी पाया जाता रहा होगा। छठा प्राणी :- शेषनाग :भारत में पाई जाने वाली नाग प्रजातियों और नाग के बारे में बहुत ज्यादा विरोधाभास नहीं है। सभी कश्यप ऋषि की संतानें हैं। पुराणों के अनुसार कश्मीर में कश्यप ऋषि का राज था। आज भी कश्मीर में अनंतनाग, शेषनाग आदि नाम से स्थान हैं। शेषनाग ने भगवान विष्णु की शैया बनना स्वीकार किया था। ऋषि कश्यप का कुल : - कश्यप ऋषि की पत्नी कद्रू से उन्हें 8 पुत्र मिले जिनके नाम क्रमश: इस प्रकार हैं- 1. अनंत (शेष), 2. वासुकि, 3. तक्षक, 4. कर्कोटक, 5. पद्म, 6. महापद्म, 7. शंख और 8. कुलिक। कश्मीर का अनंतनाग इलाका अनंतनाग समुदायों का गढ़ था उसी तरह कश्मीर के बहुत सारे अन्य इलाके भी दूसरे पुत्रों के अधीन थे। शेषनाग सारी सृष्टि के विनाश के पश्चात भी बचे रहते हैं इसीलिए इनका नाम 'शेष' हैं। शेषनाग के हजार मस्तक हैं और वे स्वर्ण पर्वत पर रहते हैं। वे नील वस्त्र धारण करते हैं। लक्ष्मण और बलराम को शेषनाग का ही अवतार माना जाता है। विष्णु की तरह शेषनाग के भी कई अवतार हैं। पुराणों में इन्हें सहस्रशीर्ष या 100 फन वाला कहा गया है। पौराणिक कथा के अनुसार कद्रू के बेटों में सबसे पराक्रमी शेषनाग थे लेकिन वे अपनी माता और भाइयों के व्यवहार से रुष्ट रहते थे, क्योंकि उनका शरीर नाग के समान था। वे सभी को छोड़कर गंधमादन पर्वत पर तपस्या करने चले गए थे। उनकी इच्छा थी कि वे इस शरीर का त्याग कर दें। मां, भाइयों तथा सौतेले भाइयों अरुण और गरुड़ के प्रति द्वेषभाव ही उनकी सांसारिक विरक्ति का कारण था। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उन्हें वरदान दिया कि उनकी बुद्धि सदैव धर्म में लगी रहे। साथ ही ब्रह्मा ने उन्हें आदेश दिया कि वे पृथ्वी को अपने फन पर संभालकर धारण करें जिससे कि वह हिलना बंद कर दे तथा स्थिर रह सके। शेषनाग के पृथ्वी के नीचे जाते ही नागों ने उसके छोटे भाई वासुकि का राज्यतिलक कर दिया था। दस फन वाला सांप :सभी जीव-जंतुओं में गाय के बाद सांप ही एक ऐसा जीव है जिसका हिन्दू धर्म में ऊंचा स्थान है। सांप एक रहस्यमय प्राणी है। देशभर के गांवों में आज भी लोगों के शरीर में नागदेवता की सवारी आती है। भारत में नागों की पूजा के प्रचलन के पीछे कई रहस्य छिपे हुए हैं। माना जाता है कि नागों की एक सिद्ध और चमत्कारिक प्रजाति हुआ करती थी, जो मानवों की सभी मनोकामना पूर्ण कर देती थी। उल्लेखनीय है कि नाग और सर्प में फर्क है। सभी नाग कद्रू के पुत्र थे जबकि सर्प क्रोधवशा के। पौराणिक कथाओं के अनुसार पाताल लोक में कहीं एक जगह नागलोक था, जहां मानव आकृति में नाग रहते थे। कहते हैं कि 7 तरह के पाताल में से एक महातल में ही नागलोक बसा था, जहां कश्यप की पत्नी कद्रू और क्रोधवशा से उत्पन्न हुए अनेक सिरों वाले नाग और सर्पों का एक समुदाय रहता था। उनमें कहुक, तक्षक, कालिया और सुषेण आदि प्रधान नाग थे। नागकन्या :कुंती पुत्र अर्जुन ने पाताल लोक की एक नागकन्या से विवाह किया था जिसका नाम उलूपी था। वह विधवा थी। अर्जुन से विवाह करने के पहले उलूपी का विवाह एक बाग से हुआ था जिसको गरूड़ ने खा लिया था। अर्जुन और नागकन्या उलूपी के पुत्र थे अरावन जिनका दक्षिण भारत में मंदिर है और हिजड़े लोग उनको अपना पति मानते हैं। भीम के पुत्र घटोत्कच का विवाह भी एक नागकन्या से ही हुआ था जिसका नाम अहिलवती था ‍और जिसका पुत्र वीर योद्धा बर्बरीक था। वर्तमान में इच्छाधारी नाग और नागिन की कहानियां प्रचलन में हैं। प्राचीनकाल में नागों पर आधारित नाग प्रजाति के मानव कश्मीर में निवास करते थे। आज भी कश्मीर के बहुत से स्थानों के नाम नागकुल के नामों पर ही आधारित हैं, जैसे अनंतनाग शहर, शेषनाग झील। बाद में ये सभी नागकुल के लोग झारखंड और छत्तीसगढ़ में आकर बस गए थे, जो उस काल में दंडकारण्य कहलाता था। वर्तमान में 2 और 5 फन वाले नाग पाए जाते हैं, लेकिन 10 फनों के नागों की प्रजाति अब लुप्त हो गई है। कुछ वर्षों पूर्व झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के चांडिल प्रखंड में 10 फन वाले शेषनाग देखे जाने की चर्चा जोरों पर थी। बताया जा रहा है कि इस शेषनाग को बीते कुछ दिनों में कई ग्रामीणों ने देखा था। इस तरह हैदराबाद में एक 5 फन वाला नाग देखा गया जिसका लोगों ने चित्र खींच लिया था। उड़ने वाला और इच्छाधारी नाग :माना जाता है कि 100 वर्ष से ज्यादा उम्र होने के बाद सर्प में उड़ने की शक्ति आ जाती है। सर्प कई प्रकार के होते हैं- मणिधारी, इच्‍छाधारी, उड़ने वाले, एकफनी से लेकर दसफनी तक के सांप जिसे शेषनाग कहते हैं। नीलमणिधारी सांप को सबसे उत्तम माना जाता है। इच्छाधारी नाग के बारे में कहा जाता है कि वह अपनी इच्छा से मानव, पशु या अन्य किसी भी जीव के समान रूप धारण कर सकता है। हालांकि वैज्ञानिक अब अपने शोध के आधार पर कहने लगे हैं कि सांप विश्व का सबसे रहस्यमय प्राणी है और दक्षिण एशिया के वर्षा वनों में उड़ने वाले सांप पाए जाते हैं। उड़ने में सक्षम इन सांपों को क्रोसोपेलिया जाति से संबंधित माना जाता है। वैज्ञानिकों ने 2 और 5 फन वाले सांपों के होने की पुष्‍टि की है लेकिन 10 फन वाले सांप अभी तक नहीं देखे गए हैं। सातवां प्राणी : - मत्स्य कन्या :मत्स्य कन्या अर्थात जलपरी। भारतीय रामायण के थाई व कम्बोडियाई संस्करणों में रावण की बेटी सुवर्णमछा (सोने की जलपरी) का उल्लेख किया गया है। वह हनुमान का लंका तक सेतु बनाने का प्रयास विफल करने की कोशिश करती है, पर अंततः उनसे प्यार करने लगती है।भारतीय दंतकथाओं में भगवान विष्णु के मत्स्यावतार का उल्लेख है जिसके शरीर का ऊपरी भाग मानव व निचला भाग मछली का है। इसी तरह चीन, अरब और ग्रीक की लोककथाओं में भी जलपरियों के सैकड़ों किस्से पढ़ने को मिलते हैं। आठवां प्राणी : - वानर मानव :क्या हनुमानजी बंदर प्रजाति के थे? हनुमानजी का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था। नए शोधानुसार प्रभु श्रीराम का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व अयोध्या में हुआ था। श्रीराम के जन्म के पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था अर्थात आज से लगभग 7129 वर्ष पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था। शोधकर्ता कहते हैं कि आज से 9 लाख वर्ष पूर्व एक ऐसी विलक्षण वानर जाति भारतवर्ष में विद्यमान थी, जो आज से 15 से 12 हजार वर्ष पूर्व लुप्त होने लगी थी और अंतत: लुप्त हो गई। इस जाति का नाम 'कपि' था। हनुमानजी के संबंध में यह प्रश्न प्राय: सर्वत्र उठता है कि 'क्या हनुमानजी बंदर थे?' इसके लिए कुछ लोग रामायणादि ग्रंथों में लिखे हनुमानजी और उनके सजातीय बांधव सुग्रीव अंगदादि के नाम के साथ 'वानर, कपि, शाखामृग, प्लवंगम' आदि विशेषण पढ़कर उनके बंदर प्रजाति का होने का उदाहरण देते हैं। वे यह भी कहते हैं कि उनकी पुच्छ, लांगूल, बाल्धी और लाम से लंकादहन का प्रत्यक्ष चमत्कार इसका प्रमाण है। यह ‍भी कि उनकी सभी जगह सपुच्छ प्रतिमाएं देखकर उनके पशु या बंदर जैसा होना सिद्ध होता है। रामायण में वाल्मीकिजी ने जहां उन्हें विशिष्ट पंडित, राजनीति में धुरंधर और वीर-शिरोमणि प्रकट किया है, वहीं उनको लोमेश ओर पुच्छधारी भी शतश: प्रमाणों में व्यक्त किया है। दरअसल, आज से 9 लाख वर्ष पूर्व मानवों की एक ऐसी जाति थी, जो मुख और पूंछ से वानर समान नजर आती थी, लेकिन उस जाति की बुद्धिमत्ता और शक्ति मानवों से कहीं ज्यादा थी। अब वह जाति भारत में तो दुर्भाग्यवश विनष्ट हो गई, परंतु बाली द्वीप में अब भी पुच्छधारी जंगली मनुष्यों का अस्तित्व विद्यमान है जिनकी पूंछ प्राय: 6 इंच के लगभग अवशिष्ट रह गई है। ये सभी पुरातत्ववेत्ता अनुसंधायक एकमत से स्वीकार करते हैं कि पुराकालीन बहुत से प्राणियों की नस्ल अब सर्वथा समाप्त हो चुकी है। नौवां रहस्यमयी प्राणी : - रीछ मानव :रामायणकाल में रीछनुमा मानव भी होते थे। जाम्बवंतजी इसका उदाहरण हैं। जाम्बवंत भी देवकुल से थे। भालू या रीछ उरसीडे (Ursidae) परिवार का एक स्तनधारी जानवर है। हालांकि इसकी अब सिर्फ 8 जातियां ही शेष बची हैं। संस्कृत में भालू को 'ऋक्ष' कहते हैं जिससे 'रीछ' शब्द उत्पन्न हुआ है। निश्चित ही अब जाम्बवंत की जाति लुप्त हो गई है। हालांकि यह शोध का विषय है। जाम्बवंत को आज रीछ की संज्ञा दी जाती है, लेकिन वे एक राजा होने के साथ-साथ इंजीनियर भी थे। समुद्र के तटों पर वे एक मचान को निर्मित करने की तकनीक जानते थे, जहां यंत्र लगाकर समुद्री मार्गों और पदार्थों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता था। मान्यता है कि उन्होंने एक ऐसे यंत्र का निर्माण किया था, जो सभी तरह के विषैले परमाणुओं को निगल जाता था। रावण ने इस सभी रीछों के राज्य को अपने अधीन कर लिया था। जाम्बवंत ने युद्ध में राम की सहायता की थी और उन्होंने ही हनुमानजी को उनकी शक्ति का स्मरण कराया था। जब युद्ध में राम-लक्ष्मण मेघनाद के ब्रह्मास्त्र से घायल हो गए थे, तब किसी को भी उस संकट से बाहर निकलने का उपाय नहीं सूझ रहा था। तब विभीषण और हनुमान जाम्बवंतजी के पास गए, तब उन्होंने हनुमानजी से हिमालय जाकर ऋषभ और कैलाश नामक पर्वत से 'संजीवनी' नामक औषधि लाने को कहा था। माना जाता है कि रीछ या भालू इन्हीं के वंशज हैं। जाम्बवंत की उम्र बहुत लंबी थी। 5,000 वर्ष बाद उन्होंने श्रीकृष्ण के साथ एक गुफा में स्मयंतक मणि के लिए युद्ध किया था। भारत में जम्मू-कश्मीर में जाम्बवंत गुफा मंदिर है। जाम्बवंत की बेटी के साथ कृष्ण ने विवाह किया था। अब सवाल उठता है कि क्या इंसानों के समान कोई पशु हो सकता है? जैसे रीछ प्रजाति। रामायण में जाम्बवंत को एक रीछ मानव की तरह दर्शाया गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह अर्सिडी कुल का मांसाहारी, स्तनी, झबरे बालों वाला बड़ा जानवर है। यह लगभग पूरी दुनिया में कई प्रजातियों में पाया जाता है। मुख्‍यतया इसकी 5 प्रजातियां हैं- काला, श्वेत, ध्रुवीय, भूरा और स्लोथ भालू। अमेरिका और रशिया में आज भी भालू मानव के किस्से प्रचलित हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि कभी इस तरह की प्रजाति जरूर अस्तित्व में रही होगी। कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि भूरे रंग का एक विशेष प्रकार का भालू है जिसे नेपाल में 'येति' कहते हैं। एक ब्रिटिश वैज्ञानिक शोध में पता चला है कि हिमालय के मिथकीय हिम मानव 'येति' भूरे भालुओं की ही एक उपप्रजाति हो सकती है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ब्रायन स्काइज द्वारा किए गए बालों के डीएनए परीक्षणों से पता चला है कि ये ध्रुवीय भालुओं से काफी कुछ मिलते-जुलते हैं। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भूरे भालुओं की उपप्रजातियां हो सकती हैं। संस्कृत में भालू को 'ऋक्ष' कहते हैं। अग्निपुत्र जाम्बवंत को ऋक्षपति कहा जाता है। यह ऋक्ष बिगड़कर रीछ हो गया जिसका अर्थ होता है भालू अर्थात भालू के राजा। लेकिन क्या वे सचमुच भालू मानव थे? रामायण आदि ग्रंथों में तो उनका चित्रण ऐसा ही किया गया है। ऋक्ष शब्द संस्कृत के अंतरिक्ष शब्द से निकला है। जामवंतजी को अजर अमर होने का वरदान प्राप्त है। प्राचीनकाल में इंद्र पुत्र, सूर्य पुत्र, चंद्र पुत्र, पवन पुत्र, वरुण पुत्र, ‍अग्नि पुत्र आदि देवताओं के पुत्रों का अधिक वर्णन मिलता है। उक्त देवताओं को स्वर्ग का निवासी कहा गया है। एक ओर जहां हनुमानजी और भीम को पवन पुत्र माना गया है, वहीं जाम्बवंतजी को अग्नि पुत्र कहा गया है। जाम्बवंत की माता एक गंधर्व कन्या थी। जब पिता देव और माता गंधर्व थीं, तो वे कैसे रीछ मानव हो सकते हैं? एक दूसरी मान्यता के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने एक ऐसा रीछ मानव बनाया था, जो दो पैरों से चल सकता था और जो मानवों से संवाद कर सकता था। पुराणों के अनुसार वानर और मानवों की तुलना में अधिक विकसित रीछ जनजाति का उल्लेख मिलता है। वानर और किंपुरुष के बीच की यह जनजाति अधिक विकसित थी। हालांक‍ि इस संबंध में अधिक शोध किए जाने की आवश्यकता है। दसवां रहस्यमयी प्राणी : - येति मानव :बिगफुट को पूरे विश्व में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। तिब्बत और नेपाल में इन्हें 'येती' का नाम दिया जाता है, तो ऑस्ट्रेलिया में 'योवी' के नाम से जाना जाता है। भारत में इसे 'यति' कहते हैं।,

🌷🙏शुभ रात्रि की अमृत बेला की प्रेम भरी राधे राधे🌷🙏💕 💕 ठाकुर_जी_की_महावर_सेवा by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब💕 💕 💕 ️एक दिन प्रियतम कृष्ण श्री ललिता जी से विनम्र हो के कहा-मेरी एक विनती है मैं आज प्रिया जी के चरणों में महावर लगाने की सेवा करना चाहता हूंl मुझे श्री चरणो मैं महावर लगाने का अवसर दिया जाए।💕 🌼प्रियतम की बात सुनकर ललिता जी बोली – क्या आप महावर लगा पाऐंगे?तो प्रियतम ने कहा – मुझे अवसर तो देकर देखो, मैं रंगदेवी से भी सुंदर उत्तम रीति से महावर लगा दूंगा ।🌼 🦚श्री ललिता जी ने उनका अनुरोध स्वीकार कर लिया रंग देवी से कहा – कि आज श्री चरणो मैं महावर लगाने की सेवा प्रियतम करेंगे।प्रिया जी के स्नान के बाद सुदेवी जी ने कलात्मक ढंग से प्रिया जी की वेणी गूँथ दी।विशाखा जी ने प्रियाजी के कपोलों पर सुंदर पत्रावली की रचना कर दी। अब प्रिया जी के चरणों में महावर लगाना था।रंगदेवी जी को ललिता जी ने कहा – आज महावर की सेवा प्रियतम करेगे।🦚 🌹प्रियतम पास में ही महावर का पात्र लेकर खड़े थे और विनती करने लगे आज महावर की सेवा में करू ऐसी अभिलाषा हैlप्रिया जू ने कहा – लगा पाएंगे? उस दिन वेणी तो गूँथ नहीं पाये आज महावर लगा पाएंगे?🌹 🍃प्रियतम ने अनुरोध किया – अवसर तो दे के देखें।प्रिया जू ने नयनों के संकेत से स्वीकृति दे दी और मन ही मन सोचने लगीं की प्रेम भाव में लगा नहीं पाएंगे,स्वीकृति मिलते ही प्रियतम ने प्रिया जी चरण जैसे ही हाथ में लिए, श्री चरणो की अनुपम सुंदरता कोमलता देखकर श्याम सुंदर के हृदय में भावनाओं की लहर आने लगीं।प्रियतम सोचने लगे, कितने सुकोमल हैं श्रीचरण, प्यारी जी कैसे भूमि पर चलती होंगी?🍃 🌹कंकड़ की बात तो दूर, भय इस बात का है कि धूल के मृदुल कण भी संभवतः श्री चरणों में चुभ जाते होंगे।🌹 🌻तब श्याम सुंदर ने वृंदावन की धूलि कण से प्रार्थना‌ की कि जब प्रिया जी बिहार को निकलें तो अति सुकोमल मखमली धूलि बिछा दिया करो और कठिन कठोर कण को छुपा लिया करो।प्रियतम भाव बिभोर सोचने लगे कि श्री चरण कितने सुंदर, सुधर, अरुणाभ, कितने गौर, कितने सुकोमल हैं, मुझे श्री चरणों को स्पर्श का अवसर मिला।प्रियतम ने बहुत चाहा पर महावर नहीं लगा पाये, चाहकर भी असफल रहे।🌻ऐसी असफलता पर विश्व की सारी सफलता न्योछावर, अनंत कोटि ब्रह्माण्ड नायक शिरोमणि जिनके बस में सब कुछ है।हर कार्य करने में अति निपुण हैं उनकी ऐसी असफलताओं पर बलिहार जाऊं 💕 💕जय श्री राधे राधे जी 💕 आप सभी भक्त जन व रसिक जनौ को प्रेम भरी राधे राधे 🌹🌹🙏🏻🙏🏻🌹🌹

NewsPointRecord WhatsApp Call With This Easy Way, Learn This Process Quickly…By Vnita Kasnia Punjab imageEver since we entered the digital world, people have started giving priority to phones. Ever since WhatsApp came in the phone, till date it has become the number 1 app for sending messages. With this WhatsApp app, you can make both audio and video calls rather than cover text. But there are many times when you are talking to someone on WhatsApp audio era and the person in front told something important but you are not mindful after which you regret that you wish you could record that thing.imageCall record on whatsappBut now it is also possible to do so. Yes, certain devices are required to record WhatsApp calls to Android and iPhone. It is unethical and illegal to record calls without the permission of another person. In such a situation, you must inform the other person about the call recording. Let us tell you how a call can be recorded on WhatsApp.This is how iPhone users record callsIf you are iPhone use then you have to connect iPhone to MaC with the help of Lightning cable. After this, by clicking Trust this computer on your iPhone, you will see this click. For the first time, open QuickTime connecting Mac to iPhone phone and it will get the option of New audio recording in the File section. In it you will see an arrow sign pointing to the underside of the record button. Which you have to click on and choose iPhone.Record the number by selecting it imageAfter doing this process, click the record button in Quicktime and call from your WhatsApp. As soon as you are connected, add the user icon. Choose the number of the person you want to talk to. Your call will start being recorded as soon as the call is received. Don’t forget to close the record after the call ends, save the file in Mac.Android users record such callsDownload Android User Cube Call Recorder. After opening the app go to WhatsApp. Whoever you want to talk to. If the cube call widget is visible data during the call, then the call is being recorded. Once the error shows, you open the Cube Call Recorder once again. This time you have to go to the settings of the app and click on Force Voip in a voice call. After this whole process, you put a WhatsApp call once again. If the cube call recorder is not showing, it means that it will not work in your phone.,

**शुभ दिन गुरुवार*by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब *जय श्री हरि विष्णुदेव* *आपका दिन मंगलमय हो*0⃣7⃣❗0⃣1⃣❗2⃣0⃣2⃣1⃣*🌻भक्त के वश में होकर भगवान ने दी गवाही.....बङी मनोरम कथा🌻**एक पंडितजी थे वो श्रीबांके बिहारी लाल को बहुत मानते थे सुबह-शाम बस ठाकुरजी ठाकुरजी करके व्यतीत होता ...पारिवारिक समस्या के कारण उन्हें धन की आवश्यकता हुई ...तो पंडित जी सेठ जी के पास धन मांगने गये ...सेठ जी धन दे तो दिया पर उस धन को लौटाने की बारह किस्त बांध दी ...पंडितजी को कोई एतराज ना हुआ ...उन्होंने स्वीकृति प्रदान कर दी ....अब धीरे-धीरे पंडितजी ने ११ किस्त भर दीं एक किस्त ना भर सके ...इस पर सेठ जी १२ वीं किस्त के समय निकल जाने पर पूरे धन का मुकद्दमा पंडितजी पर लगा दिया कोर्ट-कचहरी हो गयी ...जज साहब बोले पंडितजी तुम्हारी तरफ से कौन गवाही देगा ....इस पर पंडितजी बोले की मेरे ठाकुर बांकेबिहारी लाल जी गवाही देंगे ...पूरा कोर्ट ठहाकों से भर गया ...अब गवाही की तारीख तय हो गयी ...पंडितजी ने अपनी अर्जी ठाकुरजी के श्रीचरणों में लिखकर रख दी अब गवाही का दिन आया कोर्ट सजा हुआ था वकील,जज अपनी दलीलें पेश कर रहे थे पंडित को ठाकुर पर भरोसा था ....जज ने कहा पंडित अपने गवाह को बुलाओ पंडित ने ठाकुर जी के चरणों का ध्यान लगाया तभी वहाँ एक वृद्व आया जिसके चेहरे पर मनोरम तेज था उसने आते ही गवाही पंडितजी के पक्ष में दे दी ...वृद्व की दलीलें सेठ के वहीखाते से मेल खाती थीं की फलां- फलां तारीख को किश्तें चुकाई गयीं अब पंडित को ससम्मान रिहा कर दिया गया ...ततपश्चात जज साहब पंडित से बोले की ये वृद्व जन कौन थे जो गवाही देकर चले गये ....तो पंडित बोला अरे जज साहब यही तो मेरा ठाकुर था .....जो भक्त की दुविधा देख ना सका और भरोसे की लाज बचाने आ गया ...इतना सुनना था की जज पंडित जी के चरणों में लेट गया .....और ठाकुर जी का पता पूछा ...पंडित बोला मेरा ठाकुर तो सर्वत्र है वो हर जगह है अब जज ने घरबार काम धंधा सब छोङ ठाकुर को ढूंढने निकल पङा ...सालों बीत गये पर ठाकुर ना मिला ...अब जज पागल सा मैला कुचैला हो गया वह भंडारों में जाता पत्तलों पर से जुठन उठाता ...उसमें से आधा जूठन ठाकुर जी मूर्ति को अर्पित करता आधा खुद खाता ...इसे देख कर लोग उसके खिलाफ हो गये उसे मारते पीटते ....पर वो ना सुधरा जूठन बटोर कर खाता और खिलाता रहा ...एक भंडारे में लोगों ने अपनी पत्तलों में कुछ ना छोङा ताकी ये पागल ठाकुरजी को जूठन ना खिला सके पर उसने फिर भी सभी पत्तलों को पोंछ-पाछकर एक निवाल इकट्ठा किया और अपने मुख में डाल लिया ....पर अरे ये क्या वो ठाकुर को खिलाना तो भूल ही गया अब क्या करे उसने वो निवाला अन्दर ना सटका की पहले मैं खा लूंगा तो ठाकुर का अपमान हो जायेगा और थूका तो अन्न का अपमान होगा ....करे तो क्या करें निवाल मुँह में लेकर ठाकुर जी के चरणों का ध्यान लगा रहा था की एक सुंदर ललाट चेहरा लिये बाल-गोपाल स्वरूप में बच्चा पागल जज के पास आया और बोला क्यों जज साहब आज मेरा भोजन कहाँ है जज साहब मन ही मन गोपाल छवि निहारते हुये अश्रू धारा के साथ बोले ठाकुर बङी गलती हुई आज जो पहले तुझे भोजन ना करा सका ...पर अब क्या करुं ...?**तो मन मोहन ठाकुर जी मुस्करा के बोले अरे जज तू तो निरा पागल हो गया है रे जब से अब तक मुझे दूसरों का जूठन खिलाता रहा ...आज अपना जूठन खिलाने में इतना संकोच चल निकाल निवाले को आज तेरी जूठन सही ...जज की आंखों से अविरल धारा निकल पङी जो रुकने का नाम ना ले रही और मेरा ठाकुर मेरा ठाकुर कहता-कहता बाल गोपाल के श्रीचरणों में गिर पङा और वहीं देह का त्याग कर दिया ....और मित्रों वो पागल जज कोई और नहीं वही (पागल बाबा) थे जिनका विशाल मंदिर आज वृन्दावन में स्थित है तो दोस्तो भाव के भूखें हैं प्रभू और भाव ही एक सार है..और भावना से जो भजे तो भव से बेङा पार है..!!* *जय जय श्री राधे* 🌼🦚🌷🙏🏻🌷🦚🌼*** Good day Thursday ** Jai Shri Hari Vishnudev **Have a good day*0⃣7⃣❗0⃣1⃣❗2⃣0⃣2⃣1⃣* God gave testimony under the control of the devotee….* There was a Panditji who considered Sribanke Bihari Lal very much,

*🌹(((( अहंकार की रस्सी )))) by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🌹एक बार एक गुरुदेव अपने शिष्य को अहंकार के ऊपर एक शिक्षाप्रद कहानी सुना रहे थे।.एक विशाल नदी जो की सदाबहार थी उसके दोनो तरफ दो सुन्दर नगर बसे हुये थे! .नदी के उस पार महान और विशाल देव मन्दिर बना हुआ था! .नदी के इधर एक राजा था, राजा को बड़ा अहंकार था.. कुछ भी करता तो अहंकार का प्रदर्शन करता.. .वहाँ एक दास भी था, बहुत ही विनम्र और सज्जन!.एक बार राजा और दास दोनो नदी के वहाँ गये.. राजा ने उस पार बने देव मंदिर को देखने की इच्छा व्यक्त की....दो नावें थी रात का समय था, एक नाव मे राजा सवार हुआ, और दूसरी मे दास सवार हुआ, दोनो नाव के बीच मे बड़ी दूरी थी!.राजा रात भर चप्पू चलाता रहा पर नदी के उस पार न पहुँच पाया...सूर्योदय हो गया तो राजा ने देखा की दास नदी के उसपार से इधर आ रहा है! .दास आया और देव मन्दिर का गुणगान करने लगा.. .राजा ने कहा की तुम रातभर मन्दिर मे थे! दास ने कहा की हाँ, और राजाजी क्या मनोहर देव प्रतिमा थी... पर आप क्यों नही आये!.अरे मेने तो रात भर चप्पू चलाया पर ......गुरुदेव ने शिष्य से पुछा वत्स बताओ की राजा रातभर चप्पू चलाता रहा पर फिर भी उस पार न पहुँचा? ऐसा क्यों हुआ? .जब की उस पार पहुँचने मे एक घंटे का समय ही बहुत है!.शिष्य - हे नाथ, मैं तो आपका अबोध सेवक हुं.. मैं क्या जानु आप ही बताने की कृपा करे देव!.ऋषिवर - हे वत्स, राजा ने चप्पू तो रातभर चलाया पर उसने खूंटे से बँधी रस्सी को नही खोला!.और इसी तरह लोग जिन्दगी भर चप्पू चलाते रहते है, पर जब तक अहंकार के खूंटे को उखाड़कर नही फेकेंगे आसक्ति की रस्सी को नही काटेंगे, तब तक नाव देव मंदिर तक नही पहुंचेगी!.हे वत्स, जब तक जीव स्वयं को सामने रखेगा तब तक उसका भला नही हो पायेगा! .ये न कहो की ये मैने किया, ये न कहो की ये मेरा है, ये कहो की जो कुछ भी है वो सद्गुरु और समर्थ सत्ता का है, मेरा कुछ भी नही है। जो कुछ भी है सब उसी का है!.स्वयं को सामने मत रखो, समर्थ सत्ता को सामने रखो! और समर्थ सत्ता या तो सद्गुरु है या फिर इष्टदेव है...यदि नारायण के दरबार मे राजा बनकर रहोगे तो काम नही चलेगा, वहाँ तो दास बनकर रहोगे.. तभी कोई मतलब है! .जो अहंकार से ग्रसित है, वो राजा बनकर चलता है.. और जो दास बनकर चलता है वो सदा लाभ मे ही रहता है!.इसलिये नारायण के दरबार मे राजा नही दास बनकर चलना!* * 🌹 ((((rope of ego)))) 🌹Once, a Gurudev was telling an instructive story to his disciple over his ego..Two beautiful cities were inhabited on both sides of a huge river that was evergreen!.across the river ,

सम्पूर्ण विश्व मे वैदिक सनातन संस्कृति के स्ट्रेन मिलते हैं ,by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब विश्व के किसी भी देश की सभ्यता को ध्यान से अवलोकित कीजिये आपको सनातनी शुभ चिन्ह अवश्य मिल जायेंगे , मेरे एक मित्र है कम्युनिस्ट है उनका काफी दिन पहले एक सवाल आया था कि भारतीय संस्कृति यदि इतनी ही उन्नत थी तो भारत के निकटवर्ती चीन में इसके चिन्ह क्यों नही मिलते ? इसपर जब मैंने जवाब दिया कि चीन में बौद्ध धर्म प्रचलित हैं जो वैदिक संस्कृति का ही अभिन्न अंग है तो उनका जवाब था कि बौद्ध दर्शन को मैं सनातन संस्कृति का हिस्सा नही मानता कुछ सनातन संस्कृति के चिन्ह है तो तर्क कीजिये ।तो उनको दिए जवाब को मैं आप सभी से साझा कर रहा हूँ , भारतीय इतिहासकार और कम्युनिस्ट शायद ही इसे जगह दे पाए कुतर्क की जगह - पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर चीन में मानव बसाव लगभग साढ़े बाईस लाख (22.5 लाख) साल पुराना है। चीन की सभ्यता विश्व की पुरातनतम सभ्यताओं में से एक है। यह उन गिने-चुने सभ्यताओं में एक है जिन्होनें प्राचीन काल में अपना स्वतंत्र लेखन पद्धति का विकास किया। अन्य सभ्यताओं के नाम हैं - प्राचीन भारत (सिंधु घाटी सभ्यता), मेसोपोटामिया, मिस्र और माया। चीनी लिपि अब भी चीन, जापान के साथ-साथ आंशिक रूप से कोरिया तथा वियतनाम में प्रयुक्त होती है। इन सबमे समानता रही है कैसे उसे क्रमशः साझा करूँगा - प्रथम एकीकृत चीनी राज्य की स्थापना किन वंश द्वारा २२१ ईसा पूर्व में की गई, जब चीनी सम्राट का दरबार स्थापित किया गया और चीनी भाषा का बलपूर्वक मानकीकरण किया गया। यह साम्राज्य अधिक समय तक नहीं टिक पाया क्योंकि कानूनी नीतियों के चलते इनका व्यापक विरोध हुआ। ईसा पूर्व 220 से 206 ई. तक हान राजवंश के शासकों ने चीन पर राज किया और चीन की संस्कृति पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। य़ह प्रभाव अब तक विद्यमान है। हान वंश ने अपने साम्राज्य की सीमाओं को सैन्य अभियानों द्वारा आगे तक फैलाया जो वर्तमान समय के कोरिया, वियतनाम, मोंगोलिया और मध्य एशिया तक फैला था और जो मध्य एशिया में रेशम मार्ग की स्थापना में सहायक हुआ।हानों के पतन के बाद चीन में फिर से अराजकता का माहौल छा गया और अनेकीकरण के एक और युग का आरम्भ हुआ। स्वतंत्र चीनी राज्यों द्वारा इस काल में जापान से राजनयिक सम्बन्ध स्थापित किए गए जो चीनी लेखन कला को वहां ले गए।580 ईसवीं में सुई वंश के शाशन में चीन का एक बार फ़िर एकीकरण हुआ और खंडित चीन के उत्तरी और दक्षिणी भागों को जीतकर उसे संगठित किया। सुई व्यवस्था में अमीरों-ग़रीबों का अंतर घटने के लिए भूमि पुनर्वितरण किया गया (यानि बराबरी से बांटी गई), सरकारी मंत्रालयों का ठीक से गठन किया गया और सिक्कों का मानकीकरण किया गया (क्योंकि इस से पूर्व हर राज्य अपने सिक्के ज़र्ब कर रहा था)। सैन्य शक्ति बढ़ाई गई और उत्तर में स्थित क़बीलों से बच-बचाव के लिए चीन की महान दीवार को और विस्तृत किया गया। उसी समय बौद्ध धर्म को भी सरकारी प्रोत्साहन मिला और उसके ज़रिये चीन की भिन्न जातियों और संस्कृतियों को एक-दुसरे के समीप लाया गया। चीन की 1,776 किलोमीटर लम्बी महान नहर भी उसी समय पूरी की गई, जो ह्वांग हो (पीली नदी) को यांग्त्से नदी से जोड़ती है और आज भी विश्व की सबसे लम्बी कृत्रिम नदी या नहर है।अब आइये वैदिक संस्कृति और चीन के मध्य की कड़ी को जोड़ते हैं - जिस सुई डायनेस्टी ने चीन को एकीकृत किया उस डायनेस्टी के राजा का नाम था राजा वेन - इतिहास में उन्हें यांग जिआन के नाम से जाना जाता है उनके बचपन का नाम था - नालुओयन (naluoyan) चीन की मंदारिन से यदि इसका अनुवाद करें तो इसका अर्थ होता है #नारायण , चीन के इतिहास में इन्हें शेनवांग कहा गया है जिसका अर्थ है दैवीय राजा जो धर्मस्थलों की रक्षा करता है , आज भी इनके आकृति को दाज़हूशेंग गुफाओ (Dazhusheng Cave) में उकेरा हुआ देखा जा सकता है जो लिंगुयां मंदिर (Lingquan temple) हेनान प्रोविडेंट( Henan province) में स्थिति है ।। आज भी उनकी नारायण के रूप में पूजा की जाती है जैसे नेपाल राजवंश में नेपाल नरेश को विष्णु का अवतार माना जाता रहा है ।।#विशेष - अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारतीयों को चीन के विषय में ज्ञान था। महाभारत तथा मनुस्मृति में चीनी का उल्लेख मिलता है। कौटिल्य अर्थशास्त्र में चीनी सिल्क का विवरण प्राप्त होता है। सामान्यतः ऐसा माना जाता है, कि चीन देश का नामकरण वहाँ चिन वंश (121 ईसा पूर्व से 220 ईस्वी तक) की स्थापना के बाद हुआ, अतः भारत-चीन संपर्क तृतीय शताब्दी के लगभग प्रारंभ हुआ।ईसा के बहुत पहले से ही भारत तथा चीन के बीच जल एवं थल दोनों ही मार्गों से व्यापारिक संबंध थे। प्रथम शताब्दी ईस्वी के एक चीनी ग्रंथ से पता चलता है, कि चीन का हुआंग-चे (कांची) के साथ समुद्री मार्ग से व्यापार दूतमंडल चीन भेजने को कहा। इस विवरण से स्पष्ट होता है, कि ईसा पूर्व की द्वितीय अथवा प्रथम शताब्दियों में भारत तथा चीन के बीच समुद्री मार्ग द्वारा विधिवत् संपर्क स्थापित हो चुका था। मैसूर से दूसरी शती ईसा पूर्व का चीनी सिक्का मिलता है। इस प्रकार भारत और चीन के प्रारंभिक संबंध पूर्णतया व्यापारपरक थे।चीनी सिल्क की भारत में बङी माँग थी। कालिदास ने भी चीनी रेशमी वस्त्र (चीनांशुक)का उल्लेख किया है। परंतु शीघ्र ही व्यापार का स्थान धर्म प्रचार ने ग्रहण कर लिया तथा बौद्ध प्रचारकों के प्रयत्नों के फलस्वरूप भारतीय सभ्यता चीन में व्यापक रूप से फैल गयी। लेखक : वनिता कासनियां पंजाब,,

मैं आँवला हूँ----by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब------मैं आंवला हूँ, विटामिन C का भंडार हूँ ... तीन ऋतुओं को सहकर पूर्ण फल बनता हूँ .... इस कारण हर ऋतु के ऋतुजन्य रोगों से लड़ने की क्षमता मेरे अंदर होती है ...मुझे गला दो, सेक लो, पीस लो, मेरे औषधि तत्व कम नहीं होते .....।कार्तिक मास में मेरे नीचे आ जाने मात्र से मानव शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती हैं...।में- दाह, पांडु, रक्तपित्त, अरूचि, त्रिदोष, दमा, खांसी, श्वांस रोग, कब्ज, क्षय, छाती के रोग, हृदय रोग, मूत्र विकार आदि अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति रखता हुँ..पौरूष को बढ़ाता हुँ -में आंवला हूँ..।।आयुर्वेद में मेरे बारे लिखा है...वयस्यामलकी वृष्या जाती फलरसं शिवम्॥३७॥ धात्रीफलं श्रीफलं च तथामृतफलंस्मृतम्। त्रिष्वामलकमाख्यातं धात्री तिष्यफलामृता॥३८॥ हरीतकीसमं धात्रीफलं किंतु विशेषतः। रक्तपित्तप्रमेहघ्नं परं वृष्यं रसायनम्॥३९॥ हन्ति वातं तदम्लत्वात्पित्तं माधुर्यशैत्यतः। कफं रूक्षकषायत्वात्फलं धात्र्यास्त्रिदोषजित्॥४०॥अर्थात-वयस्या, आमलकी, वृष्या, जातीफलरसा, शिव, धात्रीफल, श्रीफल, अमृतफल, तिष्यफल, अमृत जो गुण हरड़ के हैं वही गुण मुझमे हैं... में रक्तपित्त व प्रमेह को हरने वाला एवं अत्यधिक धातुवर्द्धक वा रसायन हूँ ...में आमला- अम्लरस से वायु को, मधुरस व शीत होने से पित्त को, रूक्ष वा कषाय होने से कफ को जीतता हूँ...।#गुणकारी_पक्ष1. डायबिटीज के मरीजों के लिए आंवला बहुत फायदेमंद है...पीड़ि‍त व्यक्ति अगर आंवले के रस का प्रतिदिन शहद के साथ सेवन करें तो बीमारी में राहत मिलती है... आंवला में पाया जाने वाला विटामिन सी डायबिटीज के मरीज की रोक प्रतिरोधरक क्षमता बढ़ाता है...। 2. पेट की लगभग समस्याओं में आंवला काफी लाभकारी है... एसिडिटी की समस्या होने पर आंवला बेहद फायदेमंद होता है... आंवला पाउडर, चीनी के साथ मिलाकर खाने या पानी में डालकर पीने से एसिडिटी से राहत मिलती है... आंवले का जूस पेट की सारी समस्याओं के लिए काम आता है...। 3. पथरी की समस्या में भी आंवला कारगर होता है...पथरी होने पर 40 दिन तक आंवले को सुखाकर उसका पाउडर बना लें, और उस पाउडर को प्रतिदिन मूली के रस में मिलाकर खाएं.. इस प्रयोग से कुछ ही दिनों में पथरी गल जाएगी और आप स्वस्थ रहेंगे..। 4. खून में हीमोग्लोबिन की कमी हो तो आंवले के रस का सेवन करें... आंवला शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में सहायक होता है...आंवले से खून की कमी दूर होती है जो कि अच्छा उपाय है...। 5. आंखों के लिए आंवला अमृत समान है, यह आंखों की रोशनी को बढ़ाने में सहायक होता है... इसके लिए रोजाना एक चम्मच आंवला के पाउडर को शहद के साथ लेने से लाभ मिलता है.. मोतियाबिंद के रोगियों को आंवले का सेवन करना चाहिए..। 6. बुखार से छुटकारा पाने के लिए आंवले के रस में छौंक लगाकर इसका सेवन करना चाहिए, 7- आंवला दांतों में दर्द और कैविटी हो में भी काम करता है... आंवले का रस लेकर कपूर में मिला कर मसूड़ों पर लगाने से आराम मिलता है... दांतों की किसी भी बीमारी में आंवला काफी कारगार होता है...। 7. शरीर में गर्मी बढ़ने वालों के लिए आंवला बेहतर उपाय है.. आंवले के रस से शरीर को ठंडक मिलती है...। 8. हिचकी तथा उल्टी होने की पर आंवले के रस को मिश्री के साथ दिन में दो-तीन बार सेवन करने से काफी राहत मिलेगी... हिचकी आना बंद हो जाती है जो कि काफी तकलीफदेह होती हैं...। 9. याददाश्त बढ़ाने में आंवला काफी फायदेमंद होता है... पढ़ने वाले बच्चों को आंवला अवश्य खाना चाहिए... इसके लिए सुबह के समय आंवला के मुरब्बा गाय के दूध के साथ लेने से लाभ होता है...आंवले के रस का प्रयोग भी कर सकते हैं...। 10. आंवला चेहरे पर कांति लाता है... अगर चेहरे पर दाग-धब्बे हो तो इन्हें हटाने के लिए आंवला इस्तेमाल करें... आंवले का पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाने से त्वचा झुर्रियां कम होती हैं साथ ही त्वचा निखरती है...। 11. बालों के लिए आंवले का प्रयोग होता फायदेमंद होता है... बालों को काला, घना और चमकदार बनाने के लिए आंवले के पाउडर से बाल धोने चाहिए...।साभार : वनिता कासनियां पंजाब,

किसी की मदद करने के तरीक़े बहुत हैं..by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब बस नीयत होनी चाहिए ...!! चलिये कुछ सुनाती हूँ ?....एक बिजली के पोल पर एक पर्ची लगी देख कर ...संत करीब गया और लिखी तहरीर पढ़ने लगा ..? लिखा था ..- #कृपा इसे ज़रूर पढ़ें ..इस रास्ते पर कल मेरा पचास रुपये का नोट गिर गया है, मुझे ठीक से दिखाई नहीं देता ,जिसे भी मिले #कृपया पहुंचा दे.....!!!! #पता ... ABCD.....XYZ ...####...ये तहरीर पढ़ने के बाद उस संत-महात्मा को बहुत हैरत हुई कि पचास का नोट किसी के लिए जब इतना ज़रूरी है तो तुरंत दर्ज पते पर पहुंच कर आवाज़ लगाई तो एक #बूढ़ी_औरत बाहर निकली,पूछने पर मालूम हुआ कि वो अकेली रहती हैं.. !! युवा #सन्यासी ने कहा - #माताजी ,, आपका खोया हुआ नोट मुझे मिला है ...उसे देने आया हूं ..!!ये सुनकर बूढ़ी महिला रोते हुए कहने लगीं बेटा..!!!अब तक करीब 70/75 लोग मुझे पचास का नोट दे गए हैं ...??मैं #अनपढ़, #अकेली हूं और नज़र भी कमज़ोर है.. पता नहीं कौन #बंदा मेरी इस हालत को देखकर मेरी मदद के लिए वो पर्ची लगा गया है ..!!!बहुत ज़िद करने पर माताजी ने नोट तो ले लिया लेकिन एक विनती भी कर दी कि बेटा... जाते हुए वो पर्ची ज़रूर फाड़ कर फेंक देना...!! .. उस #संन्यासी ने हां तो कर दिया लेकिन उसके ज़मीर ने उसे सोचने पर मजबूर कर दिया कि इससे पहले भी सभी लोगों से #बूढ़ी महिला ने वो पर्ची फाड़ने के लिए कहा होगा मगर जब किसी ने नहीं फाड़ा तो मैं क्यों फाड़ूं ..??फिर मैं उस आदमी के बारे में सोचने लगा कि वो कितना दिलदार रहा होगा जिसने मजबूर #औरत की मदद के लिए ये रास्ता तलाश कर लिया ..मैं उसे #आशीर्वाद देने पर मजबूर हो गया ..!!किसी की मदद करने के तरीक़े बहुत हैं.. बस नीयत होनी चाहिए.!!साभार : वनिता कासनियां पंजाब,

आज कथातथित समाजसेवी और भारत की पहली महिला शिक्षिका by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब सावित्रीबाई_फुले का अवतरण दिवस है। इनका जन्म ३ जनवरी १८३१ को हुआ था।हमारे देश के इतिहासकारो का कहना है कि, इनके अवतार लेने से पूर्व इस देश मे हजारो वर्षो से कथातथित निम्न वर्गो और स्त्रियो को शिक्षा का अधिकार नही था। १९ वी शताब्दी मे युरोप के ब्रिटीश साम्राज्य के कुछ अधिकारियो द्वारा १८०० से १८४० तक भारत के अलग-अलग राज्यो सर्वेक्षण मे किये।जिसे धर्मपालजी ने अपनी पुस्तक "The beautiful Tree" मे संकलित किया। इन रिपोर्ट से स्पष्ट होता है कि भारत के अलग राज्यो मे शालाये थी जो ब्राम्हणो की देखरेख मे चलती थी। ब्राम्हणो की शालाओ मे ब्राम्हण, क्षत्रिय और वैश्यो से अधिक शुद्रो और अन्य जाती के छात्रो की संख्या तीन गुणा अधिक होती थी। उन शालाओ मे ब्राम्हण शिक्षको के अतिरिक्त ३० अन्य जातीयो (धोबी, नाई, चांडाल, कुम्भकार आदि) के शिक्षक भी थे और कई शालाओ मे महिला शिक्षिका भी थी। अधिकतर महिला शिक्षिकाएँ घर पर ही कन्याओ को शिक्षाएँ देती थी।परंतु उन शालाओ मे ब्राम्हण, क्षत्रियो और वैश्यो की कन्याएँ न पढती थी । कन्याओ की शिक्षा अधिकतर घरो मे ही होती थी। शूद्रो और अन्य जातीयो की कन्याएँ भी न के बराबर थी। क्योकि वे भी घरो मे ही शिक्षा ग्रहण करती थी। वैसे शिक्षा के अतिरिक्त अन्य रुचिकर कलाएँ(नृत्य, संगीत, कढाई, आदि )सिखाने के लिये शालाएँ होती थी, जिसमे बालको से अधिक कन्याएँ होती थी। सर थॉमस मुनरे १८२७ की अपनी रिपोर्ट मे तो ये भी लिखते है कि भारत के १००% लोग साक्षर थे।अब प्रश्न ये उठता है कि जब भारत मे १००% लोग शिक्षित थे तो ऐसा क्या हुआ कि १८४० के बाद सभी शूद्र और स्त्रियो का शिक्षा का अधिकार छीन लिया गया? कौन है इसके लिए जिम्मेदार? आप कभी सावित्रिबाई की जीवनी पढेंगे तो उसमे पुरा का पुरा झुठ का पुलिंदा बनाया गया है। इनका जन्म १८३१ मे हुआ और वे जब १० वर्ष की रही होगी तब १८४० के आसपास का वर्ष रहा होगा। तो क्या इनके जन्म लेने के बाद शूद्रर ओर स्त्रिया अशिक्षित हो गई होगी? विचार कीजिये।स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण अधिक न लिख पाऊँगा। नीचे कुछ रिपोर्ट के स्क्रिनशाॅट है। अधिक जानने के लिये धर्मपालजी की पुस्तक "The beautiful Tree" पढिये।नोट- सावित्रीबाई भी बचपन से बाईबल पढती थी और वे भी ज्योती फुले की तरह बचपन से ही ब्रिटीश अधिकारियो और ईसाई मिशनरियो की देखरेख मे शिक्षा ग्रहण कर रही थी। कितना पढाई की थी? 8वीं पास? लेखक : वनिता कासनियां पंजाब,। Today is the incarnation day of the famous social worker and India's first female teacher #Savitribai_Fule. He was born on January 3, 1831. Historians of our country say that, before his incarnation, there were thousands in this country.

आमला कैंडी सबको बहुत पसंद आती है. by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब बिन मौसम के आवला का फायदा लेना हो तो आवला कैंडी से बेहतर कुछ नहीं हो सकता. मुरब्बे की तरह एक्स्ट्रा चीनी consume करने का डर भी नहीं है और लम्बे समय तक आसानी से preserve भी कर सकते है. अक्सर लोग बच्चों के लिए कैंडी लाते हैं लेकिन स्वादिष्ट होने के कारण ये बहुत जल्द ख़त्म हो जाती है . मार्केट में अक्सर पिछले सीजन की रखी हुई आमला कैंडी ही मिलती है. यदि इसे घर पर बनाया जाये तो ताज़ी उपलब्ध होगी और जेब पर भी भारी नहीं पड़ेगी.#आवश्यक_सामग्री ----- आंवला - 1 किलोग्राम , चीनी - 700 ग्राम#विधि ----- (1) आवले ठीक से साफ़ करके उबलते पानी में डाल दें पानी इतना ही रखें की आवले केवल डूब जाएँ. जब आंवले ठीक से पक कर उनकी फांके फटने लगे तो आंच बंद करके आवलों को बाहर पानी से बाहर निकाल कर ठंडा होने दें.(2) अब आंवलों को हल्का दबाकर उनके बीज निकाल दें.(3) किसी स्टील के बर्तन में बीज निकाले हुए आंवले की फांके डालकर ऊपर से चीनी डाल दें. लगभग 12 घंटे बाद आप देखेंगे की सब चीनी घुल गयी है और आवले तैर रहे हैं. इसे अभी ऐसे ही पड़ा रहने दें.(4) दो दिन बाद आप देखेंगे की आंवलों का आकार पहले से कुछ सिकुड़ गया है और वो बर्तन की तली में बैठ गए हैं.(5) जब सारे आवले बर्तन की तली में बैठ जाएँ तो इन्हें किसी छन्नी की सहायता से छान लें और जब सारा पानी निकल जाये तो धूप में सुखा लें.(6) धूप में इतना ही सुखाएं की आवले की ऊपरी सतह की नमी ख़त्म हो जाये ज्यादा सुखा देने से ये कड़े हो जाते हैं. अब दो तीन चम्मच चीनी और दो छोटी इलायची आपस में पीसकर इस पाउडर को सूखे हुए आवलों पर छिड़क कर ठीक से मिक्स कर लें. और कांच के बर्तन में सुरक्षित रख लें.यदि चटपटी बनानी हो तो आधा चम्मच काला नमक तीन चम्मच चीनी चौथाई चम्मच काली मिर्च चौथाई चम्मच दालचीनी मिलाकर पीसें और इससे कोटिंग करें.ज्यादा मात्रा में बनाये तो चीनी और आवले का अनुपात यही रखें. चीनी कम लेने से ठीक नहीं बनता और जल्दी खराब हो जाता है चीनी ज्यादा रखने से आवले का पानी ज्यादा निकल जाता है और बहुत कड़े बनते हैं.साभार : वनिता कासनियां,। Everyone loves amla candy. There is nothing better than Amla Candy if you want to take advantage of Amla without season. There is also no fear of consuming extra sugar like marmalade and easily preser for a long time,,

The owner of this cow used to hear dogs barking at night so he decided to put CCTV cameras. And saw this unbelievable incident that one Leopard comes daily at night to meet the cow and the cow licks him with her tounge.The owner immediately called the previous owner of the Cow and explained to him what he had seen. He came to know that the Leopard mom died when he was 20 days old and the cow fed her milk to the baby Leopard.Since then, the Leopard still thinks that the cow is his mom. And she comes daily at night to see her "mother" .Copied,

This morning, at the Art of Living center's Goshala at Bangalore - this beautiful incident was recorded when the volunteers had gone to do Seva (cleaning of Gobar/Cow Dung)..🦯🐂Cows loved him & his flute, rekindling Pauranic Memories of Shri Krishna Vnita kasnia Punjab 🙏,

शुभ गौ रात्रि ......... वंदे गौ मातरम् Good night ......... Vande Gau Mataram,

गोवंश व अन्य पशुओं के लिए परम आवश्यक है, by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब सैंधा_नमकआवश्यक मात्रा मैं नमक प्रत्येक जीवधारी के लिए जरूरी है जो पानी पीता है सांस लेता है। हमारे शरीर में जब किसी Minerals की कमी हो जाती है तो हम झट से Multivitamin या उस खनिज लवण की पूर्ति के लिए क्या नहीं करते कभी यह खाते हैं कभी वह खाते हैं कोई गूगल तो कोई YouTube खंगालता है..... लेकिन चौपाई दुधारू पशुओं में जब खनिज लवण नमक कैल्शियम की कमी हो जाती है तो पशु अंदर ही अंदर खोखला होने लगता है गंभीर लक्षण प्रदर्शित होने में पशुओं में 1 साल लग जाते हैं। बेचारा पशु कभी मिट्टी खाता है तो कभी कपड़े कभी अपने मूत्र को ही चाटने पीने है दीवारों को चाटने लगता है। पहले प्रत्येक राजस्व ग्राम में गोचर भूमि सार्वजनिक खलियान होते थे जहां पर गाय आदि पशु चरने के लिए जाते थे बहुत सी वनस्पतियों को खाकर अपने शरीर में नमक की पूर्ति कर लेते थे। दो पैरों वाले जंतुओं ने चारागाह आदि स्थलों पर अतिक्रमण कर लिया है तो अब पशु केवल चार दिवारी खूंटा से बंध कर रह गया है। पशुओं को नमक ना मिलने से पशु कम पानी पीता है यह शिकायत अधिकांश पशुपालकों को रहती है सर्दियों में विशेष दुधारू पशु जब कम पानी पिएगा तो वह दूध कैसे देगा दूध में 87 फ़ीसदी जल ही होता है.... नमक पशुओं के पेट में आंतों में जाकर पशुओं के पेट की अम्लता ( acidity) कम करता है कुछ अमीनो एसिड प्रोटीन को पचाने में मदद करता है नमक पशुओं के शरीर में लार ग्रंथियों को उत्तेजित कर पाचक रस बनाता है जिससे पशु का पाचन दुरुस्त होता है पशु खाए हुए चारे को अच्छी तरह पचआता है पशुओं को कब्ज मल मूत्र में दुर्गंध नहीं होती देखा गया है नमक की कमी से दूध में भी विशेष दुर्गंध आने लगती है .... पशु के पेट में कीड़े , फंगस को भी नमक खत्म करता है.... जितना जरूरी पशु के लिए दाना पानी है उतना ही जरूरी आवश्यक मात्रा में नमक है... खाने योग्य नमक के तीन प्रकार उपलब्ध है सबसे उत्तम सेंधा नमक फिर काला नमक और फिर साधारण समुद्री नमक.... सेंधा नमक जिसे लाहौरी नमक रॉक साल्ट हिमालय नमक कहा जाता है सर्वाधिक उत्तम होता है क्योंकि इसमें सोडियम क्लोराइड के अलावा मैग्नीशियम कॉपर आयरन जैसे अन्य जरूरी मिनरल भी होते हैं.... पशु को यदि दैनिक 15 से 20 ग्राम सेंधा नमक खिलाया जाए तो उसके सभी आवश्यक खनिज की पूर्ति हो जाती है.... जिसकी कमी दुधारू पशुओं में दूध देने के दौरान गर्भवती पशुओं में बच्चे की वृद्धि के दौरान होती है.... पहले गांव देहात में बुजुर्ग 5 से 7 किलो सेंधा नमक के ठोस क्रिस्टल पिंड को पशुओं के आसपास पशुओं के बाड़े में रख देते थे जब जब पशु को किसी भी खनिज की कमी होती थी नमक के अलावा पशु उसे चाट कर उसकी पूर्ति कर लेता था.... अब ऐसा दिखाई नहीं देता.... सेंधा नमक या लाहौरी नमक केवल व्रत का ही नमक नहीं है यह सभी जीव धारियों के लिए बहुत जरूरी है ..... लेकिन नियति का खेल तो देखिए गौ माता के लिए बहुत लाभदायक यह नमक गौ भक्षको के इलाके में चला गया अर्थात पाकिस्तान में चला गया दरअसल सेंधा नमक का पहाड़ पर्वतराज हिमालय का हिस्सा है जो अब पाकिस्तान की झेलम डिस्ट्रिक्ट के खेवडा की खदानों से निकाला जाता है झेलम डिस्ट्रिक्ट हमारे पंजाब का हिस्सा था पार्टीशन में यह इलाका उधर चला गया भारत को यह आयात करना पड़ता है ... अंत में इतनी ही अपील है जागरूक पशुपालकों को अपने पशुओं को 10 से 20 ग्राम दैनिक यह नमक देना चाहिए .... इससे पशु सदैव स्वस्थ दुधारू बना रहेगा............ समय से पशु नया दूध अर्थात प्रेग्नेंट होगा| लेखक : Vnita Kasnia Punjab, Is essential for cow and other animals, # sandha_namakSalt in the required quantity is necessary for every living person who drinks water and breathes. When there is a shortage of any minerals in our body, then we immediately ,

#पुंगनूर_गौ_____by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब यह गाय का बछड़ा या बछड़ी नहीं पूरी वयस्क गाय है।दुनिया की सबसे छोटी गाय की नस्ल भारतवर्ष में ही पाई जाती है। बेहद अनोखी सुंदर होती है बोनी नस्ल की यह दक्षिण भारतीय देसी गौ माता .... जिसे पुंगनूर कहा जाता है यह आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के पुंगनूर इलाके में पाई जाती है इसकी ऊंचाई अधिकतम 3 फिट होती है।4 से 5 किलो दाने पानी सूखा हरा जैसा भी हो उसमें इसका पेट भर जाता है 3 से 5 लीटर दूध देती है। जबरदस्त खासियत यह है इस के दूध में फैट की मात्रा 8 से लेकर 9% होती है आमतौर पर गाय के दूध में चाहे देसी नस्ल हो या विदेशी उनके दूध में फैट की मात्रा 3 से 5 फ़ीसदी तक होती है लेकिन #पुंगनूर_गाय दूध के गाढ़ापन के मामले में यह भैंसों को भी मात दे देती है... बहुत ही गुणकारी इसका दूध होता है मात्रा बेशक भले ही कम हो... वैसे इसके आकार खुराक के हिसाब से दूध की मात्रा कम नहीं है। जिनको गाय के दूध से पतलेपन से शिकायत होती है उनके लिए यह सर्वश्रेष्ठ विकल्प है बहुत कम जगह में बहुत कम प्रबंध में इसका पालन किया जा सकता है। भीषण सूखे अकाल में भी है रुखा सुखा खाकर दूध देती है drought resistance नस्ल है.... लेकिन चिंता की बात यह है सरकारी मूर्खता जर्सी एचएफ से क्रॉस कराने के कारण यह गाय कुछ सैकड़ों ही नस्ली शुद्धता में आंध्र प्रदेश में बची है... 200 के लगभग गाय #तिरुमला_तिरुपति_बालाजी मंदिर के प्रांगण में है.... वहां उनकी विशेष देखरेख होती है.... #आंध्र_प्रदेश के दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में यह देखने को मिल जाती है.... छोटी सी सुंदर देसी गौ माता की खूबियों से परिचित होने पर #आंध्र_प्रदेश_सरकार ने 70 करोड रुपए की धनराशि अक्टूबर 2020 में इस गाय की नस्ल को बचाने के लिए आवंटित की है... देखते हैं क्या होता है? लेखक : Vnita Kasnia,

105 साल की उम्र में परीक्षा पास कर दूसरी महिलाओं के लिए बनी मिसालBy: समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबशिक्षा हासिल करने की उम्र नहीं होती. पूरी जिंदगी शिक्षा के लिए बचा है. अगर कोई चाहे तो आखिरी वक्त तक कोशिश कर शिक्षित हो सकता है. इसको सी साबित किया है 105 साल की बुजुर्ग महिला ने.105-year-old grandma passes Class 4 equivalency examपढ़ाई की कोई उम्र नहीं होती और ना ही कोई सीमा. बस सिर्फ कुछ कर गुजरने का जज्बा होना चाहिए. इस बात को सच साबित किया है कोल्लम निवासी 105 वर्षीय बुजुर्ग महिला ने. इनका कमाल ऐसा है कि दुनिया दंग है और युवा उन्हें बतौर मिसाल एक आदर्श के तौर पर ले रही हैं.कैसे पास की परीक्षा अम्मा ने ?105 वर्षीय भागीरथी अम्मा केरल राज्य की सबसे बुजुर्ग छात्रा बन गयी हैं. उन्होंने चौथी क्लास की परीक्षा में 74.5 फीसद नंबरों के साथ कामयाबी हासिल की. अपनी सफलता की खबर पाकर अम्मा कहती हैं, “मैं ये जानकर बहुत खुश हूं कि मैंने अपनी परीक्षा पास कर ली है. आगे अगर मेरी सेहत ने साथ दिया तो अगली परीक्षा देने की कोशिश करुंगी.”अम्मा सेंटर पर जाकर साक्षरता परीक्षा देने में असमर्थ थीं. इसलिए उन्होंने पंचायत सदस्य की निगरानी में अपने घर पर 2019 के नवंबर महीने में परीक्षा दी. जब नतीजा आया तो उन्हें पास दिखाया गया. उनकी कामयाबी पर पंचायत अध्यक्ष चंद्रशेखर पिल्लई ने घर जाकर उन्हें सम्मानित किया. साक्षरता परीक्षा में कामयाबी के बाद भागीरथी को केरल स्टेट लिटरेसी मिशन (KSLM) का ब्रांड एंबेडर बनाया गया है. KSLM का ब्रांड एंबेसडर बनने से दूसरी औरतों को अपनी अधूरी पढ़ाई को फिर से शुरू करने का हौसला मिलेगा.KSLM से जुड़े प्रदीप कुमार ने अम्मा को नतीजे के बारे में बताया. प्रदीप कुमार कहते हैं, “अपने नतीजे को जानकर अम्मा बहुत उत्साहित हुईं. कुछ दिन पहले तक अम्मा आयु संबंधी समस्याओं के कारण बीमार थीं. उस वक्त भी अम्मा अपने नतीजे को लेकर चिंता में थीं. ”कौन हैं भागरीथी अम्मा ? 105 वर्षीय भागरीथी अम्मा की शादी कम उम्र में ही हो गयी थी. 30 साल की जब उनकी उम्र हुई तो उनके पति की मौत हो गयी. उस वक्त अम्मा गर्भवती थीं. पति की मौत के बाद उन्हें अपने परिवार की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी. मेहनत-मशक्कत कर उन्होंने चार बेटियों और दो बेटों की परवरिश की. अभी उनकी सबसे छोटी बेटी की उम्र 70 साल की है.,An example made for other women at the age of 105 by passing the examBy: Socialist Vanita Kasaniyan PunjabThere is no age to get education. The whole life is left for education. To the end if anyone wants,

अगली ख़बरपहेली सॉल्व करने पर देना होता था टैक्स...जानें बजट के ऐसे ही फैसलों के बारे मेसस्ता घर खरीदने का मौका! 8 जनवरी को PNB बेच रहा 3080 मकान, चेक करें पूरी डिटेल्सक्या आप भी नए साल में सस्ता घर खरीदने का प्लान कर रहे हैं. तो आपके पास एक अच्छा मौका है पंजाब नेशनल बैंक (Punjab national bank) 8 जनवरी 2021 को सस्ते रेससिडेंशियल और कॉमर्शियल प्रापर्टी की नीलामी करने जा रहा है.पहेली सॉल्व करने पर देना होता था टैक्स...जानें बजट के ऐसे ही फैसलों के बारे मेसस्ता घर खरीदने का मौकाNEWS HINDILAST UPDATED: JANUARY 6, 2021, 9:07 AM LTS, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब: क्या आप भी नए साल में सस्ता घर खरीदने का प्लान कर रहे हैं. तो आपके पास एक अच्छा मौका है पंजाब नेशनल बैंक (Punjab national bank) 8 जनवरी 2021 को सस्ते रेससिडेंशियल और कॉमर्शियल प्रापर्टी की नीलामी करने जा रहा है. IBAPI (Indian Banks Auctions Mortgaged Properties Information) की ओर से इस बारे में जानकारी दी गई है. इसमें 3080 रेसिडेंशियल प्रापर्टी हैं. बता दें ये वो प्रापर्टी हैं जो डिफॉल्ट की लिस्ट में आ चुकी हैं.PNB ने किया ट्वीटPunjab Nationl Bank ने ट्वीट करके अपने ग्राहकों को बताया है. PNB में ट्वीट में लिखा कि प्रॉपर्टी में निवेश करना चाह रहे हैं? तो आप 8 जनवरी 2021 को पीएनबी ई-नीलामी में हिस्सा ले सकते हैं. इस नीलामी में रेसिडेंशियल और कॉमर्शियल प्रापर्टी सस्ते में खरीद सकते हैं.यह भी पढ़ें: 17 फीसदी गिरावट के बाद आज bitcoin में तेजी, जल्द एक करोड़ हो सकती है 1 सिक्के की कीमत!बैंक समय-समय पर करता है नीलामीबता दें जिन भी प्रापर्टी के मालिकों ने उनका लोन नहीं चुकाया है. ये किसी कारणवश नहीं दे पाएं हैं उन सभी लोगों की जमीन बैंकों के द्वारा अपने कब्जे में ले ली जाती हैं. बैंकों की ओर से समय-समय पर इस तरह की प्रापर्टी की नीलामी की जाती है. इस नीलामी में बैंक प्रापर्टी बेचकर अपनी बकाया राशि वसूल करता है.कितनी हैं प्रापर्टीबता दें इस समय 3080 रेसिडेंशियल प्रापर्टी हैं. इसके अलावा 873 कॉमर्शियल प्रापर्टी, 465 इंडस्ट्रियल प्रापर्टी, 11 एग्रीकल्चर प्रापर्टी हैं. इन सभी प्रापर्टियों की नीलामी बैंक की ओर से की जाएगी.यह भी पढ़ें: Indian Railways: 6 जनवरी तक रेलवे ने कैंसिल कर दीं ये सभी ट्रेनें, फटाफट चेक करें पूरी लिस्ट!इस लिंक से लें अधिक जानकारीप्रापर्टी की नीलामी के बारे में अधिक जानकारी के लिए आप इस लिंक पर विजिट https://ibapi.in/ कर सकते हैं. बैंक के मुताबिक वह संपत्ति के फ्रीहोल्ड या लीजहोल्ड होने, स्थान, माप समेत अन्य जानकारियां भी नीलामी के लिए जारी सार्वजनिक नोटिस में देता है. अगर ई-नीलामी के जरिये प्रॉपर्टी खरीदना चाहते हैं तो बैंक में जाकर प्रक्रिया और संबंधित प्रॉपर्टी के बारे में किसी भी तरह की जानकारी ले सकते हैं. नीलामी की प्रक्रिया 29 दिसंबर को की जाएगी. Next newsHad to pay tax on solving the puzzle ... Learn about similar decisions of the budgetCheap home buying opportunity! PNB selling 3080 houses on 8 January, check complete detailsDo you also have a cheaper house in the new year,

Zindgi ki raho me tum b chod gye aakhir..... By Vnita Kasnia punjab Bade humdrd bntey the mera dil tod gye aakhir..... Tum pe to bda maan tha meri umeedo ko..... Ab kis se gila kru tum hi muh mod gye aakhir.... Log to chlo log the unhone jo kiya so kiya.... Bhari duniya me aj tum b tanha chod gye aakhir..... Tum to kehte the hum wo nhi jo chode apno ko...... Apne wade apni ksme khud hi tod gye aakhir......,

एक मारबाड़ी सेठ बरसाने गया ,by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब उसको कुछ दिन बरसाना रुकना था। उसका एक नियम था। भोजन करने से पहले किसी संत को भोजन करता था फिर खुद करता था। एक दिन भोजन का समय था , सेठ ने नौकर भेजे जाओ संत बुला कर लाओ। उस दिन श्री जी ऐसी इच्छा हुई कही बहुत बड़ा भंडारा था सारे संत भंडारे में चले गये। बरसाने में कोई संत नहीं मिला। श्री जी मंदिर कि सीढ़ी पर एक पागल सा बीड़ी फुक रहा था। नौकरो ने सोचा ना संत मिलेगा ना सेठ भोजन करेगा ना हमको करने देगा। एक दो लाल पीले कपडे बाजार से लिए और एक उसे पागल के गले में उड़ा दिया एक उसके सर पे पहना दिया, और उसका तिलक कर दिया और उसको कहा के तू संत है। हमारे सेठजी अच्छी दक्षिणा देते है।सेठजी के सामने कुछ मत बोलना हम कह देंगे के मोनी बाबा है।उसको सेठजी के पास ले गए। सेठ जी ने उसको बैठाया चरण धोये, थाल सजाया. अभी गरम हलुआ परोसा ही था , वो बेचारा था मांगने वाला भिखारी जैसे ही हलुआ देखा उठा के खाने लगा सेठ ने कहा तू खड़ा हो जा तू नकली है तू संत नहीं है .संत जब भोजन करते है पहले प्रार्थना करते है उसके बाद भोजन पाते है। उसको भगा दिया वो भूखा रोता रहा। सेठजी ने प्रार्थना की श्री जी मैंने अपनी पूरी कोशिश कर ली.उसके बाद सेठजी ने भोजन कर लिया। भिखारी भूखा रोता रहा। रात को सेठ के सपने में किशोरी जू आयी , किशोरी जू ने कहा , '' उसको भूखा उठा दिया बहुत बड़ा दानवीर बनता है. सेठ ने कहा ,'' महारानी वो संत नहीं था वो पाखंडी था. किशोरी जु ने कहा ,'' सेठ एक दिन खिलाना पड़ गया तो संत का संत तत्व देख रहा है।में उस पाखंडी को चालीस साल से खिला रही हु ,, वो आज तक भूखा नहीं सोया मैंने तो आज तक पूछा नहीं के वो संत है या पाखंडी है .... 🙏🌹#अलबेली #सरकार #की #जय। 🙏🌹#जय #जय #श्री #राधे ,। A Marbari went to show Seth, he had to stay for a few days.He had a rule.Before taking food, he used to eat a saint and then used to do it himself.One day it was time for lunch, Seth sent servants to go and bring saints.,

खजूर के पत्तों से बनाई गई अद्धभुत क्लाकृति by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब,Awesome culture made from palm leaves,